अनउपयोगी सागभाजी का पशुपोषण
पशुपालन व्यवसाय में गुणवत्तायुक्त पोषण की कमी के कारण पशुओ का उत्पादन बढ़ाना एक बड़ी समस्या है। आज हम पशुओ की पुराणी परंपरा एंव तरीको से जो पोषण दे रहे है, उसके द्वारा इस कमी को पूरा नहीं किया जा सकता। अब समय आगया है की पशुपालक भाई बहनो को पशुपोषण के नए एवं अपारंपरिक विकल्पों को तलाशना है और अपनी आवश्यकतानुसार इनका विविध प्रकार से उपयोग करना है। इस कड़ी के अंतर्गत आज हम अतिरिक्त या उपयोग नहीं हो अनउपयोगी सागभाजी को किस तरह से पशुआहार में उपयोग कर सकते है (Vegetable waste cattle feed), इसकी जानकरी दे रहे है।
साधारणता यह देखने में आया है की हमारे यहां के ग्रामीण बाजार में जो सागभाजी बिक नहीं सकी या उपयोग में नहीं ले सके तो शीतगृह सुविधा के अभाव में यह सागभाजी बर्बाद हो जाती है। यह सागभाजी पशुओ के लिए एक उत्तम आहार है। इस अनउपयोगी सागभाजी को पशुआहार (vegetable waste cattle feed) के रूप में उपयोग में लेनी की एक वैकल्पिक तकनीक है, इसे सायलेज में परिवर्तित कर के संग्रह कर लो और आवश्यकतानुसार लंबे समय तक पशुओ को आहार के रूप में देना।
अनेक पशुपालक “घासचारे” का सायलेज बनाने की तकनीक से परिचित है। इसी तकनीक को उपयोग में लेते हुवे हम अनउपयोगी सागभाजी को सायलेज में परिवर्तन कर संग्रह कर सकते है। अनेक प्रयोग एवं अभ्यास से यह प्रमाणित हुवा है की मिश्र सागभाजी का सायलेज बनाके संग्रह किया तो यह पशुओ के लिए एक उत्तम वैकल्पिक पशुआहार बन सकता है। कभी सिर्फ हमे सायलेज बनाने की योग्य तकनीक का ध्यान रखना है। हमारे देश में हर मौसम में विविध प्रकार की सागभाजी का उत्पादन होता है। कभी उत्पादन बहोत ज्यादा हो जाता है और कभी बिक नहीं पता है और समय पर उपयोग न होने के कारण तथा योग्य संग्रहण की सुविधा में यह बर्बाद हो जाता है।
विश्व में सागभाजी के उत्पादन में भारत का दुसरा क्रमांक है। हमारे यहां योग्य संग्रहण की सुविधा न होने से सागभाजी का ४०-५० % हिस्सा अनेक कारणों से बर्बाद या बेकार हो जाता है, जो करीब ४४०० अरब डॉलर्स के बराबर है। सागभाजी में रेषे की प्रचुर मात्रा होती है। कंदवर्गोंय सागभाजी (आलू , बिट शकरकंदी ई.) में शक्ति की मात्रा अधिक होती है। यह सब पशु पोषण हेतु योग्य आहार साबित हो सकता है। इस अनउपयोगी सागभाजी का सायलेज बनाकर हम पशुआहार पर होने वाले खर्च को कम कर सकते है तथा पशुओ की तंदुरस्ती एवं उत्पादन को भी बरकरार रख सकते है। आज भी गांव या शहरों के सागभाजी बाजार में अनेक लोग अनउपयोगी सागभाजी को इकठ्ठा कर के अपने पशुओ को खुराक के रूप में देते है, मुख्यतः सुवर, बकरी, गाय ईत्यादि।
“एसोचेम” (ASSOCHAM) में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में ६३०० शीतगृह उपलब्ध है। इनकी कुल संग्रहण क्षमता ३०.११ दसलक्ष टन है। याने शीघ्र खराब होनेवाले पदार्थ उदा. दुध, सागभाजी ईत्यादि को संग्रह करने की संभावना बहुत ही कम है। इनके संग्रहण का अन्य विकल्प नहीं होने से किसान को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। हमारे दक्षिण राज्यों मे सागभाजी का उत्पादन बहुत बड़े क्षेत्र मे रहा है। इस संपूर्ण उत्पादन को संग्रह करने का हेतु शीतगृह बनाना और उनको चलाने हेतु निरंतर बिजली की आपुर्तो करना है तो विपुल धनराशी की जरुरत होगी। याने शीतगृह संग्रहण की व्यवस्था सिर्फ अधिक मुख्य वाले उत्पादों के लिए ही उपलब्ध होगी ना के सागभाजी के लिए यह एक चिंताजनक बात है।
हमारे देश के छोटे या मध्यम श्रेणी किसान, आज भी अनउपयोगी सागभाजी का उपयोग छोटे एवं बड़े पशुओ के आहार के रूप में वापरते है। परंतु यह काम अभी बहोत छोटे स्तर एवं व्यक्तिगत तौर पर विशेष क्षेत्र तक ही सिमित है। अनेक संशोधन एवं प्रयागो से यह सिद्ध हो चूका है की इस उपयोगी सागभाजी का विपुल उत्पादन हुआ हो, भाव नहीं मिल रहा है या मॉल नहीं बिका है तब हम इसका सायलेज बनाने की विधि से संरक्षित एवं संग्रहित कर सकते है। पशु आहार के रूप में उपयोग कर सकते है। हमारी जरुरत के हिसाब से याने पत्तेदार + स्टार्चयुक्त सागभाजी को विविध आकार की प्लास्टिक या पॉलीथिन के थैली में हवाबंद स्थिति में संग्रह कर सकते है। हवा के अभाव में खमीरीकरण की क्रिया से मिश्रण संरक्षित रहता है, इन अपरंपरिक वैकहपिक सायलेज को पशु आहार के बदले में कर सकते है।
एक ध्यानाकर्षण करनेवाली बात है की भारत में बिमा कंपनिया बहुत बड़े पैमाने पर फसल का बिमा करती है। इन कंपनियो से तालमेल कर के हम असफल हुई फसल को पशुओ की खुराक के रूप में उपयोग करने का आयोजन कर सकते है। फसल बिमा व्यवस्था के आकड़ो को ध्यान में रख कर इस संभावना को जरूर टालना चाहिए। सागभाजी प्रक्रिया संग्रहण एवं वितरण किसी एक व्यक्ति के बस की बात नहीं है। देश का शिक्षित युवावर्ग जो ग्रामीण क्षेत्र में कुछ नया उद्योग शुरू करने की जोखिम उठाने को तैयार हो तो उसके लिए यह उद्योग एक सुनहरा मौका है।