क्या है गल-घोंटू रोग और कैसे करें इसकी रोकथाम

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by Dr. Amandeep Singh
कारक
हेमोरेजिक सेप्टिसिमीया (एच.एस. या गल-घोंटू) एक संक्रामक जीवाणु रोग है जो पाश्चरेल्ला मल्टोसिडा के दो सीरोटाइपों बी 2 और ई 2 के कारण होता है। बी 2 एशिया में पाया जाता है तथा ई 2 अफ्रीका में संक्रमण फैलाता है। यह संक्रमित जानवरों में उच्च मृत्यु दर के साथ मवेशियों को प्रभावित करता है। इसे भारत में पशुओं की गंभीर बिमारियों में से एक माना जाता है।

शारीरिक और रासायनिक कार्रवाई का प्रतिरोध
तापमान: पाश्चरेल्ला मल्टोसिडा हल्की गर्मी (55 डिग्री सेल्सियस) के लिए अतिसंवेदनशील है।
कीटाणुनाशक: पाश्चरेल्ला मल्टोसिडा अधिकांश कीटाणुनाशकों के लिए अतिसंवेदनशील है।
जीवन रक्षा: दक्षिण पूर्व एशिया जैसे की भारत में मानसून बारिश के दौरान, यह माना जाता है कि जीव कई घंटों से लेकर दिनों तक पानी में जीवित रह सकते हैं।

संवेदनशील प्रजातियाँ
गाय और भैंसे गल-घोंटू के लिए अति संवेदनशील हैं और यह व्यापक रूप से माना जाता है कि भैंस गाय से भी अधिक संवेदनशील होती हैं। गल-घोंटू हालांकि भेड़, बकरी और सूअर में भी पाया जाता है। हिरण, ऊंट, हाथी, घोड़े, गधे और याक में भी लगातार इस रोग का प्रकोप देखा गया है।

प्रसारण
पाश्चरेल्ला मल्टोसिडा संक्रमित जानवरों और वस्तुओं के साथ सीधे संपर्क से संचरित होता है
मवेशी तब संक्रमित होते हैं जब वह कारक जीव को निगलते या श्वास लेते हैं
स्थानिक क्षेत्रों में 5% तक मवेशी कारक के आमतौर पर वाहक हो सकते हैं
सबसे खराब महामारी जानवरों में बरसात के मौसम के दौरान होती है
खराब खाद्य आपूर्ति तथा प्रकार का तनाव संक्रमण में वृद्धि कर सकता है
पशुओं का कम जगह में अधिक जमघट तथा बाड़े में गीली स्तिथि बीमारी का अधिक प्रसार करती है
पाश्चरेल्ला मल्टोसिडा मिट्टी या पानी में घंटों तक और संभवतः दिनों तक जीवित रह सकता है; व्यवहार्य जीव मिट्टी या चरागाह में 2-3 सप्ताह के बाद नहीं पाए जाते हैं
इस रोग का प्रसार किलनीयों तथा मच्छरों द्वारा नहीं होता
चिक्तिस्य संकेत
ज्यादातर मामले तीव्र या अतितीव्र होते हैं। इस रोग में पशुओं में निम्नलिखित संकेत देखे गए हैं:
उच्च बुखार, डिप्रेशन, स्थानांतरित करने के लिए अनिच्छा, थूक और नाक का निर्वहन, गले की दर्दनाक तथा घेंगे जैसी सूजन जो अगली टांगों के बीच तक फैली हो सकती है, लाल श्लेष्म झिल्ली, सांस लेने में परेशानी, बछड़ों के दस्त में खून का निर्वहन देखा जा सकता है
नैदानिक ​​संकेतों की शुरुआत के 6-48 घंटों के बाद पशु की मौत हो सकती है। स्वास्थ्य-लाभ बहुत कम होता है।
निदान
बुखार और गले की सूजन के साथ बरसात का मौसम, तेज़ी से बढ़ रही बीमारी सामान्य एचएस इंगित करती हैं
मरे हुए पशुओं का पोस्ट-मॉर्टम करके रोग की पुष्टि की जा सकती है
एक बाड़े में ज़रुरत से अधिक जानवर, गीली स्तिथि तथा तनाव पशुओं में बीमारी उत्पन्न कर सकता है
इस रोग में मृत्यु दर लगभग 100% है जब तक कि रोग में बहुत जल्दी इलाज नहीं किया जाता है
नैदानिक ​​संकेत विकसित करने के बाद कुछ जानवर जीवित रहते हैं
रोकथाम और नियंत्रण
स्वच्छता से रोकथाम
पशुओं को उचित मात्रा में जगह प्रदान करें
एक ही बाड़े में ज़रूरत से अधिक जानवर न रखें
बाड़े को सूखा तथा साफ़ रखें
चिकित्सीय रोकथाम
एंटीबायोटिक संवेदनशीलता परीक्षण (ए.एस.टी) विशेष रूप से आवश्यक है जिसके बाद ही पशुओं में एंटीबायोटिक दिया जाना चाहिए
निम्नलिखित एंटीबायोटिक इस रोग में प्रभावी है: पेनिसिलिन, एमोक्सिसिलिन, सेफटीओफर, स्ट्रेप्टोमाइसिन, जेंटामाइसिन, फ्लोरफेनिकोल, टेट्रासाइक्लिन, सल्फा ड्रग्स, एरिथ्रोमाइसिन, टिलिमिकोसिन, एनरोफ्लोक्सासिन,अमीकासिन और नॉरफ्लोक्सासिन
एंटीबायोटिक का प्रयोग केवल पशु चिकित्सक द्वारा ही करना चाहिए

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टीकाकरण से रोकथाम
पशुओं में बरसात के मौसम टीकाकरण करने से ये रोग नहीं फैलता
टीकाकरण से इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है
एक बार टीकाकरण करने से पशु में 6 महीने से एक साल तक की प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है
टीकाकरण अनुसूची
प्राथमिक टीकाकरण: 6 महीने की आयु और उससे ऊपर
बूस्टर खुराक: प्राथमिक टीकाकरण के 6 महीने बाद
पुन: टीकाकरण: वार्षिक

टीकाकरण की डोस/खुराक
गाय तथा भैंसों में: 2 मि.ली. त्वचा के नीचे या गहरी माँसपेशी में
भेड़, बकरी तथा सूअर: 1 मि.ली. त्वचा के नीचे

बाज़ार में मिलने वाले टीकों के नाम
रक्षा एच. एस.
रक्षा एच. एस. + बी.क्यू.
रक्षा ट्रायोवैक।

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