कड़कनाथ कुक्कुट पालन का प्रबन्धनअनूप कुमार सिंह1*, रमेश चन्द्रा2, धर्म प्रकाश श्रीवास्तव3, कैरोलिना पोटशंगबम1
- पी एच डी शोध विद्वान (पशुधन उत्पादन प्रबन्धन) राष्ट्रीय डेयरी अनुसन्धान संस्थान, करनाल
- वरिष्ठ वैज्ञानिक (पशुधन उत्पादन प्रबन्धन) राष्ट्रीय डेयरी अनुसन्धान संस्थान, करनाल
- वस्तु विषय विशेषज्ञ कृषि विज्ञान केन्द्र, गाजीपुर
- Corresponding Author- anupvets@gmail.com
कड़कनाथ भारत मे पायी जाने वाली कुक्कुट की एक महत्वपूर्ण और अत्यंत पुरानी प्रजाति है। कड़कनाथ को हिन्दी मे ‘कालामसी’ (काला माँस मुर्गा) कहते है। यह प्रजाति मूलतः पश्चिमी मध्यप्रदेश के झबुआ और धार जिलों के साथ साथ इनसे जुड़े हुए राज्य गुजरात और राजस्थान मे भी पायी जाती है। यह प्रजाति मध्यप्रदेश के आदिवासी (बरेला, भिलाला, और भील) द्वारा लंबे अरसे से पाली जा रही है। कड़कनाथ के माँस मे ‘’मिलेनिन’’ नामक रंगद्रव्य होता है जिससे इसका मांस काला होता है और इसे कामोद्दीपक माना जाता है। इसकी त्वचा, चोच, टांग, पंजा और तलवा गहरे भूरे रंग का जबकि जीभ गहरे भूरे रंग अथवा हल्के काले रंग की होती है। कलगी, ललरी, लोलकी हल्के से गहरे भूरे अथवा बैगनी रंग के होते है।कड़कनाथ कुक्कुट प्रजाति की विशेषताए-
विशेषताए | कड़कनाथ कुक्कुट प्रजाति |
माँस | काला |
पंख/पर | काला-नीला |
आंतरिक अंग | काला |
प्रथम दिन के चूजे का वजन | 25-28 ग्राम |
शरीर का वजन 12 सप्ताह पर | 0.85 -1 किलोग्राम |
वयस्क नर भार | 1.5-2 किलोग्राम |
वयस्क मादा भार | 1-1.5 किलोग्राम |
यौन परिपक्वता आयु | 180-210 दिन |
वार्षिक अंडा उत्पादन | 105-120 |
अंडे का वजन | 35-49 ग्राम |
माँस प्रतिशत (बिना चमड़ी) | 67% |
कड़कनाथ प्रजाति की किस्मेकड़कनाथ प्रजाति की मुख्य रूप से 3 किस्मे है
- जेट ब्लैक- नर और मादा दोनों पूर्ण काले होते है
- पैन्सिल- इस किस्म मे नर और मादा के पंख काले होते है जबकि गर्दन के पास सफ़ेद ‘पर’ होते है
- गोल्डेन- इस किस्म के नर और मादा काले रंग के होते है जबकि पंख सुनहरा रंग का होता है
जेट ब्लैक | पैन्सिल | गोल्डेन |
कड़कनाथ माँस का पोषक-मूल्य कड़कनाथ का माँस विशिष्ट स्वाद वाला होता है। माँस मे अन्य कुक्कुट प्रजाति (18- 20%) की तुलना मे प्रचुर प्रोटीन (25%) पायी जाती है। साथ ही यह उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन है। हमारे शरीर के लिए आवश्यक 8 अमीनो एसिड इसके प्रोटीन मे पाये जाते है। इसके अलावा इसमे कूल 18 अमीनो एसिड पाये जाते है। सामान्य ब्रोइलर के माँस मे वसा की मात्रा 13- 25% तक होती है जबकि कड़कनाथ मे इसकी मात्रा बहुत कम (0.73-1.05%) होती है। साथ ही साथ इसके मांस मे कोलेस्ट्राल 180 मिलीग्राम/100 ग्राम खाद्य भाग मे पायी जाती है। जो की हृदय एवं उच्चरक्तचाप के रोगियों के लिए निरापद होगा। इसके माँस मे विटामिन B1, B2, B6, B12, C और E होता है जो मानव शरीर की दुर्बलता को दूर करता है और रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इन्ही गुणों के कारण कड़कनाथ 600-800 रुपये/ किग्रा मार्केट मे बिकता है। कड़कनाथ के वासस्थान का प्रबन्धन चुकीं कड़कनाथ एक विशिष्ट और अत्यंत पुरानी देसी प्रजाति है इसलिए इसका रख रखाव बहुत आसान है। वैसे तो कड़कनाथ को मुक्त परिसर प्रणाली एवं अर्धसघन प्रणाली मे भी रखा जा सकता है परन्तु व्यावसायिक रूप से इन प्रणालियों मे प्रति पक्षी आय बहुत कम आती है। अतः व्यावसायिक स्तर पर कड़कनाथ को सघन प्रणाली (डीप लिटर प्रणाली) मे रखते है। सघन आवास का आधार 1.5 फीट जमीन से नीचे और 1.5 फीट जमीन से ऊपर होनी चाहिए ताकि बाहरी पानी का रिसाव नहीं हो। सघन आवास की लंबाई (आवश्यकतानुसार 30-40 फीट) की दिशा पूर्व-पश्चिम रखते है जिससे सीधे धूप से पक्षी बच सके और चौड़ाई 25-30 फीट से ज्यादा नहीं हो ताकि शुद्ध वायु का आवागमन हो सके। आवास की बाहरी दीवार की ऊंचाई 8-10 फीट रखते है जिसमे आधार से 2 फीट की दीवार फिर 8 फीट जाली रखते है और छत के बीच की उचाई 10-12 फीट रखते है। छत से 3 फीट का छज्जा बाहर निकालना चाहिए जिससे बरसात का पानी अन्दर नहीं आये। किसान के बजट के अनुसार छत पुआल, नारियल के पत्तों, एस्बेस्टस, फाइबर या टीन के चादर की हो सकती है परंतु एस्बेस्टस आरामदेह और टिकाऊपन के हिसाब से उतम है। आवास का फर्श पक्का होना चाहिए जिससे फर्श सूखा रहे और चूहे, साँप जैसे बाह्य परभक्षी का खतरा टल सके। इस प्रणाली मे पक्षियों को सहप्राकृतिक जैसे आवास मे रखा जाता है। यह कड़कनाथ पालन करने का बढ़िया तरीका है जिसमे पक्षियों को ज्यादा से ज्यादा संख्या मे पाल सकते है। कड़कनाथ के आहार का प्रबन्धनब्यवसायिक स्तर पर कड़कनाथ पालन में होने वाले व्यय का 60-70 प्रतिशत केवल आहार मे लगता है। अतः यह जरूरी है की कम खर्चे मे उच्च गुणवत्ता वाला आहार तैयार किया जाये। कड़कनाथ के आहार मे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण और विटामिन की संतुलित मात्रा रहे इसके लिए निम्नलिखित संघटक की आवश्यकता होती है। कड़कनाथ संतुलित आहार के संघटक (प्रतिशत) मात्रा
क्रं॰ सं॰ | आहार संघटक (प्रतिशत) | स्टार्टर (0-8) | फिनिशर (9-17) | लेयर (18-72 सप्ताह) |
1 | मक्का | 59.00 | 40.00 | 57.00 |
2 | बाजरा | – | 10.00 | – |
3 | राइस ब्रान (डि आईल्ड) | 4.00 | 21.80 | 5.00 |
4 | सोया मिल | 24.50 | 10.70 | 14.40 |
5 | सूरजमुखी मिल | – | 7.00 | 7.00 |
6 | मछली का चूरा | 10.00 | 6.00 | 9.00 |
7 | खनिज मिश्रण | 2.00 | 2.00 | 2.00 |
8 | चूने का पत्थर | – | 2 | 5 |
9 | नमक | 0.5 | 0.5 | 0.5 |
10 | डी एल मेथीओनिन | – | – | 0.1 |
योग | 100 | 100 | 100 |
कड़कनाथ चूजा पालन प्रबन्धन (0-8 सप्ताह)कड़कनाथ चूजों को लाने के पूर्व ब्रूडर आवास की सफाई (भाप, गरम पानी, अथवा रासायनिक) निस्संक्रामक से कर लेनी चाहिए। कड़कनाथ चिक लाने के प्रथम एवं द्वितीय दिन पीने के पानी मे एलेक्ट्रोलाएट, ग्लूकोस और विटामिन मिलाके देने से चूजों को लेकर आने मे हुये तनाव कम हो जाते है। 8 सप्ताह तक 24 घंटे प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए। 0-4 और 5-8 सप्ताह के चूजों के लिए क्रमश 450 सेमी2 और 900 सेमी2 स्थान की आवश्यकता होती है। ब्रूडर/चिक गार्ड बनाने के लिए कार्डबोर्ड, टीन और जीआई शीट जैसे पदार्थ जिसकी ऊंचाई 1.5 फीट हो इस्तेमाल मे लेते है। ब्रूडर गार्ड की सहायता से 5 फीट ब्यास का घेरा बनाते है। फिर इसमे बिछावन 2 इंच तक बिछाकर उसके उपर अखबार की एक लेयर बिछा देते है। ब्रूडर गार्ड के बीच मे, फर्श से 30 सेमी की ऊंचाई पर 200 वाट का बल्ब प्रति 100 चिक फिट करते है। प्रथम सप्ताह मे ब्रूडर का तापमान 95° फारेनहाईट और अगले प्रत्येक सप्ताह मे 5° फारेनहाईट कम करे जब तक की तापमान 75° फारेनहाईट नहीं हो जाता। आहार और जल की व्यवस्था के लिए निम्नलिखित स्थान (BIS) की आवश्यकता होती है।
आयु (सप्ताह) | आहार स्थान सेमी प्रति 100 चूजा | जल क्षमता लीटर प्रति 100 पक्षी (फाउंटेन टाइप) |
0-2 | 250 | 4 |
3-6 | 450 | 10 |
कड़कनाथ फिनिशर पालन प्रबन्धन (9-17 सप्ताह)डीप लिटर प्रणाली मे कड़कनाथ ग्रोवर को लाने के पूर्व फिनिशर आवास की सफाई किसी निस्संक्रामक से अच्छी तरह कर लेनी चाहिए। प्रति ग्रोवर 1 वर्ग फीट जगह की आवश्यकता होती है। डीप लिटर प्रणाली मे 4 इंच का बिछावन {(दर 2-5 किग्रा/मीटर2 क्षेत्रफल) धान की भूसी, लकड़ी का बुरादा, मूँगफली के छिलके की भूसी, अथवा लकड़ी का छिलका आदि} इस्तेमाल करते है। 12 घंटे सूरज का प्रकाश ग्रोवेर्स के विकास के लिए पर्याप्त है। आहार के लिए प्रति ग्रोवर 10 सेमी तथा जल के लिए 2.5 सेमी प्रति ग्रोवर स्थान देते है।कड़कनाथ लेयर पालन प्रबन्धन (18-72 सप्ताह)शेड की सफाई किसी निस्संक्रामक से अच्छी तरह कर लेनी चाहिए। डीप लिटर प्रणाली मे प्रति लेयर २ वर्ग फीट वासस्थान देते है। दाने और पानी के लिए 18 इंच व्यास के 4-5 गोलाकार फीडर तथा 2 वाटरर प्रति 100 पक्षियों के लिए पर्याप्त है। कड़कनाथ लेयर 23-24 सप्ताह पर अंडे देने शुरू करती है। एकबार मे 30-40 अंडे देती है और इस तरह प्रतिवर्ष लगभग 105-120 अंडे 3 से 4 बार मे देती है। दरबे (अंडा देने के लिए) भी इसी मे व्यवस्थित होता है। प्रति 5 मुर्गी एक दरबा, अंडे देने के लिए रखा जाता है। कड़कनाथ लेयर के संतुलित आहार के घटक की सारणी ऊपर दी गयी है। डीप लिट्टर प्रणाली मे 6 इंच का बिछावन देते है। कम से कम 15-16 घंटे प्रकाश लेयर के अंडे देने के लिए पर्याप्त है। डीप लिट्टर प्रणाली मे नर और मादा कड़कनाथ का अनुपात 1:12 रखते है।कड़कनाथ स्वास्थ्य प्रबंधनकड़कनाथ अत्यंत गर्मी और सर्दी की जलवायु मे भी भली भाँति जीवित रहते है। यद्यपि कड़कनाथ नस्ल और नस्लों से अत्यधिक कठोर और बीमारियों के लिए प्रतिरोधी है परंतु रानीखेत और मरेक्स बीमारी के मामले पाये जा चुके है। अतः विषाणुजनित रोगो से बचाव के लिए टीकाकरण निम्नलिखित करते है।
आयु | बीमारियाँ | टीका | देने का मार्ग |
1 दिन | मरेक्स | एच वी टी टीका | इंजेक्सन द्वारा |
5 दिन | रानीखेत | लसोटा/एफ़1 | आँख/पानी मे |
25 दिन | गम्बोरो | लाईव | पानी मे |
8 सप्ताह | रानीखेत | आर 2 बी वैक्सीन | इंजेक्सन द्वारा |
16 सप्ताह | रानीखेत | आर 2 बी वैक्सीन | इंजेक्सन द्वारा |
कृमिनासक 10, 13, 16, और 19 सप्ताह की आयु पर पाईप्रेजीन हेक्साहायड्रेट 50 एमल प्रति 100 पक्षियों को सुबह के पानी मे देते है।Reference-Sharma P, Tripathi SM, Vishwakarma N, Jain A and Rai HS (2012). Performance of Kadaknath and Krishna-J Birds Reared as Backyard System of Farming in Mandla District of M.P. International Journal of Livestock Research, 2 (2): 241-244.Ekka P, Singh M, Mukherjee, K., Barwa D K, Jain A, Choudhary (2018). M Carcass characteristics of kadaknath fowl reared under intensive system in Chhattisgarh. International Journal of Advanced Biological Research. 8(1):106-109.Parmar S N S , Thakur M S, Tomar S S and Pillai P V A 2006: Evaluation of egg quality traits in indigenous Kadaknath breed of poultry. Livestock Research for Rural Development. Volume 18, Article #132. Retrieved March 27, 2020, from http://www.lrrd.org/lrrd18/9/parm18132.htmShanmathy, M., J.S. Tyagi, M. Gopi, J. Mohan, P. Beulah and Ravi Kumar, D. (2018). Comparative Assessment on Performance of Aseel and Kadaknath in Hot and Humid Conditions in Tropics. International Journal of Current Microbiology and Applied Sciences. 7(05): 2156-2165.Sastry N S R and Thomas C K. (2015). Livestock Production Management. 5th Edition. Kalyani Publication. Pp-630-724.ICAR-National Bureau of Animal Genetic Resources (NBAGR), registered breeds of chickens. Retrieved March 17, 2020. http://www.nbagr.res.in/book.html.Singh R. (2013). Nutrient Requirement of Animals-Poultry (ICAR-NIANP). Edn 3, Indian Council of Agricultural Research, New Delhi., 22-23.