गाय और भेस की प्रसव काल के दौरान देखभाल एवं प्रबंधन
प्रसव-काल एक मादा पशु के प्रजनन जीवन में सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है। एक गर्भवती पशु को अग्रिम गर्भावस्था के दौरान किसी भी तरह की देरी या लापरवाही करने से पशु कठिन प्रसव की अवस्था में जा सकता है जो भू्रण या मां या दोनों की मृत्यु का कारण भी बन सकती है इसलिए प्रसव अवधि के दौरान पशु की देखभाल करना अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
प्रसव से पहले पशुओं की देखभाल और प्रबंधन:
1. अग्रिम गर्भवती पशु का दूसरे पशुओं से अलगाव- अग्रिम गर्भवती पशु को दूसरे पशुओं से अलग कर देना चाहिये ताकि उनकी विशेष देखभाल की जा सके। उग्र पशु गर्भवती पशुओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं इसलिए गर्भवती पशु का अलगाव जरूरी है। जानवर के लिए साफ और शुष्क बैठने की जगह होनी चाहिए।
2. गर्भावस्था के अंतिम दिनों में पशु को ज्यादा घास व हरा चारा नहीं देना चाहिये क्योंकि उससे पशु को चलने एवं उठने-बैठने में दिक्कत आती है।
3. गर्भावस्था के अंतिम दिनों में पशु को ज्यादा कैल्शियम वाले पदार्थ नहीं खिलाने चाहिये क्योंकि इससे पशु को प्रसव के बाद दिक्कत आ सकती है।
4. अग्रिम गर्भावस्था में पशु को जोहड़ (तालाब) में नहीं ले जाना चाहिये क्योंकि इससे पशु की बच्चेदानी का घुमने का डर रहता है जिससे भू्रण की गर्भ के अंदर ही मृत्यु हो सकती है एवं पशु की जान को भी खतरा रहता है।
5. गर्भावस्था के अंतिम दिनों में होने वाली बिमारियों में पशु का पीछा दिखाना एवं बच्चेदानी का घूमना मुख्य है जोकि गाय की बजाए भैंस में अधिक पाए जाते हैं।
प्रसव के दौरान पशु की देखभाल:
गाय एवं भैंस में प्रसव अवधि को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जाता है जिनका पशुपालक को अवश्य पता होना चाहिये ताकि सामान्य प्रसव को कठिन प्रसव से अलग पहचाना जा सके और समय रहते पशु का इलाज करवाया जा सके।
क) प्रसव-काल की पहली अवस्था के लक्षण-
– पशु के पुठे ढीले पड़ जाना
– खाना-पीना कम कर देना
– पशु के थनों में दूध का उतर आना
– पशु की योनी का सूजना एवं ढीला हो जाना
– पशु को बेचैनी होना जिससे वह बार-बार उठता एवं बैठता है
– प्रसव-काल की पहली अवस्था पशु के गर्भाशय से पानी की पहली थैली के फटने के साथ ही खत्म हो जाती है
– प्रसव-काल की पहली अवस्था की सामान्य अवधि छह घंटे तक की होती है
ध्यान रखने योग्य बातें:
– अगर अग्रिम गर्भवती पशु 12 घंटे से ज्यादा समय तक बेचैनी में रहता है और खाना-पीना छोड़ देता है तो उसकी तुरंत पशु चिकित्सक से जाँच करवानी चाहिये ताकि समय रहते कठिन प्रसव को सुलझाया जा सके।
– पशु को ताजा पानी पिलाना चाहिये।
– प्रसव-काल के लक्षणों का ध्यान रखना चाहिये।
– प्रसव से पहले पशु के थनों से दूध नहीं निकलना चाहिये।
ख) प्रसव-काल की दूसरी अवस्था के लक्षण-
– प्रसव-काल की यह अवस्था सामान्यत 1-3 घंटे की होती है लेकिन पहली बार ब्याने वाले पशुओं में यह अधिक समय तक भी रह सकती है।
– पानी की पहली थैली के फटने के साथ ही बच्चे के अगले पैर योनी के बाहर दिखने लगते हैं और पशु जोर लगाने लगता है।
– अगर बच्चा सही अवस्था में हो तो लगभग एक घंटे के अन्दर प्रसव की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
ध्यान रखने योग्य बातें:
– यदि पशु एक घंटे से अधिक समय से जोर लगा रहा हो और बच्चा बाहर नहीं आता है तो तुरंत पशु चिकित्सा की सलाह लेनी चाहिये एवं पशु की जाँच करवानी चाहिये।
– बच्चे के योनी से बाहर निकलते वक्त उसे सहारा देना चाहिये लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि पशु एवं बच्चे को चोट ना पहुँचे।
– बच्चे के पैदा होते ही उसे तुरंत माँ के सामने कर देना चाहिये।
ग) प्रसव-काल की तीसरी अवस्था के लक्षण-
– बच्चे के पैदा होने के 6-12 घंटे के अन्दर पशु सामान्यत जेर डाल देता है जिसे प्रसव काल की तीसरी अवस्था कहा जाता है।
– अगर 12 घंटे तक भी पशु जेर नहीं डालता है तो तुरंत पशु चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिये क्योंकि जेर का गर्भाशय के अन्दर रहने से पशु के शरीर में संक्रमण फैल सकता है जिससे पशु के दोबारा गाभिन होने में देरी होती है।
ध्यान रखने योग्य बातें:
– प्रसव के उपरांत पशु को गुनगुना पानी पिलाना चाहिये।
– पशु को जेर खाने से रोकना चाहिये।
– जेर को गहरे गड्डे में दबा देना चाहिये।
– पशु एवं बच्चे के शरीर को कपड़े से साफ करना चाहिये।
* प्रसव के बाद पशु को गुड़ और पिसा हुआ अनाज खिलाना चाहिये ताकि उसे ताकत मिल सके।
– प्रसव के बाद दूध/खीस (माँ का पहला दूध) निकालना:
– प्रसव के बाद खीस निकलने से पहले पशु के थनों को गुनगुने पानी के साथ साफ करना चाहिये।
– प्रसव के बाद खीस निकालते वक्त यह ध्यान रखना चाहिये कि थनों में कोई रूकावट या सूजन ना हो।
– प्रसव के आधे से एक घंटे के उपरांत ही बच्चे को खीस पिला देना चाहिये क्योंकि इससे उसमें बिमारियों से लड़ने की क्षमता आती है।
– पशु के थनों की सूजन को खत्म करने के लिए 2-3 बार दूध निकालना चाहिये।
– प्रसव के उपरांत कुछ दिनों तक पशु को गेहूं का दलिया या कोई आसानी से पचने वाला एवं नरम खाना देना चाहिये। पशु के खाने में दाने की मात्रा बढ़ा देनी चाहिये ताकि उसे ताकत मिल सके।