चयापचयन सम्बंधी समस्याएं: जैव रासायनिक तथ्य
दुग्ध ज्वर दुधारु पशुओं में होने वाली एक गैर संक्रामक रोग अवस्था है। यह ब्याने के कुछ घंटों या दिनों के बाद होता है।यह मिल्क फीवर;दुग्ध ज्वर के नाम से जाना जाता है,परन्तु इसमें पशु के शरीर का तापमान बढ़ने के बजाए कम हो जाता है।ब्याने के कुछ महीने पहले पशुओं का राशन कम कर दिया जाता है जिससे उनके शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती है। पशुओं में सामान्य अवस्था में कैल्शियम के स्थानीय स्तर को बनाए रखने में विटामिन डी, कैल्सीटोनिन एवं पैराथाइराइड हाॅर्मोन अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।पशुओं में कैल्शियम तथा फाॅस्फोरस के अनुपात का भी विशेष महत्व है। शरीर में यह अनुपात 1ः1 से 2ः1 सबसे आदर्श माना जाता है।
गर्भकाल के दौरान भ्रूण के विकास के लिए कैल्शियम की आवश्यकता होती है। यदि इस समय आहार में कैल्शियम की कमी हो जाए तो पशु में कैल्शियम की इस बढ़ी हुई कैल्शियम की आपूर्ति सामान्य शारीरिक कैल्शियम भण्ड़ार से की जाती है और हड्डियों से प्राप्त कैल्शियम भी इस कमी को पूरा करने में उपयोगी होता है। कैल्शियम की इस तीव्र क्षति से शरीर के कैल्शियम भण्ड़ार क्षीण हो जाते हैं।प्रसूति काल के दौरान भी कैल्शियम की अतिरिक्त आवश्यकता दुग्ध निर्माण के लिए उपयोगी होती है।
कैल्शियम हड्डियों तथा दांतो की रचना करता है और इन्हें मजबूत बनाता है,ह्रदय की प्रक्रिया को सामान्य रखता है, रक्त के जमने में सहायता करता है तथा मंश्पेशिओं को क्रियाशील बनाए रखता है। अतः गर्भावस्था एवं प्रसूतिकाल में कैल्शियम की अतिरिक्त आवश्यकता व कम सेवन के कारण पशुओं का शरीर ठंडा पड़ जाता है तथा वे अत्यंत कमजोरी महसूस करने लगते है । पशु को खड़े रहने में कठिनाई होती है एवं पशु बेहोश भी हो सकता है। समय रहते पशु का ईलाज न करवाया जाए तो मृत्यु की भी संभावना बनी रहती है। दुग्ध ज्वर होने पर पशु अपनी गर्दन अपने पेट की तरफ घूमा लेता है, और बैठ जाता है।ऐसी परिस्थिति आने पर डाॅक्टर को तुरन्त बुलवाए°।कैल्शियम की दवा इसमें बहुत उपयोगी होती है तथा इससे पशु तुरन्त ठीक हो जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए पशुओं को खनिज मिश्रण खिलाना चाहिए।
कीटोसिस
गर्भावधि, दुग्ध उत्पादन एवं प्रसब क्रिया जैसे सभी कारक मिलकर पशु के चयापचयन को प्रभावित करते हैं।
प्रसव से पहले एवं दुग्धकाल प्रारम्भ होने तक हाॅर्मोन में बदलाव आने लगते है जो प्रसव उपरान्त धीरे-धीरे सामान्य अवस्था में आने लगते है। इन परिवर्तनों के कारण पशु को भूख कम लगती है जिससे इनके भोजन ग्रहण करने की
क्षमता कम होने लगती है। इस स्थिति में पशु अपने शरीर में जमा की गई वसा का उपयोग करके एक असामान्य स्थिति
से गुजरते है जिस कारण कीटोनकाय बनने लगती है जिसे कीटोसिस कहते हैं।
इन्सुलिन व ग्लूकागन के पारस्परिक प्रभाव से शरीर में ग्लूकोज की मात्रा लगभग स्थिर रहती है। यदि खाद्य ;उपवास अथवा आहार न ग्रहण करने की स्थितिद्ध से पशु की ऊर्जा की मांग पूरी नहीं होती तो, रक्त में शर्करा की कमी हो जाती है और जिगर इस कमी को पूरा नहीं कर पाता है।ऐसे में ग्लूकागन का अधिक स्त्राव व इन्सुलिन की कमी हो जाती है। इससे वसायुक्त अम्ल, वसा उत्तको से मुक्त हो रक्त में आ जाती है (तब वसा अम्लों का ज्यादा चयापचय होने लगता है)। मांसपेशी ग्लूकोज की अपेक्षा वसा अम्लों के चयापचयन से ऊर्जा प्राप्त करने लगती है। इस प्रकार उपवास (दीर्घकालिक) की स्थिति में शरीर में वसा का उपयोग होने लगता है। अत्यधिक मात्रा में कीटोनकाय से शरीर क महत्वपूर्ण अंग जैसे फेफड़ें, यकृत एवं किड़नी को क्षति
पहुंचने की अत्यधिक संभावना रहती है। दुधारु पशुओं में ऊर्जा की जरुरत को पूरा न करें तो नकारात्मक ऊर्जा संतुलन
की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उनके श्वास, मूत्र एवं दुग्ध में कीटोनकाय आने शुरु हो जाते है।
यदि खाद्य से पशु की ऊर्जा की मांग पूरी नहीं होती तो -> रक्त में शर्करा की कमी हो जाती है और जिगर इस कमी को पूरा नहीं कर पाता है -> जिससे कीटोनकाय का उत्पादन बढ़ने लगता है -> तब वसा अम्लों को ज्यादा चयापचय होने लगता ह -> श्वास, मूत्र एवं दुग्ध में कोटोनकाय आने शुरु हो जाते हैं
ऐसा होने पर पशुओं में निम्न लक्षण दिखाई देते हैं :
➤ मुख्यतः उच्च दुग्ध उत्पादन पशु प्रभावित होते हैं।
➤ यह ब्यांत के कुछ दिनों बाद होता है।
➤ इससे दुग्ध उत्पादन में कमी आ जाती है।
➤ पशु के श्वास में एसीटोन जैसी तीव्र गंध आने लगती है।
➤ तंत्रिका संकेत जैसे अतिरिक्त लार,आक्रामकता , चाल में असमन्वय आदि आने लगते है।
➤अपर्याप्त खाद्य के सेवन से कीटोसिस उत्पन्न हो सकता है
उपाय :
कीटोसिस होने पर क्या किया जाए?
➤कीटोसिस के लक्षण आने पर पशु को तुरन्त पशु चिकित्सक से जांच करवाए°।
➤कीटोसिस में अत्यधिक कीटोनकाय मूत्र एवं दुग्ध में उत्सर्जित होने लगते हैं।
➤मूत्र की जांच करवाए°।
➤कीटोसिस की पुष्टि होने पर प्रारंभिक लक्ष्य ग्लूकोज की मात्रा को स्थापित करना होता है।
➤पशुओं को ब्यांत के तुरन्त बाद ऊर्जा युक्त आहार देना चाहिए।