जुगाली करने वाले पशुओ के पेट की संगरचना

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By-Dr.Savin Bhongra
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जुगाली करने वाले सम-ऊँगली खुरदार स्तनधारी पशु होते हैं जो वनस्पति खाकर पहले अपने पेट के प्रथम ख़ाने में उसे नरम करते हैं और फिर जुगाली करके उसे वापस अपने मूंह में लाकर चबाते हैं। पेट के प्रथम कक्ष से मूंह में वापस लाये गए खाने को पागुर (cud) कहा जाता है और यह दोबारा चबाने से और महीन हो जाता है जिस से उससे हज़म करते समय अधिक पौष्टिकता ली जा सकती है। विश्व में रोमंथकों की लगभग 150 जातियाँ ज्ञात हैं जिनमें बहुत से जाने-पहचाने पालतू और जंगली जानवर शामिल हैं, मसलन गाय, बकरी, भेड़, जिराफ़, भैंस, हिरण, ऊँट, लामा और नीलगाय।

जहाँ ग़ैर-रोमंथकों (जैसे कि मानव, भेड़िये, बिल्लियाँ) के पेटों में एक ही कक्ष होता है वहाँ रोमंथकों के पेट में चार ख़ाने होते हैं। यह इस प्रकार हैं:

रूमेन (rumen) – यह पहला और सबसे बड़ा कक्ष होता है। खाई हुई वापस्पति सामग्री (थूक से भी मिले हुए घास, पत्ते, वग़ैराह) इसमें आती है और यहाँ मौजूद बैक्टीरिया उसपर किण्वन (फ़रमेन्टेशन) करते हैं।

रेटिक्यूलम​ (reticulum) – रूमेन से किण्वित खाना रेटिक्यूलम​ जाता है जहाँ और भी बैक्टीरिया उसे परिवर्तित करते हैं। यहाँ खाना बहुत से द्रव से भी मिश्रित किया जाता है। महीन खाने के कण डूबकर इस ख़ाने के नीचे बैठ जाते हैं जबकि मोटे कण और टुकड़े ऊपर रहते हैं। महीन खाना पाचन के लिए एक पतली नली के ज़रिये सीधा ऐबोमेसम (अंतिम कक्ष) में पहुंचा दिया जाता है। खाने के बड़े टुकड़े जुगाली की क्रिया के द्वारा पागुर नामक गोले के रूप में वापस ऊपर मुंह में पहुंचा दिया जाता है, जहाँ जानवर उसे चबाता है। इस पागुर में बहुत से बैक्टीरिया भी मिश्रित होते हैं।

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ओमेसम (omasum) – मुंह में पागुर को अच्छी तरह चबाने के बाद पशु फिर से उसे निग़ल लेता है और यह ओमेसम (यानि पेट के तीसरे कक्ष) में पहुँचता है। चबाए गए खाने के टुकड़े अब काफ़ी छोटे हो गए होते हैं और उसमें मिश्रित बैक्टीरिया के पास उसे किण्वित करने के लिए और सतही क्षेत्र मिलता है। ओमेसम की दीवारें खाने में मिले हुए पानी को काफ़ी हद तक भी सोख लेती हैं। यहाँ से अब यह किण्वित खाना ऐबोमेसम (चौथे कक्ष) में जाता है।

ऐबोमेसम (abomasum) – बहुत से जीववैज्ञानिक ऐबोमेसम को ही पशु का असली पेट समझते हैं क्योंकि यही एकमात्र कक्ष है जहाँ पाचन के रसायन (जैसे कि हाइड्रोक्लोरिक अम्ल) उसे हज़म करते हैं। अम्ल के कारण खाने में मिश्रित बैक्टीरिया भी मारे जाते हैं (हालांकि रूमेन में लगातार और बैक्टीरिया जन्मते रहते हैं, इसलिए जानवर को इनकी कमी नहीं होती)। सरल पदार्थों में परिवर्तित खाना अब आँतों में जाता है जहाँ उसके शक्तिवर्धक और पौष्टिक तत्व सोख लिए जाते हैं।
यदि तीनों ख़ानों का आकार मिलकर देखा जाए तो एक गाय में यह 100 लीटर से 240 लीटर तक होता है।

 

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