झींगा मछली की खेती

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झींगा मछली की खेती

भारत में अभी तक झींगा उत्पादन का कार्य प्राकृतिक रूप से समुद्र के खारे पानी से किया जाता था, लेकिन कृषि में हुए तकनीकी विकास और अनुसंधान के चलते झींगा का सफल उत्पादन मीठे पानी में भी सम्भव हो चला है। देश में लगभग 4 मिलियन हेक्टेयर मीठे जल क्षेत्र के रूप में जलाशय, पोखर, तालाब आदि उपलब्ध हैं। इन जल क्षेत्रों का उपयोग झींगा पालन के लिए बखूबी किया जा सकता है। झींगा पालन का कार्य कृषि और पशुपालन के साथ सहायक व्यवसाय के रूप में किया जा सकता है। इस व्यवसाय से ग्रामीणों को छोटे से जल क्षेत्र से अच्छी खासी कमाई हो जाती है। खेती संग इस व्यवसाय को अपनाकर खेती को और लाभकारी बनाया जा सकता है।

वर्तमान में देश में झींगा पालन एक बहुत तेजी से बढ़ने वाले व्यवसाय के रूप में उभरा है। पिछले दो दशकों में मत्स्य पालन के साथ-साथ झींगा पालन व्यवसाय प्रतिवर्ष 6 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। आज घरेलू बाजार के साथ विदेशी बाजार में झींगा की काफी मांग बढ़ी है। हमारे देश में झींगा निर्यात की भरपूर संभावनाएं मौजूद हैं। व्यावसायिक रूप से झींगा पालन के लिए निम्नवत तकनीकी पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए।

स्थान का चुनाव व तालाब का निर्माण

सफल झींगा पालन के लिए स्थान का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होता है। तालाब का निर्माण क्ले सिल्ट या दोमट मिट्टी जिसमें पानी रोकने की क्षमता अच्छी हो का चुनाव करना चाहिए। तालाब का पानी सभी तरह के प्रदूषण से मुक्त होना चाहिए।

इसके अतिरिक्त तालाब की मिट्टी भी हानिकारक तत्वों जैसे कार्बोनेट, क्लोराइड, सल्फेट आदि से मुक्त होनी चाहिए या फिर इन तत्वों की मात्रा सूक्ष्म स्तर पर होनी चाहिए।

व्यवसायिक रूप से झींगा पालन का कार्य छोटे व बड़े दोनों तरह के जल क्षेत्रों में सफलतापूर्वक किया जा सकता है। सामान्यतः झींगा पालन के लिए 0.50 से 1.50 हेक्टेयर का तालाब पर्याप्त होता है। तालाब की न्यूनतम गहराई 0.75 मीटर का अधिकतम गहराई 1.2 मीटर रखते हैं। तालाब की दीवारों को ढालदार न बनाकर सीधी खड़ी रखना चाहिए। पानी भरने तथा वर्षा का अतिरिक्त पानी निकालने का उत्तम प्रबंध होना चाहिए। पानी भरने व निकालने के स्थान पर लोहे की जाली का प्रयोग करना चाहिए। झींगा के तालाब में जलीय वनस्पति होना बहुत लाभकारी होता है। क्योंकि झींगों को दिन में तालाब के किनारे छुपकर आराम करने की आदत होती है।

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तालाब में चूने का प्रयोग

मीठे जल में झींगा पालन के लिए चूने का प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण होता है। चूने का प्रयोग तालाब के पानी के पी.एच.मान के आधार पर करना चाहिए। सामान्यतः लगभग 100 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से चूने का प्रयोग किया जाता है। नए तालाबों में चूना और खाद के प्रयोग के पूर्व मत्स्य विशेषज्ञों से सलाह ले लेना अधिक उपयुक्त होता है।

नर्सरी तैयार करना

एक एकड़ जल क्षेत्र पालन के लिए 0.04 एकड़ जल क्षेत्रफल में नर्सरी तैयार करने की आवश्यकता होती है। नर्सरी तैयार किए जाने वाले तालाब का पूरा पानी निकाल कर अच्छी तरह सूखने के लिए छोड़ देना चाहिए। अच्छा उत्पादन लेने के लिए तालाब को तब तक सुखाते हैं जब तक कि मिट्टी में दरारें न पड़ जाए।

तालाब की मिट्टी को तेज धूप में सुखाने से हानिकारक जीवाणु एवं परजीवी नष्ट हो जाते हैं। तालाब की एक जुताई भी कर देना चाहिए। इसके बाद तालाब में 1 मीटर की गहराई तक पानी भरें। अच्छी नर्सरी तैयार करने के लिए चूना, खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग भी करना चाहिए। इसके लिए 20 किलोग्राम चूना, 4 किलोग्राम सुपर फास्फेट एवं 2 किलोग्राम यूरिया का प्रयोग करना चाहिए।

नर्सरी में बीज डालना

एक एकड़ क्षेत्रफल में झींगा पालन के लिए 20 हजार बीज नर्सरी में संचय करना चाहिए। नर्सरी में बीज संचय के पूर्व बीज का अनकूलन कर लेना चाहिए। अनुकूलन के लिए झींगा बीज के पैकेटों के बराबर तालाब का पानी भरकर 15 मिनट तक रखना चाहिए। इसके बाद इन पैकेटों को तालाब के पानी में मुंह खोलकर तालाब में तब तक डुबोए रखें जब तक लार्वा पैकेट से तैर कर पानी में न निकल जाए। पैकेट के पानी और तालाब के पानी का पी.एच.मान एवं तापक्रम में अधिक अंतर होने पर अनुकूलन अधिक देर तक करना चाहिए।

नर्सरी में डाले गए इन लार्वों को लगभग 45 दिनों तक रहने देना चाहिए। इस दौरान ये लार्वा शिशु झींगा में बदल जाते हैं। इतने दिनों में इनका वजन 3 ग्राम तक हो जाता है। नर्सरी में इन शिशु झींगों की जलीय जीव-जंतुओं से रक्षा भी करनी चाहिए। इसके लिए नर्सरी के चारों ओर जाल घेर देना चाहिए। यदि चिड़ियों से हानि पहुंचने का डर हो तो तालाब के ऊपर भी जाल घेर देना चाहिए।

नर्सरी से तालाब में हस्तांतरण

जब नर्सरी में शिशु झींगें 3-4 ग्राम तक हो जाएं तो इन्हें पहले से तैयार तालाब में हस्तांतरित कर देना चाहिए। झींगा पालन के साथ मत्स्य पालन करके इस व्यवसाय को और अधिक लाभकारी बनाया जा सकता है।

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इसके साथ कतला और रोहू आदि मछली की प्रजातियों का पालन चाहिए। कामन कार्प, ग्रास कार्म, मृगल आदि मछली की प्रजातियों को झींगा के तालाब में संचय नहीं करना चाहिए। लेकिन कतला के स्थान पर सिल्वर कार्प का संचय किया जा सकता है।

आहार

झींगा सर्व भक्षी स्वभाव का जीव है। अतः जन्तु एवं वनस्पति दोनों का भक्षण करता हैं। झींगें दिन में छिपे रहते हैं। रात्रि के समय भोजन के लिए सक्रिय होकर तालाब में विचरण करते हैं। व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन प्राप्त करने के लिए चूना, खाद एवं उर्वरकों के अतिरिक्त पूरक आहार देने की आवश्यकता होती है।

झींगों के तीव्र गति से वृद्धि के लिए शाकाहार और मांसाहार दोनों तरह का भोजन देना चाहिए। झींगों को भोजन के रूप में 80 प्रतिशत शाकाहारी और 20 प्रतिशत मांसाहारी भोजन देना लाभकारी होता है। भोजन में 4 फीसदी सरसों की खली, 4 फीसदी राईस ब्रान एवं 2 फीसदी फिशमील देना चाहिए।

मांसाहार में प्रमुख रूप से मछलियों का चूरा, घोंघा, छोटे झींगे एवं बूचड़खाने का अवशेष दिया जा सकता है। मांसाहार के रूप में छोटी मछलियों को उबाल कर दिया जा सकता है।

आहार की मात्रा

झींगा सर्वभक्षी के साथ-साथ परभक्षी स्वभाव का भी होता है। इसलिए तालाब में आहार की कमी नहीं होने देना चाहिए अन्यथा भूखा रहने की दशा में झींगे आपस में एक-दूसरे को खाना शुरू कर देते हैं। सामान्यतः झींगा बीज के वजन का 10 प्रतिशत तक आहार प्रतिदिन देना चाहिए।

तालाब में शुद्ध रूप से झींगा पालन के लिए दो माह तक 2 से 3 किग्रा पूरक आहार प्रति एकड़ की दर से देना चाहिए। इसके बाद 4 से 6 माह तक 4 से 5 किग्रा प्रति एकड़ की दर से पूरक आहार देना चाहिए।

आहार के अतिरिक्त एग्रीमीन 1 प्रतिशत, टैरामाईसीन पाउडर 40 ग्राम एवं एंटीबायोटिक 2 ग्राम/सिफालैक्सिन आदि दवाएं भी देना चाहिए। आहार को चौड़ेमुंह वाले पात्रों में भरकर तालाब के किनारे कई स्थानों पर रखना चाहिए।

उचित देखभाल

कभी-कभी झींगा तालाब में असामान्य लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं जिनका समय से निदान करना आवश्यक होता है। तालाब के बंधों के किनारे अधिक संख्या में झींगों का पाया जाना तालाब के पानी में ऑक्सीजन की कमी को दर्शाता है। इसके लिए एयरटेल का प्रयोग करे या फिर पंपिंग सेट द्वारा तालाब के पानी को कुछ ऊचाई से तालाब में डालें। झींगों की वृद्धि एवं जीविता में पानी का उचित पी.एच. मान बहतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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अतः पानी का वांछित पी.एच.मान को बनाए रखने के लिए उचित मात्रा में चूने का प्रयोग करना चाहिए। तालाब में बीज संचय के 15 से 20 दिन बाद तक शिशु झीगें नहीं दिखाई पड़ने पर भी आहार देते रहना चाहिए। क्योंकि झींगों की वृद्धि दर में काफी अंतर पाया जाता है। इसके अतिरिक्त झींगों की कछुआ, केकड़ा, मेंढक, सांप आदि जलीय जीवों से रक्षा करनी चाहिए।

उत्पादन एवं आर्थिकी

तालाब में डाले गए समस्त लार्वा का लगभग 50 से 70 फीसदी तक झींगें जीवित बचते हैं। यह प्रतिशत उचित देख-रेख और कुशल प्रबंधन पर निर्भर करता है। झींगों की वृद्धि दर एक समान न होकर काफी विविधतापूर्ण होती है। झींगा 50 ग्राम से 200 ग्राम वजन तक बढ़ते हैं। 4 से 5 माह में 50 से 70 ग्राम तक झींगों का वजन बढ़ जाता है। बिक्री के लिए इतने वजन के झींगों को तालाब से निकालना शुरू कर देना चाहिए। 6 से 8 माह में 100 से 200 ग्राम भार तक झींगों की वृद्धि हो जाती है।

तालाब में शुद्ध रूप से झींगा का बाजार भाव काफी अधिक होता है। बाजार में 250 रुपया प्रति किग्रा. की दर से बिक्री की जाती है तो 3 लाख रुपए की आमदनी होती है। यदि इससे लागत पूंजी को निकाल दिया जाए, तब भी एक एकड़ जल क्षेत्र से लगभग 2 लाख रुपए से अधिक का शुद्ध लाभ प्राप्त हो जाता है।

झींगा पालन हेतु तालाब में चूने की मात्रा का निर्धारण

पी.एच. मान चूने का प्रयोग किग्रा./एकड़

5 से 6 पी.एच. 50 किलोग्राम

6 से 7 पी.एच. 3 किलोग्राम

7 से 7.5 पी.एच. 15 किलोग्राम

झींगा पालन हेतु जल की गुणवत्ता का मानक

तापमान 26 से 32 डिग्री सेंटीग्रेड

पी.एच. मान 7.5 से 8.5

ऑक्सीजन 4 से 10 मिग्रा./लीटर

कठोरता 150 मिग्रा. /लीटर से कम

क्षारीयता 0.25 से 0.75 पीपीएम

फास्फोरस 1 पीपीएम से कम

नाइट्रोजन 1 पीपीएम से कम

कैल्शियम 100 पीपीएम से कम

घुलनशील लवण 300 से 500 पीपीएम

तालाब की गहराई 1 से 1.5 मीटर

झीगों का शारीरिक भार बढ़ने के साथ-साथ तालाब में आहार की मात्रा को बढ़ाना चाहिए

3-5 2.0-3.0

5-7 3.0-3.9

7-11 3.9-4.8

11-18 4.8-5.8

18-28 5.8-62

28-45 6.2-7.0

45-65 7.0-7.6

65-100 7.6-10.0

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