डेयरी व्यवसाय में बछड़ा प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है I 3 महीने से कम उम्र के बछड़ों के लिए अतिरिक्त देखभाल और ध्यान विशेष रूप से ज़रूरी है क्योंकि इस आयु में वह कई संक्रामक रोगों के लिए संवेदनशील होते हैं, विशेष रूप से श्वसन और आंतों का संक्रमण के लिए । निर्धारित मानकों के अनुसार, किसी भी समय किसी भी डेयरी झुंड के लिए बछड़ा मृत्यु दर 5% से कम होनी चाहिए।
बछड़ों की मृत्यु दर 5% से कम होने के लिए बछड़ों के प्रबंधन में निम्नलिखित प्रबंधन प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए
जन्म के समय या 0 दिन पर
जैसे ही बछड़ा पैदा होता है, उसे कोलोस्ट्रम (खीस) पिलाना (जन्म के एक घंटे में) बहुत ज़रूरी है ।
इस बीच, नए जन्मे बछड़े की नाभि को टिंक्चर आयोडीन से साफ किया जाना चाहिए और नाभि को बछड़े के शरीर से 2 से 3 इंच दूर काटें I
नाभि के खुले हिस्से को सूती के धागे से बाँध दें जो टिंक्चर आयोडिन में डूबा हुआ हो ।
जन्म के तुरंत बाद, नाक और मुंह से बलगम को साफ करें।
मालिश से बछड़े के पूरे शरीर को साफ करें और श्वसन की शुरुआत के लिए छाती दबाएं।
नए जन्मे बछड़े के जन्म का वजन दर्ज किया जाना चाहिए और बछड़े के शरीर के वजन के 10% के हिसाब से खीस पिलानी चाहिए I खीस को 3-4 भागों में निश्चित अंतरालों पे दें I
खीस पिलाने के दौरान सबसे अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए कि दूध श्वसन तंत्र या हवा वाली नाली में प्रवेश न करे I
जो बछड़े उठने में असमर्थ हों उन्हें सहारा देकर उठाएं और माँ के थनों से खीस पिलायें I
जो बछड़े खीस न पी रहे हों उन्हें बोतल से या कटोरे से खीस पिलाएं I कटोरे में अपना हाथ डालकर बछड़े के मुंह में अपनी उंगली डाली और फिर जब बछड़ा उसे चूसने लग जाए तब धीरे धीरे कटोरे को टेढ़ा करके दूध बछड़े के मुंह में डालें I
जन्म के 3 दिन तक बछड़े को खीस पिलायें क्योंकि इसमें उच्च मात्रा में इम्यूनो ग्लोब्युलिन जी (आईजीजी) होता है जो बछड़े को विभिन्न संक्रामक रोगों से बचाने के लिए मदद करता है।
पेल फीडिंग या बछड़े को अपने हाथ से कटोरे में दूध पिलाना
दिन 1
नए जन्मे बछड़े को दूध हमेशा सुबह और शाम में दिया जाना चाहिए।
दूध को केवल शरीर के वजन के अनुसार पिलाया जाना चाहिए और ध्यान रखें की नये जन्मे बछड़े को न तो अतिरिक्त और न कम दूध पिलाया जाए।
बछड़े को एक साफ़ बाड़े में रखें जिसमे कोई भी तेज़ किनारे न हों और न कोई वस्तु को नया पेंट किया हो क्योंकि बछड़ों को चाटने की आदत होती है जिसकी वजह से बछड़ों को या तो टेक्स किनारों से चोट लग्ग सकती है या पेंट में उपस्थित लेड के कारण ज़हर (विषाक्तता) हो सकती है I
बछड़े को साफ़ कटोरे में ताज़ा और साफ़ पानी दें I
3 दिनों तक बछड़े को खीस पिलाएं I
दिन 4,5,6
दिन 5 से बछड़ों को बाहर घूमने की अनुमति देनी चाहिए अगर आपका फार्म खुला और बड़ा है I
इस दौरान कौकसीडीओसिस रोग से बचाने के लिए बछड़ों को फ्यूराज़ोलिडॉन नामक गोलियां (2 गोलियां दिन में दो बार केवल एक दिन के लिए दें) ।
बछड़ों को संक्रमित पदार्थों और स्थानों से दूर रखें I
7 दिन से पहले बछड़ों के सींग निकलवा लें जिससे की पशुओं के प्रबंधन में आसानी होती है I
दिन 7 तथा आगे
7वें और 21वें दिन बछड़ों को पेट के कीड़ों की दवाई दें (पिपराजीन, अल्बेंडाजोल, फेन्बेंडाजोल आदि) I
कीड़ों की एक ही दवाई बार बार न दें, इससे पशुओं में दवाई के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है I
1 से 1, 5 महीने की उम्र से बछड़ों को अच्छी गुणवत्ता वाला काफ़ स्टार्टर दें और दूध की मात्रा को धीरे धीरे 1/10 से 1/15 और 1/25 शरीर भार के अनुसार कम कम कर दें I
उम्र की इसी अवधि के दौरान अच्छी गुणवत्ता वाला सूखा चारा भी बछड़ों को खिलाया जाता है। यह रूमेन के विकास को तेज करता है ।
2.5 महीने की आयु में बछड़ों को दूध देना बंद कर दें I
4 महीने की आयु पे बछड़ों को एफ.एम.डी. रोग के लिए टीकाकरण करायें I
हर 3 महीने बाद पशुओं को पेट के कीड़ों की दवाई दें I
4 महीने तक हर दिन बछड़ों के शारीरिक भार को तोलें और रिकॉर्ड करें I
नस्ल के हिसाब से बछड़ों में प्रतिदिन 300-600 ग्राम भार की वृद्धि होती है I