दुधारू पशुओ मे दुग्ध ज्वर (MILK FEVER) की समस्या
यह बीमारी पशुओं में पाई जाती है ज्यादातर उन पशुओं में जो दूध देते हैं । इन पशुओं के ब्याने के बाद कुछ घण्टों या दिनों के बाद इस बिमारी के लक्षण दिखायी देते हैं ।
इन बीमारी में पशुओं के रक्त में केल्शियम की कमी हो जाती है यह एक मेटाबोलिक बीमारी है ।
साधारणतया यह बीमारी गायों में 5 से 10 वर्ष की उम्र में अधिक होती है । इसमें सकारात्मक बात यह है कि पशु जब पहली बार ब्यता है तब यह बीमारी नहीं होती है ।
लक्षण :
- इस बीमारी में पशु के शरीर का तापमान बढ़ने की अपेक्षा कम हो जाता है ।
- श्वास लेने में मुश्किल होती है ।
- माँस पेशियों में कमजोरी आ जाती है ।
- पशु चल फिर सकता , पीछे के पाँवों में अकड़न आ जाती है । हम यह कह सकते हैं कि आंशिक लकवे की स्थिति होती है । इस लिए वह गिर जाता है ।
- गर्दन को पीछे की ओर मोड़ कर बैठ जाता है ।
- पशु को होश नहीं रहता है ।
बचाव –
- दुग्ध फीवर का यदि समय से उपचार नहीं करवाया जाए तो इस बीमारी से पशु की मृत्यु तक हो सकती है ।
- वैसे तो यह बीमारी किसी भी मौसम में हो सकती है लेकिन ज्यादातर सर्दी के मौसम में अधिक होती है अतः पशु का सर्दी से बचाव करना चाहिए ।
- दूध देने वाले पशुओं के आहार में कैल्शियम ,फॉस्फोरस चूंक खनिज मिश्रण मिलाकर देना चाहिए ।
- ब्याने के बाद10 से 15 दिनों तक पशु का पूरा दूध नही निकलना चाहिए। थोड़ा दूध उदर में ही रहने देना चाहिए ।
- पशु को ताजा पानी व हरा चारा कैल्शियम के साथ देना चाहिए।
उपचार –
- इस रोग के इलाज के लिए अच्छे चिकित्सक को दिखाकर सलाह लेनी चाहिए उसी के अनुसार दवा देनी चाहिए ।
- देसी इलाज के रूप में गिलोय के पत्ते खिलाने चाहिए ।