देशी मुर्गी पालन की पूरी जानकारी एवं लाभ
भारत में मुर्गी पालन का उद्योग आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व ही शुरू हो चुका था। मुर्गी पालन मौर्य साम्राज्य का एक प्रमुख उद्योग था। हालांकि इसे 19वीं शताब्दी से ही वाणिज्यिक उद्योग के रूप में देखा जाने लगा था। मुर्गी पालन में मुर्गियों की विभिन्न प्रकार की नस्लों का पालन कर उनके अंडे एवं चिकन का व्यवसाय किया जाता है।
मुर्गी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जो आपकी आय का अतिरिक्त साधन बन सकता है… यह व्यवसाय बहुत कम लागत में शुरू किया जा सकता है और इसमें मुनाफा (लाखों-करोड़ो) भी काफी ज्यादा है… देश में रोजगार तलाश रहे युवा इसे रोज़गार के तौर पर अपना सकते हैं… पिछले चार दशकों में मुर्गीपालन ब्यवसाय क्षेत्र में शानदार विकास के बावजूद, कुक्कुट उत्पादों की उपलब्धता तथा मांग में काफी बड़ा अंतर है।
वर्तमान में प्रति व्यक्ति वार्षिक 180 अण्डों की मांग के मुकाबले 70 अण्डों की उपलब्धता है… इसी प्रकार प्रति व्यक्ति वार्षिक 11 कि.ग्रा. मीट की मांग के मुकाबले केवल 3.8 कि.ग्रा. प्रति व्यक्ति कुक्कुट मीट की उपलब्धता जनसंख्या में वृद्धि जीवनचर्या में परिवर्तन, खाने-पीने की आदतों में परिवर्तन, तेजी से शहरीकरण,प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरुकता, युवा जनसंख्या के बढ़ते आकार आदि के कारण कुक्कुट उत्पादों की मांग में जबर्दस्त वृद्धि हुई है।
वर्तमान बाजार परिदृश्य में कुक्कुट उत्पाद उच्च जैविकीय मूल्य के प्राणी प्रोटीन का सबसे सस्ता उत्पाद है… मुर्गीपालन व्यवसाय से भारत में बेरोजगारी भी काफी हद तक कम हुई है… आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर बैंक से लोन लेकर मुर्गीपालन ब्यवसाय की शुरुआत की जा सकती है और कई योजनाओं में तो बैंक से लिए गए लोन पर सरकार सबसिडी भी देती है। कुल मिलाकर इस व्यवसाय के जरिए मेहनत और लगन से सिफर से शिखर तक पहुंचा जा सकता है।
देसी मुर्गी या Free Range Chicken ब्रायलर मुर्गियों से बहुत अलग होती है। इन मुर्गियां का ब्रायलर मुर्गियों की तुलना में बहुत धीरे विकास होता है। फ्री रेंज चिकन को 1-2 किलो का वज़न तक होने में लगभग 4-5 महिना लगता है। यह मुर्गियां ब्रायलर मुर्गियों के मुकाबले बहुत शक्तिशाली और सक्रिय होते हैं और बाज़ार में भी ब्रायलर मुर्गियों कि तुलना में इसकी तीन गुना अधिक मूल्य में बिक्री होती है। देसी मुर्गी कि सबसे ख़ास बात यह होती है की इसमें मुर्गी दाना की सबसे कम ज़रुरत पड़ती है और बहुत कम जगह में यह आराम से रह जाती हैं इसलिए इनको बड़ी आसानी से आप पाल सकते हैं।
मुर्गी पालन का फायदा और बढ़ता महत्व:-
भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां पर लोग खेती एवं पशुपालन करके अपना जीवन यापन करते हैं। आजकल लोग पशुपालन की तरफ ज्यादा अग्रसर हो रहे हैं जिसमें मुर्गी पालन को भी एक बहुत अच्छा व्यवसाय माना जाता है। पहले के समय मे लोग गाय, भैंस, भेड़ आदि जानवरों को पालते थे तथा इनसे लाभ कमाते थे परंतु आजकल के समय मे देसी मुर्गी का पालन भी एक ऐसा व्यवसाय बन गया है जो व्यक्ति को एक अतिरिक्त आय का साधन प्रदान करता है।
इसमें कम लागत पर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है परंतु इसमें आपकी मेहनत और लगन पर सब कुछ निर्भर है क्योंकि इनमे संक्रमण का खतरा बहुत अधिक होता है इसीलिये आप जितनी मेहनत से और अच्छे से इनकी देखभाल करेंगे इनसे उतना ही अधिक लाभ होगा। भारत में दिन-प्रतिदिन देसी मुर्गी पालन के व्यवसाय का प्रचलन बढ़ता जा रहा है भारत अंडो के उत्पाद में तीसरे नंबर पर और मांस के उत्पाद में पांचवें नंबर पर है।
ग्रामीण क्षेत्रों में निम्न स्तर पर मुर्गी पालन का व्यवसाय किया जा सकता है और अधिक से अधिक लाभ कमाया जा सकता है। मुर्गी पालन का व्यवसाय अधिकतर अंडे एवं मांस उत्पादन के लिए किया जाता है क्योकि देशी मुर्गी के अंडे तथा मांस में मानव पोषण के लिए सबसे आवश्यक तत्व, प्रोटीन बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है।
इसके साथ ही साथ मुर्गियों के कूड़े (litter) से खेतों को उपजाऊ भी बनाया जा सकता है क्योकि जितना एक गाय के गोबर से एक खेत को उपजाऊ बनाया जा सकता है उतना ही 40 मुर्गियों के बिष्ठों से एक खेत को उपजाऊ बनाया जा सकता है। अगर मुर्गी पालन में सही प्रजाति के चूजे, देखभाल, पौष्टिक आहार, बिमारियों से बचने का टीका एवं साफ़ सफाई सही ढंग से किया जाए तो एक बेहतर आय बनाई जा सकती है।
देसी मुर्गी के कुछ मुख्या प्रजातियाँ:-
भारत मे मुर्गियों की बहुत सी प्रजातियां पायी जाती है लेकिन इन सभी प्रजातियों में से देशी मुर्गियों की प्रजाति पालन की दृष्टि से सबसे उपयुक्त होती है। देसी मुर्गी निम्न प्रकार की होती है, आप इनमें से अपने अनुसार चुन सकते हैं :-
भारत में मुर्गियों की नस्लें (कुक्कुट नस्ल) Chicken Breeds in India Hindi
असेल नस्ल Aseel:-
यह नस्ल भारत के उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में पाई जाती है। भारत के अलावा यह नस्ल ईरान में भी पाई जाती है जहाँ इसे किसी अन्य नाम से जाना जाता है। इस नस्ल का चिकन बहुत अच्छा होता है। इन मुर्गियों का व्यवहार बहुत ही झगड़ालू होता है इसलिए मानव जाति इस नस्ल के मुर्गों को मैदान में लड़ाते हैं।
मुर्गों का वजन 4-5 किलोग्राम तथा मुर्गियों का वजन 3-4 किलोग्राम होता है। इस नस्ल के मुर्गे-मुर्गियों की गर्दन और पैर लंबे होते हैं तथा बाल चमकीले होते हैं। मुर्गियों की अंडे देने की क्षमता काफी कम होती है।
कड़कनाथ नस्ल Kadaknath:-
इस नस्ल का मूल नाम कलामासी है, जिसका अर्थ काले मांस वाला पक्षी होता है। कड़कनाथ नस्ल मूलतः मध्य प्रदेश में पाई जाती है। इस नस्ल के मीट में 25% प्रोटीन पायी जाती है जो अन्य नस्ल के मीट की अपेक्षा अधिक है। कड़कनाथ नस्ल के मीट का उपयोग कई प्रकार की दवाइयां बनाने में भी किया जाता है इसलिए व्यवसाय की दृष्टि से यह नस्ल अत्यधिक लाभप्रद है। यह मुर्गिया प्रतिवर्ष लगभग 80 अंडे देती है। इस नस्ल की प्रमुख किस्में जेट ब्लैक, पेन्सिल्ड और गोल्डेन है।
ग्रामप्रिया नस्ल Gramapriya:-
ग्रामप्रिया को भारत सरकार द्वारा हैदराबाद स्थित अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना के तहत विकसित किया गया है। इसे ख़ास तौर पर ग्रामीण किसान और जनजातीय कृषि विकल्पों के लिये विकसित गया है। इनका वज़न 12 हफ्तों में 1.5 से 2 किलो होता है।
इनके मीट का प्रयोग तंदूरी चिकन बनाने में अधिक किया जाता है। ग्रामप्रिया एक साल में औसतन 210 से 225 अण्डे देती है। इनके अण्डों का रंग भूरा होता है और उसका वज़न 57 से 60 ग्राम होता है।
स्वरनाथ नस्ल Swarnath:-
स्वरनाथ कर्नाटक पशु चिकित्सा एवं मत्स्य विज्ञान और विश्वविद्यालय, बंगलौर द्वारा विकसित चिकन की एक नस्ल है। इन्हें घर के पीछे आसानी से पाला जा सकता है। ये 22 से 23 सप्ताह में पूर्ण परिपक्व हो जाती है और तब इनका वज़न 3 से 4 किलोग्राम होता है। इनकी प्रतिवर्ष अण्डे उत्पादन करने की क्षमता लगभग 180-190 होती है।
कामरूप नस्ल Kamrup:-
यह बहुआयामी चिकन नस्ल है जिसे असम में कुक्कुट प्रजनन को बढ़ाने के लिए अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना द्वारा विकसित किया गया है। यह नस्ल तीन अलग-अलग चिकन नस्लों का क्रॉस नस्ल है, असम स्थानीय(25%), रंगीन ब्रोइलर(25%) और ढेलम लाल(50%)।
इसके नर चिकन का वज़न 40 हफ़्तों में 1.8 – 2.2 किलोग्राम होता है। इस नस्ल की प्रतिवर्ष अण्डे देने की क्षमता लगभग 118-130 होती है जिसका वज़न लगभग 52 ग्राम होता है।
चिटागोंग नस्ल Chittagong:-
यह नस्ल सबसे ऊँची नस्ल मानी जाती है। इसे मलय चिकन के नाम से भी जाना जाता है। इस नस्ल के मुर्गे 2.5 फिट तक लंबे तथा इनका वजन 4.5 – 5 किलोग्राम तक होता है। इनकी गर्दन और पैर बाकी नस्ल की अपेक्षा लंबे होते है। इस नस्ल की प्रतिवर्ष अण्डे देने की क्षमता लगभग 70-120 अण्डे है।
केरी श्यामा नस्ल Kerry Syama:-
यह कड़कनाथ और कैरी लाल का एक क्रास नस्ल है। इस किस्म के आंतरिक अंगों में भी एक गहरा रंगद्रव्य होता है, जिसे मानवीय बीमारियों के इलाज़ के लिए जनजातीय समुदाय द्वारा प्राथमिकता दी जाती है। यह ज्यादातर मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान में पायी जाती है।
यह नस्ल 24 सप्ताह में पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाती है और तब इनका वज़न लगभग 1.2 किलोग्राम(मादा) तथा 1.5 किलोग्राम(नर) होता है। इनकी प्रजनन क्षमता प्रतिवर्ष लगभग 85 अण्डे होती है।
झारसीम नस्ल Jharsim:-
यह झारखंड की मूल दोहरी उद्देश्य नस्ल है इसका नाम वहाँ की स्थानीय बोली से प्राप्त हुआ है। ये कम पोषण पर जीवित रहती है और तेज़ी से बढ़ती है। इस नस्ल की मुर्गियाँ उस क्षेत्र के जनजातीय आबादी के आय का स्रोत है। ये अपना पहला अण्डा 180 दिन पर देती है और प्रतिवर्ष 165-170 अण्डे देती है। इनके अण्डे का वज़न लगभग 55 ग्राम होता है। इस नस्ल के पूर्ण परिपक्व होने पर इनका वज़न 1.5 – 2 किलोग्राम तक होता है।
देवेंद्र नस्ल Devendra:-
यह एक दोहरी उद्देश्य चिकन है। यह पुरूष और रोड आइलैंड रेड के रूप में सिंथेटिक ब्रायलर की एक क्रॉस नस्ल है। 12 सप्ताह में इसका शरीरिक वज़न 1800 ग्राम होता है। 160 दिन में ये पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाती है। इनकी वार्षिक अण्डा उत्पादन क्षमता 200 है। इसके अण्डे का वज़न 54 ग्राम होता है।
श्रीनिधि:-
इस प्रजाति की भी मुर्गियां दोहरी उपयोगिता वाली होती हैं यह लगभग 210 से 230 अंडे तक देती है। इनका वजन 2.5 किलोग्राम से 5 किलोग्राम तक होता है जो कि ग्रामीण मुर्गियों से काफी ज्यादा होता है और इन से अधिक मात्रा में मांस और अंडे दोनों के जरिए अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। इस प्रजाति की मुर्गियों का विकास काफी तेजी से होता है।
वनराजा:-
शुरुआत में मुर्गी पालन करने के लिए यह प्रजाति सबसे अच्छी मानी जाती है ये मुर्गी 3 महीने में 120 से 130 अंडे तक देती हैं और इसका वज़न भी 2.5-5 किलो तक जाता है। हलाकि यह प्रजाति अन्य प्रजाति से थोडा कम क्रियात्मक और सक्रिय रहते हैं।
केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर द्वारा विकसित नस्लें
घर के पिछवाड़े में पाले जाने वाली नस्लें
कारी निर्भीक (एसील क्रॉस)
- एसील का शाब्दिक अर्थ वास्तविक या विशुद्ध है। एसील को अपनी तीक्ष्णता, शक्ति, मैजेस्टिक गेट या कुत्ते से लड़ने की गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। इस देसी नस्ल को एसील नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इसमें लड़ाई की पैतृक गुणवत्ता होती है।
- इस महत्वपूर्ण नस्ल का गृह आंध्र प्रदेश माना जाता है। यद्यपि, इस नस्ल के बेहतर नमूने बहुत मुश्किल से मिलते हैं। इन्हें शौकीन लोगों और पूरे देश में मुर्गे की लड़ाई-शो से जुड़े हुए लोगों द्वारा पाला जाता है।
- एसील अपने आप में विशाल शरीर और अच्छी बनावट तथा उत्कृष्ट शरीर रचना वाला होता है।
- इसका मानक वजन मुर्गों के मामले में 3 से 4 किलो ग्राम तथा मुर्गियों के मामले में 2 से 3 किलो ग्राम होता है।
- यौन परिपक्वता की आयु (दिन) 196 दिन है।
- वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 92
- 40 सप्ताह में अंडों का वजन (ग्राम)- ५०
कारी श्यामा (कडाकानाथ क्रॉस)
- इसे स्थानीय रूप से “कालामासी” नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ काले मांस (फ्लैश) वाला मुर्गा है। मध्य प्रदेश के झाबुआ और धार जिले तथा राजस्थान और गुजरात के निकटवर्ती जिले जो लगभग 800 वर्ग मील में फैला हुआ है, इन क्षेत्रों को इस नस्ल का मूल गृह माना गया है।
- इनका पालन ज्यादातर जनजातीय, आदिवासी तथा ग्रामीण निर्धनों द्वारा किया जाता है। इसे पवित्र पक्षी के रूप में माना जाता है और दीवाली के बाद इसे देवी के लिए बलिदान देने वाला माना जाता है।
- पुराने मुर्गे का रंग नीले से काले के बीच होता है जिसमें पीठ पर गहरी धारियां होती हैं।
- इस नस्ल का मांस काला और देखने में विकर्षक (रीपल्सिव) होता है, इसे सिर्फ स्वाद के लिए ही नहीं बल्कि औषधीय गुणवत्ता के लिए भी जाना जाता है।
- कडाकनाथ के रक्त का उपयोग आदिवासियों द्वारा मानव के गंभीर रोगों के उपचार में कामोत्तेजक के रूप में इसके मांस का उपयोग किया जाता है।
- इसका मांस और अंडे प्रोटीन (मांस में 25-47 प्रतिशत) तथा लौह एक प्रचुर स्रोत माना जाता है।
- 20 सप्ताह में शरीर वजन (ग्राम)- 920
- यौन परिपक्वता में आयु (दिन)- 180
- वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 105
- 40 सप्ताह में अंडे का वजन (ग्राम)- 49
- जनन क्षमता (प्रतिशत)- 55
- हैचेबिल्टी एफ ई एस (प्रतिशत)- ५२
हितकारी (नैक्ड नैक क्रॉस)
- नैक्ड नैक परस्पर बड़े शरीर के साथ-साथ लम्बी गोलीय गर्दन वाला होता है। जैसे इसके नाम से पता लगता है कि पक्षी की गर्दन पूरी नंगी या गालथैली (क्रॉप) के ऊपर गर्दन के सामने पंखों के सिर्फ टफ दिखाई देते हैं।
- इसके फलस्वरूप इनकी नंगी चमड़ी लाल हो जाती है विशेषरूप से नर में यह उस समय होता है जब ये यौन परिपक्वतारूपी कामुकता में होते है।
- केरल का त्रिवेन्द्रम क्षेत्र नैक्ड नैक का मूल आवास माना जाता है।
- 20 सप्ताह में शरीर का वजन (ग्राम)- 1005
- यौन परिपक्वता में आयु (दिन)- 201
- वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 99
- 40 सप्ताह में अंडे का वजन (ग्राम)- 54
- जनन क्षमता (प्रतिशत)- 66
- हैचेबिल्टी एफ ई एम (प्रतिशत)- ७१
उपकारी (फ्रिजल क्रॉस)
- यह विशिष्ट मुरदार-खोर (स्कैवइजिंग) प्रकार का पक्षी है जो अपने मूल नस्ल आधार में विकसित होता है। यह महत्वपूर्ण देसी मुर्गे की तरह लगता है जिसमें बेहतर उपोष्ण अनुकूलता तथा रोग प्रतिरोधिता, अपवर्जन वृद्धि तथा उत्पादन निष्पादन शामिल है।
- घर का पिछवाड़ा मुर्गी पालन के लिए उपयुक्त है।
- उपकारी पक्षियों की चार किस्में उपलब्ध हैं जो विभिन्न कृषि मौसम स्थितियों के लिए अनुकूल है।
- काडाकनाथ X देहलम रैड
- असील X देहलम रैड
- नैक्ड नैक X देहलम रैड
- फ्रिजल X देहलम रैड
निष्पादन रूपरेखा
- यौन परिपक्वता की आयु 170-180 दिन
- वार्षिक अंडा उत्पादन 165-180 अंडे
- अंडे का आकार 52-55 ग्राम
- अंडे का रंग भूरा होता है
- अंडे की गुणवत्ता, उत्कृष्ट आंतरिक गुणवत्ता
- 95 प्रतिशत से ज्यादा सहनीय
- स्वभाविक प्रतिक्रिया तथा बेहतर चारा
लेयर्स
कारी प्रिया लेयर
- पहला अंडा 17 से 18 सप्ताह
- 150 दिन में 50 प्रतिशत उत्पादन
- 26 से 28 सप्ताह में व्यस्तम उत्पादन
- उत्पादन की सहनीयता (96 प्रतिशत) तथा लेयर (94 प्रतिशत)
- व्यस्तम अंडा उत्पादन 92 प्रतिशत
- 270 अंडों से ज्यादा 72 सप्ताह तक हेन हाउस
- अंडे का औसत आकार
- अंडे का वजन 54 ग्राम
कारी सोनाली लेयर (गोल्डन– 92)
- 18 से 19 सप्ताह में प्रथम अंडा
- 155 दिन में 50 प्रतिशत उत्पादन
- व्यस्तम उत्पादन 27 से 29 सप्ताह
- उत्पादन (96 प्रतिशत) तथा लेयर (94 प्रतिशत) की सहनीयता
- व्यस्तम अंडा उत्पादन 90 प्रतिशत
- 265 अंडों से ज्यादा 72 सप्ताह तक हैन-हाउस
- अंडे का औसत आकार
- अंडे का वजन 54 ग्राम
कारी देवेन्द्र
- एक मध्यम आकार का दोहरे प्रयोजन वाला पक्षी
- कुशल आहार रूपांतरण- आहार लागत से ज्यादा उच्च सकारात्मक आय
- अन्य स्टॉक की तुलना में उत्कृष्ट- निम्न लाइंग हाउस मृत्युदर
- 8 सप्ताह में शरीर वजन- 1700-1800 ग्राम
- यौन परिपक्वता पर आयु- 155-160 दिन
- अंडे का वार्षिक उत्पादन- 190-200
ब्रायलर
कारीब्रो – विशाल( कारीब्रो-91)
- दिवस होने पर वजन – 43 ग्राम
- 6 सप्ताह में वजन – 1650 से 1700 ग्राम
- 7 सप्ताह में वजन – 100 से 2200 ग्राम
- ड्रैसिंग प्रतिशतः 75 प्रतिशत
- सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
- 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 94 से 2.20
कारी रेनब्रो (बी-77)
- दिवस होने पर वजन – 41 ग्राम
- 6 सप्ताह में वजन – 1300 ग्राम
- 7 सप्ताह में वजन – 160 ग्राम
- सहनीय प्रतिशत – 98-99 प्रतिशत
- ड्रैसिंग प्रतिशतः 73 प्रतिशत
- 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 94 से 2.20
कारीब्रो–धनराजा (बहु–रंगीय)
- दिवस होने पर वजन – 46 ग्राम
- 6 सप्ताह में वजन – 1600 से 1650 ग्राम
- 7 सप्ताह में वजन – 2000 से 2150 ग्राम
- ड्रेसिंग प्रतिशतः 73 प्रतिशत
- सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
- 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 90 से 2.10
कारीब्रो– मृत्युंजय (कारी नैक्ड नैक)
- दिवस होने पर वजन – 42 ग्राम
- 6 सप्ताह में वजन – 1650 से 1700 ग्राम
- 7 सप्ताह में वजन – 200 से 2150 ग्राम
- ड्रैसिंग प्रतिशतः 77 प्रतिशत
- सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
- 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 9 से 2.0
कुक्कुट पालन परियोजना निदेशालय, हैदराबाद द्वारा विकसित नस्लें
वनराजा
- कुक्कुटपालन परियोजना निदेशालय, हैदराबाद द्वारा विकसित ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में पिछवाड़े में पालन के लिए उपयुक्त पक्षी
- यह एक बहुरंगी तथा दोहरे प्रयोजन वाला पक्षी होने के साथ आकर्षक पक्षति (प्लूमेज) वाला पक्षी है।
- सामान्य कुक्कुट रोग के विरुद्घ इसमें बेहतर प्रतिरक्षा स्तर है और यह मुक्त रेंज पालन के लिए अनुकूल है।
- वजराजा के नर नियमित आहार प्रणाली के तहत 8 सप्ताह की आयु में मामूली शरीर वजन हासिल करते हैं।
- मुर्गी के अंडजनन का चक्र 160-180 अंडे एक चक्र में होते हैं।
- इसके परस्पर हल्के वजन और लम्बी टांगों के कारण पक्षी परभक्षी से अपनी रक्षा करने में सफल होते हैं जो कि पिछवाड़े में पक्षी पालन में अपने आप में एक मुख्य समस्या है।
कृषिभ्रो
- कुक्कुट पालन परियोजना निदेशालय, हैदराबाद द्वारा विकसित
- बहु-रंगी व्यावसायिक ब्रायलर चिक्स
- 2-2 आहार रूपांतरण अनुपात से कम
- 6 सप्ताह की आयु तक शरीर वजन प्राप्त करता
लाभः
- सख्त, बेहतर अनुकूल तथा जीवित रहने की बेहतर क्षमता
- इसकी निर्वाहता 6 सप्ताह तक लगभग 97 प्रतिशत है
- इन पक्षियों का आकर्षक रंग पक्षति है तथा उपोष्ण मौसम स्थितियों के अनुकूल है।
- व्यावसायिक कृषिभ्रो सामान्य पोल्ट्री रोग जैसे रानीखेत तथा संक्रमण ब्रुसलरोग के विरुद्ध उच्च प्रतिरोधी है।
नस्लों की उपलब्धता के बारे में कृपया निम्नलिखित से सम्पर्क करें।
Director
Project Directorate on Poultry
Rajendra Nagar, Hyderabad – 500030
Andhra Pradesh, INDIA
Phone :- 91-40-2401700091-40-24017000/24015651
Fax : – 91-40-24017002
E-mail: pdpoult@ap.nic.in
कर्नाटक पशुचिकित्सा एवं मात्स्यिकी विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलोर द्वारा विकसित नस्लें
गिरिराजा
- कुक्कुट विज्ञान विभाग, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलोर द्वारा विकसित जिसे वर्तमान में कर्नाटक पशु चिकित्सा विज्ञान एवं मात्स्यिकी विज्ञान विश्वविद्यालय, हेब्बल, बंगलुरु के रूप में जाना जाता है।
स्वर्णधारा
- यह नस्ल एक वर्ष में 15-20 अंडे देती है जो गिरिराज चिकन नस्ल से ज्यादा है और इसे कर्नाटक पशुचिकित्सा एवं मात्स्यिकी विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलोर द्वारा वर्ष 2005 में जारी किया गया। स्वर्णधारा चिकन में अन्य स्थानीय नस्लों की तुलना में अंडे की उच्च उत्पादन क्षमता के साथ-साथ बेहतर वृद्धि का भी गुण है और यह मिश्रित तथा पिछवाड़ा पालन प्रणाली के लिए उपयुक्त है।
- गिरिराज नस्ल की तुलना में, स्वर्णधारा नस्ल छोटे आकार की और कम शरीर वजन वाली है जो इसे पर-भक्षियों जैसे जंगली बिल्ली और लोमड़ी के हमले से बचने में मददगार होती है।
- इस पक्षी को अंडों और मांस के लिए पाला जाता है।
- हैचिंग के बाद यह 22-23 सप्ताह में परिपक्व होती है।
- मुर्गियों का वजन लगभग 3 किलो ग्राम तथा मुर्गों का वजन लगभग 4 किलो ग्राम होता है।
- स्वर्णधारा नस्ल की मुर्गियां एक वर्ष में लगभग 180-190 अंडे देती हैं।
कोयल
- हाल ही के वर्षों में जैपनीज कोयल ने अपना व्यापक प्रभाव दिखाया है और अंडे तथा मांस उत्पादन के लिए पूरे देश में अनेक कोयला-फार्म स्थापित किये गये हैं। यह उपभोक्ताओं की गुणवत्ता वाले मांस के प्रति बढ़ती हुई जागरुकता के कारण हुआ है।
- निम्नलिखित घटक कोयल पालन प्राणाली को किफायती और तकनीकी रुप से व्यवहारिक बनाते हैं।
- लघु अवधि पीढ़ी अंतराल
- कोयल रोग के प्रति काफी सशक्त होती
- किसी तरह के टीकाकरण की जरूरत नहीं होती
- कम जगह की जरूरत होती
- रख-रखाव में आसानी होती
- जल्दी परिपक्व होती
- अंडे देने की उच्च तीव्रता – मादा 42 की आयु में अंडे देना आरंभ करती
कारी उत्तम
- कुल अंडे सैट पर हैचेबिल्टीः 60-76 प्रतिशत
- 4 सप्ताह में वजनः 150 ग्राम
- 5 सप्ताह में वजनः 170-190 ग्राम
- 4 सप्ताह में आहार दक्षताः 51
- 5 सप्ताह में आहार दक्षताः 80
- दैनिक आहार खपतः 25-28 ग्राम
कारी उज्जवल
- कुल अंडे सैट पर हैचेबिल्टीः 60-76 प्रतिशत
- 4 सप्ताह में वजनः 140 ग्राम
- 5 सप्ताह में वजनः 170-175 ग्राम
- 5 सप्ताह में आहार दक्षताः 93
- दैनिक आहार खपतः 25-28 ग्राम
कारी स्वेता
- कुल अंडे सैट पर हैचेबिल्टीः 50-60 प्रतिशत
- 4 सप्ताह में वजनः 135 ग्राम
- 5 सप्ताह में वजनः 155-165 ग्राम
- 4 सप्ताह में आहार दक्षताः 85
- 5 सप्ताह में आहार दक्षताः 90
- दैनिक आहार खपतः 25 ग्राम
कारी पर्ल
- कुल अंडे सैट पर हैचेबिल्टीः 65-70 प्रतिशत
- 4 सप्ताह में वजनः 120 ग्राम
- दैनिक आहार खपतः 25 ग्राम
- 50 प्रतिशत अंडा उत्पादन की आयुः 8-10 सप्ताह
- टैन-डे उत्पादनः 285-295 अंडे
गिनी कुक्कुट / गिनी मुर्गा
- गिनी मुर्गा एक काफी स्वतंत्र घूमने वाला पक्षी है।
- यह सीमांत और छोटे किसानों के लिए काफी उपयुक्त है।
- उपलब्ध तीन किस्में हैं- कादम्बरी, चितम्बरी तथा श्वेताम्बरी
विशेष लक्षण
- स्वस्थ पक्षी
- किसी भी तरह के कृषि मौसम स्थिति के लिए अनुकूल
- मुर्गे के अनेक सामान्य रोगों की प्रतिरोधी क्षमता
- विशाल और महंगे घरों की जरुरत न होना
- उत्कृष्ट चारा अनुकूलता
- चिकन आहार में उपयोग न किये जाने वाले समस्त गैर पारंपरिक आहार की खपत
- माइकोटोक्सीन तथा एफ्लाटोक्सीन के प्रति अधिक वहनीयता
- अंडे का बाहर का छिलका सख्त होने की वजह से कम टूटता है और इसकी बेहतर गुणवत्ता बनी रहने की अवधि में वृद्धि होती है
- गिनी मुर्गे का मांस विटामिन से भरपूर होता है तथा इसमें कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम होती है।
उत्पादन लक्षण वर्गन
- 8 सप्ताह में वजन 500-550 ग्राम
- 12 सप्ताह में वजन 900-1000 ग्राम
- प्रथम अंडे जनन में आयु 230-250 दिन
- औसत अंडे का वजन 38-40 ग्राम
- अंडा उत्पादन (मार्च से सितम्बर तक एक अंडे जनन चक्र में) 100-120 अंडे
- जनन क्षमता 70-75 प्रतिशत
- जनन शक्ति वाले अंडे सैट पर हैचेबिल्टी 70-80 प्रतिशत
टर्की
कारी–विराट
- चौड़ी छाती वाली सफेद प्रकार की
- टर्की की बाजार में बिक्री लगभग 16 सप्ताह की आयु में ब्रायलर के रूप में उस समय होती है जब मुर्गियां सामान्यतः लगभग 8 किलो ग्राम के जीवित वजन में और टौम का वजन लगभग 12 किलो ग्राम होता है।
- स्थानीय बाजार की मांग के अनुसार कम आयु में पशुवध द्वारा छोटे, फ्रायर रोस्टरों में इसे तैयार किया जा सकता है।
नस्ल संबंधी जानकारी के लिए कृपया निम्नलिखित से सम्पर्क करें –
निदेशक,
केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान,
इज्जतनगर, उत्तर प्रदेश
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भारत मे पायी जाने वाली अन्य नस्लें:-
यह कुछ अन्य मुर्गियों की प्रजाति है जो भारत में पायी जाती है –
अंकलेश्वर
कश्मीर फेवरोला
कालास्थि
कलिंगा ब्राउन
कृष्णा-जे.
कालाहांडी
कोमान
गिरिराज
कैरी गोल्ड
ग्रामलक्ष्मी
गुजरी
डांकी
घाघस
तेलीचेरी
धुमसील
डाओथीर
धनराजा
पंजाब ब्राउन
निकोबारी
फुलबनी
बुसरा
यमुना
मृत्युंजय
वंजारा
मिरी
वेजागुडा
हरींगाटा ब्लैक
हंसली
भारत में अण्डा देने वाली मुर्गियो की प्रमुख देशी नसलों की उत्पादकता मापदंड:-
कारी प्रिया लेयर:-
पहला अंडा 17 से 18 सप्ताह
150 दिन में 50 प्रतिशत उत्पादन
26 से 28 सप्ताह में व्यस्तम उत्पादन
उत्पादन की सहनीयता (96 प्रतिशत) तथा लेयर (94 प्रतिशत)
व्यस्तम अंडा उत्पादन 92 प्रतिशत
270 अंडों से ज्यादा 72 सप्ताह तक हेन हाउस
अंडे का औसत आकार
अंडे का वजन 54 ग्राम
कारी सोनाली लेयर (गोल्डन- 92):-
18 से 19 सप्ताह में प्रथम अंडा
155 दिन में 50 प्रतिशत उत्पादन
व्यस्तम उत्पादन 27 से 29 सप्ताह
उत्पादन (96 प्रतिशत) तथा लेयर (94 प्रतिशत) की सहनीयता
व्यस्तम अंडा उत्पादन 90 प्रतिशत
265 अंडों से ज्यादा 72 सप्ताह तक हैन-हाउस
अंडे का औसत आकार
अंडे का वजन 54 ग्राम
कारी देवेन्द्र:-
एक मध्यम आकार का दोहरे प्रयोजन वाला पक्षी
कुशल आहार रूपांतरण- आहार लागत से ज्यादा उच्च सकारात्मक आय
अन्य स्टॉक की तुलना में उत्कृष्ट- निम्न लाइंग हाउस मृत्युदर
8 सप्ताह में शरीर वजन- 1700-1800 ग्राम
यौन परिपक्वता पर आयु- 155-160 दिन
अंडे का वार्षिक उत्पादन- 190-200
अगर आप भी मुर्गी पालन करना चाहते हैं तो इन में से आप कोई भी प्रजाति की मुर्गियों का पालन कर सकते हैं अगर आप इन मुर्गियों की देखभाल अच्छे से कर पाते हैं तो इन मुर्गियों से आप अच्छा लाभ कमा सकते है।
अण्डा देने वाली देशी मुर्गियों (व्यस्यायिक तरीके से ) की देखरेख एवं प्रबंधन:-
देशी मुर्गीओ को बेवसायिक दिरिस्टी से पालने हेतु , हमे सेमी इंटैन्सिव पढ़ती अपनानी होती है । आमतौर पर देशी मुर्गी का पालन यदि हम छोटे पैमाने पर करते है तो उसकेलिए शेड बनाने की जरूरत नहीं होती है ,लेकिन यदि बड़े पैमाने पर बेवसायीक दिरिस्टी से करना चाहते है तो हमे मुर्गी घर के अलावा अन्य वैज्ञानिक पढ़ती अपनानी होती है उचित प्रबंधन हेतु ।
यदि योजनाबद्ध तरीके से मुर्गीपालन किया जाए तो कम खर्च में अधिक आय की जा सकती है… बस तकनीकी चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है… मुर्गियों को तभी हानी होती है या वो मरती हैं जब उनके रख-रखाव में लापरवाही बरती जाए… मुर्गीपालन में हमें कुछ तकनीकी चीजों पर ध्यान देना चाहिए… फार्म बनाते समय यह ध्यान दें कि यह गांव या शहर से बाहर मेन रोड से दूर हो, पानी व बिजली की पर्याप्त व्यवस्था हो… फार्म हमेशा ऊंचाई वाले स्थान पर बनाएं ताकि आस-पास जल जमाव न हो।
दो पोल्ट्री फार्म एक-दूसरे के करीब न हों और फार्म की लंबाई पूरब से पश्चिम हो… मध्य में ऊंचाई 12 फीट व साइड में 8 फीट हो… चौड़ाई अधिकतम 25 फीट हो तथा शेड का अंतर कम से कम 20 फीट होना चाहिए और फर्श पक्का होना चाहिए… इसके अलावा जैविक सुरक्षा के नियम का भी पालन होना चाहिए।
एक शेड में हमेशा एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए। आल-इन-आल आउट पद्धति का पालन करें और शेड तथा बर्तनों की साफ-सफाई पर ध्यान दें… शेड में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित रखना चाहिए औऱ इसके साथ ही कुत्ता, चूहा, गिलहरी, देशी मुर्गी आदि के प्रवेश भी वर्जीत रखना चाहिए… मरे हुए चूजे, वैक्सीन के खाली बोतल को जलाकर नष्ट कर दें, समय-समय पर शेड के बाहर डिसइंफेक्टेंट का छिड़काव व टीकाकरण नियमों का पालन करें। समय पर सही दवा का प्रयोग करें और पीने के पानी का उचित मात्रा में प्रयोग करें।
जगह की आवश्यकता (डीप लिटर सिस्टम में):-
जगह की आवश्यकता इस बात पर निर्भर करती है की फार्म कीतने मुर्गीयों के साथ खोला जा रहा है। 1 लेयर मुर्गी के लिए 2 वर्गफुट की जगह पर्याप्त है, पर हमें थोड़ी ज्यादा जगह लेनी चाहिए जिससे मुर्गियों को कोई तकलीफ या चोट न लगे और उन्हें अच्छी जगह मिले जिससे वो जल्द बड़े हो सकें। इसलिए 1 मुर्गी के लिए 2.5 वर्गफुट जगह अच्छी रहेगी। यदि हम 1000 मुर्गी पालन करते है तो हमें 2500 वर्गफुट का शेड बनाना है या 2000 मुर्गियों 4500 वर्गफुट इस तरह से हम जगह का चुनाव कर सकते हैं।
मुर्गियो के लिए संतुलित आहार:-
मुर्गीपालकों को चूजे से लेकर अंडा उत्पादन तक की अवस्था में विशेष ध्यान देना चाहिए यदि लापरवाही की गयी तो अंडा उत्पादकता प्रभावित होती है। मुर्गीपालन में 70 प्रतिशत खर्चा आहार प्रबंधन पर आता है लेकिन देशी मुर्गी को बेवसायीक हेतु पालने मे खर्च कम आता है क्योकि ईसको आहार मे केवल जरूरी पूरक आहार देते है। अतः इस पहलु पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए।
अंडा देने वाली मुर्गियो हेतु आहार प्रबंधन:-
स्टार्टर राशन:-
एक से लेकर 8 सप्ताह तक दिया जाता है… इसमें प्रोटीन की मात्रा 22-24 प्रतिशत, ऊर्जा 2700-2800 ME (Kcal/kg ) और कैल्सियम 1 प्रतिशत होनी चाहिये… राशन बनाने हेतु निम्न्लिखित तत्वों को शामिल किया जा सकता है –
मक्का = 50 किलो सोयाबीन मील = 16 किलो
खली = 13 किलो मछली चुरा =10 किलो राइस पोलिस = 8 किलो
खनिज मिश्रण = 2 किलों नमक = 1 किलो
ग्रोवर (वर्धक) राशन –
यह 8 से लेकर 20 सप्ताह तक दिया जाता है… इसमें प्रोटीन की मात्रा 18 -20 प्रतिशत, ऊर्जा 2600 – 2700 ME (Kcal/kg ) और कैल्सियम 1 प्रतिशत होनी चाहिये… राशन बनाने हेतु निमनलिखित तत्वों को शामिल किया जा सकता है –
मक्का = 45 किलो सोयाबीन मील = 15 किलो
खली = 12 किलो मछली चुरा =7 किलो राइस पोलिस = 18 किलो
खनिज मिश्रण = 2 किलों नमक = 1 किलो
फिनिशर राशन –
यह 20 से लेकर आगे के सप्ताह तक दिया जाता है… इसमें प्रोटीन के मात्रा 16 -18 प्रतिशत, ऊर्जा 2400 – 2600 ME (Kcal/kg ) और कैल्सियम 3 प्रतिशत होनी चाहिये… राशन बनाने हेतु निम्न्लिखित तत्वों को शामिल किया जा सकता है –
मक्का = 48 किलो सोयाबीन मील = 15 किलो
खली = 14 किलो मछली चुरा =8 किलो राइस पोलिस = 11 किलो
खनिज मिश्रण = 3 किलों नमक = 1 किलो
उपरोक्त मुर्गी आहार मुर्गियों के आवश्यकता अनुसार पूरक आहार केरूप मे अल्प मात्रा मे दी जानी चाहिए ।
अण्डा देने वाली देशी मुर्गियो में विभिन्न रोग आने की संभावना बनी रहती है जिसके अन्तर्गत निम्न्लिखित रोग के लिए टिककरण की जाती है
अवस्था रोग टीकाकरण:-
पहला दिन मैरिक्स एचटीवी वैक्सीन(0.2ml)चमड़ी के नीचे
दूसरे से पांचवे दिन रानीखेत फ 1 लसोटा टिका
14 वें दिन गम्बोरो रोग आइबीडी नामक टीका एक बुंद आंख मे दें
21 वें दिन चेचक चेचक चेचक टिका (0.2 ml) उस दवा चमड़ी के नीचे
28 वें दिन रानीखेत फ 1 लसोटा टिका
63 वें दिन (नौवां सप्ताह) रानीखेत बूस्टर टिका (0.5ml) उस पंख के नीचे
84 वें दिन (बारहवां सप्ताह) चेचक चेचक टिका (0.2ml) उस दवा चमड़ी के
अण्डों का रखरखाव:-
अण्डों को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने की चुनौती होती है बड़े व्यवसायी कोल्ड स्टोरेज या रेफ्रीजिरेटर का इस्तेमाल कर सकते है… छोटे व्यवसायी अण्डों को चुने के पानी में भिगोने के बाद छाव में सुखाकर काफी दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है अण्डों को कड़ी धुप से बचाना चाहिए… अण्डों को बाजार तक ले जाने हेतु कूट का बॉक्स या बांस की डोलची(एक प्रकार का बर्तन) का उपयोग करें इस तरह अण्डे को टुटने से बचाया जा सकता है।
सरकार भी आजकल मुर्गी पालन के व्यवसाय को बढ़ावा दे रही है , सरकार भी इसके लिए आसानी से लोन सुविधा भी प्रदान करती है अगर आप चाहे तो लोन लेकर ये व्यवसाय शुरू कर सकते हैं। सरकार कई रिसर्च कंपनियों के साथ मिलकर कुछ अलग प्रकार की देसी मुर्गियों का निर्माण किया है जिनको पालकर अच्छा खासा लाभ कमाया जा सकता है।
आप मुर्गी पालन के व्यवसाय को बहुत छोटे पैमाने से ही शुरू कर सकते हैं। इसमें कोई जरूरी नहीं है कि बहुत ज्यादा पैसा ही लगाकर बिजनेस शुरू कर सकते हैं इसको आप 5 से 10 मुर्गियों के साथ बिजनेस शुरू कर सकते हैं। और धीरे-धीरे मेहनत और लगन के साथ इस बिजनेस को एक बड़े पैमाने पर ले जा सकते हैं।
फार्म के लिए जगह का चयन:-
जगह समतल हो और कुछ ऊंचाई पर हो, जिससे की बारिश का पानी फार्म में जमा ना हो सके।
मुख्य सड़क से ज्यादा दूर ना हो जिससे लोगों का और गाड़ी का आना जाना सही रूप से हो सके।
बिजली और पानी की सुविधा सही रूप से उपलब्ध हो।
चूज़े, ब्रायलर दाना, दवाईयाँ, वैक्सीन आदि आसानी से उपलब्ध हो।
ब्रायलर मुर्गी बेचने के लिए बाज़ार भी हो।
मुर्गी पालन के लिए शेड का निर्माण:-
शेड हमेशा पूर्व-पश्चिम दिशा में होना चाहिए और शेड के जाली वाला साइड उत्तर-दक्षिण में होना चाहिए जिससे की हवा सही रूप से इसके अन्दर से बह सके और धुप अन्दर ज्यादा ना लगे।
शेड की चौड़ाई 30-35 फुट और लम्बाई ज़रुरत के अनुसार आप रख सकते हैं।
इसका फर्श पक्का होना चाहिए।
इसके दोनों ओर जाली वाले साइड में दीवार फर्श से मात्र 6 इंच ऊँची होनी चाहिए।
शेड की छत को सीमेंट के एसबेस्टस या चादर से बनाना चाहिए और बिच-बिच में वेंटिलेशन के लिए जगह भी होना चाहिए। चादर को दोनों साइड 3 फीट कट लम्बा रखें जिससे की बारिश के बौछार से शेड ना भिज जाये।
इसकी साइड की ऊँचाई फर्श से 8-10 फूट होना चाहिए व बीचो-बीच की ऊँचाई फर्श से 14-15 फूट होना चाहिए।
इसके अन्दर बिजली के बल्ब, मुर्गी दाना व पानी के बर्तन, पानी की टंकी की उचित व्यवस्था होना चाहिए।
एक शेड को दुसरे शेड से थोडा दूर- दूर बनायें। आप चाहें तो एक ही लम्बे शेड को बराबर भाग में दीवार बना कर भी बाँट सकते हैं।
दाने और पानी के बर्तनों की जानकारी:-
प्रत्येक 100 चूज़ों के लिए कम से कम 3 पानी और 3 दाने के बर्तन होना बहुत ही आवश्यक है।
दाने और पानी के बर्तन आप मैन्युअल या आटोमेटिक किसी भी प्रकार का इस्तेमाल कर सकते हैं। मैन्युअल बर्तन साफ़ करने में आसान होते हैं लेकिन पानी देने में थोडा कठिनाई होती है पर आटोमेटिक वाले बर्तनों में पाइप सिस्टम होता है जिससे टंकी का पानी सीधे पानी के बर्तन में भर जाता है।
बुरादा या लिटर:-
बुरादा या लिटर के लिए आप लकड़ी का पाउडर, मूंगफली का छिल्का या धान का छिल्का का उपयोग कर सकते हैं।
चूज़े आने से पहले लिटर की 3-4 इंच मोटी परत फर्श पर बिछाना आवश्यक है। लिटर पूरा नया होना चाहिए एवं उसमें किसी भी प्रकार का संक्रमण ना हो।
ब्रूडिंग:-
चूज़ों के सही प्रकार से विकास के लिए ब्रूडिंग सबसे ज्यादा आवश्यक है। ब्रायलर फार्म का पूरा व्यापार पूरी तरीके से ब्रूडिंग के ऊपर निर्भर करता है। अगर ब्रूडिंग में गलती हुई तो आपके चूज़े 7-8 दिन में कमज़ोर हो कर मर जायेंगे या आपके सही दाना के इस्तेमाल करने पर भी उनका विकास सहीतरीके से नहीं हो पायेगा।
जिस प्रकार मुर्गी अपने चूजों को कुछ-कुछ समय में अपने पंखों के निचे रख कर गर्मी देती है उसी प्रकार चूजों को फार्म में भी जरूरत के अनुसार तापमान देना पड़ता है।
ब्रूडिंग कई प्रकार से किया जाता है – बिजली के बल्ब से, गैस ब्रूडर से या अंगीठी/सिगड़ी से
बिजली के बल्ब से ब्रूडिंग:-
इस प्रकार के ब्रूडिंग के लिए आपको नियमित रूप से बिजली की आवश्यकता होती है। गर्मी के महीने में प्रति चूज़े को 1 वाट की आवश्यकता होती है जबकि सर्दियों के महीने में प्रति चूज़े को 2 वाट की आवश्यकता होती है। गर्मी के महीने में 4-5 दिन ब्रूडिंग किया जाता है और सर्दियों के महीने में ब्रूडिंग 12-15 दिन तक करना आवश्यक होता है। चूजों के पहले हफ्ते में ब्रूडर को लिटर से 6 इंच ऊपर रखें और दुसरे हफ्ते 10 से 12 इंच ऊपर।
गैस ब्रूडर द्वारा ब्रूडिंग:-
जरूरत और क्षमता के अनुसार बाज़ार में गैस ब्रूडर उपलब्ध हैं जैसे की 1000 औ 2000 क्षमता वाले ब्रूडर। गैस ब्रूडर ब्रूडिंग का सबसे अच्छा तरिका है इससे शेड केा अन्दर का तापमान एक समान रहता है।
अंगीठी या सिगड़ी से ब्रूडिंग:-
ये खासकर उन क्षेत्रों के लिए होता हैं जहाँ बिजली उपलब्ध ना हो या बिजली की बहुत ज्यादा कटौती वाले जगहों पर। लेकिन इसमें ध्यान रखना बहुत ज्यादा जरूरी होता है क्योंकि इससे शेड में धुआं भी भर सकता है या आग भी लग सकता है।
पीने का पानी:-
मुर्गी 1 किलो दाना खाने पर 2-3 लीटर पानी पीता है। गर्मियों में पानी का पीना दोगुना हो जाता है। जितने सप्ताह का चूजा उसमें 2 का गुणा करने पर जो मात्र आएगी, वह मात्र पानी की प्रति 100 चूजों पर खपत होगी, जैसे –
पहला सप्ताह = 1 X 2 = 2 लीटर पानी/100 चूजा
दूसरा सप्ताह = 2 X 2 = 4 लीटर पानी /100 चूजा
मुर्गी फार्म में चूजों का प्रबंधन:-
मुर्गी पालन के व्यापार में चूजों की देखभाल करना सबसे जरूरी होता है। यह इसलिए जरूरी होता है क्योंकि चूजों के बेहतर विकास पर ही मुर्गी पालन का पूरा व्यापार निर्भर करता है। चूजों बहुत नाजुक होते हैं इसलिए उनकी देखभाल करना बहुत मुश्किल होता है हर चीज पर सही से ध्यान देना पड़ता है।
अंडे से निकलने के बाद चीजों को सीधे मुर्गी पालन करने वाले व्यापारियों के पास ऑर्डर के अनुसार डिलीवरी दिया जाता है। मुर्गी फार्म तक चूजे पहुंचने से पहले और बाद में कुछ महत्वपूर्ण चीजों का है ध्यान देना चाहिए जिन के विषय में आज हमने भी आर्टिकल में बताया है।
मुर्गी फार्म में चूजों का प्रबंधन:-
मुर्गी पालन में चूजों का प्रबंधन सबसे महत्वपूर्ण होता है –
चूज़े आने से 7-8 दिन पहले ही शेड को अच्छे से साफ़ करें। सबसे पहले मकड़ी के जालों को अच्छे से हटा दें उसके बाद ही नीचे की सफाई करें। उसके बाद फर्श को पानी से धोएं और उसके बाद उसमे फोर्मलिन और चूना मिलाकर लगायें।
हमेशा याद रखें जितनी जल्दी हो सके चूजों की डिलीवरी लें। चूजों की डिलीवरी में देरी होने पर उन्हें डिहाइड्रेशन हो सकता है जिसके कारण मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है या बाद में उनके विकास में कमी आ सकती है। ऐसा होने पर व्यापार में पानी का खतरा बनता है।
चूजों की संख्याओं की गणना की सटीकता की जांच के लिए बक्सों को ठीक से गिना जाना चाहिए।
इसके बाद शेड के बाहर और अंदर 3% फॉर्मलिन के साथ स्प्रे करें। अगर आपने पहले से ही फोर्मलिन को चुन के साथ मिला कर दिया है तो आपको इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी।
अपने फार्म में चूजों के आने से 1 से 2 दिन पहले, 3-4 इंच लिटर फैला दें।
चूजों के आने के 24 घंटों से पहले चूजों के लिए गोल चादर की मदद से छोटा गोल बोर्डिंग सेट बनाते हैं। प्रत्येक ब्रूडिंग सेट में 250 चूजों को विभाजित करें और कूड़े के ऊपर कागज के टुकड़े रखें और उसके ऊपर दाना को छिड़कें और छोटे ड्रिंकर में पानी पीने को दें।
ब्रूडर के पास पानी और फीडर कंटेनर रखें।
चूजों के आते ही उन्हें जल्द से जल्द गोलाकार बनाये हुए घर में स्थानान्तरण कर दें।
सबसे पहले 6-7 घंटों के लिए मकई पाउडर या सूजी खाने को दे।
कमजोर चूजों को स्वस्थ से दूर या अलग रखें।
चूजों की उचित वृद्धि के लिए आपको सही दवाएं और पूर्ण टीकाकरण की आवश्यकता होती है।
गर्मी के मौसम में गर्मी तनाव समस्या को कम करने के लिए मल्टीविटामिन, विटामिन सी और लाइसिन को चूजों को दिया जाना चाहिए।
हफ्ते में दो बार लिटर में 1kg/20वर्गफुट चूने का पाउडर मिक्स करें। यह लिटर में अमोनिया को कम कर देता है और सुखा रखने में मदद करता है।
पानी को साफ करने के लिए संवेदक, ब्लीचिंग पाउडर 6 ग्राम / 1000 लीटर और 1 ग्राम पोटेशियम परमैनेटनेट मिलाकर रखें।
यदि आपको अपने चूजों के साथ किसी भी प्रकार के स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं मिलती हैं तो संभवतः जितनी जल्दी हो सके अपने पशुचिकित्सा से परामर्श करें।
सुनिश्चित करें कि प्रत्येक गोलाकार घर में चूजों को उचित संख्या में रखा गया है। कोशिश करें कि 250-300 चुजें एक ही गोलाकार घर ब्रूडिंग के लिएे रखे।
चूजों को शांत और तनाव मुक्त रखने के प्लेसमेंट के दौरान मंद शेड लाइट रखें।
चूजों को ध्यान से रखा जाना चाहिए और ब्रूडिंग क्षेत्र में फ़ीड और पानी पास में वितरित किया जाना चाहिए ताकि वे तेजी से पानी पी सकें और खा सकें, जिससे की चूजे तेजी से पुन: हाइड्रेट हो पाए।
पुराना वजन निर्धारित करने के लिए बक्से का वजन करना चाहिए।
चूजों के बक्से को तुरंत ही चूजों को रखने के बाद हटा दिया जाना चाहिए।
एक बार सभी चूजों को रखने के बाद रोशनी को ब्रूडिंग क्षेत्र में पूरी तीव्रता के साथ लाया जाना चाहिए ताकि चूजों की जल्द से जल्द गर्मी मिल सके।
पहले कुछ दिनों के दौरान चूजों के वितरण की जांच करें. फीडर, ड्रिंकर्स, वेंटिलेशन या हीटिंग सिस्टम में किसी भी समस्याओं के लिए यह एक संकेतक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
चूजों को साफ पानी दें और हर दिन पानी के फीडर और ड्रिंकर को साफ करें।
चूजों को कम से कम 7दिन तक ब्रूडिंग में रखें और देसी मुर्गियों को 15-20 दिन तक मौसम के अनुसार।
मुर्गियों के अपशिष्ट का प्रबंधन:-
मुर्गियों के अपशिष्ट को साफ करना स्वस्थ और विकसित मुर्गी पालन के लिए महत्वपूर्ण है। हमें उनके अपशिष्ट को प्रतिदिन फावड़े से निकाल देना चाहिए, क्योंकि उसकी बदबू से मक्खियां और कीड़े आ सकते हैं। दरबे के अंदर बदबू कम करने के लिए रेत भी एक अच्छा समाधान है। किसानों को उन तरीकों का पता लगाना होगा जिनका प्रयोग करके वे मुर्गियों के अपशिष्ट का लाभ उठा सकते हैं।
जैसे, उन्हें फसलों में खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है (इसे विघटित होने के लिए कुछ महीने तक छोड़ने के बाद)। विघटित होने के बाद, मुर्गियों का अपशिष्ट सब्जियों, औषधियों, पेड़ों और अन्य फसलों के लिए बहुत अच्छे खाद का काम करता है।
मिट्टी को कई प्रकार से बेहतर बनाने के साथ-साथ यह नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम भी प्रदान करता है। इस बात का ध्यान रखें कि आप मुर्गियों के अपशिष्ट के साथ-साथ दरबे के बिस्तर (रेत, फूस, लकड़ी के छिलके) भी इकट्ठा कर सकते हैं और उन सभी को एक कम्पोस्टिंग बिन के ऊपर
विपणन:-
देशी मुर्गी पालन से प्राप्त अंडे का बहुत ज्यादा मांग है । ईसको जैविक अंडा के रूप मे एसतमाल किया जराहा है । ईसकी कीमत आमतौर पर साधारण अंडे के मुक़ाबले 3 से 4 गुना यानि की 10 से 15 रुपया होता है । ईसके मार्केटिंग मे कोई परेसानी नहीं आती है।