अब प्रश्न यह उठता है कि बच्चों की देखभाल उनके ब्याने के बाद शुरू होती है या ब्याने के पहले से ही जैसा कि हम जानते है कि गाय-भैंस के गर्भ में पल रहे बच्चे का अधिकतम विकास गर्भावस्था के अंतिम तीन महीने में होता है। अर्थात् गर्भावस्था के अंतिम अवस्था में हमें 20-25 किलो हरी घास, 5 किलो सूखा चारा एवं 2 किलो दाने का मिश्रण प्रतिदिन देना चाहिए ताकि प्रसव के समय कमजोरी न आये एवं बच्चा पलटने एवं जड़ रूकने की समस्या भी न हो। जानवर के ब्याने के उपरांत बच्चे की देखभाल निम्नलिखित तरीके से करें।
हमारे बुजुर्ग कहते है कि यदि हमारे बच्चों का लालन-पोषण बचपन में अर्थात् शुरूआत में ही अच्छा होता है तो वह वयस्क होकर निरोगी होते हैं एवं अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग करते है। यही बात हमारे गाय-भैंस के बच्चों पर भी लागू होती है यदि बचपन में उनका वैज्ञानिक विधि से रखरखाव किया जाये तो वह बड़े होने पर यदि मादा है तो अच्छा दुग्ध उत्पादन देती है और यदि नर है तो बड़े होने पर उससे प्रजनन के लिये उपयोग किया जा सकता है, वैसे भी पशुपालन का व्यवसाय तभी लाभदायक होता है जब हमको जानवर बाहर से न खरीदने पड़े बल्कि बच्चे ही बड़े होकर हमको ज्यादा दुग्ध उत्पादन दे। साथ उचित तरीके से किये गये रखरखाव वाले मादा बच्चे तीन साल पर गर्भधारण करने के लिये तैयार हो जाते है एवं नर बच्चे भी तीन साल पर मादा पशु को गर्भित करने योग्य हो जाते है।
• जानवर के ब्याने के उपरांत यदि बच्चे को सांस लेने में दिक्कत आ रही है तो उसकी नाक को साफ कपड़े से पोछें यदि ऐसा करने से भी, कोई अंतर न आये तो बच्चे को पिछले पैरों से उठाकर उल्टा कर दें एवं सावधानी से नाक में घास का तिनका घुमायें ताकि बच्चे को छींक आये एवं नाक में फंसा श्लेस्मा बाहर निकले।
• नवजात बच्चों में नाल के पकने की संभावना भी बहुत ज्यादा होती है, इससे निजात पाने के लिये नवजात का नाभी पर टिंचर आयोडीन अवश्य लगाएं ताकि न तो नाल पके एवं जीवाणु अंदर भी प्रवेश न करे।
• यह भी देखा गया है कि नवजात बच्चों में पेट के कीड़े माँ के माध्यम से गर्भावस्था में ही आ जाते है अत: इससे बचाव हेतु उसकी मां को गर्भावस्था के अंतिम दो माह में पेट के कीड़े की दवा दें।
• थनों एवं शरीर के पिछले हिस्सों को पोटेशियम परमैग्नेट से साफ करें, दुग्धपान के दौरान बच्चों में कीटाणु प्रवेश न करें।
• नवजात बच्चों को माँ का प्रथम दूध जिसे चीका कहते हैं अवश्य पिलायें क्योंकि प्रकृति ने इस चीके को संजीवनी बूटी बनाया है। अर्थात् इसमें रोगों से लडऩे की क्षमता अधिक होती है। बच्चों को ब्याने के दो घंटे के अंदर चीका अवश्य पिलायें बाद में बच्चों को उसके वजन के अनुसार दूध पिलाएं अर्थात् यदि बच्चे का वजन 20 किलो है तो 2 किलो दूध एक किलो सुबह, एक किलो शाम प्रतिदिन पिलायें।
• डॉ. विवेक अग्रवाल
• डॉ. रवि सिकरोडिया
• डॉ. दीपक गांगिल
• डॉ. गया प्रसाद जाटव
• डॉ. ए के जयराव
• डॉ. निर्मला जामरा,
सहायक प्राध्यापक/ वैज्ञानिक, पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय,महू dragrawalin76@gmail.com