पशुओं के बांझपन रोग तथा उनका बचाव व उपचार
दुधारू पशुओं ने प्रजनन संबंधी कई प्रकार की समस्याएं होती है। इन समस्याओं में (1) पशुओं बाँझपन का होना (2) उनका ऋतु चक्र में न आना (मदहीनता) (3) उनकी ऋतुकाल का कमजोर होना (मदमदता) (4) उनका सामान्य से छोटा अथवा बड़ा ऋतुकाल का होना (5) उनमें डिम्बक्षरण का अभाव व बच्चा पैदा होने में परेशानी का होना आदि प्रमुख है।
समस्याएं तथा समाधान
पशुओं में बाँझपन की प्रमुख समस्याओं व उनके समाधान का उल्लेख एवं सुझाव निम्नलिखित है –
जीवाणुओं का प्रकोप
गाय भैंस में बाँझपन के कारणों में उनका बार – बार ऋतुचक्र में आना, गर्भाशय अथवा डिम्बवाहिनी में मवाद पड़ना, भ्रूण की वृद्धि की प्रारंम्भिक अवस्था में विनाश होना, बच्चे का गर्भापात होना आदि समस्याएं प्रमुख होती है। यह समस्याएं प्राय: जीवाणुओं, विषाणुओं तथा परजीवियों (पैरासाईट) के संक्रमण से होती है। संक्रामक रोग जैसे क्षयरोग, ब्रूसोलोसिस, खुरपका – मुंहपका आदि इस समस्या को और गंभीर बना देते हैं।
क. बचाव हेतु सुझाव
संक्रमित (रोगी) पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए।
समय – समय पर पशुओं के संक्रमण की जाँच की करनी चाहिए।
संक्रमित गर्भपात से मरे बच्चे (भ्रूण) को जला देना चाहिए अथवा गहरे गड्ढे में गाड़ देना चाहिए।
ऐसे पशु की देख – रेख पशु चिकित्सक से करवानी चाहिए।
मदहीनता (गर्मी में न आना) का होना
पशुओं का लगातार अधिक समय तक ऋतुकाल में न आना मदहीनता कहा जाता है। मदहीनता का प्रमुख कारण कुपोषण, विपरीत पर्यावरण, संक्रामक रोगों का होना, मंदमदता, गर्मी की पहचान में त्रुटी होती है। ऐसी परिस्थिति में पशुओं के गर्भाधान होने के दो माह बाद पशु के गर्भाधारण की पुष्टि पशु चिकित्सक से अवश्य करा लेनी चाहिए। यदि पशु गर्भित न निकले तो उसके उपचार का कार्य अनुभवी पशु चिकित्सक के परामर्श के अनुसार करना चाहिए।
असंतुलित पशु पोषण का होना
पशुओं की प्रजनन क्षमता में खनिज लवणों एवं विटामिन्स का विशेष योगदान होता है। इन पोषक तत्वों की कमी से पशुओं में मदहीनता अथवा बार – बार गर्मी में आने एवं गर्भधारण ने कर पाने की समस्याएँ भी देखने में आती है। अत: पशु खुराक में विटामिन युक्त हरे चारे एवं खनिज लवणों की पर्याप्त मात्रा देने से इस समस्या की नियंत्रित किया जा सकता है।
बाँझपन में हार्मोन का प्रभाव
हार्मोन शरीर से वृद्धि से लेकर प्रजनन क्रियाओं के नियंत्रण तक की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। हार्मोन शरीर के अंदर विभिन्न ग्रंथियों में बनते हैं जहाँ से वे सीधे खून में चले जाते हैं। हार्मोन की मात्रा में कमी – बेशी से ऋतुकाल में मदहीनता अथवा मंद मदता होना अत्यधिक छोटा या बड़ा मदकाल (ऋतुकाल) का होना, अंडाशय में कारपस ल्यूटीयम का अधिक समय तक बना रहना या नष्ट हो जाना, शुक्राणुओं तथा अण्डों के निकलने तथा निषेचन (मिलने) में बाधा होना, अंडाशय तथा अंडकोश का अधिक छोटा अथवा बड़ा होना और उसकी क्रियाशीलता में कमी आना होता है। इनका समाधान उपचार से ही संभव है।
बार – बार ऋतुचक्र में आना (पूनरागत प्रजनक)
गाय भैंसों ने ऋतुकाल (मदकाल) का समय औसतन 18 घंटे तक रहता है। ऋतुकाल समाप्त होने के लगभग 12 से 14 घंटे बाद अंडाशय से डिम्बक्षरण होता है जो कि शुक्राणु से मिलकर भ्रूण बनाता है। कई बार अंडाशय से डिम्बक्षरण नियमित समय पर नहीं होता है। जिसके कारण पशु गर्भित नहीं हो पाते हैं तथा अगले 20 – 21 दिनों बाद पुनः मद अ आते हैं। पशुओं की इस स्थिति को पुनरागत प्रजनक (रिपीट ब्रीडर) कहा जाता है। यह स्थिति पशु की बच्चेदानी में संक्रमण रोग होने के कारण, वीर्य की खराबी तथा उचित समय पर पशु का गर्भाधान न करने से भी जो जाती है। अत: पशुपालकों को चाहिए कि पुनारागत प्रजनक संबंधी पशुओं की पशु चिकित्सक से उपचार करवाना चाहिए।
गर्भाधान का उचित समय
उक्त समस्या के निदान हेतु उचित समय पर पशुओं का गर्भाधान करना आवश्यक होता है। साधारणतया गाय तथा भैंस में मद समाप्त होने के 8 घंटे पूर्व से लेकर मद समाप्त होने तक डिम्बक्षरण होता है। अत: यदि पशु प्रात: काल में ऋतु (मद) में आया है तो उसका वीर्य दान सायं के समय और यदि पशु में ऋतु के लक्षण सांयकाल में दिखाई देते हैं तो पशु का वीर्यदान अगले दिन प्रात: काल में करवाना चाहिए। गर्भाधान के 2 माह बाद गर्भ परिक्षण में यदि मादा गाभिन न पायी जाये तो पशु चिकित्सक से जाँच करानी चाहिए।
जेर का अंदर रूक जाना
अधिकांश पशुओं में बच्चा देने के बाद प्राकृतिक ढंग से जेर गिर जाती है। परंतु कुछ पशुओं में बच्चा देने के बाद जातक पशु के पेट के अंदर जेर फंस जाती है, जिसके कारण पशु के जनन अंगों का संक्रमण हो जता है, और उसमें मवाद पड़ जाने के कारण उनकी प्रजनन क्षमता स्वास्थ्य दोनों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जेर को गैर अनुभवी व्यक्ति से निकलवाना उचित नहीं होता है। ऐसा करने से पशु के गर्भाशय के अंदर घाव बन सकता है और उसमें खून बह सकता है। जेर गिरने के उपचारों में पशु को तेज चलनाम उसे गुड का पानी पिलाना, जेर से लटके हुए हिस्से पर हल्का वजन बांधना, कमजोर पशु के शरीर पर ग्लूकोज अथवा लवण का घोल चढ़वाना आदि साधारण उपचार भी लाभकारी होते है।
बच्चा पैदा होने में कठिनाई
बच्चा पैदा होने में कठिनाई के प्रमुख कारण पशु प्रवस के समय पैदा होने वाले बच्चे के आकार का बड़ा होना, मादा पशु के शरीर का आकार छोटा होना, जातक पशु द्वारा एक से अधिक बच्चे का जन्म देना, सर्विक्स का पूर्ण रूप में खुला होना, पेल्विस का छोटा होना तथा गर्भाशय का मुड़ जाना होता है।
उपरोक्त समस्याओं के कारण बछड़ों में मृत्यु दर अधिक हो जाती है और कभी – कभी मादा पशु की भी मृत्यु हो जाती है।
गर्भाशय का बाहर निकल आना
इस समस्या का मुख्य कारण मादा पशु के गर्भाशय का बड़ा होना तथा उसके प्रजनन अंगों में चर्बी का जमा होना होता हैं। अत: बच्चा देने के पूर्व गर्भाशय बाहर निकलने की स्थिति में कुशल एवं योग्य पशु चिकित्सक द्वारा ही उपचार कराया जाना चाहिए।
संक्रामक गर्भापात
यह रोग ब्रूसेला एर्वाटास नामक जीवाणु से होता है। यह जीवाणु गाय तथा भैंसों के गर्भापात का कारण बनता है। इस रोग के लक्षणों में गर्भाशय का शिथिल पड़ जाना, हारमोंस की कमी से गर्भाशय की सक्रियता का कम होना, पशु का 5 से 6 माह का गर्भ गिर जाना, पशु की जेर कई दिनों तक न गिरना, एवं जेर में पीले रंग की धारियां दिखाई देना आदि प्रमुख लक्षण होते है। इस रोग का उपचार पशु चिकित्सक से करवाना चाहिए।
गर्भाशय शोध
यह रोग अधिकतर नये ब्याये पशुओं में देखने को मिलता है। इस रोग से गर्भाशय में सूजन आ जाती है और उससे मवाद जैसा गाढ़ा पानी निकलता है। इस बीमारी का मुख्य कारण गर्भाशय में रुकी हुई जेर होती है। जिसका कुछ हिस्सा अंदर रह जाता है। योनी में हाथ डालकर बच्चा निकलने से भी कभी – कभी जीवाणुओं से संक्रामण हो जाता है जिससे भी यह रोग हो जाता है। इस बीमारी का यदि समय से उपचार नहीं किया गया तो पशु के दोबारा गर्भ में आने की संभावनाएं नहीं के बराबर रह जाती है।
बाँझपन निवारण शिविरों के आयोजन
ग्रामीण क्षेत्रों के ऐसे पशु जो बार – बार कृत्रिम वीर्यदान करने पर भी गर्भित नहीं होते हैं, उनसे बाँझपन निवारण हेतु दुग्ध संघ के पशु चिकित्सकों तथा कृत्रिम वीर्यदान अधिकारीयों द्वारा संयुक्त रूप से प्रारंभिक दुग्ध समितियों में बाँझपन शिविर आयोजित किये जाते हैं। इन शिविरों के आयोजन की तिथियाँ पूर्व निर्धारित होती है। अत: इन निर्धारित तिथियों में संबंधित दुग्ध समिति के उत्पादक सदस्य अपने- अपने बाँझ पशु जाँच एवं उपचार हेतु समिति के दुग्ध संग्रह केंद्र पर लेट हैं। इस केंद्र पर पशु चिकित्सकों द्वारा पशुओं के जनन अंगों का परिक्षण कर उनके चिकित्सा की जाती है। प्रदेश के पशुपालन विभाग द्वारा भी ग्रामीण क्षेत्रों में बाँझपन शिविरों का आयोजन किया जाता है। बाँझपण शिविरों के आयोजन के समय सभी पशु चिकित्सकों के पास आवश्यक दवाईयों, शल्य चिकित्सा सामग्री तथा उपकरण उपलब्ध रहते हैं जिनका स्थल पर भी उपयोग पशुओं के बाँझपन के उपचार में किया जाता है। अत: दुग्ध संघ के फील्ड पर्यवेक्षक तथा सहकारी दुग्ध समिति के सचिव के इन बांझपन निवारण शिविरों के आयोजन कराने के समय – समय पर पहल करनी चाहिए।