पशुओं को लंपि स्कीन ( एलएसडी ) के प्रकोप से बचाने के लिए घरेलू नुस्खा का उपयोग कैसे करें
घरेलू नुस्खा का इस्तेमाल करके पशुओं को लम्पी स्किन डिजीज (एलएसडी) के प्रकोप से बचाएं पशुपालक।
लक्षण दिखे तो पशुओं को एहतियात के तौर पर एक दूसरे से दूर रखें
अपने देश में पशुओं पर कुछ जगह लम्पी स्किन डिजीज (एलएसडी) का प्रकोप देखा गया है। ऐसे में देश के किसान अपने पशुओं की देखभाल में सावधानी बरतें। यह संक्रामक बीमारी है। पशु में इस बीमारी के लक्षण दिखे तो पशुओं को एहतियात के तौर पर एक दूसरे से दूर रखना जरूरी है। लम्पी स्किन डिजीज (एलएसडी) गौजातीय पशुओं में चमड़ी का रोग है जो लम्पी स्किन डिजीज वायरस के कारण होता है। यह गौवंश और भैंसों को प्रभावित करने वाली एक संक्रामक, छूत और आर्थिक महत्व की बीमारी है। यह चमड़ी और शरीर के अन्य भागों में गांठ बनने के उपरान्त फटने से बने घावों के कारण कभी-कभी घातक भी हो सकती है। आमतौर पर, बुखार, भूख न लगना, और मुंह, नाक, थन, जननांग, मलाशय की त्वचा और श्लेष्मा झिल्ली पर गांठे बनना, दूध उत्पादन में कमी, गर्भपात, बांझपन और कभी-कभी मृत्यु इस रोग की नैदानिक अभिव्यक्तियाँ हैं । द्वितीयक जीवाणु संक्रमण होने से प्रभावित पशुओं की स्थिति और खराब हो जाती है। पीड़ित पशु के शरीर पर गांठे बनने के कारण इस रोग को गांठदार या ढेलेदार चमड़ी रोग भी कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि एलएसडी प्रभावित किसी भी पशु में लम्पी स्किन डिजीज होने पर अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय से ईलाज करवायें। बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग करें और घावों के उपचार एवं मक्खियों को दूर करने के लिए कीट विकर्षक/एंटीसेप्टिक दवा लगाएं।
उपचार एवं नियंत्रण
• लक्षणों के अनुसार रोग का उपचार किया जाता है।
यदि पशुओं को बुखार है, तो बुखार ज्वरनाशक दवाई दी जा सकती • आहार और पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
• रोग प्रभावित क्षेत्रों से पशुओं और अन्य उत्पादों को नहीं खरीदें । • साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
घरेलु उपचार
- 10 पान के पत्ते, 10 ग्राम काली मिर्च और 10 ग्राम नमक मिलाकर पेस्ट बना लें। अब इसमें गुड़ मिलाएं। इस एक खुराक को पहले दिन हर तीन घंटे में खिलाएं और बाद में अगले दो सप्ताह तक दिन में तीन बार खिलाएं। या
- लहसुन – 2 कलियां, धनिया 10 ग्राम, जीरा 10 ग्राम, तुलसी-1 मुट्ठी, सूखी दालचीनी के पत्ते 10 ग्राम, काली मिर्च- 10 ग्राम, पान के पत्ते 5 नग, शलजम 2 पीस, हल्दी पाउडर- 10 ग्राम, चिरता के पत्ते 30 ग्राम, मरूआ तुलसी – 1 मुट्ठी, नीम के पत्ते – 1 मुट्ठी, बिल्व के पत्ते – 1 मुट्ठी और गुड़ 100 ग्राम, आदि सभी को – मिलाकर पेस्ट बनाकर गुड के साथ पहले दिन, हर तीन घंटे में खिलाएं और बाद में रोग ठीक होने तक दिन में दो बार खिलाएं।
- त्वचा पर घाव होने पर हरित कुप्पी (अकालिफा इंडिका) के पत्ते -1 मुट्ठी, लहसुन- 10 कलियां, नीम के पत्ते – 1 मुट्ठी, हल्दी पाउडर- 20 ग्राम, मेहंदी के पत्ते – 1 मुट्ठी, तुलसी के पत्ते – 1 मुट्ठी मिलाकर पेस्ट बना लें। अब इसे 500 मिलीलीटर नारियल या तिल के तेल में मिलाकर उबाल लें और ठंडा होने के लिए रख दें। पेस्ट लगाने से पहले घावों को अच्छी तरह से साफ कर लें और फिर सीधे प्रभावित त्वचा पर लगाएं।
- अगर घाव में कीड़े दिखाई दे तो पहले दिन सीताफल के पत्तों का पेस्ट या नारियल के तेल में कपूर मिलाकर लगाएं।