पशुओं में प्राथमिक एवं घरेलु उपचार

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पशुओं में प्राथमिक एवं घरेलु उपचार

अधिकांश पशु पालकों के पास अपने रोगी पशुओं के उपचार के लिए बाजार में उपलब्ध दवाइयों को खरीदने की क्षमता नहीं होती हैं। साथ ही पशु को चिकित्सक के पास ले जाने के लिए भी शुल्क की आवश्यकता होती हैं जो वे वहन नहीं कर पाते हैं। इसलिए वे गांव में ही उपलब्ध अनभिज्ञ एवं झोलाछाप चिकित्सकों से अपने पशु का उपचार कराते हैं जिसके कारण कई बार उनका बहुत नुकसान हो जाता है। पशुपालकों को साधारण बिमारियों की जानकारी स्वयं होनी चाहिए जिसके आधार पर वे अपने पशु को घरेलू चिकित्सा प्रदान कर सकें। साथ ही कुछ देसी दवाइयां जिनकी गुणवत्ता वैज्ञानिक रूप से रखी जा चुकी हैं उनकी भी जानकारी पशुपालकों को होनी चाहिए। इसी संदर्भ में घरेलू उपचार से सम्बन्धित कुछ जानकारियाँ दी गयी हैं।

ज्वर, बुखार:
ज्वर से पीड़ित पशु को साफ व हवादार पशुगृह में रखना चाहिए तथा फर्श को सूखा रखना चाहिए।
पक्के फर्श पर पशु के नीचे भूसा अथवा घास बिछा देनी चाहिए।
पशु को अधिक से अधिक पानी पीने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
मीठा सोडा (सोडियम बाइकार्बोनेट) 15 ग्राम, नौसादर 15 ग्राम, सैलीसिलिक एसिड 15 ग्राम, 500 मि.ली. पोटैशियम नाइट्रेट, 30 ग्राम चिरायता का • महीन चूर्ण और गुड़ 100 ग्राम लगभग 200 ग्राम पानी में घोल कर गाय या भैंस को 8 से 10 घंटे के अंतर पर पिलाना चाहिए।

कब्ज (काँस्टिपेशन) :
पशु को 60 ग्राम काला नमक, 60 ग्राम सादा नमक, 15 ग्राम हिंग, 50 ग्राम सौंफ लेकर 500 ग्राम गुड़ में मिलाकर दिन में दो बार देना चाहिए।
इसके अलावा 500 ग्राम मैगसल्फ, 250 मि.ली. अरंडी का तेल भी देना चाहिए।

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फोघ (एबसेस) :
अक्संद के पत्ते को सरसों के तेल के साथ चुपड़ कर फोड़े पर बांधने से वह फूट जाता है।
इसके बाद नीम या करंज का तेल अथवा धतूरे के पत्तों को पीस कर हल्दी में मिला कर लगाने से भी लाभ मिलता है।

घाव (वून्ड) :
प्रायः चोट लगने या दुर्घटनाग्रस्त होने पर शरीर पर घाव हो जाते हैं।
यह दो प्रकार के होते हैं- एक जिनमें चमड़ी फटी न हो और दूसरा जिनमें चमड़ी फट गयी हो।
जब चमड़ी नहीं फटती तो चोट लगने की जगह पर सूजन आ जाती है या फिर उसके नीचे खून का जमाव हो जाता है। इस दौरान अगर बर्फ या ठण्डे पानी से सिकाई की जाए तो वह फोघ नहीं बन पाता।
पुराने घाव पर गर्म पानी से सिकाई अधिक फायदेमंद होती है।
खुली हुई चोट यदि साधारण हो तो उसे साफ करके कोई भी एंटीसेप्टिक क्रीम लगानी चाहिए।
यदि खून बह रहा हो तो टिंक्चर बैंजोइन लगाना फायदेमंद है।
घाव पर नीम या फिर बबूल के पत्ते अथवा इनकी छाल का पाउडर लगाने से भी आराम मिलता है
गुम चोट में हल्दी, गुड़ तथा फिटकरी का पेस्ट लगाने से भी फायदा मिलता है।
यदि घाव बड़ा हो और उसके साथ खून एवं पीप भी आ रही हो तो चिकित्सक से आवश्यक सलाह लेनी चाहिए।

जलना (बर्न) :
जले हुए भाग पर ठंडा पानी डालना चाहिए उसके बाद जैतून अथवा नारियल के तेल का लेप लगाना चाहिए।
जले हुए भाग पर बुझे चूने का पानी एवं अलसी का तेल बराबर भाग में मिलाकर लगाना चाहिए जो अति लाभदायक है।

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रक्तस्त्राव (हिमोरेज) :
कटी हुई रक्त नलिका पर दबाव देना चाहिए ताकि रक्त का बहना रूक जाये।
कटे हुए स्थान को 2-3 सें.मी. ऊपर व नीचे से बांधने से खून रिसना बंद हो जाता है।
रक्तस्राव वाले स्थान पर बर्फ या ठण्डे पानी को लगातार डाल कर भी खून का बहना रोका जा सकता हैं।
यह ऐसा संभव न हो तो मोटे कपड़े को फिटकरी के घोल में भिगो कर कटे हुए स्थान पर जोर से दबाकर रखना चाहिए।

योनि पथ या बेल का निकलना (प्रोलैप्स ऑफ वैजाइना/यूटेरस) :
इसका मुख्य कारण कैल्शियम व फॉस्फोरस की कमी होता है। अतः गाभिन पशु को 50-100 ग्राम खनिज मिश्रण नित्य ब्याने के 1 से 2 महीने पूर्व देते रहना चाहिए जिससे बेल निकलने की संभावना कम रहती है।
अगले पैर नीचे स्थान पर व पिछले पैर ऊंचे स्थान पर रखने चाहिए जिससे उस पर जोर कम पड़े।
अगर बेल निकल जाती है तो उसे डिटॉल या लाल __ दवा की 1 : 100 के अनुपात वाले घोल से साफ करके उसे हाथ से अन्दर कर देना चाहिए।
बार-बार बेल निकलने पर निकटतम पशु चिकित्सक से संपर्क स्थापित करना चाहिए।

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