पशुओं में यौवनावस्था का आगमन
गाय और भैंस के यौवानावस्था प्राप्त करने की आयु अलग-अलग होती है. यौवनावस्था वह आयु है जब पशु ‘हीट’ या मद्चक्र प्रदर्शित करने लगता है. विभिन्न नस्लों की गाय और भैंस जल्दी या देर से यौवनावस्था में आ सकती हैं. यौवनावस्था का आगमन पशु की नस्ल, खान-पान, भौगोलिक स्थिति, मौसम एवं आनुवंशिक कारकों पर निर्भर करता है. जो पशु अपने व्यस्क दैहिक भार का लगभग 60% स्तर छू लेते हैं उनकी यौवनावस्था शीघ्र होती है. बड़ी गायों की तुलना में छोटे आकार की नस्ल वाली गायें जल्दी यौवनावस्था प्राप्त कर लेती हैं. बछड़ों की तुलना में कटड़े अधिक समय बाद यौवनावस्था प्राप्त करते हैं. अगर किसी क्षेत्र विशेष पर मिलने वाली गौ-नस्ल को किसी अन्य स्थान पर पाला जाए तो भी इसमें यौवनावस्था आने में देरी हो सकती है. कई बार विपरीत वातावारणीय परिस्थितियाँ भी यौवनावस्था में देरी का कारण बनती हैं. गर्म क्षेत्रों पर मिलने वाले पशु देरी से यौवनावस्था में पहुँचते हैं. उल्लेखनीय है कि देरी से यौवनावस्था होने पर प्रथम ब्यांत पर पशु की आयु बहुत अधिक होती है जो डेयरी सञ्चालन हेतु आर्थिक दृष्टि से सही नहीं है. अगर गाय जल्दी से यौवनावस्था प्राप्त करके ग्याभिन करवाई जाए तो इसकी प्रथम ब्यांत पर आयु को न्यूनतम स्तर तक लाया जा सकता है. यही कारन है कि हमारे किसान अपनी डेयरी हेतु ऐसे पशुओं का चयन करते हैं जो शीघ्र ही यौवनावस्था में आ सकें. देशी नस्ल की गायें और भैंस अधिक देरी से यौवनावस्था प्राप्त करती हैं इसलिए इन्हें आर्थिक दृष्टि से कम बेहतर आंका जाता है. पशुओं को बेहतर खुराक व पालन-पोषण देने से इनके जनन-संबंधी हार्मोन स्तर बढ़ कर यौवनावस्था लाने में सहायक होते हैं. कुछ पशुओं के नर और मादा पशु एक ही स्थान पर रखने से भी यौवनावस्था का आगमन शीघ्र हो सकता है. देशी नस्लों की तुलना में संकर पशु बहुत जल्द ही हीट में आ जाते हैं. यौवनावस्था शीघ्र लाने हेतु पशुओं का रोग-मुक्त एवं स्वस्थ रहना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि बीमारियों के कारण पशु देर से यौवनावस्था में आते हैं. i