पशुपालको द्वारा अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न तथा समाधान

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क्या पशुओं के रोग मनुष्यों को संक्रमित हो सकते है?

जी हाँ,पशुओं से मनुष्यों को संक्रमित होने वाले रोगों को भी ज़ूनोटिक रोग कहते है। वास्तव में मनुष्य भी पशुओं को संक्रमित कर सकते है। उदाहरण:- रैबिज़ (हल्क), टूयब्ररकूलोसिस (क्षय रोग), ब्रसलोसिस, एंथ्रेकस (तिल्ली बुखार), ‌ टिटेनस इत्यादि।

संक्रामक किसानों/पशुपालकों की आर्थिक स्थिती को कैसे प्रभावित करते है?

मुख्यतः विभिन्न संक्रामक रोग पशुओं के वि

भिन्न अंगों को प्रभावित करके अंततः कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं। दुग्ध उत्पादन में कमी आ जाती है। भेड़-बकरियों में उन का उत्पादन प्रभावित होता है। इसके अतिरिक्त ये रोग मास उत्पादन एवं उसकी गुणवत्ता को कम करते है। इसके अतिरिक्त ये रोग गर्भपात एवं प्रजनन क्षमता को कम करता हैं।

वर्षा ऋतु में फैलने वाले प्रमुख रोग कौन-कौन से है?

वर्षा ऋतु में बहुत से संक्रामक फैलते हैं जैसेकि गलघोंटू, लंगड़ा बुखार, खुरपका रोग, मुहँ-खुर पका रोग, दस्त इत्यादि।

कौन से संक्रामक रोग प्रजजन क्षमता को प्रभावित करते है?

पशुओं की प्रजनन प्रणाली में बहुत से जीवाणु एवं विषाणु फलित-गुणित होते हैं जोकि प्रजनन क्षमता में कमी एवम् गर्भसपात का कारण होता है। निम्न प्रमुख संक्रामक रोगवाहक हैं जोकि प्रजनन सम्बंधी समस्याएं उत्पन्न करते हैं:- ब्रूसेला, लिसिटरिया, कैलमाइडिया और IBRT विषाणु इत्यादि हैं।

क्या विभिन चर्मरोग भी संक्रामक होते है?

पशुओं में चर्मरोग कई कारणों से होते है जिनमें से संक्रामक रोग भीएक प्रमुख कारण है। बहुत से जीवाणु रोग एवं बाहय अंगों को प्रभावित करते हैं। चर्मरोग का एक प्रमुख जीवाणु कर्क स्टैफाइलोकोकस है जो बालों का गिरना चमड़ी का खुरदुरापन एवं फोड़े-फुन्सियों का कारण बनता है। पशुओं में चर्म रोग का एक प्रमुख कर्क फँफूद भी होता है (ड्रमटोमाइकोसिस)।

बछड़ों में दस्त रोग के मुख्य कारक क्या है?

बहुत से जीवाणु रोग बछड़ों में दस्त रोग का कारण है। वर्षा ऋतु की यह एक प्रमुख समस्या है। कोलिबैसिलोसिस, बछड़ों में दस्त एवम आंतों कि सूजन का एक प्रमुख कारक है, जिसमें बहुत से बछड़ों की मृत्यु भी हो जाती है।

थनैला रोग केजीवाणु कारक कौन से है?

थनों की सूजन को थनैला रोग कहते है और यह मुख्यतः वर्षा ऋतु की समस्या है। इसके प्रमुख जीवाणु कारक निम्न है:- स्टैफाइलोकोकस, स्ट्रैप्टोकोकस , माइकोप्लाज़मा, कोराइनीबैक्टिरीयम, इ.कोलाई (E.Col) तथा कुछ फंफूद होते हैं।

कौन से संक्रामक रोग पशुओं में गर्भपात का कारण बनते है?

पशुओं में गर्भपात के लिये बहुत से जीवाणु एवं विषाणु उत्तरदायी होते हैं। गर्भपात गर्भवस्था के विभिन्न चरणों में संभव है। प्रमुख जीवाणु एवं विषाणु जो गर्भपात का कारक है: ब्रूसेला,लेप्टोस्पाइरा, कैलमाइडिया एवम् IBR , PPR विषाणु इत्यादि।

थनैला रोग के रोकथाम के प्रमुख उपाय कौन से है?

  • पशुओं की शाला को नियमित रूप से सफाई की जानी चाहिये ।
  • मल-मूल को एकत्रित नहीं होने देना चाहिये।
  • थनों को दुहने से पहले साफ़ करने चाहिये।
  • दुग्ध दोहन स्वच्छ हाथों से करना चाहिये।
  • दुग्ध दोहन दिन में दो बार अथवा नियमित अंतराल पर करना चाहिये।
  • शुरू की दुग्ध-धाराओं को गाढ़ेपन एवं रगँ की जांच कर लेनी चाहिये।
  • थन यदि गर्म, सूजे एवं दुखते हो तो पशुचिकित्सक से परीक्षण करा लेना चाहिये।

संक्रामक रोगों की रोकथाम के क्या उपाय हैं?

संक्रामक रोगों के रोकथाम के लिये उचित आयु एवं उचित अंतराल पर टीकाकरण करना चाहिये।

टीकाकरण की उचित आयु क्या है?

टीकाकरण कार्यक्रम रोग के प्रकार , पशुओं कि प्रगति एवम् टीके के प्रकार पर निर्भर करता है। समान्यतः टीकाकरण 3 महीने की पर किया जाता हैं। व्यवहारिक तौर पर पशुपालकों को सलाह दी जाती है की टीकाकरण के लिये पशुचिकित्सक की सलाह लें।

क्या टीकाकरण सुरक्षित हैं? इसके दुष्प्रभाव क्या हैं?

जी हाँ, टीकाकरण पूर्णरूप से सुरक्षित हैं। टीकों के उत्पादन में पूर्ण सावधानी बरती जाती है। तथा इनकी क्षमता, गुणवत्ता एवं सुरक्षा सम्बंधी परीक्षण किये जाते है, तत्पश्चात ही इन्हें उपयोग हेतु भेजा जाता है। मद्धिम ज्वर अथवा टीकाकरणस्थान पर हल्की सूजन य्दाक्य हो जाति है जोकि स्वयै दिनों में नियंत्रित हो जाति है। किसी भी शंका समाधान के लिये पशुचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिये।

खनिज पदार्थ क्या होते है?

ऐसे तत्व जो पशुओं के शरीरिक क्रियाओं, जैसे विकास, भरण, पोषण तथा प्रजनन एवं दूध उत्पादन में सहायक होते हैं खनिज तत्व कहलाते हैं। मुख्य खनिज तत्व जैसे सोडियम, पोटाशियम , कापर, लौ, कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, जिंक, क्लोराइड़, सेलिनियम और मैंगनीज आदि है।

खनिज तत्व पशुओं के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं?

खनिज लवण जहां पशुओं के शरीरिक क्रियाओं जिसे विकास, प्रजनन,भरण , पोषण के लिए जरूरी है वहीं प्रजनन एवं दूध उत्पादन में भी अति आवश्यक हैं। खनिज तत्वों का शरीर में उपयुक्त मात्रा में होना अत्त्यंत आवश्यक है क्योंकि इनका शरीर में असंतुलित मात्रा में होना शरीर कि विभिन्न अभिक्रियाओं पर दुष्प्रभाव डालता ही तथा उत्पादन क्षमता प्र सीधा असर डालता है।

पशुओं को खनिज तत्व कितनी मात्रा में देना चाहिये?

पशुओं को खनिज मिश्रण खिलने की मात्रा :

  • छोटा पशु :20 ग्राम प्रति पशु प्रतिदिन
  • बड़े पशु :40 ग्राम प्रति पशु प्रतिदिन

साईलेस क्या होता है? इसका क्या लाभ है?

वह विधि जिसके द्वारा हरे चारे अपने रसीली अवस्था में ही सुरक्षित रूप में रखा हुआ मुलायम हर चारा होता है जो पशुओं को ऐसे समय खिलाया जाता है जबकि हरे चने का पूर्णतया आभाव होता है।

साईलेस के लाभ :

  • साईलेस सूखे चारे कि अपेक्षा कम जगह घेरता है।
  • इसे पौष्टिक अवस्था में अधिक समय तक रखा जा सकता है।
  • साईलेस से कम खर्च पर उच्च कोटि का हरा चारा प्राप्त होता है।
  • जड़े के दिनों में तथा चरागाहों के अभाव में पशुओं को आवश्यकता अनुसार खिलाया जा सकता है।

साईलेस बनाने की प्रक्रिया बतायें

हरे चारे जैसे मक्की, जवी, चरी इत्यादि का एक इंच से दो इंच का कुतरा कर लें। ऐसे चारों में पानी का अंश 65 से 70 प्रतिशत होना चाहिए। 50 वर्ग फुट का एक गड्डा मिट्टी को खोद कर या जमीन के ऊपर बना लें जिसकी क्षमता 500 से 600 किलो ग्राम कुत्तरा घास साईलेस की चाहिए। गड्डे के नीचे फर्श वह दीवारों की अच्छी तरह मिट्टी व गोबर से लिपाई पुताई कर लें तथा सूखी घास या परिल की एक इंच मोती परत लगा दें ताकि मिट्टी साईलेस से न् लगे। फिर इसे 50 वर्ग फुट के गड्डे में 500 से 600 किलो ग्राम हरे चारे का कुतरा 25 किलो ग्राम शीरा व 1.5 किलो यूरिया मिश्रण परतों में लगातार दबाकर भर दें ताकि हवा रहित हो जाये घास की तह को गड्डे से लगभग 1 से 1.5 फुट ऊपर अर्ध चन्द्र के समान बना लें। ऊपर से ताकि गड्डे के अंदर पानी व वा ना जा सके। इस मिश्रण को 45 से 50 दिन तक गड्डे के अंदर रहने दें। इस प्रकार से साईलेस तैयार हो जाता है जिसे हम पशु की आवश्यकता अनुसार गड्डे से निकलकर दे सकते हैं।

सन्तुलित आहार से क्या अभिप्राय है?

ऐसे भोजन जिसमें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन वसा खनिज लवणों उचित मात्रा में उपस्थित हों सन्तुलित आहार कहलाता है। अधिक जानकारी के लिए नजदीकी पशु चिकित्सक एवं पशु पोषण विभाग, पालमपुर से सम्पर्क साधना उचित होगा।

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गर्भवती गाय को क्या आहार देना चाहिए?

गर्भवती गाय को चारा शरीर के अनुसार एवं सरलता से पचने वाला होना चाहिए। दाना 2 – 4 कि.ग्राम. प्रतिदिन तथा दुग्ध हेतु दाना अतिरिक्त देना चाहिए। मिनरल पाउडर 30 ग्राम॰ +50 ग्राम प्रतिदिन देना चाहिए। पशु चिकित्सक से सम्पर्क अति आवश्यक है।

ऊँची चरागाहों में खासकर किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

ऐसा देखा गया है कि गद्दी भाई पने पशुओं को घास चराने के अलावा कुछ भी नहीं खिला पाते हैं, हालांकि देखा गया है कि ऊँचे चरागाहों में जाने के बाद भेड़ बकरियों में नमक की कमी हो जाती है। अतः दो ग्राम प्रति भेड़ प्रतिदिन के हिसाब से सप्ताह में दो बार नमक अवश्य देना चाहिए।

हिमाचल प्रदेश की जलवायु के लिए कौन सी नस्ल की भेडें अधिक अच्छी होती हैं?

हिमाचल प्रदेश की जलवायु के लिए गद्दी एवं गद्दी संकर नस्ल की भेडें अति उत्तम रहती है।

मेरी बछड़ी तीन साल की है, स्वस्थ है पर बोलती नहीं है क्या करें? उसकी जांच किसी नज़दीक के पशु चिकित्सक से करवायें। उसके गर्भशय में कोई समस्या हो सकती है या खान पान में कमियां हो सकती है।

पशु कमज़ोर है क्या करें?

निकट के पशु चिकित्सा अधिकारी से सम्पर्क करना चाहिए। उसके पेट कीड़े भी हो सकते हैं। जिसका उपचार अति आवश्यक है।

पशुओं की स्वास्थ्य की देख रेख के लिए क्या कदम उठाना चाहिए?

किसानों को नियमित रूप से पशुओं कि विभिन्न बीमारियों के रोक थम के लिए टीकाकरण करवाना, कीड़ों की दवाई खिलाना तथा नियमित रूप से उनकी पशु चिकित्सा अधिकारी से जांच करवाना।

बार बार कृत्रिम गर्भ का टीका लगाने के बाबजूद पशु के गर्भधारण न कर पाने का उपाय?

इसका मुख्य कारण पशुओं को असंतुलित खुराक की उपलब्धता व सन्तुलित आहार का न मिल पाना व रोगग्रस्त होने के कारण हो सकता है। ऐसे में पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें।

सन्तुलित आहार से की अभिप्राय है? ऐसा भोजन जिसमें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन वसा विटामिन्स एवं खनिज लवणों उचित मात्रा में उपस्थित हों सन्तुलित आहार कहलाता है। अधिक जानकारी के लिए नजदीकी पशु चिकित्सक एवं पशु पोसन विभाग, पालमपुर से सम्पर्क साधना उचित होगा।

परजीवी हमारे पशुओं को किस प्रकार से हानि पहुंचाते हैं?

परजीवी हमारे पशुओं को मुख्यतया निम्न प्रकार से हानि पहुचाते है:

  1. पशुओं का खून चूसकर।
  2. पशुओं के आन्तरिक अंगों में सूजन पैदा करके।
  3. पशुओं के आहार के एक भाग को स्वयं ग्रहण करके।
  4. पशुओं की हड्डियो के विकास में बाधा उत्पन्न करके।
  5. पशुओं को अन्य बीमारियों के लिये सुग्राही बना कर।

पशुओं में पाये जाने वाले आम परजीवी रोगों के क्या मुख्य लक्षण होते हैं?

पशुओं में पाये जाने वाले आम परजीवी रोगों के मुख्य लक्षण इस प्रकार है:

  1. पशुओं का सुस्त दिखायी देना।
  2. पशुओं के खाने पीने में कमी आना।
  3. पशुओं की तत्व की चमक में कमी आना।
  4. पशु में खून की कमी हो जाना।
  5. पशुओं की उत्पादन क्षमता में कमी आना।
  6. पशुओं का कमजोर होना।
  7. पशुओं के प्रजजन में अधिक बिलम्ब होना।

परजीवी रोगों से पशुओं को कैसे बचाया जाये?

अधिकतर परजीवी रोगों से पशुओं को निम्न उपायों द्वारा बचाया जा सकता है:

  1. पशुओं के रहने के स्थान साफ़-सुथरा व सूखा होना चाहिये।
  2. पशुओं का गोबर बाहर कहीं गड्डे में एकत्र करें।
  3. पशुओं का खाना व पानी रोगी पशुओं के मल मूत्र से संक्रमित न होने दें।
  4. पशुओं को फिलों (Snails) वाले स्थानों पर न चरायें।
  5. पशुओं के चरागाहों में परिवर्तन करते रहें।
  6. कम जगह पर अधिक पशुओं को न चराये।
  7. पशुओं के गोबर कि जांच समय-समय पर करवायें।
  8. पशुचिकित्सक की सलाह से कीड़े मारने की दवाई दें।
  9. समय-समय पर पशुचिकित्सक की सलाह लें।

भारत में कौन-कौन सी गाय की नस्लें हैं?

भारत में लगभग 27 मान्यता प्राप्त गाय की नस्लें हैं:-

(क) दुधारू नस्लें :- रेड सिन्धी, साहीवाल, थरपारकर

(ख) हल चलाने योग्य :- अमृत महल, हैलिकर,कांगयाम

(ग) दुधारू-व-हल योग्य:- हरयाणा कंकरेज, अंगोल

दुधारू नस्ल की गाय के बारे में विस्तृत जानकारी दें?

रेड सिन्धी:- यह नस्ल सर्वोतम दूध उत्पादन क्षमता रखती है। इस गाय का कद छोटा होता है, रंग पीला से लाल है, चौड़ा माथा और गिरे हुए कान, सींग छोटे व झालर लम्बी और गर्दन के नीचे तक जाती है।

साहीवाल:- इस नस्ल की उत्पत्ति पकिस्तान से हुई है। आमतौर पर यह रेड सिन्धी की तरह दिखती है। चमड़ी लचीली होती है व रंग गहरा लाल और कुछ लाल धब्बे होते है।

थरपारकर:- यह नस्ल गुजरात व राजस्थान में प्रमुख है। इस गाय का रंग सफेद से भूरा होता है। माथा चौड़ा व चपटा,व लम्बे कान होते है।

भारत में दूध उत्पादन की क्या स्थिति है?

भारत में लगभग 7.4 करोड़ टन दूध उत्पादन क्षमता है जो कि विश्व में सर्वाधिक है।परन्तु प्रति व्यक्ति दूध उपलब्ध एवं प्रति गाय दूध उत्पादन में हम विकसित देशों से बहुत पीछे है। इसके प्रमुख कारण निम्न है:-

(क) कम दूध देने वाली नस्लें।

(ख) चारे व दाने की कमी।

(ग) अपर्याप्त देख रेख व पशुओं में रोगों की प्रसंग।

पशुशाला बनाने के बारे में प्रमुख निर्देश क्या है?

निम्न निर्देश ध्यान योग्य है:-

(क) पशुशाला आस पास की भूमि की अपेक्षा ऊंचाई पर स्थित होनी ची ताकि पानी इक्ट्ठा न हो सके।

(ख) पानी व बिजली की सुविधा होनी अनिवार्य है।

(ग) पशुशाला की दिशा पूर्व-पश्चिम की ओर होनी चाहिए ताकि प्रकृतिक प्रकाश उपलब्ध रहे।

(घ) खुली की दिशा उत्तर की तरफ होनी चाहिए।

(ङ) पशुशाला का फर्श पक्का व खुरदरा होना चाहिए जिससे फिसलन कम है।

डेयरी व्यवसाय को लाभकारी बनाने के क्या उपाय है?

(क) उन्नत व उपयुक्त नस्लों का चयन।

(ख) सन्तुलित चारा व आहार की उपलब्धता।

(ग) आरामदेह आवास की उपलब्धता।

(घ) समय पर रोग अन्विष्ट व रंग निरोधक टीकाकरण।

उपयुक्त नस्ल का चयन कैसे करें?

उपयुक्त नस्ल से अभिप्राय है कि उस गाय का चयन करें जिन की दूध उत्पादन क्षमता अधिक हो। पहाड़ी गाय की दूध उत्पादन क्षमता बडाने के लिए इनका उन्नत नस्ल टीके से कृतिम गर्भाधान किया जा सकता है। (जर्सी होलस्तिम) पैदा हुई मादा बछड़ियों की दूध उत्पादन क्षमता ज्यादा होती है।

एक जानवर की पौष्टिक आवश्यकता क्या है?

सामान्य नीयम के तहत एक दुधारू गौ को 40-50 कि.ग्रा. हरा चारा व 2.5-3.0 कि.ग्रा. दाना (प्रति कि.ग्रा. दूध उत्पादन) देना अनिवार्य है। परन्तु यह एक जानवर की कुल दीध उत्पादन व उसके वज़न पर निर्भर है।

क्या हरे चारे के अभाव में दाने की मात्रा को बढाया जा सकता है?

जी हाँ, चारे के अभाव में पशुपालक दाने की मात्रा को बडा सकते है।

क्या पशुपालक घर पर ही पशुआहार तैयार कर सकते है?

जी, हाँ। इसके लिए निम्न संघटक डाल कर हम पशु आहार तैयार कर सकते हैं:-

खत्र- 25-35 कि.ग्रा. Ø दाने (गेहूं,मक्की,जौ, इत्यादि) :- 25-35 कि.ग्रा.

चोकर (गेहूं): 10-25 कि.ग्रा.

डाल चोकर : 5-20 कि.ग्रा. Ø

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मिनरल मिक्स्चर: 1 कि.ग्रा. Ø विटामिन A,D3 : 20-30 ग्रा.

घर पर पशु दाना/आहार बनाने की विधी क्या है कृपया सुझाऐं?

निम्न लिखित विधी द्वारा पशु दाना/आहार घर पर बनाया जा सकता है:- 10 कि.ग्रा. पशुआहार बनाने के लिए बराबर मात्रा में अनाज, चिकर ओर खल(3.33 कि.ग्रा.प्रत्येक) लें ओर इसमें 200ग्राम नमक व 100 ग्राम खनिज लवण मिलाएं। कृपया यह सुनिश्चित करें कि अनाज पूरी तरह पिसा हुआ व खल पूरी तरह तोडी हुई हो (यदि खल पूरी तरह पाउडर नहीं बना हो तो एक दिन पहले 2 ग्राम को पानी से भिगो दें) अगली सुबह पीसी हुई नरम खल को उपरोक्त अनाज नमक व खनिज लवण में मिलाए। इस पशु दाने को पशु को पशु कि आवश्यकता अनुसार सूखे घास व हरे चारे में खिलाया जा सकता है।

कृपया हमें यह सुझाव दें कि दूध देने वाले पशु को कितना पशु दाना/आहार देना चाहिए?

दूध देने वाले पशु को उसकी उत्पादक क्षमता के अनुसार पोषाहार की आवश्यकता होती है। पोषाहार संतुलित हिना चाहिए। पोषाहार संतुलित बनाने के लिए इसके उचित मात्रा व भाग में प्रोटीन, ऊर्जा, वसा व खनिज लवण होने चाहिए।। औसतन एक देसी गाय को 1 कि.ग्राम अतिरिक्त पशु दाना प्रत्येक 2.5 कि.ग्रा. दूध उत्पादन पर देना आवश्यक है।उपरोक्त पशु दाना रख-खाव आहार के अतिरिक्त होना चाहिए उदहारण के लिए:- गाय का वज़न : 250 कि.ग्रा. (अन्दाज़)। दूध उत्पादन : 4 कि.ग्रा.प्रतिदिन। आहार जो दिया जाना है। भूसा/प्राल : 4 कि.ग्रा। दाना 2.85 4 कि.ग्रा (1.25 4 कि.ग्रा रखरखाव और1.6 4 कि.ग्रा आहार दूध उत्पादन के लिए)

एक गभीं गाय के लिए कितने आहार की आवश्यकता होती है?

गाय का वज़न :- 250 कि.ग्राम (अन्दाज़न) आहार की आवश्यकता जो दिया जाना है भूस/पराल: 4 कि.ग्रा दाना : 2.75 कि.ग्रा (1.50 कि.ग्रा रखरखाव व 1.25 कि.ग्रा पेट में बड़ते बच्चे के लिए)

पशुओं को चारा व पानी क्या अनुसूची है?

निम्न लिखित अनुसूची अपनाई जानी चाहिए:-

(क) रोज़ का आहार 3-4 भागों में बांटना चाहिए।

(ख) दाना दो बराबर भागों में दिया जाना चाहिए।

(ग) सूखा व हर चारा अच्छी तरह मिलाकर देना चाहिए।

(घ) कमी के समय साईंलेज दिया जाना चाहिए।

(ङ) चारा खिलने के बाद ही दाना देना चाहिए।

(च) औसतन वज़न की गाय को 35-40 लीटर प्रतिदिन पानी की आवश्यकता होती है।

नवजात बच्छे- बच्छडी के पोषाहार का किस प्रकार ध्यान रखना चाहिए?

उचित पोषाहार नवजात बच्छे- बच्छडी के विकास व भविष्व की उत्पादक क्षमता के लिए अतिआवश्यक है नवजात को खीस(माँ का पहला दूध) अवश्य पिलाना चाहिए इससे नवजात की बीमारियों से लड़ने की क्षमता बडती है व शरीर का सम्पूर्ण विकास सुनिश्चित होता है।

नवजात बच्छे- बच्छडी को खीस पीलाने की क्या अनुरुची है?

सबसे पहले ध्यान देने योग्य बात यह है कि नवजात को ब्याने के बाद जितना जल्दी हो खीस पीला देनी चाहिए खीस को कोसा गर्म करें व शरीर 1/10 भाग (नवजात के शरीर का वज़न पहले 24 घण्टों के बाद नवजात की आंतों में इम्यूनोगलोबूलिन को सोखने की क्षमता कम हो जाती है यह क्षमता लगभग 3 दिनों के बाद समाप्त हो जाती है इसलिए खीस (माँ का पहला दूध) अवश्य पिलाई जानी चाहिए।

खीस के इलावा/अतिरिक्त बड़ते बच्चे को क्या देना चाहिए?

नवजात बच्छे- बच्छडी को पहले तीन सप्ताह टक दूध आवश्य पिलाना चाहिए व यह शरीर के भार का 1/10 भाग आवश्य होना चाहिए। चौथे व पांचवे सप्ताह के दौरान दूध की मात्रा 1/15 भाग होना चाहिए और उसके बाद 2 महीने की आयु टक दूध 1/20 भाग शरीर मार का नवजात दाना व चारे के अतिरिक्त पिलाना चाहिए।

दुग्ध ज्वर क्या है? कृपया इस बीमारी के बारे में प्रकाश डालें?

दुग्ध ज्वर एक बीमारी है जो आमतौर पर आमतौर पर ज्यादा दूध देने वाले पशु में ब्याने के कुछ घण्टों/दिनों बाद होती है। कारण पशु के शरीर में कैल्शियम की कमी।आमतौर पर गाय 5-10 वर्ष की आयु में इससे ग्रसित होती है। अधिकतर पहली बार ब्याने पर यह बीमारी नहीं होती है।

दुग्ध ज्वर के आम लक्षण क्या है?

लक्षण आमतौर पर 1-3 दिनों में ब्याने के बाद सामने आते है। जानवर को कब्ज व बेअरामी हो जाती है। ग्रस्त पशु की मांस पेशियों में कमजोरी आने के कारण पशु खड़ा होने व चलने में असमर्थ हो जाता है। पिछले भाग में अकड़न या हल्का अधरंग होता है व पशु शरीर पर एक तरफ गर्दन मोड़ देता है व शरीर का तापमान सामान्य से कम होता है।

पेशाब में खून आना (हिमोग्लोबिनयुरीया/हीमेचुरिया) बीमारी कैसे होती है?

यह बीमारी आमतौर पर ब्याने के 2-4 सप्ताह के बाद या यहां तक की गर्भावस्था के अंतिम दिनों में होती है। यह बीमारी ज्यादा तर भैंसों में होती है। इस बिमरी को स्थानीय भाषा में लाहू मोटाना कहा जाता है। यह बीमारी शरीर में फास्फोरस की कमी की वजह से होती है। मिट्टी में इस लवण की कमी से चारे में फास्फोरस की कमी होती है व पशु के शरीर से कमी चले जाती है। ज्यादा तर जिन पशुओं को सूखा घास/चारा खिलाया जाता है। उनमें फास्फोरस की कमी की संभावना ज्यादा रहती है।

खुरपका मुंहपका (एफ.एम.डी.) रोग से पशुओं को कैसे बचाया जा सकता है कृपया सुझाव दें?

खुरपका मुंहपका रोग से पशुओं को बचाने के लिए सबसे पहले समय रहते एम.एम.डी. वैक्सीन से टीकाकरण 3 सप्ताह में दूसरी खुराक (बूस्टर) 3 माह की आयु पर लगवाएं इसके बाद प्रत्येक 6 माह बाद टीका करण करवाते रहे।

गलघोंटू रोग होने के मुख्य लक्षण क्या है?

तेज़ बुखार, आँखों में लाल, गले में सूजन तेज़ दर्द होने का ईशारा, नाक से लाल रंग का सख्त आदि मुख्य लक्षण है।

गौशाला की सफाई धुलाई कैसे की जाती है कृपया सुझाव दें?

गौशाला को नियमित रूप में पानी से साफ करना चाहिए जिससे अशुद्ध वातावरण (गोबर व पेशाब के कारण) से बचा जा सके। गौशाला में पानी से साफ करने के बाद रोगाणु नाशक दवाई (5ग्राम पोटाशियम परमेगनेट या 50 एम.एल फिनाईल/बाल्टी पानी) से सफाई करें यह जीवाणु व परजीवी को मार देगा जो की गौशाला में हो सकते है। यह दूध का साफ उत्पादन भी सुनिश्चित करता है।

अधिक दूध देने वाले शंकर नस्ल के पशुओं में दूध-दूहने की क्या अनुसूची है?

ज्यादा दूध देने वाले पशु भी दिन में तीन बार नियमित अन्तराल के बाद दुहना चाहिए व कम दूध देने वाले पशु को दिन में दो बार किन्तु समय अन्तरकाल बराबर होना चाहिए। इससे दूध उत्पादन क्षमता भी बडती है और पशु समय पर दूध देने को तैयार रहता है।

दुधारू पशु को दूध को सुखाना क्यों जरूरी है?

गर्भवस्था के समय दोनों माँ व पेट में पल रहे बच्चे को अधिक पोषाहार की आवश्यकता होती है इसलिए पशु को ब्याने से तीन महीने पहले दूध सुखा देना/छोड़ देना चाहिए इससे पशु की आदर्श दूध उत्पादक क्षमता सुनिश्चित होती है।

एक साधारण आदमी कैसे पता लगा सकता है की पशु (गर्भवस्था) गर्भधारण करने को तैयार है?

निम्नलिखित लक्षण पशु के मद में आने की स्थिति को दर्शाते है:-

(क) भग/योनी मार्ग से गाडा स्बेस्मिक पदार्थ निकलता है।

(ख) योनी सूज जाती है।

(ग) लगातार पूंछ को उठाना व बार-बार पेशाब करना ऐंठना।

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(घ) टींजर साथ के द्वारा भी मदकाल का पता लगाया जा सकता है।

गर्भवस्था के मुख्य क्या लक्षण है?

आम लक्षण निम्नलिखित है:-

(क) जब पशु गर्भधार्ण कर लेता है तो 21 दिनों के बाद मद में नहीं आता।

(ख) 3-4 महीनों के बाद पेट सूजा हुआ लगता है।

(ग) जब गुदा के रास्ते निदान किया जाता है तो गर्भाश्य बड़ा हुआ महसूस होता है यह निदान केवल पशुपालन में प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा ही किया जाना चाहिए।

हम अपने जानवरों को संक्रामक रोगों से कैसे बचा सकते है?

निम्नलिखित उपाए मंदगार है:-

(क) पशुचिकित्सक की सलाह से समय पर टीका करण करवाना।

(ख) बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना।

(ग) गोबर पेशाब ओर जेरा आदि (बीमार पशुओं) को एक गड्डे में जला देना चाहिए व ऊपर से चूना डालना।

(घ) मरे हुए फू को शव को गड्डे में डालकर ऊपर चूना डालकर दबाना चाहिए।

(ङ) गौशाला के प्रवेश द्वारा पर फुट बाद बनाना चाहिए।

(च) पोटाशियम परमेगनेट व फिनाईल से हमेशा गौशाला की सफाई करनी चाहिए।

नवजात बच्छे- बच्छडि़यों में किन-किन बीमारियों का खतरा सर्दियों में अधिक रहता है?

नवजात बच्छे- बच्छडि़यों में निम्नलिखित बीमारियों का खतरा सर्दियों में अधिक रहता है:-

(क) नेवला

(ख) वाईटस्करड

(ग) निमोनिया

(घ) पेरासाईकिइन्फेक्शन

(ङ) पेराटाईफाईड

नेवला क्या है व इससे बचाव के क्या उपाए है?

हिंदी में इसे नाभि का सड़ना ऐग के नाम से जाना जाता है। गौशाला में स्वास्थ्य कर परिस्थितियां न होने के कारण नेवल काड में संक्रमण होता है नाभि में मवाद पड़ जाती है, नाभी सूजन दर्द होता है। ग्रसित नवजात सुस्त रहता है व जोड़ों में सूजन भी देखी जाती है। नवजात लंगड़ा के चलता है। इलाज ग्रसित नामी को रोगाणुरोधक से होना चाहिए सुर टिंचर आथोडीन से साफ करना चाहिए जब तक जख्म ठीक नहीं होता ईलाज लगातार करना चाहिए।

नवजात बच्चे में सफेद दस्त क्यों होते है?

इस बीमारी को वाईटस्करज कहा जाता है यदि इस का समय रहते ईलाज नहीं किया जाए तो नवजात मर जाता है इससे नवजात में बुखार भूख न लगना, बदहज़मी, पानी वाले दस्त, कभी-कभी खूनी दस्त होते है। खीस नवजात को खिलाने से बीमारी को कम किया जा सकता है।

कृपया नवजात होने वाली निमोनिया नामक बीमारी पर प्रभाव डालें?

यह एक आम बीमारी है जो नवजात व उन जानवरों में होती है जो सलाब वाली जगह में बांधे जाते है ज्यादा तर यह बीमारी नवजात जिनकी उम्र 3-4 महीने में पाई जाती है।इसके मुख्य लक्षण है आंख व नाक से पानी, सुनाई न देना, बुखार, सांस में कठिनाई व बलगम निकालना। यदि समय पर ईलाज नहीं हुआ तो मृत्यु। नवजात को साफ हवादार भाड़े में रखना व अचानक मौसम व तापमान से बचाव रखना चाहिए।

हम अपने नवजात बच्चे को क्रीमी संक्रमण से कैसे बचा सकते है?

आमतौर पर नवजात इससे ग्रसित होते है यह अन्तह क्रीमी के कारण होती है मुख्यत: एसकेदिदज। जिसके कारण जानवर कमज़ोर,सुस्त तथा भूख में कमी होती है। इससे बचाव के लिए साफ पानी की व्यवस्था, बीमार नवजात को स्वस्थ से अलग रखना आवश्यक है। क्रीमी एक से दूसरे जानवर को अण्डों के द्वारा फैलते है जोकि बीमार पशु के गोबर में होते हैं।

कृपया पेराटाईफाईड बीमारी के बारे में बताएं जो आमतौर पर नवजात में होती है?

यह बीमारी आम तौर पर 2 सप्ताह से 3 महीने के बीच की आयु वाले नवजात को होती है। यह उन गौशालाओं में ज्यादा होती है जो तंग है व स्वास्थ्यकर नहीं है। मुख्य लक्षणों में तेज़ बुखार, दाना खाने में रुची न होना, मुंह सूखा, सुस्ती, गोबर पीला या मिट्टी के रंग का व दुर्गन्ध। यदि आपको इस बीमारी का आभास हो तो तुरन्त नज़दीक के पशु चिकित्सक को सम्पर्क करें।

हम नवजात को पेट के कीड़ों से कैसा बचा सकते है?

पेट के कीड़ों से ग्रसित नवजात सुस्त, खाने में कम रूचि, दस्त लगना आदि लक्षण होते हैं तथा सही ईलाज के लिए नज़दीक के पशु चिकित्सक को सम्पर्क करें।

पशुओं में अफारा होने के क्या लक्षण है?

आम लक्षण निम्नलिखित है:-

(क) ज्यादा मात्रा में गीला हरा चारा, मूली, गाजर आदि यदि सड़ी हुई है।

(ख) आधा पका ल्पूसरन बरसीम व जौ का चारा।

(ग) दाने में अचानक बदलाव।

(घ) पेट के कीड़ों में संक्रमण।

(ङ) जब पशु अधिक चारा खाने के बाद पानी पीए।

पशुओं में अफारा होने के क्या-क्या लक्षण है?

लक्षण निम्नलिखित है:-

(क) वाई कूख में सूजन।

(ख) पशु बार-बार गैस छोड़ता है व जमीन पर खुर मारता है बेअरामी होती है।

(ग) सांस लेने में तकलीफ।

(घ) जानवर दाना नहीं खाता नहीं जुगाली करता है।

(ङ) अफारा भेड़ों में आम होता है व मृत्यु होती ज्यादातर चरागाह में ले जाने के बाद।

अफारा होने पर पशु का किस तरह बचाव किया जा सकता है?

यदि समय पर अफारे का ईलाज नहीं किया गया तो पशु मर जाता है। निम्नलिखित उपाय सहायक है:-

(क) पशु को खिलाना बंद कर देना चाहिए व पशुचिकित्सक को सम्पर्क करना चाहिए।

(ख) नाल देते समय पशु की जीभ नहीं पकड़नी चाहिए।

(ग) पशु को बैठने नहीं देना चाहिए उसे थोड़ा-थोड़ा चलाना चाहिए।

(घ) जब पशु में अफारे के लक्षण समाप्त हो जाए उसके बाद 2-3 दिनों में धीरे-धीरे पशु को चारा देना चाहिए।

अफारे से बचने के लिए आम क्या-क्या उपाय है?

आम उपाय/परहेज़ निम्नलिखित है:-

(क) चारा खिलाने से पहले पानी पिलाना चाहिए।

(ख) दाना खिलने में अचानक बदलाव न करे।

(ग) गला-सड़ा दाना न दें।

(घ) चारा पूरा पका हुआ हो।

(ङ) पशु को हर रोज़ व्यायाम करवाना चाहिए।

पशुओं में गलघोंटू रोग होने का खतरा कब रहता है?

गलघोंटू रोग आमतौर पर बरसात के मौसम में होता है। ज्यादा बीमारी फैलने का खतरा गर्म व अधिक आर्धरता वाले क्षेत्रों में रहता है। इसे (ब्लेक लैग) के नाम से भी जाना जाता है।

गलघोंटू रोग किस जीवाणु के कारण होता है?

यह रोग गोजातीय पशुओं में ज्यादा होता है व क्लासटीडीयम सैपटीकम जीवाणु द्वारा होता है यह जीवाणु रोग ग्रसित पशु की मांस पेशियों में तथा मिट्टी व खाने की चीजों में पाया जाता है।

पशुओं में गलघोंटू रोग के आम लक्षण क्या है?

आम लक्षण निम्नलिखित है:-

(क) पिछले पुट्ठे का फड़फड़ाना व कम्पन होना।

(ख) ग्लूटियल गले की मांस पेशियों में सूजन होना।

(ग) शरीर की भारी मांस पेशियों में सूजन जैसे गर्दन, कंधा, पीठ छाती आदि।

(घ) शुरुआत में सूजन वाला भाग सख्त व दर्द भरा होता है परन्तु बाद में मृत्यु पहले ठंडा व दर्दरहित हो जाता है।

(ङ) रोग ग्रसित भाग को दबाने पर चुर-चुर की आवाज़ आती है।

(च) पशु 48 घण्टों के अन्दर मर जाता है।

 

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