by Dr. Amandeep Singh
रानीखेत रोग, जिसे पश्चिम में न्यूकैसल रोग से भी जाना जाता है, संक्रामक और अत्यधिक घातक रोग है। इसके नियंत्रण के लिए किए गए उल्लेखनीय काम के बावजूद, यह रोग अभी भी पोल्ट्री के सबसे गंभीर वायरस रोगों में से एक है। लगभग सभी देशों में यह बीमारी होती है और आम तौर पर सभी उम्र के पक्षियों को प्रभावित करता है, परन्तु इस रोग का प्रकोप प्रथम से तीसरे सप्ताह ज्यादा देखने को मिलता है। रानीखेत रोग में मृत्यु दर 50 से 100 प्रतिशत होती है।
रोग के लक्षण
मुर्गियों का दिमाग प्रभावित होते ही शरीर का संतुलन लड़खड़ता है, गर्दन लुढ़कने लगती हैI
छींके और खाँसी आना शुरु हो जाता हैI
साँस के नली के प्रभावित होने से साँस लेने में तकलीफ, मुर्गियाँ मुँह खोलकर साँस लेती हैI
कभी-कभी शरीर के किसी हिस्से को लकवा मार जाता हैI
प्रभावित मुर्गियों का आकाश की ओर देखनाI
पाचन तंत्र प्रभावित होने पर डायरिया की स्थिति बनती है और मुर्गियाँ पतला और हरे रंग का मल करने लगती है।
डायरिया के चलते लीवर भी ख़राब हो जाता है।
यदि किसी मृत मुर्गी को खोलकर देखा जाये तो उसके बड़े पेट (पोट) से पहले वाली थैली में खून से सने हुए बिन्दुनुमा आकार की प्रविर्तियाँ दिखती हैं I
बड़े पेट (पोट) से पहले वाली थैली में खून से सने हुए बिन्दुनुमा आकार की प्रविर्तियाँ
उपचार
इस घातक रोग से बचाव के लिए किसानों और मुर्गी पालकों के पास सिर्फ वैक्सीनेशन प्रोग्राम यानी टीकाकरण ही एकमात्र उपाय है।
यह टीकाकरण स्वस्थ पक्षियों मे सुबह के समय करना चाहिए और उन्हें रोग से प्रभावित पक्षियों से अलग कर देना चाहिए।
सबसे पहले हमें ‘एफ-वन लाइव’ (F-1 Live) या ‘लासोटा लाइव’ (Lasota) स्ट्रेन वैक्सीन की खुराक (Dose) 5 से 7 दिन पर देनी चाहिए, और दूसरी आर-बी स्ट्रेन की बूस्टर डोस 8 से 9 हफ्ते और 16-20 हफ्ते की आयु पर वैक्सीनेशन करना चाहिए।
रोग उभरने के बाद यदि तुरंत ‘रानीखेत एफ-वन’ नामक वैक्सीन दी जाए तो 24 से 48 घंटे में पक्षी की हालत सुधरने लगती है।
वैक्सीन की खुराक हमें पक्षियों की आँख और नाक से देनी चीहिए, अगर मुर्गी-फार्म बड़े भाग में किया गया है तो वैक्सीन को पानी के साथ मिलाकर भी दे सकते हैI
वैक्सीन के साथ साथ मुर्गियों को विटामिन बी काम्प्लेक्स और लीवर टॉनिक भी उपलब्ध करायें I
लासोटा वैक्सीन
आर-बी स्ट्रेन वैक्सीन
रोकथाम और नियंत्रण
वर्तमान समय मे इस रोग को जड़ से ख़त्म करने वाली कोई भी दवा विकसित नही हो सकी है, परन्तु कुछ दवाईयों (वेक्सिन) के प्रयोग से इस रोग को बड़े क्षेत्र में फैलने से रोका जा सकता है और इस रोग से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम किया जा सकता हैI
कुक्कुट-पालन शुरु करने से पहले क्षेत्र की जलवायु आदि का अध्धयन अच्छी तरह से कर लेना चाहिए और यह भी मालूम कर लेना चाहिए की कभी भूतकाल में यह रोग ज्यादा प्रभावी तो नही रहा हैI
मुर्गी-घर के दरवाजे के सामने पैर धोने (Foot-Bath) के लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिएI
मुर्गी-पालक कुछ सफाई सम्बन्धी कार्य करने से इस रोग को काफी हद तक’ रोक सकते है, जैसे मुर्गी घर की सफाई, इन्क्यूबेटर की सफाई, बर्तेनो की सफाई आदिI
रोगित पक्षियों पर तत्काल ध्यान देना चाहिए और उनका उचित टीकाकरण करना चाहिएI
रोग से प्रभावित पक्षियों को स्वस्थ पक्षियों अलग कर देना चाहिएI
बाहरी लोगो (Visitor) का फार्म के अंदर प्रवेश वर्जित होना चाहिएI
दो मुर्गी-फार्मो के बीच की दुरी कम से कम 100 फुट रखनी चाहिएI
रोग से मरे हुए पक्षियों को गड्ढे में दबा देना या जला देना चाहिएI