पोल्ट्री फार्म में अमोनिया के दुष्प्रभाव और उसका समाधान – Harmful effects of ammonia in poultry farms
लगभग 2500 साल पहले हिप्पोक्रेट नामक दार्शनिक ने यह बताया था की किसी शरीर में बीमारी का मुख्य कारण वातावरण में मौजूद हवा, पानी, जगह, मौसम आदि होते हैं. परंतु उन्नीस्वी सदी में जीवाणुओ की खोज से ये स्पष्ट हो गया की विभिन्न जीवाणु और कीटाणु बीमारी का मुख्य कारण होते हैं. मगर साथ ही इस बात की खोज भी हुई की शरीर में बीमारी की उत्पत्ति को वातावरण में उपस्थित कारक बढ़ावा देते हैं.
तापमान: इसके बारे में हम पहले संलेख में भी बता चुके हैं की जब वातावरण का तापमान शरीर के तापमान से करीब या उपर हो जाता है तो मुर्गियो में भारी दिक्कते दिखने लगती हैं. जैसे तेज़ी से सांस लेना, मुह खुला रखना, पंख गिरा के रखना, खाना छोड़ देना और ज़्यादा पानी पीना. यह दिक्कत (transient hyperthermia की वजह से) नये चूज़ो में मौत का कारण बनती है. जो चूज़े बच जाते है उनमे FCR बहुत बढ़ जाता है और ग्रोथ थम जाती है. अधिक तापमान का बहुत गहरा असर सांस लेने की नली में उपस्थितगॉब्लेट कोशिकाओं पर पड़ता है, इससे उनकी गतिविधि बहुत बढ़ जाती है और उनके उपर स्थित सिलिया की हलचल कम हो जाती है और अंत में वो टूट जाते हैं जिससे वातावरण में मौजूद जीवाणु सांस की नली में घुस कर CRD बीमारी कर देते है.
यह कारक निम्न में से कोई भी हो सकते हैं: तापमान, आद्रता, लिट्टर में से निकलने वाली विभिन्न गैसे (मुख्य्त अमोनिया), धूल, हवा का बहाव, रोशनी, शोर, हवा दबाव इत्यादि.इसे मोटे तौर पर यूँ समझा जा सकता है जैसे वातावरण में तापमान बढ़ने या धूल प्रदूषण आदि होने के कारण से पक्षी स्ट्रेस में आते हैं जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) कमज़ोर हो जाती है और शरीर जीवाणु संक्रमण की चपेट में आ जाता है|
पोल्ट्री फार्म में मौजूद लिट्टर कई ज़हरीली गैसो की उत्पत्ति के लिए ज़िम्मेदार होता है. यह गैसे तब ज़्यादा निकलती हैं जब लिट्टर गीला होता है, अमोनिया, कार्बन डाई आक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाईड और कार्बन मोनो आक्साइड प्रमुख हानिकारक गैसे हैं.
अमोनिया की वजह से उत्पादकता पर पड़ने वाला प्रभाव: बढ़ते हुए ब्रायिलर और अंडा देती हुई मुर्गी में अमोनिया के दुष्प्रभाव आसानी से देखे जा सकते हैं. इसकी मुख्य वजह खून में तेज़ाबीयत का कम होना (या pH का बढ़ना) है जो की सांस लेने की दर में आई गिरावट के कारण होता है| इससे शरीर की उर्जा की आवश्यकता कम हो जाती है और दाने की खपत भी गिर जाती है| नये चूज़ो में 50ppm पर ग्रोथ में कमी देखी जा सकती है.
अंडा देने वाली मुर्गी में पहला अंडा देने की तिथि 15 दिनो तक आगे बढ़ सकती है और उत्पादन भी कम हो जाता है. यह हालत 200ppm अमोनिया पर अत्यधिक बढ़ जाती है|
जैसा की पहले बताया गया है की अमोनिया स्वांस तंत्र में होने वाली बीमारियों का मुख्य कारण होती है, इससे सिलिया टूट जाते हैं और विभिन्न कीटाणु और जीवाणु जैसे मायकोप्लाज़मा, रानीखेत वाइरस, और ई. कोलाई साँस लेने की नली (ट्रेकिया) में चिपक जाते हैं और बीमारी पैदा करते हैं.
अमोनिया एक उत्तेजक गॅस है जो की आद्रता भरे पर्यावरण में मुर्गियों की बीट में मौजूद यूरिक एसिड के संघटन से पैदा होती है. सर्दियो के मौसम में (कम वेंटिलेशन के कारण) ये गॅस फार्म में मुख्य रूप से रहती है. आदमी द्वारा इसकी दुर्गंध मात्र 25ppm पर महसूस कर ली जाती है. यह गॅस स्वांस तंत्र पर सीधे तौर से हमला करती है और स्वांस तंत्र की विभिन्न बीमारियों का कारण बनती है. जिससे उपदकता पर बहुत गहरा असर पड़ता है.
अमोनिया एक प्राथमिक कारक के तौर पर:
अमोनिया से होने वाली स्वांस तंत्र की बीमारियों में सबसे पहला लक्षण मे आँख की झिल्ली प्रभावित होती है जिससे उसमे से पानी निकलता है और अंत में सूखने लगती है (जिसे keratoconjuctivitis भी कहते हैं).
इसके साथ साथ सांस लेने की नली सूजने लगती है. यह हालत तब होती है जब अमोनिया की मात्रा 5 हफ़्तो तक 60 से 200ppm तक रही हो. अन्य केसो में जैसे वायु कोष (air sacs) में सूजन, सिने की हड्डी का दिखना और उसके आस पास छाले पड़ जाते हैं. यह जब होता है जब मुर्गिया 25 से 50ppm अमोनिया में रहती हैं.
जो मुर्गिया 100ppm से अधिक अमोनिया में रहती है यदि उनके स्वान्स तंत्र का माइक्रोस्कोप से विशलेषण किया जाए तो यह पता चलता है की सांस लेने की नली में मौजूद छोटे छोटे सिलिया (जो जीवाणुओ को सांस की नली पर चिपकने से रोकते हैं) टूटने लगते हैं और साथ ही साथ बलगम बनाने वाली ग्रंथिया बड़ी होकर अधिक सक्रिय हो जाती हैं जिससे अधिक बलगम बनता है.
यदि 4 दिन तक 25 से 100ppm अमोनिया रहे तो उसके निम्न परिणाम होते हैं| और कई बार ये बलगम सांस लेने की नली को भी बाधित कर देता है| मुर्गी मुह खोल कर सांस लेने की कोशिश करने लगती है. फेफड़े भी अमोनिया के प्रतिकूल प्रभाव से अछूते नही रहते और इससे फेफड़ो की नलियाँ सूज जाती हैं (inflammation) और खून में ऑक्सिजन के प्रवाह में परेशानी होने लगती है|
पोल्ट्री फार्मर्स को पर्याप्त वेंटीलेशन रखना चाहिए और खास कर सर्दियों के मौसम में ठण्ड से बचाव के दौरान बहुत से फार्मो में बंद होने की वजह से भयंकर अमोनिया जमा हो जाती है और इतना नुक्सान ठण्ड से नहीं होता जितना अमोनिया से हो जाता है|
आभार —Ali’s Veterinary Wisdom