बिहार : जमुई के राजीव कुमार बने मिसाल, सीमित संसाधनों से स्थापित किया मार्डन डेयरी फार्म
पशुधन प्रहरी नेटवर्क,
जमुई(बिहार)
डेयरी फार्मिंग एक ऐसा व्यवसाय है जिसे यदि मेहनत और सूझबूझ के साथ किया जाए तो किसी भी मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी से अच्छी कमाई हो सकती है। ‘डेयरी के सुल्तान’ में हम ऐसे ही सफल डेयरी किसानों की कहानियां लेकर आते हैं, जो अपनी मेहतन और जुनून के बल पर डेयरी क्षेत्र में मिसाल बन गए हैं। आज हम बात कर रहे हैं बिहार के पिछड़े जिलों में शुमार जमुई के प्रगतिशील डेयरी किसान राजीव कुमार सिंह की। राजीव ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे लेकिन अंत में उन्हें डेयरी फार्मिंग में ही भविष्य नजर आया और आज उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि एक साल में उनका डेयरी फार्म पूरे जिले में मिसाल बन चुका है और दूर-दूर से लोग उनसे दुग्ध उत्पादन के गुर सीखने आते हैं। तो जानते हैं डेयरी किसान राजीव कुमार सिंह की सफलता की कहानी।
11 गायों से शुरू किया डेयरी फार्म, आज हैं 30 गायें
जमुई के खैरा इलाके के बड़ाबांध गांव के रहने वाले 45 वर्षीय राजीव कुमार सिंह ने 1995 में भागलपुर से ग्रेजुएशन किया लेकिन पैसों की तंगी के चलते आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। रोजगार के लिए राजीव दिल्ली आ गए और मार्केटिंग की नौकरी की लेकिन यहां मन नही लगा और फिर पटना में कई जगह नौकरी की। लेकिन राजीव बचपन से ही अपना काम करने और दूसरों को रोजगार देने की सोचते थे बस यही ख्याल उन्हें Dairy Farm की तरफ खींच लाया। राजीव को डेयरी की ज्यादा जानकारी नहीं थी बस ये पता था की लोगों को शुद्ध दूध नहीं मिल रहा है और यदि ये धंधा किया जाए तो काफी मुनाफा हो सकता है। बस इसी के बाद राजीव जमुई के बड़ाबांध गांव में डेयरी स्थापित करने की मुहिम में लग गये।
शुरुआत में राजीव ने बिहार ग्रामीण बैंक से 8.35 लाख रुपये का लोन लेकर करीब 11 लाख की लागत से अगस्त 2016 में एक कट्ठा जमीन पर डेनमार्क डेयरी फार्म शुरू किया। शुरुआत में उनके पास सिर्फ 11 गायें थीं लेकिन धीरे-धीरे उनका डेयरी फार्म बढ़ता गया। उनकी मेहनत और लगन को देखकर बैंक ने बीस लाख का लोन और दे दिया। आज राजीव के पास तीस गायें हैं।
रोजाना होता है 225 लीटर दूध का उत्पादन
राजीव के डेनमार्क डेयरी फार्म पर अच्छी नस्ल की जर्सी, गीर, साहिवाल क्रॉसब्रीड गायें हैं। इन्होंने गायों के लिए काफी बड़ा शेड बनाया, जिसमें पंखे लगे हैं और दूसरी सुविधाएं भी हैं। दूध दुहने के लिए मिल्किंग मशीन भी है। गायों को हरे चारे के अलावा मक्का, दलिया, मिनरल मिक्सर और नेपियर घास दी जाती है। पशुओं की देखभाल के लिए तीन मजदूरों को भी रखा है साथ ही तीन लोग सिर्फ दूध दुहने का काम करते हैं। कभी नौकरी के लिए शहरों की खाक छानने वाले राजीव आज 6 लोगों को रोजगार दे रहे हैं, और उन्हें 8 से 10 हजार रुपये महीने की सेलरी भी दे रहे हैं। राजीव ने बताया कि गायों की अच्छी देखभाल का ही नतीजा है कि उनके फार्म पर रोजाना औसतन 225 लीटर दूध का उत्पादन होता है। राजीव सारा दूध बिहार की सुधा कॉपरेटिव को 39 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बेच देते हैं। यानी रोजाना करीब 8775 रुपये और महीने में करीबतीन लाख रुपये का दूध बेचते हैं। राजीव के मुताबिक उनके ऊपर अभी 27 लाख का लोन है। और अपनी कमाई से लोन की किस्त, मजदूरों की सेलरी और गायों पर होने वाले खर्च को पूरा कर कुछ पैसा बचा लेते हैं। राजीव ने बताया कि आज उन्हें ज्यादा कमाई नहीं हो रही है लेकिन जैसे ही लोन खत्म होगा तो उन्हें इससे काफी अच्छी कमाई होने लगेगी।
डेली 1500 लीटर दुग्ध उत्पादन और खुद का ब्रांड लांच करने की योजना
ऐसा नहीं है कि जमुई में डेयरी संचालन में समस्साओँ का सामना नहीं करना पड़ता। राजीव ने पशुधन प्रहरी को बताया कि प्रशिक्षित मजदूरों की समस्या है, इतना पैसा देने के बाद भी कुशल मजदूर नहीं मिलते हैं। इसके अलावा पशुओँ के बीमार होने पर भी परेशानी होती है, हालांकि राजीव ने स्थानीय पशु चिकित्सालय के डॉक्टर सुबोध सक्सेना से संपर्क कर रखा है और वो लगातार पशुओँ का चेकअप करते रहते हैं। राजीव ने बताया कि उन्होंने काफी मेहनत से इस डेयरी फार्म को स्थापित किया है लेकिन वो इसे और आगे ले जाना चाहते हैं।
जमुई ही नहीं आसपास के जिलों में किसानों के लिए प्रेरणा बन चुके राजीव कुमार सिंह ने अपनी योजना बताते हुए कहा कि वो गायों की संख्या 200 करने, रोजाना 1500 लीटर दूग्ध उत्पादन करने और बीएमसी स्थापित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। इसके साथ ही वो बाजार में खुद के ब्रांड का दूध भी लांच करने की योजना बना रहे हैं। डेयरी फार्मिंग के धंधे में आने वालों से राजीव का कहना है कि शुरुआत में सफलता मिलने में दिक्कतें आती हैं लेकिन हतोत्साहित होने की जरूरत नहीं है, क्यों कि अगर मेहनत की जाए तो दो से तीन साल में डेयरी फार्म आत्मनिर्भर हो जाता है और उसके बाद सिर्फ कमाई ही कमाई है।
साभार -डेयरी टूड़े