भारत में ब्रायलर फार्मिंग एक सुविकसित व्यवसाय

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भारत में ब्रायलर फार्मिंग एक सुविकसित व्यवसाय

 

देश में ब्रॉयलर फार्मिंग या मुर्गी पालन का व्यवसाय लगातार तेजी से बढ़ता जा रहा है। छोटे गांव से लेकर महानगरों तक इसकी मांग में लगातार इजाफा जारी है। इसका सहज अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ सालों में मुर्गी पालन व्यवसाय ने बहुत तेजी से गति पकड़ी है। इस व्यवसाय में अच्छा मुनाफा कमाने के लिये जरूरी है कि आपको इससे संबंधित तकनीकि जानकारी अच्छी तरह से हो, जैसे कि मुर्गी के लिए बाड़ा बनाना, नस्ल की जानकारी, खाना-खिलाना और रख-रखाव। ब्रॉयलर यानी चिकन जिसका जन्म के समय 40 ग्राम वजन होता है। छह सप्ताह के अंदर ही चिकन का वजन 40 ग्राम से बढ़कर करीब डेढ़ से दो किलो तक हो जाता है।

मुख्यतौर पर मांस के लिए ब्रॉयलर का धंधा किया जाता है और इसके भी दो प्रकार हैं- पहला, कॉमर्शियल ब्रॉयलर नस्ल और दूसरा, दोहरी उपयोगिता वाला ब्रॉयलर नस्ल

 

आज भारत में ब्रायलर फार्मिंग एक सुविकसित व्यवसाय के रूप में उभर चूका है। ब्रायलर मुर्गी पालन कम समय में अधिक से अधिक पैसे कमाने का व्यवसाय है। इसे छोटे किसान भी छोटे गाँव में कर सकते हैं

 ब्रायलर मुर्गी क्या है ? 

 

ब्रायलर मुर्गी का पालन मांस के लिए किया जाता है। Broiler प्रजाति के मुर्गा या मुर्गी अंडे से निकलने के बाद 40 ग्राम के होते हैं जो सही प्रकार से दाना खिलाने के बाद 5 हफ्ते में लगभग 1.5 किलो से 2 किलो के हो जाते हैं।

ब्रायलर मुर्गी पालन का तरीका

#1 फार्म के लिए जगह का चयन

  • जगह समतल हो और कुछ ऊंचाई पर हो, जिससे की बारिश का पानी फार्म में जमा ना हो सके।
  • मुख्य सड़क से ज्यादा दूर ना हो जिससे लोगों का और गाड़ी का आना जाना सही रूप से हो सके।
  • बिजली और पानी की सुविधा सही रूप से उपलब्ध हो।
  • चूज़े, ब्रायलर दाना, दवाईयाँ, वैक्सीन आदि आसानी से उपलब्ध हो।
  • ब्रायलर मुर्गी बेचने के लिए बाज़ार भी हो।

#2 फार्म के लिए शेड का निर्माण

  • शेड हमेशा पूर्व-पश्चिम दिशा में होना चाहिए और शेड के जाली वाला साइड उत्तर-दक्षिण में होना चाहिए जिससे की हवा सही रूप से शेड के अन्दर से बह सके और धुप अन्दर ज्यादा ना लगे।
  • शेड की चौड़ाई 30-35 फुट और लम्बाई ज़रुरत के अनुसार आप रख सकते हैं।
  • शेड का फर्श पक्का होना चाहिए।
  • शेड के दोनों ओर जाली वाले साइड में  दीवार फर्श से मात्र 6 इंच ऊँची होनी चाहिए।
  • शेड की छत को सीमेंट के एसबेस्टस या चादर से बनाना चाहिए और बिच-बिच में वेंटिलेशन के लिए जगह भी होना चाहिए। चादर को दोनों साइड 3 फीट कट लम्बा रखें जिससे की बारिश के बौछार से शेड ना भिज जाये।
  • शेड की साइड की ऊँचाई फर्श से 8-10 फूट होना चाहिए व बीचो-बीच की ऊँचाई फर्श से 14-15 फूट होना चाहिए।
  • शेड के अन्दर बिजली के बल्ब, मुर्गी दाना व पानी के बर्तन, पानी की टंकी की उचित व्यवस्था होना चाहिए।
  • एक शेड को दुसरे शेड से थोडा दूर- दूर बनायें। आप चाहें तो एक ही लम्बे शेड को बराबर भाग में दीवार बना करभी बाँट सकते हैं।

#3 दाने और पानी के बर्तनों की जानकारी

 

  • प्रत्येक 100 चूज़ों के लिए कम से कम 3 पानी और 3 दाने के बर्तन होना बहुत ही आवश्यक है।
  • दाने और पानी के बर्तन आप मैन्युअल या आटोमेटिक किसी भी प्रकार का इस्तेमाल कर सकते हैं। मैन्युअल बर्तन साफ़ करने में आसान होते हैं लेकिन पानी देने में थोडा कठिनाई होती है पर आटोमेटिक वाले बर्तनों में पाइप सिस्टम होता है जिससे टंकी का पानी सीधे पानी के बर्तन में भर जाता है।

#4 बुरादा या लिटर

  • बुरादा या लिटर के लिए आपलकड़ी का पाउडर, मूंगफली का छिल्का या धान का छिल्का का उपयोग कर सकते हैं।
  • चूज़े आने से पहले लिटर की 3-4 इंच मोटी परत फर्श पर बिछाना आवश्यक है। लिटर पूरा नया होना चाहिए एवं उसमें किसी भी प्रकार का संक्रमण ना हो।

#5 ब्रूडिंग

 

  • चूज़ों के सही प्रकार से विकास के लिए ब्रूडिंग सबसे ज्यादा आवश्यक है। ब्रायलर फार्म का पूरा व्यापार पूरी तरीके से ब्रूडिंग के ऊपर निर्भर करता है। अगर ब्रूडिंग में गलती हुई तो आपके चूज़े 7-8 दिन में कमज़ोर हो कर मर जायेंगे या आपकेसही दाना के इस्तेमाल करने पर भी उनका विकास सही तरीके से नहीं हो पायेगा।
  • जिस प्रकार मुर्गी अपने चूजों को कुछ-कुछ समय में अपने पंखों के निचे रख कर गर्मी देती है उसी प्रकार चूजों को फार्म में भी जरूरत के अनुसार तापमान देना पड़ता है।
  • ब्रूडिंग कई प्रकार से किया जाता है –  बिजली के बल्ब से, गैस ब्रूडर से या अंगीठी/सिगड़ी से।
बिजली के बल्ब से ब्रूडिंग

इस प्रकार के ब्रूडिंग के लिए आपको नियमित रूप से बिजली की आवश्यकता होती है। गर्मी के महीने में प्रति चूज़े को 1 वाट की आवश्यकता होती है जबकि सर्दियों के महीने में प्रति चूज़े को 2 वाट की आवश्यकता होती है। गर्मी के महीने में 4-5 दिन ब्रूडिंग किया जाता है और सर्दियों के महीने में ब्रूडिंग 12-15 दिन तक करना आवश्यक होता है। चूजों के पहले हफ्ते में ब्रूडर को लिटर से 6 इंच ऊपर रखें और दुसरे हफ्ते 10 से 12 इंच ऊपर।

 

गैस ब्रूडर द्वारा ब्रूडिंग

जरूरत और क्षमता के अनुसार बाज़ार में गैस ब्रूडर उपलब्ध हैं जैसे की 1000 औ 2000 क्षमता वाले ब्रूडर। गैस ब्रूडर ब्रूडिंग का सबसे अच्छा तरिका है इससे शेड केा अन्दर का तापमान एक समान रहता है।

अंगीठी या सिगड़ी से ब्रूडिंग

ये खासकर उन क्षेत्रों के लिए होता हैं जहाँ बिजली उपलब्ध ना हो या बिजली की बहुत ज्यादा कटौती वाले जगहों पर। लेकिन इसमें ध्यान रखना बहुत ज्यादा जरूरी होता है क्योंकि इससे शेड में धुआं भी भर सकता है या आग भी लग सकता है।

#6 ब्रायलर मुर्गी दाना से जुडी जानकारी

ब्रायलर फार्मिंग में 3 प्रकार के दाना की आवश्यकता होती है। यह दाना ब्रायलर चूजों के उम्र और वज़न के अनुसार दिया जाता है –

  • प्री स्टार्टर (0-10 दिन तक के चूजों के लिए)
  • स्टार्टर (11-20 दिन के ब्रायलर चूजों के लिए)
  • फिनिशर (21 सिन से मुर्गे के बिकने तक)

#7 पीने का पानी

ब्रायलर मुर्गा 1 किलो दाना खाने पर 2-3 लीटर पानी पीता है। गर्मियों में पानी का पीना दोगुना हो जाता है। जितने सप्ताह का चूजा उसमें 2 का गुणा करने पर जो मात्र आएगी, वह मात्र पानी की प्रति 100 चूजों पर खपत होगी, जैसे –

पहला सप्ताह = 1 X 2 = 2 लीटर पानी/100 चूजा
दूसरा सप्ताह = 2 X 2 = 4 लीटर पानी /100 चूजा

#8 ब्रायलर मुर्गियों के लिए जगह का हिसाब

पहला सप्ताह – 1 वर्गफुट/3 चूज़े
दूसरा सप्ताह – 1 वर्गफुट/2 चूज़े
तीसरा सप्ताह से 1 किलो होने तक – 1 वर्गफुट/1 चूज़ा
1 से 1.5 किलोग्राम तक – 1.25 वर्गफुट/1 चूज़ा
1.5 किलोग्राम से बिकने तक 1.5 वर्गफुट/1 चूज़ा

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सही प्रकार से चूजों को जगह मिलने पर चुज़ो को विकास अच्छा होता है और कई प्रकार की बिमारियों से भी उनका बचाव होता है।

#9 ब्रायलर मुर्गियों के लिए लाइट या रोशनी का प्रबंध

चूजों को 23 घंटे लाइट देना चाहिए और एक घंटे के लिए लाइट बंद करना चाहिए, ताकि चूज़े अंधेरा होने पर भी ना डरें। पहले 2 सप्ताह रोशनी में कमी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे चूज़े स्ट्रेस फ्री रहते हैं और दाना पानी अच्छे से खाते हैं। शेड के रौशनी को धीरे – धीरे कम करते जाना चाहिए।

 

 

ब्रायलर चूज़ों को पालने की पूरी जानकारी

 

  1. चूज़े आने के 7-8 दिन पहले ही शेड को अच्छे से साफ़ करें। सबसे पहले मकड़ी के जालों को अच्छे से हटा दें उसके बाद ही नीचे की सफाई करें। उसके बाद फर्श को अच्छे से धोएं और चुनें से पोताई करें।
  2. उसके बाद शेड के बहार और अन्दर 3 प्रतिशत फोर्मलिन या किसी अच्छेकीटाणुनाशक का स्प्रे करें तथा दोनों जाली वाले साइड से परदों को ढक दें।
  3. चुजें आने के 1-2 दिन पहले फर्श पर 3-4 इंच तक बुरादे या लिटर की मोटी परत बिछाएं। लिटर पूरा नया और सुखा होना चाहिए।
  4. चूज़े आने के 24 घंटे पहले टिन की चादर से गोलाकार घर बनायें जिसका डाया-मीटर 3 मीटर होना चाहिए 250 चूजों के लिए।
  5. उस गोलाकार घर के अन्दर बुरादे के ऊपर अख़बार या पेपर की दो परतें बिछाएं।
  6. चूज़े आने के 24 घंटे पहले दोनों ओर के पर्दों को गिराकर शेड को पूरी तरह से बंद कर दें और शेड के अन्दर बल्ब या ब्रूडर को चालू कर दें जिससे की चूजों को आते ही सही तापमान (75oF) मिले।
  7. साथ ही उसी समय पानी के बर्तनों में पानी भर के ब्रूडर के पास रखें। पानी में इलेक्ट्रोलाइट पाउडर एवं पोटेशियम क्लोराइड मिला कर दें।
  8. चूजों को जितना जल्दी हो सके चिक्स बॉक्स से निकालें ज्यादा देर होने पर चूजों कोनिर्जलीकरण भी हो सकता है और चूज़े मर भी सकते हैं। इस्सिलिये चूज़ों को छोड़ने के बाद कुछ देर तक उन्हें पानी पीने के लिए दें।
  9. पानी पीने के बाद मक्के का दलिया पेपर के ऊपर डालें औए दानें के बर्तन में भी मक्के का दलिया 6-8 घंटे तक खाने को दें। उसके बाद ही प्रीस्टार्टर खाने के लिए दें।
  10. सर्दियों के महीने में चूजों को फार्म पर सुबह या दोपहर के समय डिलीवरी कराएँ, रात को कभी ना कराएँ।
  11. छोटे व कमज़ोर चूजों को अच्छे चूज़ो से अलग रखें और उनका दाना पानी भी अलग से उनकों दें। ऐसा इसलिए क्योंकि कमज़ोर चूज़े जब अन्य चूजों के साथ खाना खाते हैं या पानी पीते हैं तो तंदरुस्त चूज़े कमज़ोर को कुचल देते हैं और वो मर जाते हैं। पर अगर आपको कुछ चूजों में किसी भी प्रकार की बीमारी का पता चलता है तो उन्हें उसी समय दुसरे स्वस्थ चूज़ों से तुरंत दूर रखें।
  12. चूज़ों के सही रूप से विकास के लिए उचित दवाइयाँ और टीकाकरण करना बहुर ही आवश्यक है।
  13. गर्मी के मौसम में उत्पन्न तनाव व हीट स्ट्रेस को कम करने के लिए Multivitamin,Vitamin C और Lysine की अधिक आवश्यकता होती है।
  14. शेड के अन्दर बुरादे या लिटर से Ammonia उत्पन्न होने से रोकने के लिए हर हफ्ते एक-दो बार लिटर में 1 किलोग्राम 20 वर्गफूट चुना छिड़क कर बुरादा/लिटर को खोद कर उलट-पुलट करें। इससे लिटर सुखा रहता है और Ammonia उत्पन्न नहीं हो पाता।
  15. पानी को साफ़ रकने के लिए प्रति 1000 लिटर पानी में 6 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर और 1 ग्राम पोटैशियम परमैंगनेट मिलाएं।
  16. टीकाकरण के 3 दिन पहले और 3 दिन बाद किसी भी प्रकार के एंटीबायोटिक का उपयोग ना करें इससे वैक्सीन की शक्ति नस्ट हो जाती है। साथ ही 1 दिन पहले और 1 दिन बाद पानी में किसी भी प्रकार का सेनिटाइज़र या ब्लीचिंग पाउडर ना मिलाएं।टीकाकरण के पहले व् बाद Antistress विटामिन जैसे B-Complex, Lysine Vitamin चीज़ों को दें।
  17. ब्रायलर चूजों में किसी भी प्रकार की स्वस्थ सम्बन्धी असुविधा के लिए तुरंत अपने नजदीकी विशेषज्ञ से सलाह लें।

 

ब्रायलर मुर्गियों का टीकाकरण

हमेशा स्वस्थ मुर्गियों का ही टीकाकरण करें और बीमार मुर्गियों को ठीक करने के लिए एंटीबायोटिक दें !

दिन  वैक्सीन या टिके का नाम देने का तरिका
6-7 दिन के भीतर Lasota Vaccine/Ranikhet disease लासोटा वैक्सीन/रानीखेत बीमारी के लिए आँख या नाक में बूंद डालने के द्वारा
10-12 दिन के भीतर Infectious Brusal Disease/Gumboro इन्फेक्शस ब्रूसल बीमारी या गुम्ब्रो के लिए ठन्डे या बर्फ वाले पानी में, दूध या दूध के पाउडर के साथ
18-21 दिन के भीतर Lasota Vaccine( intermediate) लासोटा वैक्सीन का बूस्टर वैक्सीन ठन्डे या बर्फ वाले पानी में, दूध या दूध के पाउडर के साथ
24-30 दिन के भीतर Gumboro disease गुम्ब्रो बिनरी के लिए बूस्टर वैक्सीन ठन्डे या बर्फ वाले पानी में, दूध या दूध के पाउडर के साथ

ब्रायलर मुर्गी फार्म की बायोसिक्यूरिटी से जुड़ी जानकारी

  1. ब्रायलर मुर्गी के दाना को साफ़ सूखे स्थान पर रखें क्योंकि यह खुला और पुराना हो जाने पर दाने में फफून लग जाते हैं जो चूज़ों और मुर्गियों के स्वास्थ के लिए ख़राब होता है।
  2. बाहर के व्यक्तियों को फार्म तथा शेड के पास न जाने दें ! इससे फार्म में बाहर से इन्फेक्शन आने का खतरा बढ़ता है।
  3. शेड के बाहर तथा अन्दर महीने में 3-4 बार चुने का छिडकाव करें।
  4. मुर्गी डीलर के गाड़ी को शेड से दूर रोकें। पास ले जाने पर दुसरे फार्म के इन्फेक्शन फार्म में आने का खतरा होता है।
  5. कुत्ते, बिल्ली, चूहे और बाहरी पक्षियों को फार्म के भीतर ना जाने दें।
  6. फार्म के शेड के अन्दर घुसने से पहले अपने रबर के जूतों को पहनें और पहन कर 3 प्रतिशत फोर्मलिन में डूबा कर अन्दर घुसें।
  7. एक शेड से दुसरे शेड में जाने से पहले अपने रबर के जूतों को दोबारा 3 प्रतिशत फोर्मलिन में दुबयें या प्रति शेड के लिए अलग-अलग जूतों का इस्तेमाल करें तथा हांथों को साबुन से अच्छे से धोएं।
  8. एक ही शेड में उसके क्षमता के अनुसार ही चूज़े रखें Overcrowding ना करें। इससे बीमारियाँ बढती हैं और साफ़ सफाई में मुश्किल होती है।
  9. ब्रायलर मुर्गियों के बिक्री के बाद शेड के लिटर को शेड के पास ना फेकें उन्हें कहीं दूर बड़े गढ़े खुदवा कर गडा  दें।

सर्दियों के मौसम में ब्रायलर मुर्गियों की देखभाल कैसे करें ?

सर्दियों के महीने में चूज़ों की डिलीवरी सुबह के समय कराएँ, शाम या रात को बिल कुल नहीं क्योंकि शाम के समय ठण्ड बढती चली जाती है।

  1. शेड के परदे चूजों के आने के 24 घंटे पहले से ही ढक कर रखें।
  2. चूजों के आने के कम से कम 2-4 घंटे पहले ब्रूडर ON किया हुआ होना चाहिए।
  3. पानी पहले से ही ब्रूडर के नीचे रखें इससे पानी भी थोडा गर्म हो जायेगा।
  4. अगर ठण्ड ज्यादा हो तो ब्रूडर को कुछ समय के हवा निरोधी भी आप बना सकते हैं किसी भी पोलिथीन से छोटे गोल शेड को ढक कर।
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ब्रूडिंग तापमान Brooding Temperature

पहला सप्ताह – 90 डिग्री F – 95 डिग्री F
दुसरे सप्ताह – 5 डिग्री F प्रतिदिन तापमान कम करते जाएँ जब तक चूज़ों को ठंण्ड ना लगने के अनुसार।

गर्मियों के महीने में ब्रायलर मुर्गियों की देखभाल कैसे करें ?

चूज़ों के फार्म पर पहुँचते ही इलेक्ट्रोलाइट पाउडर वाला पानी पिलायें। चूज़ों को 5-6 घंटे तक यही पानी पीने को दें।

  1. पानी के बर्तन उचित संख्या में लगायें -100 चूज़ों के लिए 3-4 बर्तन।
  2. 6-8 घंटे तक मात्र मक्के का दलिया दें।
  3. दिन के समय ब्रूडिंग ना करें।
  4. बुरादे में मोटाई 5-2 इंच रखें।
  5. शेड में Ventilation सही होना चाहिए। पर्दों को दिन-रात दोनों समय खुला रखें।
  6. संभव हो सके तो छतपर स्प्रिंकलर लगायें या भूसा के नाड़े छत पर बिछाएं।
  7. गार्मि से उत्पन्न होने वाले स्ट्रेस को कम करने के लिए विटामिन C पानी में दें।
  8. मुर्गियों को 1-1.5 किलो होते ही बिक्री शुरू कर दें।
  9. 750 ग्राम से ऊपर वाले मुर्गियों को सुबह 10 बजे से शाम के 5 बजे तक दाना न दें या फीडर को ऊपर उठा दें।
  10. Overcrowding ना करें, हो सके तो शेड के क्षमता से 20 प्रतिशत कम मुर्गियां रखें।

बारिश के महीने में ब्रायलर मुर्गियों की देखभाल कैसे करें

चूज़ों के फार्म पर पहुँचते ही इलेक्ट्रोलाइट पाउडर + पोटेशियम परमैंगनेट वाला पानी पिलायें। चूज़ों को 5-6 घंटे तक यही पानी पीने को दें उसके बाद 6-8 घंटे मक्के का दलिया और उसके बाद प्री स्टार्टर दें।

  1. मौसम के अनुसार ब्रूडर का उचित तापमान रखें।
  2. शेड में Ventilation सही होना चाहिए। पर्दों को दिन-रात दोनों समय खुला रखें अगर बारिश ज्यादा हो तो ढक दें।
  3. शेड के अन्दर पानी जमा होने ना दें।
  4. बुरादे की मोटाई 2-3 इंच रखें।
  5. बारिश के महीने में शेड के अन्दर आना-जाना कम करें।

 

 

 

भारत में कॉमर्शियल ब्रॉयलर नस्ल के प्रकार –

  • केरिब्रो
  • बाबकॉब
  • कृषिब्रो
  • कलर ब्रॉयलर
  • हाई ब्रो
  • वेनकॉब

दोहरी उपयोगिता वाला ब्रॉयलर नस्ल के प्रकार –

  • कूरॉयलर ड्यूअल
  • रोड आइलैंड
  • रेड वनराजा
  • ग्राम प्रिया

 

ब्रॉयलर फार्मिंग के लिए आवास (बाड़ा) या शेड प्रबंधन –

चिकन या चूजे की अच्छी बढ़त और पर्याप्त वजन पाने के लिए आरामदायक आवास और शेड की व्यवस्था करना सबसे जरूरी काम है। ब्रॉयलर फार्मिंग के लिए बेहतर आवास या शेड प्रबंधन के लिए कुछ खास बातों पर ध्यान देना जरूरी है। आवासा(बाड़ा) या शेड के डिजायन और जगह का चयन ये कुछ जरूरी बातें जिनका ध्यान रखा चाहिए।

 

ब्रायलर फार्मिंग के लिए जगह का चयन –

  • पर्याप्त जगह की व्यवस्था
  • पानी की बेहतर आपूर्ति और बिजली की व्यवस्था
  • ऊंची जगह का चुनाव ताकि बरसात के मौसम में जल-जमाव न हो सके
  • ट्रांसपोर्ट की अच्छी व्यवस्था के साथ मुख्य सड़क से संपर्क हो
  • रिहाइशी इलाके से दूर हो
  • माल खपाने के लिए सीधे बाजार से संपर्क हो

 

ब्रायलर फार्मिंग में आवास या शेड का डिजाइन –

  • शेड में हवा के आने-जाने की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए
  • डीप लीटर सिस्टम में प्रति चूजा एक वर्गफीट की जगह हो
  • लंबाई में शेड की दिशा पूर्व-पश्चिम होनी चाहिए

आवास या शेड व्यवस्था –

जहां तक संभव हो मुर्गी पालन के लिए आवास का निर्माण सस्ता करायें ताकि बची हुई रकम का इस्तेमाल मुर्गी, चारा और दूसरे सामान को खरीद में की जा सके। आवास निर्माण सस्ता हो इसके लिए स्थानीय सामान का बेहतर तरीके से इस्तेमाल करें, जैसे कि बांस, मिट्टी, छप्पर आदि। मनमाफिक मांस उत्पादन के लिए बेहतर प्रबंधन पर जोर दें और इसके लिए निम्न बातों का ध्यान रखें-

ब्रॉयलर ब्रीड का चयन-

अच्छी क्वालिटी वाले एक दिन के चूजे का चयन किया जाना चाहिए

चूजे के घर पहुंचने से पहले की तैयारी-

  • पहले से इस्तेमाल किये जा रहे पालकी को हटा दें और दूसरे सामान की अच्छी तरह सफाई करें
  • पालकी और पूरे पॉल्ट्री घर में सेनिटाइजर का छिड़काव करें
  • अच्छी किस्म के कीटाणुनाशक का छिड़काव करें
  • पानी की पाइप की अच्छी तरह सफाई करें
  • अच्छे एजेंट की मदद से पॉल्ट्री हाउस में धुंआ कराएं

ब्रूडिंग या अंडा सेना –

  • फार्म में चूजे के आने के एक दिन पहले ब्रूडर यानी अंडे सेने की मशीन को चालू करना
  • पहले सप्ताह तापमान 95 डिग्री फारेनहाइट तक रखें और उसके बाद प्रति सप्ताह 5 डिग्री कम करते हुए 70 डिग्री फारेनहाइट तक लाकर फिक्स कर दें
  • पहले सप्ताह चूजे की सुरक्षा पर पूरा ध्यान दें

वेंटिलेशन-

आवास या शेड में पर्याप्त हवा आ सके इसके लिए क्रॉस वेंटिलेशन की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

प्रकाश-

पहले दिन से लेकर चिकन के बड़ा होने तक हर दिन रोशनी का इंतजाम अच्छी तरह से हो

प्रत्येक चूजा के लिए एक वर्ग फीट की जगह चाहिए

ब्रॉयलर फार्मिंग में डीप लीटर प्रबंधन –

  • शेड के भीतर चूजे की पालकी (लीटर) में भूसी, लकड़ी का बुरादा और गेहूं की भूसी आदि का इंतजाम हो
  • पुराने और नये चूजे के लिए पुराने पालकी को हटाकर साफ-सुथरी पालकी का इंतजाम करना
  • ज्यादा नमी से पालकी में होनेवाले कड़ापन से बचाने की कोशिश करने के लिए उसे नियमित अंतराल पर हिलाते-डुलाते रहना चाहिए। शेड के भीतर नमी की मात्रा को संतुलित रखने की कोशिश करनी चाहिए

चिकन के लिए

फीड/चारा प्रबंधन –

मुर्गी पालन में चारा प्रबंधन बेहद अहम है और साथ ही सबसे ज्यादा खर्च भी इसी मद में होता है जो उत्पादन को भी प्रभावित करता है। व्यावसायिक मुर्गी पालन में अच्छे परिणाम के लिए चारा और चारे का कुशल का प्रबंधन बेहद जरूरी है। वहीं, जब इस मद में अगर कमी रह गई तो चूजे को कई बीमारी हो जाती है जिससे उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होता है। यहां यह ध्यान देना बेहद जरूरी हो जाता है कि जो चारा हम मुहैया करा रहे हैं उसमे सभी जरूरी पोषक तत्व यानी कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, मिनरल्स और विटामिन्स भी शामिल हों। नियमित पोषक तत्वों के अलावा अलग से कुछ और बेहतर पोषक तत्व देने की जरूरत है जिससे खाना ठीक से पच सके और साथ ही उनका जल्दी से विकास हो सके।

पॉल्ट्री फीड या चारे के प्रकार –

चूजे की उम्र              चारे की किस्म

0-10 दिन                प्री स्टार्टर

11-21 दिन               स्टार्टर

22 दिन से ऊपर           फिनिसर

ब्रॉयलर फार्मिंग में चारे की अनुमानित खपत –

 

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चूजे की उम्र (दिनों में)                     चारे का वजन (ग्राम में)              शरीर का वजन ग्रहण करना (प्रति दिन के हिसाब से)

 

पहला,दूसरा,तीसरा और चौथा दिन         20 ग्राम,प्रति चूजा प्रति दिन            45-55 ग्राम,          55-95

22 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            95-135 ग्राम,         135-175 ग्राम

24 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन

26 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन

 

पांचवां दिन                            28 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            175-215 ग्राम

छठा दिन                              30 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            215-255 ग्राम

सातवां दिन                            32 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            255-295 ग्राम

आठवां दिन                            34 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            295-335 ग्राम

नवां दिन                              36 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            335-385 ग्राम

दसवां दिन                             38 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            385-425 ग्राम

ग्यारहवां दिन                           40 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            425-465 ग्राम

बारहवां दिन                            42 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            465-505 ग्राम

तेरहवां दिन                             44 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            505-545 ग्राम

चौदहवां दिन                            46 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन             545-585 ग्राम

पन्द्रहवां दिन                            48 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            585-625 ग्राम

सोलहवां दिन                            50 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            625-665 ग्राम

सत्रहवां दिन                             52 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            665-705 ग्राम

अठारहवां दिन                           54 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            705-745 ग्राम

उन्नीसवां दिन                           54 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            745-785 ग्राम

बीसवां दिन                             56 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन             785-825 ग्राम

इक्कीसवां दिन                           58 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            825-865 ग्राम

बाइसवां दिन                            60 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन             865-905 ग्राम

तेइसवां दिन                             62 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            905-945 ग्राम

चौबीसवां दिन                            64 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            945-985 ग्राम

पच्चीसवां दिन                           66 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            985-1,025 ग्राम

छब्बीसवां दिन                           68 ग्राम,प्रति चूजा,प्रति दिन            1,025-1,045 ग्राम

 

 

फार्म के अंदर रोग फैलने के कारण –

  • इस्तेमाल होने वाला सामान दूषित होने पर
  • काम करने वाले का कपड़ा और जूता दूषित हो
  • प्रदूषित जानवर जैसे पक्षी और रोडेन्ट्स
  • प्रदूषित चारा और चारा ढुलाई वाले बैग
  • चूजे की ढुलाई करनेवाले सामान, ट्रक और ट्रैक्टर्स
  • खराब और टूटे अंडे
  • रोग फैलाने वाले मक्खी, मच्छर और भौंरा
  • मरे हुए चूजे का सही ढंग से निस्तारण नहीं

ब्रॉयलर फार्मिंग में रोग नियंत्रण, टीकाकरण –

रोग नियंत्रण और ऐहतियात –

  • बीमारी रहित स्टॉक से शुरुआत
  • बाड़े में चूजे को रानीखेत और मेरेक्स रोग का टीका दिलाएं
  • कोकीडिओसिस को रोकने के लिए कोकीडिओस्टल का इस्तेमाल करें
  • चारा को एफ्लाटॉक्सिन से दूर रखें
  • बिना समुचित सुरक्षा उपायों के बाहरी व्यक्ति को पॉल्ट्री फॉर्म में न आने दें
  • फ्लोर को साफ सुथरी पालकी (क्लीन लीटर) से तीन इंच भीतर तक ढंक दें
  • पहले से मौजूद चूजे को बीमारी से बचाव के लिए एक समुचित व्यवस्था होनी चाहिए
  • शेड के भीतर घुसने की जगह पर पैर धोने की समुचित व्यवस्था
  • रोज साफ-सुथरे पानी की व्यवस्था करें

 

विषाणु-

  • रानीखेत, न्यू केसल रोग और उसकी पहचान
  • ये रोग फार्म में मौजूद सभी चूजे को प्रभावित कर सकते हैं
  • इससे सांस लेने में समस्या आती है
  • नाक से पानी गिरने लगता है
  • चिड़चिड़ापन
  • हरे रंग का शौच
  • 90-100 फीसदी मृत्यु दर

 

बचाव के तरीके-

शुरुआत में ही एफ वन के टीके लगवाना और उसके बाद आर बी वैक्सीन लगवाना

 

मेरेक्स रोग और उसकी पहचान-

  • फार्म में मौजूद सभी चूजे को प्रभावित कर सकता है
  • पंख झड़ना, गूंगापन और पक्षाघात महत्वपूर्ण लक्षण हैं
  • इस रोग में 60 से 75 फीसदी तक मौत की आशंका होती है

इस रोग में खास बात ये है कि एक बार जब रोग लग जाता है तो उसके बाद बचाव संभव नहीं है। इसका बचाव सिर्फ ये है कि इसमे शुरुआत में ही टीकाकरण करवा लिया जाए।

जीवाणु संबंधी रोग –

इसमे सबसे प्रमुख नाम सालमोनेलिसिस है और जिसके लक्षण निम्न हैं- –

  • सफेद रंग का शौच होना
  • अचानक मौत
  • सभी उम्र के चूजे को प्रभावित करता है
  • तनाव और वजन का घटना

कैसे इलाज करें- –

  • प्रभावकारी एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करें, साथ में बेहतर होगा कि नजदीकी पशु चिकित्सा केंद्र जाएं
  • प्रभावित चूजे की पहचान करें और उसे नष्ट कर दें

दूसरे जीवाणु कोलिबेसिलोसिस और उसकी पहचान –

  • यह भी सभी उम्र के चूजे को प्रभावित करता है
    • डायरिया होना
    • जोडो़ं में सूजन
    • चक्कर आना
    • ओएडेमाटोअस कॉम और वैटल
    • 90 फीसदी तक मृत्यु दर

इलाज-

एंटी माइक्रोबियल्स और साथ में बेहतर ये होगा कि पास के पशु चिकित्सा केंद्र में संपर्क करें

फंगल रोग-

इसमे ब्रूडर निमोनिया और एस्परजिलोसिस प्रमुख हैं-

  • जूजे को प्रभावित करता है
  • उच्च मृत्यु दर
  • सांस संबंधी समस्या
  • सिर और आंख में सूजन

बचाव के तरीके- एंटी फंगल का इस्तेमाल करें और साथ ही नजदीकी पशु चिकित्सा केंद्र में संपर्क करें

 

हेलमिन्थिक रोग और उसके लक्षण –

  • चूजे को सबसे ज्यादा प्रभावित करनेवाला रोग
  • इनएपिटेन्स
  • शरीर विकास को कम कर देना
  • झालरदार पंख हो जाना
  • डायरिया हो जाना

बचाव के तरीके- प्रति आठ सप्ताह पर एन्थेलमिन्टिक का इस्तेमाल करें और साथ ही नजदीकी पशु चिकित्सा केंद्र में संपर्क करें

प्रोटोजोअन रोग में कोसिडियोसिस होता है जिसके लक्षण निम्न हैं –

  • खून युक्त डायरिया
  • इसमे उच्च मृत्यु दर

इलाज-

इस रोग से लड़ने के लिए बेहतर प्रबंधन जरूरी है

इसके साथ ही एंटी कोसिडिओसिस का इस्तेमाल करें और साथ ही नजदीकी पशु चिकित्सा केंद्र में भी संपर्क करें

ब्रॉयलर में टीकाकरण –

रोग के प्रकार                           पक्षी की उम्र

मेरेक्स                                पहला दिन (आमतौर पर बाड़े में) 0.2 एमएल

रानीखेत                               पांचवें दिन

गुमबोरो/आईबीडी                        सातवें से नवें दिन

गुमबोरो/आईबीडी                        सोलह से अठारहवें दिन (बूस्टर डोज)

रानीखेत                               तीसवें दिन (एफ स्ट्रेन)

 

ब्रॉयलर फार्मिंग में जैव सुरक्षा उपाय-

इससे पॉल्ट्री फार्म में फैलने वाले रोग को रोकने का इंतजाम किया जाता है। इसके तीन महत्वपूर्ण अंग हैं-

  • अलग करना
  • ट्रैफिक नियंत्रण
  • सफाई व्यवस्था

ब्रॉयलर फार्मिंग में जैव सुरक्षा के तौर-तरीके –

  • बाड़बंदी हो
  • बाहरी व्यक्ति की कम से कम एंट्री हो
  • दूसरे पॉल्ट्री फार्म में आवाजाही सीमित हो
  • शेड से दूसरे जानवर और जंगली पक्षियां बाहर हों
  • ध्वनि रोडेंट और पेस्ट कंट्रोल कार्यक्रम चलाते रहें
  • चूजे के झुंड का निरीक्षण करें और रोग के चिन्ह की पहचान करने की कोशिश करें
  • वेंटिलेशन की अच्छी व्यवस्था और सूखी पालकी या लिटर का इंतजाम
  • चारा खिलाने का बर्तन और शेड के आसपास की जगह साफ-सुथरी हो
  • चारा और सामान की अदला-बदली कभी ना कराएं
  • पॉल्ट्री फार्म और सामान का कीटाणुशोधन और सफाई बार-बार होते रहना चाहिए
  • मृत चूजे का निस्तारण अच्छी तरह से करना

मार्केटिंग-

सबसे अंत में लेकिन सबसे अहम बात मार्केटिंग की। फार्म की शुरुआत से पहले ही मार्केटिंग की योजना बना लेनी चाहिए। एक सफल फार्मिंग के लिए अच्छा पॉल्ट्री मार्केट और अच्छी कीमत बेहद जरूरी है। एक और खास बात ये कि भारत में कुछ त्योहार के दौरान चिकन की खपत कम हो जाती है, इसलिए इस बात को भी ध्यान में रखकर उत्पादन किया जाना चाहिए तभी मनमाफिक सफलता मिल पायेगी।

 

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