मवेशियों का पाद ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार: यूएनईपी

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मवेशियों का पाद ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार: यूएनईपी

यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक की रिपोर्ट में मांस के उपभोग को ग्‍लोबल वार्मिंग के लिए अनियंत्रित खतरा बताया गया है

                                                                                      

पशुधन प्रहरी नेटवर्क

नैरोबी, केन्‍या में 11-15 मार्च के दौरान संयुक्‍त राष्‍ट्र की पर्यावरण सभा से केवल तीन दिन पहले, संयुक्‍त राष्‍ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के कार्यकारी निदेशक की मसौदा रिपोर्ट में मांस के बढ़ते उपभोग और इसके कारण ग्‍लोबल वार्मिंग बढ़ने के खतरे पर प्रकाश डाला गया है। रिपोर्ट के अनुसार, इसका कारण आंतों में गैस बनना या पशुओं का पाद है।

रिपोर्ट बताती है, “मवेशी एग्रीकल्‍चर एंथ्रोपोजेनिक मीथेन के सबसे बड़े स्रोत हैं, जिसका वैश्विक जलवायु प्रणाली पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। आंतों में गैस बनना इन उत्‍सर्जनों का मुख्‍य स्रोत है, जो तेजी से बढ़ रहा है।” इसे अल्‍पकालीन जलवायु प्रदूषक भी कहा जाता है।

ऐसा अनुमान है कि मवेशियों से ग्रीनहाउस गैसों का प्रतिवर्ष उत्‍सर्जन, कार्बन डाई ऑक्‍साइड के 7 गीगाटन के ग्‍लोबल वार्मिंग प्रभाव के बराबर है, जो अनुमानत: परिवहन उद्योग के समान है। इस उत्‍सर्जन के पांच में से दो हिस्‍से पाचन प्रक्रिया के दौरान उत्‍पादित होते हैं जिनमें अधिकांश हिस्‍सा मीथेन का है।

इस वर्ष पर्यावरण सभा “पर्यावरणीय चुनौतियों तथा दीर्घकालीन उपभोग और उत्‍पादन के उन्‍नत समाधान” पर विचार-विमर्श करेगी। यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक द्वारा तैयार किया गया अग्रिम मसौदा सभा में उच्‍च-स्‍तरीय चर्चा के लिए “पृष्‍ठभूमि दस्‍तावेज” होगा जिसमें सदस्‍य देशों के राष्‍ट्राध्‍यक्ष और मंत्री भाग लेंगे।

आधिकारिक एजेंडा के अनुसार, सभा मुख्‍य रूप से उपभोग पर ध्‍यान देगी। ग्‍लोबल वार्मिंग की अधिकतम सीमा 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक सीमित करने संबंधी आईपीसीसी की नवीनतम रिपोर्ट के बाद यह सभा इस लक्ष्‍य प्राप्‍त करने के तरीकों पर विचार करने वाली प्रमुख वैश्विक बैठक होगी जिसमें बढ़ते उपभोग को भी शामिल किया जाएगा।

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रिपोर्ट आगाह करती है, “हमारा ग्रह तेजी से गर्म और प्रदूषित हो रहा है जो तेजी से अपनी जैव-विविधता खो रहा है। दुनिया संसाधनों का इतनी तेजी से उपयोग कर रही है कि हमने विज्ञान द्वारा तय की गई कई पर्यावरणीय सीमाओं को लांघ दिया है।

इससे पहले, अल्‍पकालीन जलवायु प्रदूषकों को कम करने के लिए जलवायु और स्‍वच्‍छ वायु गठबंधन, संयुक्‍त राष्‍ट्र के खाद्य और कृषि संगठन तथा विश्‍व बैंक ने आंतों से निकलने वाली मीथेन से ग्‍लोबल वार्मिंग की आशंका के बारे में चेतावनी दी है। यह कटौती जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों के रूप में पहले से ही कई आधिकारिक रणनीतियां में शामिल है।

मवेशियों से उत्‍सर्जन को कम करने के लिए दुनियाभर में कई परीक्षण चल रहे हैं। इनमें गैसों का कम उत्‍सर्जन करने वाले मवेशियों के प्रजनन को बढ़ाना, पाचन के दौरान कम गैस बनाने वाले चारे को बढ़ावा देना और माइक्रोबायोम अंतरण को प्रेरित करना शामिल है।

अरक्षणीय कृषि पद्धतियों से पर्यावरण पर प्रतिवर्ष 3 ट्रिलियन डॉलर का प्रभाव पड़ने की आशंका है। खाद्य उत्‍पादन के अधिकांश पर्यावरणीय प्रभाव मांस के उत्‍पादन के कारण है। 77 प्रतिशत कृषि भूमि मांस उत्‍पादन के काम आती है।

अग्रिम रिपोर्ट में दिए गए अनुमानों के अनुसार, खाद्य उत्‍पादन के पर्यावरणीय प्रभाव को वर्ष 2050 तक वर्तमान स्‍तर की तुलना में दो-तिहाई तक कम करना होगा। लेकिन बढ़ती हुई आबादी की खाद्य आवश्‍यकता को पूरा करने के लिए उत्‍पादन को 50 प्रतिशत बढ़ाना होगा।

यह सभा तापमान बढ़ने के लिए जिम्‍मेदार उत्‍सर्जन को कम करने हेतु विश्‍व के खाद्य उपभोग क्षेत्र में बदलाव करने के संबंध में चर्चा करेगी तथा राष्‍ट्र-स्‍तर के साथ-साथ विश्‍व स्‍तर पर रणनीति बनाने पर विचार-विमर्श करेगी।

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अग्रिम रिपोर्ट बताती है कि नीति निर्माण के लिए “खाद्य प्रणाली” दृष्टिकोण, खाद्य व्‍यवस्‍था के समस्‍त जीवन-चक्र के दौरान समग्र दृष्टि अपनाने का अवसर देती है जो संसाधनों के कुशल इस्‍तेमाल, खाद्य सुरक्षा और पोषण, तथा पर्यावरण और स्‍वास्‍थ्‍य को महत्‍व देने के साथ-साथ पूरी आपूर्ति श्रृंखला के आर्थिक लाभों के समान वितरण को सुनिश्चित करती है।

पिछले वर्ष दिसंबर में, यूएन पर्यावरण और यूएनडीपी द्वारा प्रकाशित “क्रिएटिंग अ सस्‍टेनेबल फूड फ्यूचर” रिपोर्ट कृषि से होने वाले उत्‍सर्जन और भूमि उपयोग में परिवर्तन को उजागर करती है तथा 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड के लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए उत्‍सर्जन को कम करने के उपाय भी सुझाती है।

इस रिपोर्ट में वर्ष 2050 तक जुगाली करने वाले पशुओं के मांस की मांग 88 प्रतिशत बढ़ने (वर्ष 2010 की तुलना में) का अनुमान लगाया गया है। इस रिपोर्ट, जो अब यूएन पर्यावरण सभा में चर्चा करने संबंधी मुख्‍य दस्‍तावेज है, में कहा गया है, “भूमि उपयोग में परिवर्तन को बंद करने और जीएचजी अंतर को कम करने के लिए 2050 तक विश्‍व के 20 प्रतिशत लोगों, जो अन्‍यथा जुगाली करने वाले पशुओं के मांस का अत्‍यधिक उपभोग करने वाले थे, को वर्ष 2010 की तुलना में अपना औसत उपभोग 40 प्रतिशत तक कम करना होगा।”

सभार— By Richard Mahapatra, downtoearth
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