मशरूम की बेवसायिक खेती

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मशरूम की बेवसायिक खेती

Compiled & shared by-DR RAJESH KUMAR SINGH ,JAMSHEDPUR, JHARKHAND,INDIA 9431309542,rajeshsinghvet@gmail.com

मशरुम फार्मिंग बिज़नेस क्या है :

मशरूम एक शाकाहारी पौष्टिक आहार है। मशरूम में २८ से ३० प्रतिशत तक सुपाच्य प्रोटीन पाया जाता है। मशरूम में जो पौष्टिक तत्व उपलब्ध है वे इस प्रकार है नमी , खनिज लवण, प्रोटीन,वसा, कार्बोहाइड्रेट एवं ऊर्जा। ओएस्टर मशरूम के लिए सितंबर से मार्च तक२०से३२डिगीं सेल्सियस तापमान तथा ७० से ८० प्रतिशत आदता की स्थिति में की जा सकती है।
मशरूम का उत्पादन युवाओं के लिए एक अच्छा व्यवसाय साबित हो रहा है। मशरूम सेहत का रखवाला है, इसलिए मांग बढ़ रही है, पर जमशेदपुर जैसे शहरों मे आपूर्ति उतनी नहीं हो रही। भारत में मशरूम की मांग में इजाफा हो रहा है। इसे देखते हुए मशरूम के बड़े पैमाने पर उत्पादन की आवश्यकता है। हालांकि अब गांव ही नहीं, शहरों में भी शिक्षित युवा मशरूम उत्पादन को करियर के रूप में अपनाने लगे हैं।ऐसे में यह व्यवसाय फायदे का सौदा है।
डॉक्टर और डाइटीशियन मोटापा, हार्ट-डिजीज और डायबिटीज के रोगियों को इसका सेवन करने की सलाह देते हैं। इसका चलन निरंतर बढ़ता जा रहा है।
मशरूम की खेती को छोटी जगह और कम लागत में शुरू किया जा सकता है और लागत की तुलना में मुनाफा कई गुना ज्यादा होता है। यहाँ तक की इसे आप एक कमरे में भी शुरू कर सकते है ।सालभर में आप सिर्फ एक कमरे में 3 से 4 लाख रुपए की इनकम आसानी से हो सकती है वह भी सिर्फ 50 से 60 हजार रुपए खर्च करने के बाद

भारत मे मशरुम की खेती-आम प्रजातियां—-

भारत में उगने वाले मशरूम की दो सर्वाधिक आम प्रजा तियां वाईट बटन मशरूम और ऑयस्टसर मशरूम है। हमारे देश में होने वाले वाईट बटन मशरूम का ज्याधदातर उत्पाजदन मौसमी है। इसकी खेती परम्पकरागत तरीके से की जाती है। सामान्येता, अपॉश्चकयरीकृत कूडा खाद का प्रयोग किया जाता है, इसलिए उपज बहुत कम होती है। तथापि पिछले कुछ वर्षों में बेहतर कृषि-विज्ञान पदधातियों की शुरूआत के परिणामस्वोरूप मशरूमों की उपज में वृद्धि हुई है। आम वाईट बटन मशरूम की खेती के लिए तकनीकी कौशल की आवश्यककता है। अन्यस कारकों के अलावा, इस प्रणाली के लिए नमी चाहिए, दो अलग तापमान चाहिए अर्थात पैदा करने के लिए अथवा प्ररोहण वृद्धि के लिए (स्पॉेन रन) 220-280 डिग्री से, प्रजनन अवस्थाआ के लिए (फल निर्माण) : 150-180 डिग्री से; नमी: 85-95 प्रतिशत और पर्याप्त संवातन सब्ट्रेग् ट के दौरान मिलना चाहिए जो विसंक्रमित हैं और अत्यंोत रोगाणुरहित परिस्थिति के तहत उगाए न जाने पर आसानी से संदूषित हो सकते हैं। अत: 100 डिग्री से. पर वाष्पयन (पास्तुतरीकरण) अधिक स्वी्कार्य है।
प्लेयूरोटस, ऑएस्ट र मशरूम का वैज्ञानिक नाम है। भारत के कई भागों में, यह ढींगरी के नाम से जाना जाता है। इस मशरूम की कई प्रजातिया है उदाहणार्थ :- प्ल्यूरोटस ऑस्टेरीयटस, पी सजोर-काजू, पी. फ्लोरिडा, पी. सैपीडस, पी. फ्लैबेलैटस, पी एरीनजी तथा कई अन्यर भोज्य् प्रजातियां। मशरूम उगाना एक ऐसा व्यिवसाय है, जिसके लिए अध्यबवसाय धैर्य और बुद्धिसंगत देख-रेख जरूरी है और ऐसा कौशल चाहिए जिसे केवल बुद्धिसंगत अनुभव द्वारा ही विकसित किया जा सकता है।
प्लसयूरोटस मशरूमों की प्ररोहण वृद्धि (पैदा करने का दौर) और प्रजनन चरण के लिए 200-300 डिग्री का तापमान होना चाहिए। मध्यो समुद्र स्तहर से 1100-1500 मीटर की ऊचांई पर उच्चल तुंगता पर इसकी खेती करने का उपयुक्तम समय मार्च से अक्तूयबर है, मध्य1 समुद्र स्त र से 600-1100 मीटर की ऊचांई पर मध्यु तुंगता पर फरवरी से मई और सितंबर से नवंबर है और समुद्र स्ततर से 600 मीटर नीचे की निम्नट तुंगता पर अक्तूुबर से मार्च है।

आवश्यरक सामान———

 

 

 

1. धान के तिनके – फफूंदी रहित ताजे सुनहरे पीले धान के तिनके, जो वर्षा से बचाकर किसी सूखे स्थाचन पर रखे गए हो।
2. 400 गेज के प्रमाप की मोटाई वाली प्ला स्टिक शीट – एक ब्लासक बनाने के लिए 1 वर्ग मी. की प्लानस्टिक शीट चाहिए।
3. लकड़ी के सांचे – 45X30X15 से. मी. के माप के लकड़ी के सांचे, जिनमें से किसी का भी सिरा या तला न हो, पर 44X29 से. मी. के आयाम का एक अलग लकड़ी का कवर हो।
4. तिनकों को काटने के लिए गंडासा या भूसा कटर।
5. तिनकों को उबालने के लिए ड्रम (कम से कम दो)
6. जूट की रस्सीा, नारियल की रस्सील या प्ला स्टिक की रस्सियां
7. टाट के बोरे
8. स्पाकन अथवा मशरूम जीवाणु जिन्हेंल सहायक रोगविज्ञानी, मशरूम विकास केन्द्रस, से प्रत्येाक ब्लॉ,क के लिए प्राप्तत किया जा सकता है।
9. एक स्प्रे यर
10. तिनकों के भंडारण के लिए शेड 10X8 मी. आकार का।

प्रक्रिया———–

कूड़ा खाद तैयार करना————

कूड़ा खाद बनाने के लिए अन्न- के तिनकों (गेंहू, मक्काव, धान, और चावल), मक्कयई की डंडिया, गन्नेर की कोई जैसे किसी भी कृषि उपोत्पािद अथवा किसी भी अन्यी सेल्यू,लोस अपशिष्टा का उपयोग किया जा सकता है। गेंहू के तिनकों की फसल ताजी होनी चाहिए और ये चमकते सुनहरे रंग के हो तथा इसे वर्षा से बचा कर रखा गया है। ये तिनके लगभग 5-8 से. मी. लंबे टुकडों में होने चाहिए अन्य था लंबे तिनकों से तैयार किया गया ढेर कम सघन होगा जिससे अनुचित किण्वान हो सकता है। इसके विपरी त, बहुत छोटे तिनके ढ़ेर को बहुत अधिक सघन बना देंगे जिससे ढ़ेर के बीच तक पर्याप्तऔ ऑक्सीइजन नहीं पहुंच पाएगा जो अनएरोबिक किण्व़न में परिणामित होगा। गेंहू के तिनके अथवा उपर्युक्त सामान में से सभी में सूल्यूनलोस, हेमीसेल्यूकलोस और लिग्निपन होता है, जिनका उपयोग कार्बन के रूप में मशरूम कवक वर्धन के लिए किया जाता है। ये सभी कूडा खाद बनाने के दौरान माइक्रोफ्लोरा के निर्माण के लिए उचित वायुमिश्रण सुनिश्चित करने के लिए जरूरी सबस्टूडटे को भौतिक ढांचा भी प्रदान करता है। चावल और मक्कएई के तिनके अत्यरधिक कोमल होते है, ये कूडा खाद बनाने के समय जल्दी से अवक्रमित हो जाते हैं और गेंहू के तिनकों की अपेक्षा अधिक पानी सोखते हैं। अत:, इन सबस्टूजट्स का प्रयोग करते समय प्रयोग किए जाने वाले पानी की प्रमात्रा, उलटने का समय और दिए गए संपूरकों की दर और प्रकार के बीच समायोजन का ध्यागन रखना चाहिए। चूंकि कूड़ा खाद तैयार करने में प्रयुक्त उपोत्पाीदों में किण्वसन प्रक्रिया के लिए जरूरी नाइट्रोजन और अन्या संघटक, पर्याप्तड मात्रा में नहीं होते, इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए, यह मिश्रण नाइट्रोजन और कार्बोहाइड्रेट्स से
संपूरित किया जाता है।

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स्पारनिंग———————

स्पारनिंग अधिकतम तथा सामयिक उत्पा-द के लिए अंडों का मिश्रण है। अण्डएज के लिए अधिकतम खुराक कम्‍पोस्ट् के ताजे भार के 0.5 तथा 0.75 प्रतिशत के बीच होती है। निम्न्तर दरों के फलस्वकरूप माइसीलियम का कम विस्तापर होगा तथा रोगों एवं प्रतिद्वान्द्वियों के अवसरों में वृद्धि होगी उच्चोतर दरों से अण्डदज की कीमत में वद्धि होगी तथा अण्ड ज की उच्चत दर के फलस्पअरूप कभी-कभी कम्पोरस्टर की असाधारण ऊष्माध हो जाती है।
ए बाइपोरस के लिए अधिकतम तापमान 230 से (+) (-) 20 से./उपज कक्ष में सापेक्ष आर्द्रता अण्डाज के समय 85-90 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए।

कटाई——————

थैले को खोलने के 3 से 4 दिन बाद मशरूम प्रिमआर्डिया रूप धारण करना शुरू कर देते हैं। परिपक्वं मशरूम अन्य् 2 से 3 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। एक औसत जैविक कारगरहा (काटे गए मशरूम का ताजा भार जिसे एयर ड्राई सबट्रेट द्वारा विभक्ता किया गया हो X100) 80 से 150 प्रतिशत के बीच हो सकती है और कभी-कभी उससे ज्याईदा। मशरूम को काटने के लिए उन्हेंत जल से पकड़ा जाता है तथा हल्के5 से मरोड़ा जाता है तथा खींच लिया जाता है। चाकू का इस्तेशमाल नहीं किया जाना चाहिए। मशरूम रेफ्रीजेरेटर में 3 से 6 दिनों तक जाता बना रहता है।
मशरूम गृ‍ह/कक्ष—————-

क्यूमब तैयार करने का कक्ष—————

एक आदर्श कक्ष आर.सी.सी. फर्श का होना चाहिए, रोशनदानयुक्तस एवं सूखा होना चाहिए। लकड़ी के ढांचे को रखने, क्यूदब एवं अन्यस आर.सी.सी. चबूतरा के लिए कक्ष के अंदर 2 सेमी ऊंचा चबूतरा बनाया जाना चाहिए, ऐसा भूसे के पाश्चु्रीकृत थैलों को बाहर निकालने की आवश्य-तानुसार होना चाहिए। जिन सामग्रियों के लिए क्यूवब को बनाने की आवश्युकता है, उन्हेंल कक्ष के अंदर रखा जाना चाहिए। क्यूसब को तैयार करने वाले व्यबक्तियों को ही कमरे के अंदर जाने की अनुमति दी जानी चाहिए।

उठमायन कक्ष—————-

उण्डयजों के संचालन के लिए कमरा यह कमरा आरसीसी भवन अथवा आसाम विस्मा (घर में कोई अलग कमरा) का कमरा होना चाहिए तथा खण्डों को रखने के लिए तीन स्तसरों में साफ छेद वाले बांस की आलमारी लगाई जानी चाहिए। पहला स्त र जमीन से 100 सेमी ऊपर होना चाहिए तथा दूसरा स्त र कम से कम 60 सेमी ऊंचा होना चाहिए।

फसल कक्ष—————

एक आदर्श गृह/कक्ष आर.सी.सी. भवन होगा जिसमें विधिवत उष्मासरोधन एवं कक्ष को ठंडा एवं गरम करने का प्रावधान स्था-पित किया गया होगा। तथापि बांस, थप्पहर तथा मिट्टी प्लाषस्टार जैसे स्थांनीय रूप से उपलब्धन सामग्रियों का इस्ते माल करते हुए स्व देशी अल्पस लागत वाले घर की सिफारिश की गई है। मिट्टी एवं गोबर के समान मिश्रण वाले स्पिलिट बांस की दीवारें बनाई जा सकती है।
कच्चीस ऊष्मा रोधक प्रणाली का प्रावधान करने के लिए घर के चारों ओर एक दूसरी दीवार बनाई जाती है जिसमें प्रथम एवं दूसरी दीवार के मध्यव 15 सेमी का अंत्तर रखा जाता है। बाहरी दीवार के बाहरी तरफ मिट्टी का पलास्टिर किया जाना चाहिए। दो दीवारों के मध्यर में वायु का स्थामन ऊष्माा रोधक का कार्य करेगा क्यों कि वायु ऊष्मा् का कुचालक होती है। यहां तक कि एक बेहतर ऊष्मा रोधन का प्रावधान किया जा सकता है यदि दीवारों के बीच के स्थातन को अच्छीह तरह से सूखे 8 ए छप्प्र से भर दिया जाए। घर का फर्श वरीयत: सीमेंट का होना चाहिए किन्तुक जहां यह संभव नही है, अच्छीऊ तरह से कूटा हुआ एवं प्लासस्ट रयुक्त् मिट्टी का फर्श पर्याप्ता होगा। तथापि, मिट्टी की फर्श के मामले में अधिक सावधानी बरतनी होगी। छत मोटे छापर की तहो अथवा वरीयत: सीमेंट की शीटों की बनाई जानी चाहिए। छप्पधर की छत से अनावश्योक सामग्रियों के संदूषण से बचने के लिए एक नकली छत आवश्यीक है। प्रवेश द्वार के अलावा, कक्ष में वायु के आने एवं निकलने के लिए कमरे के आयु एंव पश्चए भाग के ऊपर एवं नीचे दोनों तरफ से रोशनदानों का भी प्रावधान किया जाना चाहिए। घर तथा कक्षा ऊर्ध्वाकधर एवं अनुप्रस्थभ बांस के खम्भों के ढांचो का होना चाहिए जो ऊष्मारयन अवधि के उपरान्तथ खंडों को टांगने के लिए अपेक्षित है। अनुप्रस्थक खम्भों को ऊष्मा यन आलमारी के रूप में 3 स्तररीय प्रणाली में व्येवस्थि‍त किया जा सकता है। खम्भेो वरीयत: दीवारों से 60 सेमी दूर तथा तीनों स्तीरों की प्रत्येधक पंक्ति के बीच में होने चाहिए, 1 सेमी की न्यूयनतम जगह बनाई रखी जानी चाहिए। 3.0X2.5X2.0 मी. का फसल कक्ष 35 से 40 क्यू बों को समायोजित करेगा।

विधि———

भूसे को हाथ के यंत्र से 3-5 सेमी लम्बे टुकडों में काटिए तथा टाट की बोरी में भर दीजिए। एक ड्रम में पानी उबालिए। जब पानी उबलना शुरू हो जाए तो भूसे के साथ टाट की बोरी को उबलते पानी में रख दीजिए तथा 15-20 मिनट तक उबालिए। इसके पश्चा त फेरी को ड्रम से हटा लीजिए तथा 8-10 घंटे तक पड़े रहने दीजिए ताकि अतिरिक्तउ पानी निकल जाए तथा चोकर को ठंडा होने दीजिए। इस बात का ध्यामन रखा जाए कि ब्लॉ क बनाने तक थैले को खुला न छोड़ा जाए क्योंएकि ऐसा होने पर उबला हुआ चोकर संदूषित हो जाएगा। हथेलियों के बीच में चोकर को निचोड़कर चोकर की वांछित नमी तत्व का परीक्षण किया जा सकता है तथा सुनिश्चित कीजिए कि पानी की बूंदे चोकर से बाहर न निकलें।
चोकर के पाश्चु रीकृत का दूसरा तरीका भापन है। इस तरीके के लिए ड्रम में थोड़े परिवर्तन की आवश्य कता होती है (ड्रम के ढक्क‍न में एक छोटा छेद कीजिए तथा चोकर को उबालते समय रबर की ट्यूब से ढक्क न के चारों ओर सील लगा दीजिए) टुकड़े-डुकड़े किए गए चोकर को पहले भिगो दीजिए तथा अतिरिक्ते पानी निकाल दिया जाए। ड्रम में कुछ पत्थएर डाल दीजिए तथा पत्थुर के स्तरर तक पानी उड़ेलिए। बांस की टोकरी में रखकर गीले चोकर को उबाल दें तथा ड्रम के अंदर पत्थलर के ऊपर टोकरी को रख दें। ड्रम के ढक्कडन को बंद कर दें तथा रबर की ट्यूब से ढक्कदन की नेमि को सील कर दीजिए। उबले हुए पानी से उत्परन्ने भाप चोकर से गुजरते हुए इसे पाश्चुा‍रीकृत करेगी। उबालने के बाद चोकर को पहले से कीटाणुरहित किए गए बोरी में स्था्नांतरित कर दिजिए तथा 8-10 घंटे तक इसे ठंडा होने के लिए छोड़ दीजिए।
• लकड़ी का एक सांचा लीजिए तथा चिकने फर्श पर रख दीजिए। पटसून की दो रस्सियों ऊर्ध्वाथधर एवं अनुप्रस्थय रूप में रख दीजिए। प्लांस्टिक की शीट से अस्तरर लगाइए जिसे पहले उबलते पानी में डुबोकर कीटाणुरहित किया गया है।
• 5 सेमी. के उबले चोकर को भर दीजिए तथा लकड़ी के ढक्क न की मदद से इसे सम्पीुडित कीजिए तथा पूरी सतह पर स्पादन को छिड़किए।
• स्पा‍निंग की प्रथम तह के उपरान्तर 5 सेमी का अन्यी चोकर रखिए तथा सतह पर पुन: स्थासन का छिड़काव करें तथा प्रथम तह में किए गए की तरह इसे सम्‍पीडित कीजिए। इस प्रकार तह पर स्पानन को 4 से 6 तह तक के लिए तब तक छिड़किए जब तक चोकर सांचे के शीर्ष के स्त्र तक न आ जाए। एक (1) एक पैकेट स्पाथन का इस्तेतमाल 1 क्यूिब अथवा ब्लाचक के लिए किया जाना चाहिए।
• अब प्लाजस्टिक की शीट सांचे की शीर्ष पर मोडी जाए प्लाजस्टिक के नीचे पहले रखी गई पटसून की रस्सियों से उसे बांध दिया जाए।
• बांधने के उपरांत सांचे को हटाया जा सकता है तथा चोकर का आयताकर खंड पीछे बच जाता है।
• वायु के लिए खंड के सभी तरफ छेद (2 मिमी व्यातस) बनायें।
• ऊष्माकयन कक्ष में ब्लॉ क को रख दीजिए उन्हेंा सरल तह में एक दूसरे के बगल रखा जाए तथा इस बात का ध्याबन रखा जाए कि उन्हेंा फर्श पर अथवा एक दूसरे के शीर्ष पर सीधे न रखा जाए क्यों कि इससे अतिरिक्त ऊष्माब उत्प न्नक होगी।
• ब्लॉ क का तापमान 250 से. पर रखा जाए। ब्लॉोक के छिद्रों में एक तापमापक डालकर इसे नोट किया जा सकता है। यदि तापमान 250 से. से ऊपर जाता है तो कमरे में गैस भरने की सलाह दी जाती है। तथा यदि तापमान में गिरवाट आती है, तो कमरे को धीरे-धीरे गर्म किया जाना चाहिए।
• पूरे पयाल में फैलने के लिए स्पाधन को 12 से 15 दिन लगता है तथा जब पूरा ब्लॉाक सफेद हो जाए तो यह निशान है कि स्पायन संचालन पूरा हो गया है।
• अण्डपज परिपालन के उपरांत ब्लॉ।क से रस्सी तथा प्ला स्टिक की शीट को हटा दीजिए। नारियल की रस्सी से ब्लॉ्क को अनुप्रस्थ‍ रूप में बांध दीजिए तथा इसे फसल कक्ष में लटका दीजिए। इस अवस्थास से आगे कमरे की सापेक्ष आर्द्रता 85 प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए। ऐसे दीवारों तथा कमरे की फर्श पर जल छिड़क करके समय-समय पर किया जा सकता है। यदि फर्श सीमेंट का है, तो सलाह दी जाती है कि फर्श पर पानी डालिए ताकि फर्श पर हमेश पानी रहे। यदि खंड हल्का से सूखने का लक्षण जिससे लगे तो स्प्रे यर के माध्यशम से स्प्रे किया जा सकता है।
• एका सप्ताखह से 10 दिन के भीतर ब्लॉगक की सतह पर छोटे-छोटे पिन शीर्ष दिखाई पड़ेगे तथा ये एक या दो दिन के भीतर पूरे आकार के मशरूम हो जाएंगे।
• जब फल बनना शुरू होता है तो हवा की जरूरत बढ़ जाती है। अत: जब एक बार फल बनना शुरू हो जाता है तो आवश्यबक है कि हर 6 से 12 घण्टो् बाद कमरे के सामने और पीछे दिए गए वेंटीलेटर खोलकर ताजी हवा अंदर ली जाए।
• जब आवरणों की परिधि ऊपर की ओर मुड़ना शुरू हो जाती है तो फल काया (मशरूम) तोड़ने के लिए तैयार हो जाते है। ऐसा जाहिर होगा क्यों कि छोटी-छोटी सिलवटें आवरण पर दिखाई पड़ने लगती है।
• मशरूम को काटने के लिए अंगूठे एवं तर्जनी से आधार पर डाल को पकड़ लीजिए तथा हल्केन क्ला़कवाइज मोड़ से पुआल अथवा किसी छोटे मशरूम उत्पाेदन को विक्षोभित किए बिना मशरूम को डाल से अलग कर लीजिए। काटने के लिए चाकू अथवा कैंची का इस्‍तेमाल मत करें। एक सप्तािह के बाद ब्लॉअक में फिर से फल आने शुरू हो जाएंगे।

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उपज—————-

मशरूम प्रवाह में दिखाई पड़ते है। एक क्यूलब से लगभग 2 से 3 प्रवाह काटे जा सकते है। प्रथम प्रवाह की उपज ज्यामदा होती है तथा तत्पएश्चाकत धीरे-धीरे कम होने लगती है तथा एक क्यूजब से 1.5 किग्रा से 2 किग्रा तक के ताजे मशरूम की कुल उपज प्राप्त होती है। इसके बाद क्यूधब को छोड़ दिया जाता है तथा फसल कक्ष से काफी दूर पर स्थित एक गड्ढे में पाट दिया जाता है अथवा बगीचे अथवा खेत में खाद के रूप में इसका इस्ते माल किया जा सकता है।

परिरक्षण————–

मशरूम को ताजा खाया जा सकता है अथवा इसे सुखाया जा सकता है। चूंकि वे शीघ्र ही नष्टै हो जाने वाले प्रकृति के होते हैं तो आगे के इस्तेामाल अथवा दूरस्था विपणन के लिए उनका परिरक्षण आवश्यथक है। ओयेस्टेर मशरूम को परि‍रक्षित करने का सबसे पुराना एवं सस्ताथ तरीका है धूप में सुखाना।
गर्म हवा में सुखाना कारगर उपयोग है जिसके द्वारा मशरूम को डिहाइड्रेटर (स्था नीय रूप से तैयार उपस्क‍र) नामक उपस्कहर में सुखाया जाता है मशरूम को एक बंद कमरे में लगे हुए तार के जाल से युक्तख रैक में रखा जाता है तथा गर्म हवा (500 से 550 से) 7-8 घंटे तक रैक के माध्यतम से गुजरती है। मशरूम को सुखाने के बाद इसे वायुसह डिब्बेव में स्टोयर किया जाता है अथवा 6-8 माह के लिए पोलीबैग में सील कर दिया जाता है। पूरी तरह से सोखने के उपरांत मशरूम अपने ताजे वजन से कम होकर एक से घट कर तैरहवां भाग रह जाता है जो सुरक्षा के आधार पर अलग-अलग होता है। मशरूम को ऊष्णए जल में भिगोकर आसानी से पुन: जलित किया जा सकता है।

रोग एवं पीट———

यदि मशरूम की देखभाल न की जाए तो अनेक रोग एवं पीट इस पर हमला कर देते हैं।

रोग———–

1. हरी फफूंद (ट्राइकोडर्मा विरिडे) : यह कस्तूहरा कुकुरमुत्ते में सबसे अधिक सामान्यू रोग है जहां क्यूसबों पर हरे रंग के धब्बेह दिखाई पड़ते है।
1. नियंत्रण : फॉर्मालिन घोल में कपड़े को डुबोइए (40 प्रतिशत) तथा प्रभावित क्षेत्र को पोंछ दीजिए। यदि फफूंदी आधे से अधिक क्यू ब पर आक्रमण करती है तो सम्पू र्ण क्यूंब को हटा दिया जाना चाहिए। इस बात की सावधानी रखी जानी चाहिए कि दूषित क्यूपब को पुनर्संक्रमण से बचाने के लिए फसल कक्ष से काफी दूर स्थाचन पर जला दिया जाए अथवा दफना दिया जाए।

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2. मक्खियां : देखा गया है कि स्कै्रिड मक्खियां, फोरिड मक्खियां, सेसिड मक्खियां कुकुरमुत्ते तथा स्पॉ न की गंध पर हमला करती हैं। वे भूसी अथवा कुकुरमुत्ते अथवा उनसे पैदा होने वाले अण्डोंल पर अण्डेा देती हैं तथा फसल को नष्टम कर देती हैं। अण्डेु माइसीलियम, मशरूम पर निर्वाह करते हैं एवं फल पैदा करने वाले शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं तथा यह उपभोग के लिए अनुपयुक्तत हो जाता है।
नियंत्रण : फसल की अवधि में बड़ी मक्खियों के प्रवेश को रोकने के लिए दरवाजों, खिडकियों अथवा रोशनदानों पर पर्दा लगा दीजिए यदि कोई, 30 मेश नाइलोन अथवा वायर नेट का पर्दा। मशरूम गृहों में मक्खीखदान अथवा मक्खियों को भगाने की दवा का इस्तेकमाल करें।
3. कुटकी : ये बहुत पतले एवं रेंगने वाले छोटे-छोटे कीड़े होते हैं जो कुकुरमुत्ते के शरीर पर दिखाई देते हैं। वे हानिकारक नहीं होते है, किन्तुत जब वे बड़ी संख्याे में मौजूद होते है तो उत्पाुदक उनसे चिंतित रहता है।
नियंत्रण : घर तथा पर्यावरण को साफ सुथरा रखें।
4. शम्बूेक, घोंघा : ये पीट मशरूम के पूरे भाग को खा जाते हैं जो बाद में संक्रमित हो जाते हैं तथा वैक्टीारिया फसल के गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव डालते हैं।
नियंत्रण : क्यूपब से पीटों को हटाइए तथा उन्हें मार डालिए। साफ सुथरी स्थिति को बनाये रखें।
अन्यत कीटाणु
5.कृन्तुक : कृन्तटकों का हमला ज्याादातर अल्पी कीमत वाले मशरूम हाउसों पर पाया जाता है। वे अनाज की स्पॉ न को खाते हैं तथा क्यूकबों के अंदर छेद कर देते हैं।
नियंत्रण : मशरूम गृहों में चूहा विष चारे का इस्तेोमाल करें। चूहों की बिलों को कांच के टुकडों एवं पलास्टार से बंद कर दें।
6.इंक कैप (कोपरीनस सैप) यह मशरूम का खर-पतवार है जो फसल होने के पहले क्यूडबों पर विकसित होता है। वे बाद में परिपक्व ता अवधि पर काले स्लिमिंग काई में विखंडित हो जाते है
नियंत्रण : सिफारिश किए गए नियंत्रण उपाय ही कोपरीनस को क्यूोब से शारीरिक रूप से हटा सकता है।

MUSHROOM CULTIVATION में HANGING METHOD क्या है: ——–

MUSHROOM CULTIVATION या MUSHROOM FARMING करने के लिए कमरे के अन्दर प्लास्टिक के बैगों को जमीन में नहीं रखा जा सकता है इसलिए इस बात के मद्देनज़र अर्थात प्लास्टिक के बैग जिनमे MUSHROOM SPAWN की बिजाई की गई है उन्हें रखने की जगह बनाने के लिए इस पद्यति अर्थात HANGING METHOD का उपयोग किया जाता है | इसमें कमरे के आमने सामने की दीवारों में लकड़ी की गिट्टिया ठोक दी जाती हैं और उन गिट्टियों के ऊपर मजबूत बांस की लकड़ी को सटा दिया जाता है यह प्रक्रिया दो दो फीट छोड़कर की जाती है उसके बाद इस तिरछी बॉस की लकड़ी में दो दो फीट छोड़कर रस्सी फंसा दी जाती है इसमें रस्सी के चार पलड़े नीचे की तरफ झूले होने चाहिए और बीच बीच में निश्चित दूरी पर गाँठ बाँध दी जाती है हालांकि इसमें कितनी गांठे रस्सी पर बाँधी जायेगीं यह कमरे की ऊंचाई पर निर्भर करता है | इस पद्यति में रस्सी के चार पलड़ों के सहारे प्लास्टिक के बैग को लटकाकर रखा जाता है इसलिए MUSHROOM FARMING में इसे HANGING METHOD कहा जाता है |

MUSHROOM CULTIVATION में RACKING METHOD क्या है: ———

MUSHROOM FARMING में RACKING METHOD से आशय कमरे के अन्दर ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने से है जिसमे प्लास्टिक के बैगों को रैक के ऊपर रखा जाय | उद्यमी यह रैक अपनी सुविधानुसार किसी भी प्रकार की लकड़ी एवं तख्तों की मदद से तैयार कर सकता है | या फिर बांस की लकड़ियों को तिरछी बिछाकर एवं नीचे से उन्हें सपोर्ट देकर भी रैक तैयार की जा सकती है | या रैक जमीन से छह सात इंच ऊपर की और से शुरू की जा सकती है अर्थात कहने का आशय यह है की पहली रैक उद्यमी चाहे तो जमीन से केवल छह सात इंच ऊपर उठाकर तैयार कर सकता है लेकिन उसके बाद एक रैक से दुसरे रैक की दूरी 2 से 2.5 फीट होनी जरुरी है ताकि उद्यमी बिना छुए मशरुम बैग पर निगरानी रख सके छूने से मशरुम टूट सकती हैं उन्हें नुकसान पहुँच सकता है | हालांकि यह पद्यति लटकाने वाली पद्यति के मुकाबले ठोड़ी महंगी एवं समय खाने वाली होती है |

रीटेल स्टोोर से कर सकते हैं करार——-

ओइस्टीर मशरूम की देश में सबसे अधिक मांग है। ब्रांडेड स्टोदर पर भी सबसे ज्यारदा ओइस्टरर मशरूम ही बिकता है। इस मशरूम के दाम कम से कम 150 से 200 रुपए प्रति किलोग्राम मिलते हैं। यदि आप बेहतर मार्केटिंग कर किसी रिटेल स्टोरर से करार कर सकते हैं तो दाम और भी बेहतर मिल सकते हैं। कम से कम 150 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से 10 क्विंटल मशरूम की कीमत 150000 रुपए होती है। ऐसे में मशरूम साल में दो बार पैदा किया जाए तो यह रकम आसानी से दोगुनी यानी 3 लाख रुपए तक पहुंच जाती है।

MUSHROOM FARMING में ध्यान देने योग्य बातें: MUSHROOM FARMING में ध्यान देने योग्य कुछ महत्वपूर्ण बातें निम्नवत हैं |
• बैग का तापमान मापने के लिए सामान्य से थोड़ा लम्बे थर्मामीटर का इस्तेमाल करें और इसका सेंसर बैग के अन्दर रहे तभी इसका तापमान चेक करें बैग का तापमान 25-30 ° के बीच होना चाहिए |
• कमरे का तापमान एवं आर्द्रता मापने वाले यंत्र का नाम हाइड्रो मीटर है और कमरे का संतुलित तापमान भी 25-30 ° के बीच ही होना चाहिए |
• MUSHROOM FARMING में बैग में मशरूम उत्पादित हो जाने पर बैग को छूने से बचना चाहिए, नहीं तो मशरूम को नुकसान हो सकता है |
• OYSTER MUSHROOM FARMING के लिए SOIL CASING की आवश्यकता नहीं होती जबकि MILKY MUSHROOM इत्यादि के लिए इसकी आवश्यकता हो सकती है |
• HANGING METHOD अर्थात लटकाने की पद्यति RACK METHOD के मुकाबले काफी सस्ती पड़ती है |
• जिन कमरों में MUSHROOM FARMING की जा रही हो उनमे कम से कम एक खिड़की एवं एक दरवाजे का होना अति आवश्यक है |

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