रोग – पोस्ट पार्चूरेन्ट हिमोग्लोबिन्यूरिया post parturient heamoglobinuria (PPH)

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रोग – पोस्ट पार्चूरेन्ट हिमोग्लोबिन्यूरिया
post parturient heamoglobinuria (PPH)
यह रोग गाय , भैस , मे प्रसव/ब्याने के 2 -4 सप्ताह के बाद होता है जिसमे रोगी पशु लाल रंग का मूत्र (red coloured urine) उत्सर्जित करता है !
इस रोग को nutritional heamoglobinuria , red water , hypophosphataemia ,लहू मूतना आदि भी कहते है !

रोगकारक (etiology):
इस रोग का कारण पशु शरीर मे फॉस्फोरस (phosphorus) की कमी हो जाती है जो कई कारणो से हो सकती है ! आहार मे फॉस्फोरस की कमी , क्रुसीफेरी कुल के पादपो को खाना, जैसे – सरसो , कन्द आदि ! बहुत ठण्डा पानी पीने , क्रुसीफेरी कुल के पादपो मे रक्त अपघटनी पदार्थ (heamolytic agent) पाया जाता है जो प्राणी शरीर मे रक्त का अपघटन (heamolysis) कर देता है |
* दुग्ध के साथ फॉस्फोरस का अधिक मात्रा मे निकल जाना !

Epidemiology:
यह रोग किसी क्षेत्र विशेष मे हो सकता है क्योकि वहाँ की जमीन मे फॉस्फोरस की कमी हो सकती है व वहाँ सूखे की स्थिती भी हो सकती है !
यह रोग तीसरे से छटे ( 3 -6 ) दुग्धकाल मे सर्वाधिक होता है , ब्याने के 2 -4 सप्ताह के बाद रोग के होने कि सम्भावना और भी ज्यादा होती है !

लक्षण (symptoms):
* सुस्ती व तनाव
# पेशाब/मूत्र का रंग गहरे लाल-भूरे से काला (dark red-brown to black urine) हो जाना
# शरीर का तापमान सामान्य रहता है (normal temperature)
* सांस मे तकलीफ व हाँफना (dyspnoea)
* मल सख्त व सूखा हो जाना (firm & dry faeces)
* रक्त की कमी (anaemia) के कारण शरीर की श्लेष्म झिल्लियां हल्की पड़ जाती है व पीलिया (janudice) की स्थिती भी आ सकती है !
* शरीर मे निर्जलीकरण की अवस्था (dehydration stage)
* रोगी पशु गिर जाता है (recumbency)
* रोग की घातकता (severity) के अनुसार रोगी पशु की मृत्यु हो सकती है |

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विभेदीय पहचान ( Differential diagnosis ):
अन्य रोग जिनमे भी हिमोग्लोबिन्यूरिया होता है ,उनसे निम्न प्रकार अलग-2 रूप मे पहचान कर सकते है

(A). बबेसियोसिस (Babesiosis) –
१. पशु शरीर पर , चिचडे मिलते है
२. अधिक तेज बुखार आती है (high temperature)
३. PPH.व bebesiosis इस दोनो रोगो को तापमान पे ही विभेदिय किया जा सकता है !
(B). leptospirosis
(C). bacillary haemoglobinuria
(D). chronic copper poisoning
(E). anaplasmosis

उपचार (treatment):
रोग की घातक स्थिती मे blood trasfusion किया जाना चाहिए जिसकी मात्रा रोग की घातकता व रोगी प्राणी के शरीर भार पर निर्भर करती है
इसके अतिरिक्त पशु को DNS , Ringer’s lactate आदि की आवश्यकता के अनुसार fluid therapy देनी चाहिए !
sodium acid phosphate I/v व S/c लगाये !
inj – urimin दे
inj – feritas दे
inj -B-complex दे
साथ ही पशु को मुँह से भी sodium acid phosphate देना चाहिए !

नियंत्रण (control):
इस रोग के नियंत्रण के लिए पशु को उसकी आवश्यकता के अनुसार व विशेषकर प्रारम्भिक दुग्ध मे फॉस्फोरस की उचित मात्रा प्रदान करनी चाहिए !
पाउडर – metabolite mix -1kg दे देना चाहिए !

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