डाॅ राजपाल दिवाकर 1, डाॅ राजेश कुमार 2, डाॅ हुकुम चन्द्र3 व डाॅ रमाकान्त 4
1सहायक प्राध्यापक पशुसूक्ष्म जीव विज्ञान
2सहायक प्राध्यापक पशु प्रजनन एवं योनि विज्ञान
3सहायक प्राध्यापक पशु चिकित्सा एवं पशु पालन प्रसार विभाग
4सहायक प्राध्यापक पशु औषfध् विभाग
पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय,
आचार्य नरेन्द्र देव कृfष् एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या उत्तर प्रदेश
भारत के सकल घेरलू उत्पाद में कृिष् एवं उससे सम्बन्िधत क्षेत्रों का योगदान 22 प्रतिशत के लगभग है जोकि देश की लगभग 65 प्रतिशत-70 प्रतिशत जनसंख्या के लिए महत्वपूर्ण आजीविका का साधन है। पशुपालन क्षेत्र गरीब पशुपालक एवं किसान की आय से लेकर राष्ट्रय सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान देता है। छोटे किसानों के लिए अतिरिक्त आय एवं श्िक्ष्त युवकों हेतु अच्छे रोजगार का विकल्प पशुपालन आधारित डेयरी व्यवसाह है। राष्ट्रीय आय में भी दुग्ध एवं दुग्ध उत्पादों का योगदान सबसे अfधक है। दूध की गुणवत्ता बढ़ाने में स्वच्छ दुग्ध उत्पादन एवं आरोग्यकारी दुग्ध उत्पादन का विशेष महत्व है क्योंकि स्वच्छ एवं कीटाणु रहित दुग्ध से ही श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले डेयरी उत्पाद बनाए जा सकते हैं जोकि कीमत को बढ़ाते हैं। श्रेष्ठ दुग्ध उत्पादन द्वारा विश्व बाजार में अपनी प्रभुता भी सिद्ध की जा सकती है। यदि पशुओं के स्वास्थ्य की अनदेखी की जाती है तो दूध, अण्डा, मांस, चमड़ा एवं अन्य डेरी उत्पादों का उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता है।
श्स्वस्थ्ज्ञ पशु समृद्ध किसानश् का सपना तभी साकार हो सकता है जब पशु पालक किसानों के पशु, पूर्णतः स्वस्थ, अच्छी नस्ल एवं अfधकतम उत्पादन क्षमता वाले हों। क्रास ब्रीड कार्यक्रम को व्यापक स्तर पर लागू करने की वजह से पशुओं की गुणवत्ता में सुधार होने के साथ-साथ पशुओं में कर्इ तरह की बीमारियां बढ़ी हैं।
बीमार पशु का उपचार, दवाइयां का खर्च, चिकित्सक की फीस, बीमार पशु का रखरखाव एवं उत्पादन क्षमता घट जाने (जैसा कि थनैला रोग, खुरपका एवं मुंहपका रोग में सामान्यतः देखा जाता है) के कारण पशुपालक को आfथ्र्क कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इन सभी परेशानियों से निजात पाने के लिए समय-समय पर पशुओं का स्वास्थ्य परीक्षण कराया जाना चाहिए जिससे बीमारी का पूर्वाभास होने की दशा में रोकथाम हेतु समय पर आवश्यक प्रबंध किये जा सके। रोगी पशु का समय पर उपचार होने से उत्पादन क्षमता पर अfध्क प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना कम हो जाती है।
पशुओं का स्वास्थ्य परीक्षण/जांच कब करवाएं-
- पशुपालक/किसानों को प्रति तीन से छः माह के अन्तराल पर अपने पशुओं का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण कराना चाहिए।
- पशु के व्यवहार में परिवर्तन जैसे, खाना पानी कम ख पी रहे हों एवं चलने फिरने में परेशानी महसूस हो रही हो।
- पशुओं में बीमारी के लक्षण, जैसे-हाफनां, कब्ज, दस्त, बुखार, त्वचा पर चकत्ते, चलने पर लंगड़ाना आदि प्रदfश्र्त होने पर।
- नए खरीदे गए पशु का बाड़े में रखने से पूर्व।
- पशु बिना किसी कारण कमजोर हो रहे हों या वनज घट रहा हो।
- छोटे पशुओं व पfक्ष्यों की मृत्यु दर सामान्य से अfध्क हो।
परीक्षण के लाभ-
- नए पशु को रोगग्रस्त होने की दशा में बीमारी का संक्रमण बाड़े में पहले से मौजूद पशुओं को हो सकता है।
- पशुओं से कर्इ बीमारियों का फैलाव मनुष्यों में हो सकता है। अतः समय पर बीमारी की रोकथाम करके मनुष्यों में पशु जन्य रोगों से बचाव किया जा सकता है।
- प्रयोगशाला आधारित जांच में रोग के बारे में निश्िचत एवं विश्वसनीय जानकारी मिलती है। अतः पशु चिकित्सक द्वारा केवल जांच आधारित रोग का ही उपचार किया जाता है। जिससे खर्चा कम होता है तथा समय पर इलाज हो जाता है।
- टीकाकरण की प्राथमिकता, पशु में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुर्इ है नहीं इसका भी पता चलता है।
- कृत्रिम गभाधान में उपयोग में लिए जाने वाले वीर्य की यह जांच आवश्यक है कि वीर्य स्वस्थ नर पशु से लिया जाए, अन्यथा काफी संख्या में मादा पशु लैंगिक बीमारियों से ग्रसित हो सकते हैं।
- क्षेत्र विशेष में बीमारियों का पूर्वानुमान लग जाता है।
पशुओं में बीमारियां कम करने एवं उनकी जन्म दर बढ़ाने के लिए राज्यों, केन्द्र शासित प्रदेशों में संचालित पालि-क्लनिक (बहुआयामी-निदानशाला) प्रथम श्रेणी अस्पतालों, प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र एंव चलती फिरती चिकित्सालय इकाइयों द्वारा कर्इ प्रयास किए जा रहे हैं। इस संस्थाओं में कार्यरत पशुचिकित्सक से सम्पर्क कर एवं पशु से नमूने जैसे-रक्त, शीरम, गोबर, त्वचा की खुरचन, मूत्र लेकर प्रयोगशाला में जाचं हेतु िभ्ाजवाया जाना चाहिए।
इसके अतिरिक्त पशुपालकों को पशुपालन विभाग/ पशुचिकित्सकों के सम्पर्क सूत्र तथा फो नं0/फैक्स नं0 आवश्यक तौर पर रखने चाहिए ताकि आपाति स्थति में उनकी सेवाऐं की जा सके।
नमूने एकत्रित करने के तरीके-
➢ पशुपालक/किसान स्वयं कवकीय/फफंदीय बीमारियों जैसे- खुजली पड़ना और खुरट बनने आदि की खुरचन कागज की पुडि़या में या प्लास्िटक व कोर्इ शीशी में रखकर जांच के लिए पशुचिकित्सालय भेज सकते हैं।
➢ कभी-कभी पशुओं के शरीर पर वाह्य परजीवी पाये जाते हैं। ये परजीवी खुजली है अन्य रोगों से सम्बन्िधत होते हैं, इनको भी एकत्रित कर जाचं के लिए भेजना चाहिए।
➢ कुछ रोगों में सूक्ष्म जीव परीक्षण के लिए पशु के नाक, आंख, गला, मुंह, मलाशय इत्यादि से फुरेरी द्वारा नमूने लिए जा सकते हैं। फुरेरी को सूखने से बचाने के लिए लसे नार्मल सैलाइन या पैप्टान वाटर वाली ट्यूब में रखकर भेजें।
➢ थनैला रोग के सम्बन्ध में दूध का नमूना किसी साफ बोतल या शीशी में (5-10 मिली0) गर्भपात क स्थति में सम्पूर्ण गिभ्र्त भ्रूण व जेर को किसी पालीथीन में बन्द करके व योनिस्राव को साफ बोतल या शीशी में बन्द करके तुरन्त निकट पशुचिकित्सक या प्रयोगशाला भेजना चाहिए।
➢ पशु से रक्त के नमूने के लिए पशुपालक पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें। रक्त का नमूना नर्इ सूर्इ व सिरिंज से लिया जाना चाहिए। रक्त को साफ शीशी व कांच की ट्यूब में लेकर ट्यूब को तिरछा रख दें इससे सीरम जल्दी निकलता है।
➢ अन्य रक्त परीक्षण के लिए रक्त में थक्कारोधी रसायन जैसे र्इ.डी.टी.ए. सोडियम आक्जेलेज एवं हिपैरिन मिलाते हैं।
➢ सूक्ष्मजीव परीक्षण के लिए रक्त संक्रमणविहीन परिस्थतियों में एकत्रित करना चाहिए तथा संक्रमण विहिन शीशी या बोतल में डालकर प्रयोगशाला में भेजना चाहिए।
➢ पशुचिकित्सक रोगी पशुओं के रक्त से कांच की स्लाइड पर रक्तआलेप बनाकर उसे 70 प्रतिशत एल्कोहल या मीथेनाल से फिक्स कर के जांच के लिए भेज सकते हैं।
➢ मल व मूत्र के सूक्ष्मजीव परीक्षण के लिए पशुचिकित्सक साफ कांच की शीशी या पालीथीन में नमूने रखकर भेज सकते हैं।
➢ पशु चिकित्सक को मृत पशु के शव परीक्षण के समय नमूने एकत्रित करने का सभी सामान परीक्षण स्थल पर ले जाना चाहिए।
सूक्ष्मदश्र्ी के लिए जितनी जल्दी हो सकें ऊतक के नमूने 10 प्रतिशत फारमेलिन में एकत्रित करने चाहिए। नमूने का आकार 1.0 सेमी से अिध्क नहीं होना चाहिए। सूक्ष्म जीव परीक्षण के लिए नमूने पहले से उल्लेखनुसार एकत्रित करके प्रयोगशाला भेजने चाहिए। इसी प्रकार गिभ्र्त भू्रण के पेट से नमूने एकत्रित कर बफ में रखकर जांच के लिए भेजना चाहिए।
वििभ्ान्न प्रकार के पशु रोगों की अवस्था में निम्न नमूने एकत्रित किए जाने चाहिए-
जीवाणु के द्धारा होने वाले रोग
क्र सं.
पशु रोग
रोग का कारण
नमूने का प्रकार
1.
थनैला रोग (मैसटाइटिस)
विभ्िान्न प्रकार के जीवाणु या फंगस (विभ्िान्न प्रकार के कीटाणु)
10मि.ग्रा. दूध रोग ग्रस्त थन से मध्य धार का दूध लें
2
गलघोंटू (एच.एस.)
पाश्चुरैल्ला मल्टोसिडा जीवाणु
गले की सूजन से द्रव का स्मीयर/आलेप
रक्त का आलेप
यकृत से स्लाइड पर आलेप
तिल्ली यकृत लसीका गांठें
3
बु्रसेल्लोसिस
बु्रसेल्ला जीवाणु
सीरम (गर्भपात वाली गाय का)
वीर्य
योनि से फरेरी
4
लंगड़ा-बुखार (बी.क्यू.)
क्लास्ट्रीडियम जीवाणु
सूजन वाले स्थान कसे द्रव एवं द्रव का आलेपर
सीरम
मांस पेशी के टुकड़े
5
क्षय रोग (टी.बी.)
माइकोबैकटीरियम जीवाणु
संक्रमण रहित शीशी में कफ
क्षत स्थ्ल से छापित आलेप
फेफडे लसीका गाठों में रोग ग्रस्त स्थान से ऊतक के नमूने
रोग ग्रस्त पशु का दूध
6
जोहनीज बीमारी (टी.बी.)
माइकोबैकटीरियम जीवाणु
मृत पशु से आंतों की लसीका गाठें एवं बृहद आन्त्र के नमूने
7
जहरबाद (एण्टीरोटाॅक्िसमिया)
क्लास्ट्रीडियम जीवाणु
गुर्दे से उतक का नमूना
मूत्र का नमूना
छोटी आं से मल का नमूना
8
लेक्टोस्पाइरोसिस
लेप्टोस्पाइरा जीवाणु
रक्त/सीरम
यक्रत गुर्दे
मूत्र एवं दूध का नमूना
9
सालमोनेलोसिस
सालमोनैल्ला जीवाणु
म1त जानवर के हृदय से रक्त का नमूना
यकृत तिल्ली
आतों से मल का नमूना
10
एक्टीनोबैसीलोसिस (काष्ठ जिह्राा/जीभ)
एक्टीनोबैसीलस जीवाणु
प्रभावित मांस पेशी का टुकड़ा/उतक
मवाद से आलेप
11
कैम्पायलोबैकिटीरियोसिस
कैम्पायलोबैक्टर जीवाणु
नर पशु के जननागों की धोवन
मादा पशु की योनि से म्यूकस का सं्राव
12
स्टैªगल्स
स्ट्रेपटोकोकस जीवाणु
यकृत से प्रभावित उतक
मवाद का नमूना
13
फंफूद संक्रमण/दाद
फंगस/फंफूद
त्वचा की छीलन कांच की शीशी में
विषाणु के द्धारा होने वाले रोग
14
खुरपका-मुंहपका रोग
मुंह के छालों से द्रव
10 मिली. रक्त
हृदय यकृत लसीका
सीरम
15
रेवीज/हार्इड्रोफोबिया
विषाणु
मस्ितष्क 0 प्रतिशत भाग
मस्ितष्क 50 प्रतिशत भाग
16
पशु माता रोग
विषाणु
स्केब/खुरन्ट
17
पीपीआर
विषाणु
फुरेरी आंख, मुंह व मल द्वार से, बुखार के समय रक्त का नमूना
18
आर्इबीआर
विषाणु
नाक आंख व मुंह के स्राव सीरम, वीर्य योनि की धेावन
19
शकर ज्वर
विषाणु
सीरम
तिल्ली
20
बीलसना (ब्लूटंग)
विषाणु
बुखार के समय रक्त का नमूना
सीरम तिल्ी, लसीका गाठे
अन्य् के द्धारा होने वाले रोग
21
नार्इट्रेट जहरबाद
नार्इट्रेट
चारे का नमूना
रूमन से चारे का नमूना
रक्त का नमूना
22
कुबला जहरबाद (रिट्रकनीन)
स्िट्रकनीन जहर
आन्त्र के टुकड़े
मूत्र का नमूना
यकृत, हृदय एवं गुर्दे से उतक
23
राशनाइड जहरबाद
डाइड्रोसायनिक
चारे का नमूना
रूमन से चारे का नमूना
यकृत
24
कीटनाशक/जैव नाशक
कीटनाशक
वसी उतक
पेट/रूमन के अवयव
यकृत
रक्त का नमूना
डाॅ राजपाल दिवाकर सहायक प्राध्यापक पशुसूक्ष्म जीव विज्ञान पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, आचार्य नरेन्द्र देव कृfष् एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या उत्तर प्रदेश
डाॅ राजेश कुमार सहायक प्राध्यापक पशु प्रजनन एवं योनि विज्ञान पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, आचार्य नरेन्द्र देव कृfष् एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या उत्तर प्रदेश
डाॅ हुकुम चन्द्र सहायक प्राध्यापक पशु चिकित्सा एवं पशु पालन प्रसार विभाग पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, आचार्य नरेन्द्र देव कृfष् एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या उत्तर प्रदेश
डाॅ रमाकान्त सहायक प्राध्यापक पशु औषfध् विभाग पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, आचार्य नरेन्द्र देव कृfष् एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या उत्तर प्रदेश