उष्मीय तनाव से बचाव

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उष्मीय तनाव से बचाव
गर्मियों के मौसम में गायों के बेहतर स्वास्थ्य हेतु एवं उत्पादन स्तर को स्थिर रखने के लिए हमें उनकी विशेष देखभाल की आवश्यकता है। पशुओं के परिवेश के तापमान को कम करके उष्मागत तनाव को कम किया जा सकता है। प्राकृतिक व कृत्रिम छाया का प्रावधान सबसे किफायती तरीकों में से एक है, जो उष्मागत तनाव को कम करने के लिए सबसे पहला कदम होना चाहिए। छाया में रहने वाले जानवर लगभग 3 डिग्री सेल्सियस तक कम तापमान का सामना करते हैं। फव्वारे, पंखे और छांव उपलब्ध करवाने से डेयरी गायों में सामान्य शारीरिक तापमान सुनिश्चित किया जा सकता हैं। अच्छी तरह डिजाइन किए गए पशु शेड द्वारा गर्मी के प्रभाव को 30 से 50 % तक कम किया जा सकता है। शेड को पराली से अच्छी तरह ढक देना चाहिए ताकि वातावरण की उष्णता नीचे खड़े पशुओं तक कम से कम पहुंचे ।
हमें अपने पशुओं के लिए छायादार शेड का निर्माण करना चाहिए जिसकी छत की ऊंचाई 12 से 14 फीट तक हो। शेड की बनावट पूर्व पश्चिम स्थिति वाली होनी चाहिए ताकि मई जून के महीने में कम धूप अन्दर आए तथा दिसंबर के महीने में पशु को अधिक धूप मिल पाए । पशु को उष्मागत तनाव से बचाने हेतु अन्य तरीकों का इस्तेमाल भी आवश्यक है इनमें मिस्ट, पानी के टैंक तथा नहलाने आदि की व्यवस्था शामिल है। अगर गर्मियों में दुधारू पशु को 4 से 6 घंटे पंखे के नीचे रखा जाए तो दूध उत्पादन में 10-15 % वृद्धि देखने को मिल सकती है। पशुशाला में गर्म हवाओं से बचाव के लिए उपलब्ध सामान जैसे जूट या बोरी के पर्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है। दुधारू गायों में श्वसन दर 65 बार/ मिनट और सूखे में 75 बार/ मिनट से कम होनी चाहिए। यदि दुग्धावस्था की गाय में श्वसन दर 65 बार/ मिनट से अधिक हो तो यह उष्मागत तनाव को इंगित करती है और इसे सामान्य स्तर पर लाने की कोशिश करनी चाहिए। हमें यह निर्धारित करना होगा कि किस पशुधन को अतिरिक्त ठंडक की आवश्यकता है और कौन सी नस्ल के पशुधन उष्मागत तनाव से स्वयं निपट सकते हैं।
हमें पशु के शरीर में आयन तथा अम्ल व क्षार का संतुलन बनाए रखना चाहिए। यह संतुलन बनाए रखने के लिए हमें नियमित रूप से पशु के दैनिक आहार में प्रतिरोधक घोल अर्थात बफर का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा खनिज तत्व जैसे सोडियम 5 % तथा पोटेशियम 1.25 से 1.5 % भी आहार के साथ खिला सकते हैं। गर्मियों में हरे चारे की पैदावार कम हो जाती है, जिसकी कमी पूरा करने के लिए सूखा भूसा भिगोकर तथा उसमें दाना व क्षेत्र विशेष हेतु तैयार मिनरल मिश्रण मिलाकर पशु को देना चाहिए। इन दिनों दाने की मात्रा बढ़ाई जा सकती है परन्तु इसकी मात्रा सकल शुष्क पदार्थ ग्राह्यता के 55-60 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। अगर दाने की मात्रा इससे ज्यादा दी गई तो दूध में वसा की कमी, एसिडोसिस तथा पशुओं द्वारा कम चारा खाने आदि की समस्या उत्पन्न हो सकती है। वसायुक्त पदार्थ 6 % तक बढ़ाने से पशुओं में उष्मागत तनाव सहने की क्षमता में वृद्धि देखी गई है।
गर्मियों में पशुओं के लिए हर समय ताजा व स्वच्छ पानी उपलब्ध होना चाहिए क्योंकि वातावरण के तापमान बढ़ने से पशुओं की पानी की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। प्रायः ऐसा देखा गया है कि यदि तापमान 30 से 35 सेल्सियस तक बढ़ता है तो दुधारू पशुओं में पानी की आवश्यकता 50% से अधिक बढ़ जाती है। सभी शीतलन प्रणालियों का चयन, शरीर के तापमान और श्वसन दर को कम करता है और पशु उत्पादकता में वृद्धि लाता है लेकिन यह अर्थव्यवस्था, पानी और बिजली के स्रोतों की उपलब्धता पर भी निर्भर करता है।

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