ऑक्सीटोसिन का दुधारू पशुओं मेंउपयोग

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By-Dr.Savin Bhongra
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ऑक्सीटोसिन के उपयोग द्वारा दुधारू पशुओं में दुग्ध उत्पादन में वृद्धि

ग्रीक भाषा में ऑक्सीटोसिन का मतलब तेजी से जन्म है। ऑक्सीटोसिन हार्मोन न केवल बच्चे के जन्म और जेर गिराने में मदद करता है बल्कि यह एक अति आवश्यक दुग्ध उतेक्षेपक हार्मोन मुख्यतः अन्तः ग्रंथि और गर्भाशय से निकलता है। इसकी कारण ऑक्सीटोसिन हार्मोन को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आवश्यक ड्रग सूची में शामिल किया गया है। ऑक्सीटोसिन हार्मोन का पता सन 1911 में ओट और स्काट नामक दो वैज्ञानिकोण लगाया तथा। उनके परीक्षणों से यह तथ्य सामने आया कि ऑक्सीटोसिन दूध को पशुओं के अयन में दूध उतारने की अदभुत क्षमता रखता है। तब से अब तक ऑक्सीटोसिन हार्मोन का दुधारू पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता और प्रजनन क्षमता पर अध्ययन जारी है। पशुपालकों में ऑक्सीटोसिन के प्रयोग को लकर बहुत सारी भ्रातियां है। इनमें पशुओं के स्वास्थ्य में होने वाले दुष्प्रभाव एवं साथ ही मनुष्यों में ऑक्सीटोसिन के प्रयोग द्वारा प्राप्त दूध के उपभोग से होने वाले तथाकथित दुष्प्रभाव सम्मिलित हैं जिनका तुरंत निदान करने की आवश्यकता है। प्रस्तुत लेख में ऑक्सीटोसिनहार्मोन की दुग्ध उत्पेक्षक कार्यक्षमता, उसकी रक्त में मात्रा एवं पशु एवं मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है।
दुग्ध अयन में बनता है और दोहन तक अयन में ही रहता है। अयन में दूध को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। एक हिस्सा जो थन और बड़ी दुग्ध वाहिनियों में मिलता है उसे सिस्टर्न दूध कहते हैं और दूध का जो हिस्सा छोटी वाहिनियों और कोष्ठक में होता है उसे कोष्ठक दूध कहते हैं । सिस्टर्न दूध आसानी से अयन से निकल आता है पर कोष्ठक दूध या अवशिष्ट दूध का अयन से उत्सर्जन इसलिए आवश्यक होता है, क्योंकि अगर इस दूध को अयन से न निकाला जाए तो यह अयन में दवाब बनाकर दूध निर्माण की प्रकिया को बाधित करता है। इसके अतिरिक्त अयन में बचे हुए दूध में जीवाणुओं की वृद्धि को रोकने के लिए भी इस दूध का निकालना आवश्यक है। कुछ क्रियाएं जसे बच्चे द्वारा स्तनपान, अयन का धोना, अयन की मालिश करना या सहलाना अथवा दोहन पूर्व बछड़े को दिखाने पर ऑक्सीटोसिन हार्मोन का स्राव पीयुपिका ग्रंथि के पिछले भाग से होता है। स्तन के अंदर पार्श्व संवेदी तंत्रिकाएं होती है जो थन चूसने पर या दोहने पर इन आवेगों को मेरुज्जा से ले जाकर पश्च-पीयुपिका तक पहुँचती है। पीयुपिका में ऑक्सीटोसिन हार्मोन का निर्माण होता है, जहाँ से यह रक्त द्वारा थन की ग्रंथियों में पहुँचता है और कोष्ठक को संकुचित कर दूध निष्कासन करता है।
रक्त में ऑक्सीटोसिन की मात्रा
ऑक्सीटोसिन एक पेप्टाइड हार्मोन है जो मात्र आठ अमोनो अम्लों से बना है। ऑक्सीटोसिन हार्मोन का अर्धायु काल 2-3 मिनट का होता है। इस हार्मोन की मात्रा दुधारू पाशों के रक्त में बहुत कम होती है। दोहन उद्दीपन के कारण यह मात्रा बढ़ जाती है जो अयन से दूध के निष्कासन के लिए अवश्यक है। दूध दुहने पर या बच्चे को दूध पिलाने, मशीनों की आवाज, दूध दुहने के स्थान पर पशुओं को ले जाने पर ग्वालों को देखने से और दूध दुहने के समय दाना डालें पर भी इस हार्मोन का उत्पादन होता है। कटड़े/बछड़े द्वारा थन चूसने, हाथ से दूध दुहने और मशीन से दूध निकालने की आपस में तुलना करने से पाया गया है कि बछड़े के दारा थन चूसने से सबसे ज्यादा ऑक्सीटोसिन हार्मोन का संचार होता है। दुहने पर ऑक्सीटोसिन की रक्त में मात्रा 16.6 माइक्रो यूनिट प्रति मि.लि, तक पहुँचती है जो केवल 2 से 3 मिनट तक ही रहती है। इतने कम समय में ही यह हार्मोन दूध उत्सर्जन करने में कामयाब हो जाता है और फिर रक्त में एंजाइम ऑक्सीटोसिन द्वारा नष्ट का दिया जाता है।
दुग्ध संघटन पर प्रभाव
ऑक्सीटोसिन हार्मोन की रक्त में मात्रा दूध दुहने के दौरान बहुत ही कम होती है। यदि पशु के दूध निकालने के लिए अधिक ऑक्सीटोसिन की मात्रा लगाई जाए तो दूध तो जल्दी उतर आता है लें इससे दूध के संघटन पर प्रभाव पड़ती अहि। दूध में वसा की मात्रा बढ़ जाती है। जबकि दूध शर्करा (लेक्तोज) की मात्र कम हो जाती है। इसके अतिरिक्त सोडियम एवं क्लोराइड लवण बढ़ जाते हैं, जबकि पोटेशियम आयरन का इंजेक्शन लगाने पर कोष्ठकों की कोशिकाओं की पारगमन क्षमता (पर्मिएवीलटी) बढ़ जाती है। जिसेक फ्स्वरूप दूध के कुछ तत्व जैसे पोटेशियम एवं लैक्टोज प्लाज्मा में आ जाते हैं जबकि खून में पाए जाएं वाले पदार्थ सोडियम, क्लोराइड एवं बायकोर्बोनेट दूध में आ जाते हैं। इस तरह से दूध और खून के तत्वों में अदला-बदली हो जाती है जिससे दूध के संघटन में परिवर्तन आ जाता है।
पशु स्वास्थ्य पर प्रभाव
ऑक्सीटोसिन की कम मात्र (2 आई.यु.) यह इससे कम भी पूरा दूध उतार देती है और पशु के स्वास्थ्य पर भी इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता परन्तु बहुत अधिक मात्र (50 या 100 आई.यु.) या इससे अधिक मात्रा पशुओं के मदकाल एवं प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है। इसे देने से दूध के संघटन में कुछ परिवर्तन पाए गये हैं। इस हार्मोन का प्रयोग बहुत अधिक मात्रा में गाभिन पशुओं (जिन्हें बच्चे के जन्म में कोई कठिनाई हो) से बच्चा लेने में भी किया जाता है क्योंकि यह हार्मोन प्रसव के समय मांसपेशियों को संकुचित करता है जिससे गर्भाशय भी संकुचित हो जाता है। इसलिए इस हार्मोन को सिमित मात्रा में पशु चिकित्सकों की देखरेख में ही लगाया जाना चाहिए।
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
पशुओं में ऑक्सीटोसिन के टीके के उपयोग के द्वारा उत्पादित दूध पीने से मानव शरीर पर किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव पड़ने के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हो। ऑक्सीटोसिन अर्धायु काल अत्यंत न्यून (2-३ मिनट ) होने के कारण इस हार्मोन की मात्रा रक्त में बहुत शीघ्रता से कम होती है और कुछ ही मिनटों के अंतराल में नगण्य रह जाती है जिसका मानव स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव संभव नहीं है। पशुपालकों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली मात्रा (1-2 आई.यु.) एक बहुत कम मात्रा है और इस मात्रा में पशुओं में ऑक्सीटोसिन की टीका लगाने से दूध में इसकी किसी सार्थक मात्रा का अवशेष रह जाना संभव नहीं। है। ऑक्सीटोसिन एक प्रोटीन हार्मोन होने के कारण, यदि ऐसा मान भी लिया जाए कि ऑक्सीटोसिन एक प्रोटीन की कुछ मात्रा दूध में अवशेष के रूप में आ जाती है, मनुष्य के पाचन तंत्र में जैसे ही कोई प्रोटीन पहुँचता है। पाचक अम्लों द्वारा उसे तुरंत अमोनो अम्लों में विघटित कर दिया जाता है फलस्वरूप उसका कोई प्रभाव शेष नहीं रह जाता । ऐसा विदित होता है ऑक्सीटोसिन के सम्बन्ध में जनता में बहुत सारी भ्रातियां हैं जिसका कोई प्रमाणिक तथ्य नहीं है फिर भी जो अवयव पशुपालिन द्वारा ऑक्सीटोसिन के रूप में प्रयोग किया जाता है उसका विशलेषण आवश्यक है। जिससे यह पता लग सके उसमें ऑक्सीटोसिन के अलावा और कितने रासायनिक अवयव उपलब्ध है और उनकी मात्रा कितनी है। वैज्ञानिकों/विशेषज्ञों द्वारा संतुत एंव समुचित मात्रा में ऑक्सीटोसिन का पशुओं की जीवन रक्षा के लिए उपयोग करना तर्कसंगत है परन्तु इसका निरंतर दूध उतारने के लिए प्रयोग करना तर्कसंगत नहीं हो सकता। इस दिशा में समुचित दिशा निर्देश अनिवार्य है।
दूध उत्पेक्षण में बाधा
कुछ प्रकार के कारक जैसे- तेज आवाज, पशु के दुहने के स्थान में परिवर्तन, नए ग्वाले या दूधिये द्वारा दूध निकालना, अत्यधिक पेशी क्रिया, पशु के शरीर में कहीं दर्द जैसे विपरीत परिस्थतियाँ ऑक्सीटोसिन हार्मोन का स्रवन कम या खत्म कर देती है जिसमें दुग्ध निष्कासन में बाधा हो जाती है।
ऑक्सीटोसिन एक दूध उत्पेक्षण हार्मोन है जो अयन से पूरी तरह दूध निकालने इमं सक्षम है और अयन को पूरी तरह खाली करके नए दूध निर्माण के लिए स्थान उपलब्ध करवाता है। ऑक्सीटोसिन जैसा प्रभाव देने वाल टीका सरकार द्वारा प्रतिबंधित होने के उपरांत भी अधिकांश पशुपालकों को आसान विधि के कारण किसान इस हार्मोन का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं। अगर हमें सामान्य एवं स्वस्छ दूध की प्राप्ति चाहिए जो पशु को बिना तनावग्रस्त करके प्राप्त किया जा सके तो हमें निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
ऑक्सीटोसिन के टीका का प्रयोग आजकल अधिक किया जा रहा है लेकिन यह अनुचित है। इस टीके का प्रयोग केवल उन पशुओं में किया जाना चाहिए जिनमें :दुग्ध दोहन” की प्रक्रिया समुचित न हों। यह कठिनाई अधिकतर भैंसों में होती है। इन टीकों के अधिक प्रयोग से अयन की कोशिकाओं की संरचना भी प्रभावित हो सकती है। पशु को दुहते समय उसे प्यार से सहलाते हुए तनाव रहित परिस्थतियों में दुहना चाहिए ताकि पशु के अंदर से ही ऑक्सीटोसिन हार्मोन का सामान्य प्राक्रतिक संचार हो सके तथा पशु से अधिक से अधिक दूध प्राप्त किया जा सके। पशु के आसपास का वातावरण शांत, स्वस्छ तथा अनुकूल होना चाहिए। ऑक्सीटोसिन हार्मोन का प्रयोग केवल पशु-चिकित्सक की सलाह पर ही उपयुक्त मात्रा )1 आई.यु.) में करना चाहिए।
ऑक्सीटोसिन हार्मोन के बार-बार लगने पर पशु की प्रजनन एवं दुग्ध उत्पादन क्षमता, मुख्यतया भैंसों में क्या प्रभाव पड़ता है, इस पर अभी दीर्धकालीन शोध कार्य की आवश्यकता है।
क्या लंबी अवधि तक ऑक्सीटोसिन हार्मोन लगाने पर दुग्ध संघटन में आया परिवर्तन दूध की पोष्टिकता या पीने वाले मनुष्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं डाल रहा यह भी जानना जरुरी है।

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