“किसानों को आवारा पशुओँ से काफी हद तक निजात दिलायेगी लिंगीकृत वीर्य तकनीक”

0
282

 

किसानों को आवारा पशुओँ से काफी हद तक निजात दिलायेगी लिंगीकृत वीर्य तकनीक”

– डॉ योगेश आर्य, पशुचिकित्सा विशेषज्ञ

राज्य में मानसून के प्रवेश करने के साथ ही खरीफ की फसलों की बुवाई का कार्य शुरू हो चुका हैं। राजस्थान के ज्यादातर भू भाग में पानी के कमी के कारण सभी क्षेत्रों में रबी की फसल पैदा नही की जाती परंतु खरीफ की फसलें पूरे राजस्थान में ली जाती हैं। किसान बुवाई तो कर रहा है पर उसके माथे पर चिंता की लकीरें अभी से उभर आई हैं। मानसून की अनिश्चितता, बीज-खाद के महंगे दाम, बिचोलियों की बेईमानी से इतर एक नई समस्या है जिससे किसान सर्वाधिक परेशान है वो है आवारा पशुओं के झुण्ड। जो अभी से खेतों का चक्कर लगाना शुरू कर चुके हैं। किसानों के पास महंगे बीज-खाद की खरीद के बाद इतनी रकम नही हैं कि वो पूरी जमीन की तारबंदी कर सके और भी ये महंगा भी तो पड़ता हैं। ये आवारा पशु कृषि को तो उजाड़ ही रहे हैं साथ मे यातायात व्यवस्था को भी बिगाड़ देते हैं। आपको बीच सड़क में आवारा पशुओं के झुण्ड बैठें हुए मिल जायेंगे। हम सबको पता है कि आये दिन आवारा पशुओं के कारण कितनी दुर्घटनाये हो रही हैं। इस समस्या की जड़ पर गौर करे तो ये सब इसलिए हैं कि आवारा पशु अर्थात गायों को धार्मिक मान्यताओं के कारण आगे बेचने में दिक्कतें आती हैं। हमारी धार्मिक मान्यताओं के कारण आवारा पशुओं के लिए ‘स्लॉटर पॉलिसी’ नही बन सकती हैं, इसलिए कृषि और पशुपालन विशेषज्ञों की ये जिम्मेदारी बनती हैं कि वो कुछ उपाय करे।
पशुपालन विशेषज्ञ जो उपाय सुझा सकते हैं उसमें पहला और सबसे अहम हैं “लिंगीकृत वीर्य की उपलब्धता”।
क्या हैं लिंगीकृत वीर्य:- ये ज्यादातर मादा पशु पैदा करने के लिए काम मे ली जाने वाली तकनीक हैं। इसमे वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग कर नर के वीर्य से Y धारित शुक्राणुओं का स्थिरीकरण करके, केवल X धारित शुक्राणुओं को अलग कर लिया जाता हैं। मादा की अंडवाहिनी के वातावरण में भी परिवर्तन किया जाता है। कृत्रिम गर्भाधान करने पर केवल मादा पशु अर्थात बछड़िया ही पैदा होती हैं। इसमे 80-90 फीसदी तक सटीक परिणाम प्राप्त होते हैं।परन्तु गर्भधारण दर सामान्य कृत्रिम गर्भाधान दर से 10 फीसदी तक कम होती हैं। लिंगीकृत वीर्य अभी 1500-2000 ₹ प्रति सीमन-स्ट्रॉ की दर से उपलब्ध हैं।
यहाँ कुछ सुझाव हैं जो लागू किये जायें तो आवारा पशुओं की समस्या ज्यादा दिन नही रहेगी-

READ MORE :  Vertical Farming and Indoor Agriculture : A Transformative Approach Towards Revolutionizing Livestock Production

1) लिंगीकृत वीर्य की उपलब्धता- पशुचिकित्सा विशेषज्ञ काफी लंबे समय से इस दिशा में प्रयास कर रहे है और उनका मानना हैं कि इस तकनीक से काफी हद तक आवारा पशुओं की समस्या हल हो सकती हैं। लिंगीकृत वीर्य तकनीक के पेटेंट एबीएस ग्लोबल और सेक्सिंग टेक्नोलॉजी इत्यादि ऑर्गेनाइजेशन के पास हैं। पहले हम लिंगीकृत वीर्य के लिए विदेशो पर ही आश्रित थे, और आयात करने के कारण ये महंगा पड़ता था, परंतु अब भारत मे भी उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड राज्यों के स्टेट लाइवस्टॉक बोर्ड ने उत्पादन शुरू कर दिया हैं, जबकि हरियाणा में जल्द ही शुरू होने की उम्मीद हैं। इसकी लॉयल्टी एबीएस ग्लोबल और सेक्सिंग टेक्नोलॉजी इत्यादि को जाती हैं। दोनों ऑर्गेनाइजेशन की अलग अलग तकनीक हैं। अभी एबीएस ग्लोबल की पुणे लैब से तथा उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के स्टेट लाइवस्टॉक बोर्ड से लिंगीकृत वीर्य प्राप्त किया जा सकता हैं। वैसे तो अनेकों तकनीक है पर अनेक विधाओं में से ‘फ्लो-साइटोमैट्री’, परकॉल डेंसिटी ग्रेडिएंट मेथड, फ्री फ्लो एलक्ट्रोफोरेसिस, स्विम उप एंड स्विम डाउन प्रोसीजर इत्यादि काफी प्रचलित हैं। भारत मे लिंगीकृत वीर्य पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का भी एक प्रोजेक्ट अभी राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान – करनाल में चल रहा हैं जिसकी समय अवधि 2017 की बजाय 2020 तक बढ़ा दी गई हैं। इस प्रकार अभी देश मे लिंगीकृत वीर्य का उत्पादन तो होने लगा हैं पर और सस्ता होने में अभी वक़्त लगेगा। अभी से प्रयास शुरू होने तब भी आवारा पशुओं की समस्या पूरी तरह हटने में वक़्त लगेगा। अगर सरकार लिंगीकृत वीर्य पर अनुदान देकर इसकी दर 100 ₹ प्रति सीमन-स्ट्रॉ तक भी कर दे तो भी ये किसानों को अधिक भारी नही लगेगा और किसान इस दिशा में सोचेंगे। अगर सरकार अभी से प्रचार प्रसार और प्रयास शुरू करे तो लिंगीकृत वीर्य का प्रयोग करने से आगामी 5-7 वर्षो में ये समस्या काफी हद तक दूर हो सकती हैं। इसके पीछे तर्क ये हैं कि आवारा पशुओँ की उम्र 5-7 वर्ष से अधिक नही जा पाती हैं तब तक जो नया स्टॉक आएगा और वो मादा पशुओँ का होगा। कोई किसान डेयरी चला रहा हैं तो उसको उसके पशु की अगली संतति मादा ही मिलेगी जिससे उसको लाभ होगा। उत्कृष्ट नस्ल वाले पशुओँ की संख्या में बढ़ोतरी होने से उत्पादन बढ़ेगा।

READ MORE :  मुर्गियों के पोषण में अम्लकारको (एसिडफायर्स) का प्रभाव और महत्व

2) गौशालाओ और नंदी शालाओं की स्थापना- अभी जो आवारा पशुओं की समस्या हैं उसके तत्काल निदान के लिए गौशालाओ और नंदी शालाओ की स्थापना कर उनका मैनेजमेंट सही हाथों में दिया जाना चाहिए। वैज्ञानिक तकनीक का उपयोग करके गौपालन किया जाना चाहिए। अस्थायी बाँझपन से ग्रसित मादा पशुओँ का पशु-चिकित्सक से उपचार करवा कर उनको उत्पादन योग्य बनाया जाए। लिंगीकृत वीर्य का प्रयोग किया जाए। जिससे उत्कृष्ट नस्ल की प्रजनन योग्य पशु संख्या में वृद्धि होगी और उत्पादन बढ़ेगा। व्यावसायिक प्रबंधन व्यवस्था अपनाकर गौ-उत्पादों की बिक्री की जा सकती हैं। पंचगव्य चिकित्सा और गौ-उत्पादों के आयुर्वेदिक महत्व का उचित प्रचार प्रसार कर इनका बाजार तैयार किया जा सकता हैं। गुणवत्तापूर्ण होने पर विदेशों में भी निर्यात किये जा सकते।

3) नाकारा पशुओँ का बधियाकरण- पशुपालन विभाग के सहयोग से एक अभियान चलाकर सभी नाकारा नर पशुओँ का बधियाकरण कर दिया जाना चाहिए क्योंकि ज्यादातर आवारा पशुओं में गैर-वर्गीकृत नस्ल के पशु हैं जो कि अधिक उत्पादन नही देते और पशुपालक उनको पालने में दिलचस्पी भी नही दिखाते। उनकी बजाय देशी श्रेष्ठ नस्ल के पशुओं को अधिक पाला जाता हैं। तो कुल मिलाकर उत्कृष्ट नस्ल के पशु पैदा होंगे और पशु उत्पादों की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों में बढ़ोतरी होगी। उत्कृष्ट नस्ल के नर पशुओँ के स्टॉक अलग अलग क्षेत्रों में इक्कट्ठे कर पाले जाये ताकि सीमन की उपलब्धता बनी रहे और अन्तः प्रजनन जैसी समस्याएं न उत्पन्न हो।

4) पशु उत्पादों का वाजिब मोल- राज्य में सिमटती जा रही कृषि से पशुपालन महंगा होता जा रहा हैं। ऐसे में अगर किसानों-पशुपालको को उनके उत्पादों का वाजिब दाम नही मिलेगा तो वो पशुओँ को आवारा छोड़ देंगे। साथ ही सरकार को पशुपालन विभाग के सहयोग से वैज्ञानिक तकनीक से पशुपालन करने की विधियों का प्रचार प्रसार करना चाहिए ताकि उत्पादन में आशातीत वृद्धि हो सके और पशुपालन बोझ लगने की बजाय एक लाभप्रद व्यवसाय में रूप में दिखाई दे। व्यावसायिक प्रबंधन विशेषज्ञ सेवाओं का लाभ भी पशुपालको को दिलवा कर डेयरी को उधोग के रूप ।के विकसित करने के गुर सिखाए जा सकते हैं।

READ MORE :  पशुओं में क्षय रोग (टी.बी) लक्षण एवं रोकथाम

अभी जो एक बड़ा सवाल आपके जेहन में आ रहा होगा वो ये होगा कि ‘आवारा पशुओं में ज्यादातर तो मादा पशु ही हैं’। सही हैं अभी ऐसा ही हैं क्योंकि ये मादा पशु ज्यादातर गैर-वर्गीकृत नस्ल के वो पशु हैं जिनका उत्पादन नगण्य हैं और इनका पालन महंगा पड़ रहा हैं। पर जैसा कि मैंने बताया कि आवारा पशुओं की उम्र 5-7 वर्षों से ज्यादा नही होती। वैसे तत्काल राहत पहुँचाने के लिए सरकार इनमें से स्वस्थ और हृष्ट पुष्ट आवारा पशुओं को जनजातीय क्षेत्रों में पहुँचा कर मुफ्त में वितरित कर सकती हैं जिससे उनको कृषि कार्य और बोझा ढ़ोने के लिए पशुश्रम प्राप्त हो जाएगा और इन आवारा पशुओं की थोड़ी कद्र हो जाएगी। साथ ही जो अस्थाई बाँझपन का शिकार गायें हैं उनको निकटतम गौशालाओं में शिफ्ट करके पशुचिकित्सा द्वारा ज्यादातर से उत्पादन प्राप्त किया जा सकता हैं। जब लिंगीकृत वीर्य काम मे आने लगेगा तो ये वर्तमान गैर-वर्गीकृत पशुओँ का स्टॉक जल्द ही समाप्त हो जाएगा और उनकी जगह उत्कृष्ट और श्रेष्ठ नस्ल के मादा पशु उपलब्ध होंगे जिनका उत्पादन कही ज्यादा होगा। फिर जो 10 फीसदी नर पशु पैदा होंगे उनमें से सर्वश्रेष्ठ तो सीमेन की पूर्ति के लिए और शेष बोझा ढ़ोने या कृषि कार्यों के लिए उपलब्ध हो जायेंगे। फिर भी पशुपालक अस्थाई बाँझपन से ग्रसित पशुओँ को आवारा छोड़ता हैं तो उनके लिए छोटी गौशालाये काफी रहेंगी जिनमे पशुचिकित्सा उपचार से इनमे से ज्यादातर उत्पादन देने योग्य हो जाएंगी और गौशालाओ के आय का स्रोत बनेंगी। हालांकि यहां ये जानलेना भी जरुरी हैं पुरी प्रक्रिया महंगी होने के कारण कृत्रिम गर्भाधान एक्सपर्ट तकनीकी कर्मचारियों से ही करवाया जाना होगा जो कि पूरी प्रक्रिया जैसे हैंडलिंग और थाविंग अच्छे से करें। पहले स्वस्थ पशु की इस्ट्रम में होने की जाँच की जाकर ही लिंगीकृत वीर्य का प्रयोग किया जाना चाहिए। स्पष्ठ हैं कि ये सब होने पर काफी हद तक आवारा पशुओं से निजात मिलेगी साथ ही पशु उत्पादों की गुणवत्ता व मात्रा बढ़ने से निस्संदेह ही पशुपालको को अधिक लाभ प्राप्त होगा। लाभ का सौदा होने के कारण डेयरी व्यवसाय तरक्की करेगा जिससे युवाओं को भी रोजगार नए अवसर मिलेंगे।

 

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON