किसी भी जलवायु में आप कर सकतें हैं इन मछलियों का पालन, होगा भरपूर मुनाफा.
by-DR RAJESH KUMAR SINGH ,JAMSHEDPUR,JHARKHAND, INDIA, 9431309542,rajeshsinghvet@gmail.com
पिछले कई दिनों से बहुत से किसान मित्र मछली पालन पर स्पेशल रिपोर्ट की मांग रहे थे। इसी के मद्देनज़र आज pashudhanpraharee.com आपके लिए मछली पालन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी लेकर आया है। यदि आप गेहूं, गन्ना, धान जैसे फसल की पैदावकर करके परेशान हो गए हैं और कुछ अलग करना चाहते हैं तो इस खबर को जरूर पढ़े।
मछली पालन से आपको गेहूं, गन्ना, धान के उत्पादन के मुकाबले दोगुना मुनाफा होगा। क्योंकि साल में 2 बार एक तालाब से मछलियों का उत्पादन किया जाता है। आइए जानते हैं मछली पालन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी-
भारत में मछलियों की क्यों है बाजार में मांग
भारत के कई गांवो और शहरों में मछली पालन उद्योग लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत सरकार भी इस पर बहुत ज्यादा जोर दे रही है। ट्रेनिंग से लेकर आर्थिक मदद तक दे रही है। अच्छी बात यह है कि भारत की जलवायु की खासियत की वजह से मछली पालन कोई भी व्यक्ति किसी भी जगह पर कर सकता है। यही वजह है कि आज पूरे विश्व में भारत का मछलियों के उत्पादन में दूसरा स्थान है।
मछलियों की मांग 3 वजह से तेजी से बढ़ रही है।
1. पहला इसमें प्रॉटीन की मात्रा बहुत ज्यादा है और सेहत को लेकर फीकरमंद लोग इसको ज्यादा खाने लगे हैं।
2. दूसरा कारण है दुनियाभर में तेजी से बढ़ती जनसंख्या। जनसंख्या तो तेजी से बढ़ रही है लेकिन खेत में फसलों का उत्पादन उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा। नॉन वेज खाने वाले लोगों के बीच (खासतौर पर यूरोप-अमेरिका में) मछलियों की मांग ज्यादा बढ़ी है।
3. तीसरा कारण है – मछलियों से बनने वाले तरह तरकह के उत्पादन। इससे कई तरह के उत्पादन तैयार किए जाते हैं जैसे- मछली की तेल, मछली का अचार आदि। मछली का तेल शरीर की कई बीमारियों को दूर करने में सहायक है। भारत के हर राज्य में मछली का व्यवसाय आसानी से किया जा सकता है।
लागत, उत्पादन और कमाई
मछली के उत्पादन में प्रति एकड़ 80 हजार से 1 लाख रुपये की लागत आती है, जिसमें तालाब के किराए से लेकर मछली का दाना भी शामिल हैं। यदि आपके पास खुद का तालाब है तो लागत और भी कम आएगी। वैरायटी के हिसाब से मछलियों के बच्चे (बीज) अलग अलग कीमत में मिलते हैं।
सिल्वर मछली की मार्केट में कीमत 200 रुपये प्रति किलो, कामन 250 रूपए प्रति किलो है। जबकि रोहू, भाकुर और नैना मछलियों की कीमत बाजार में 150 रुपये प्रति किलो हैं। औसतन मछली की कीमत 150 रुपये प्रति किलो लेते हैं तो भी प्रति एकड़ की दर से हमें 2,25,000 की कमाई होती है, जो लागत से 2 से 3 गुना अधिक है।
तालाबों की तैयार कैसे करें
मछली का बीज डालने से पहले तालाब के खर-पतवार को साफ कर लें
तालाब में खाउ मछलियों को खत्म करने के लिए तालाब को सूखा दें।
एकड़ तालाब में 1000 किलो महुआ की खली डाल दें, जिससे की खाऊ मछली कुछ घंटों के लिए बेहोश होकर तालाब की सतह पर आ जाएं।
200 किलोग्राम प्रति एकड़ ब्लीचिंग पाउडर के उपयोग से भी खाऊ मछलियों को मारा जा सकता है। इसका असर 15 से 20 दिन तक तालाब में रहता है।
तालाब में मछली का बीज डालना
तालाब में 6 तरह की मछलियों के बीज डालने से उत्पादन अच्छा होता है। इसका उचित रूप से चयन करना होता है। एक एकड़ के साइज के तालाब में 4 हजार मछलियों के बीज डाले जाते हैं। रोहू के 1200 बीज, कतला के 800 बीज, मृगल के 800 बीज, सिल्वर के 400 बीज, ग्रास के 300 बीज और कॉमन के 500 बीज के अनुपात से डालेंगे तो मछलियों का उत्पादन अच्छा होता है।
खाद का प्रयोग
मछली के सही उत्पादन के लिए उचित रूप से खाद का सही समय पर खाद डालने चाहिए।-
1. मछली के बीज डालने के 20 दिन पहले प्रति एकड़ 800 किलो गोबर, डीपीए 8 किलो और चूना 200 किलो तालाब में मिला देना चाहिए।
2. मछली के बीज डालने के बाद प्रति महीने 400 किलो गोबर, 8 किलो डीपीए और 50 किलो चूना मिलना चाहिए।
मछली को कब-कब दे भोजन
मछली का सही उत्पादन हो इसके लिए सही समय पर भोजन देना भी जरूरी होता है। प्रमुख रूप से मछलियों को चावल की कंकी और सरसो की कली बराबर अनुपात में मिलाकर दी जाती है।-
1. मछली बीज बाद डालने के लगातर तीन महीने तक 2 से 3 किलो प्रति एकड़ देना चाहिए
2. 4 से 6 महीने तक लगातार 3 से 5 किलो प्रति एकड़ प्रतिएकड़ देना चाहिए।
3. 7 से 9 महीने तक लगातार 5 से 8 किलो प्रति एकड़ भोजन देना चाहिए।
4. 10 से 12 महीने तक लगातार 8 से 10 किलो प्रति एकड़ भोजन देना चाहिए।
कहां मिलेगी मछली के बीज
मछली पालन के लिए सबसे महत्वपूर्ण बीज होती है। यह आपको आपके जिले के मत्स्य पालक विकास अभिकरण से आसानी से मिल सकता है। यह केन्द्र सभी जिलों में मौजूद है। इसके अलावा आप यहां से मछलियों के पालन से जुड़ी जानकारी भी आसानी से ले सकते हैं।
मछली पालन के लिए सरकार दे रही है मदद
मछली पालन को बढावा देने के लिए केन्द्र सरकार मे नील क्रांति योजना शुरूआत की है, जिसके तहत 75% सब्सिडी सरकार के देती है। इस योजना के अंतर्गत 50 % केन्द्र सरकार और 25 % राज्य सरकार सहायता देगी। बचे हुए 25 % का खुद इंतजाम करना होता है।