कृत्रिम ऊष्मायित्र से किसान करें दुगुनी आय

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अनूप कुमार सिंह1*, जे बी सिंह2, अजय कुमार सिंह3, आर के सिंह3, सी के त्रिपाठी3

1- पी एच डी शोध विद्वान (पशुधन उत्पादन प्रबन्धन), राष्ट्रीय डेयरी अनुसन्धान संस्थान, करनाल
2-वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्र, सुलतानपुर
3-वस्तु विषय विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केन्द्र, सुलतानपुर

• Corresponding Author- anupvets@gmail.com

भारत विश्व अंडा उत्पादन मे तीसरे स्थान पर है। हमारे देश मे कूल अंडा उत्पादन 103.3 अरब संख्या है और पिछले वर्ष की तुलना मे अंडे के उत्पादन में 8.5 प्रतिशत की वृद्धि हुयी है (बुनियादी पशुपालन आँकड़ा- 2018-19)। मानव स्वास्थ्य मे अग्रणी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के संस्तुति अनुसार प्रति ब्यक्ति को प्रतिवर्ष 182 अंडे उपलब्ध होने चाहिए परन्तु पशुपालन एवं डेयरी विभाग-2019, के अनुसार प्रति ब्यक्ति को प्रतिवर्ष 79 अंडे ही उपलब्ध है इसके मुख्यतः कारण बुनियादी सुविधाओं (जैसे- शीतगृह) का अभाव, कुकुट दाने के मूल्य मे उतार-चड़ाव, लघु किसानों की अर्थव्यवस्था का स्तर गिरना एवं नये कुकुट रोगों का उभरना आदि (राष्ट्रीय कार्य योजना-कुकुट एवं अंडा 2017)। अतः कुकुट अंडे की इस उच्च मांग को पूरा करने के लिए, किसानी स्तर पर कृत्रिम अंडा ऊष्मायित्र जैसी तकनीक से किसान भाई घर बैठे ही चूजा पालन और विक्रय कर सकेंगे और अपनी आमदनी बढ़ा सकेंगे।

क्या है कृत्रिम ऊष्मायित्र?

कृत्रिम ऊष्मायित्र एक मशीन है जिसमे अंडो को नियंत्रित जलवायु मे रखा जाता है जिससे ऊष्मायन अवधि पूरी होने पर उसमे से चूज़े निकल सके। और इस प्रक्रिया को कृत्रिम ऊष्मायन कहते है।

कृत्रिम ऊष्मायित्र का लाभ:

1 एकसाथ समान आयु के कई चूजे प्राप्त किए जा सकते है।
2 अंडो को निर्धारित समय पर स्फुटन करा सकते है।
3 कृत्रिम ऊष्मायित्र के इस्तेमाल से अंडे सेने वाली मुर्गियों को दाना खिलाने के लागत में कमी आती है।
4 अंडा सेते समय अंडो पर चोच मारने से अंडे फूटने का खतरा नहीं होता।
5 दूसरे पक्षीयों के अंडो से भी चूजा प्राप्त किया जा सकता है। जैसे- बटेर, बतख आदि।
6 जो पक्षी अपना अंडा कम सेते है जैसे-कड़कनाथ उनके अंडो से चूजा प्राप्त कर सकते है।

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कृत्रिम ऊष्मायन के लिए आवश्यक कारक:

1- अंडो का चयन 2- तापमान 3- अद्रता 4- वायु आवागमन 5- अंडो की स्थिति 6- अंडो को पलटना 7- मशीन की सफाई

1- अंडो का चयन:

अंडे साफ, बिना किसी दरार के, मोटे परत वाले, और अंडे के अन्दर बिना दाग (खून या माँस) के होने चाहिये।

2- तापमान:

प्राकृतिक रूप से मुर्गी जब अंडो को सेती है तो अपने शरीर से ऊर्जा देती है उसी ऊर्जा को हीटर या बल्ब से कृत्रिम ऊष्मायित्र मे लगाकर तापमान दिया जाता है। कुकुट की ज़्यादातर प्रजाति के लिए प्रथम 18 दिन, तापमान 37.2 से 37.7 °C रखते है और अन्तिम 3 दिन थोड़ा कम 36.7 से 37.2 °C रखते है। मशीन में तापमान ज्यादा न हो इसके लिये मशीन में थेरमोस्टैट का इस्तेमाल होता है।

3- अद्रता:

ऊष्मायित्र मे अद्रता (आपेक्षिक अद्रता) प्रथम 18 दिन 60 प्रतिशत होनी चाहिये और अन्तिम तीन दिन 70 प्रतिशत। आद्रता कम होने से स्फुटन के समय चूजे केवल अंडे के चौड़े भाग को चोंच मार पाते है और बाहर निकल नहीं पाते। अंडे की ट्रे के नीचे, बालू-पानी के एक ट्रे से नमी प्रदान की जाती है। आद्रता ज्यादा होने से बड़े और गीले चूजे पैदा होते है और चूजों की नाभि कम स्वस्थ्य होती है। ऊष्मायित्र मे आद्रता मापक हयग्रोमीटर लगा होता है।

4- वायु आवागमन:

ऊष्मायित्र मे शुद्ध वायु अंडो मे बन रहे भ्रूण के लिए आवश्यक है। भ्रूण श्वसन मे आक्सीजन लेते है और कार्बन डाई आक्साइड छोड़ते है। अंडे का स्फुटन तब अच्छा होता है जब ऊष्मायित्र मे 21 प्रतिशत आक्सीजन हो और कार्बन डाई आक्साइड 0.3-0.5 प्रतिशत हो। इसके लिए मशीन के ऊपरी या बाहरी दीवार पर 5 से 6 छेद होते है जिसे आवश्यकतानुसार खोला या बन्द किया जा सकता है।

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5- अंडो की स्थिति:

18 दिन तक अंडो के चौड़े भाग को ऊपर की तरफ रखते है। क्योंकि भ्रूण के सिर का विकाश नीचे (पतला भाग) से उपर (चौड़े भाग) की तरफ होता है। फिर अन्तिम 3 दिन के लिये अंडों को क्षैतिज स्थिति मे रख देते है।

6- अंडो को पलटना:

प्राकृतिक दशा मे मुर्गी अपने अंडों को घूमती है अतः प्रथम 18 दिन तक अंडो को 6 से 8 बार प्रतिदिन पलटते है जिससे भ्रूण की अतिरिक्त झिल्ली, भ्रूण से नहीं चिपके और भ्रूण की मृत्यु न हो और अन्तिम 3 दिन नहीं घुमाते है। अंडो को हांथ से या घूर्णनशील यंत्र से क्षैतिज से 45 अंश पर धीरे-धीरे घूमाँते है। यदि घूर्णनशील यंत्र नहीं लगा है तो हल्के हाथों से कम से कम 3 बार अंडों को जरूर फेरे।

7- मशीन की सफाई:

ऊष्मायन और स्फुटन यदि एक ही मशीन मे हो तो यह जरूरी है की प्रत्येक बार अंडे रखने से पहले मशीन को हानिकारक किटाणुओं से मुक्त (विसंक्रमित) कर ले। इसके लिये बाजार मे उपलब्ध फोरमलिन का 40 % विलयन और लाल दवा के क्रिस्टल (पोटेसियम परमैगनेट) खरीद लें। एक कटोरी मे लाल दवा (17.5 ग्राम) लेकर उसे मशीन के बीच मे रख लें और फोरमलिन (35 मिलीलिटर) को मिलाकर जल्दी से उसे मशीन के ढक्कन से ढ़क दे। उत्पन्न धुआँ 2.83 मीटर3 आयतन के लिये पर्याप्त है। ऊष्मायन के 7वें दिन अनिषेचित अंडों को हटाने और 18वें दिन मरे भ्रूण को फेकने के लिये केंडलिंग करते है। अनिषेचित अंडे पारदर्शी दिखते है और मरे भ्रूण आंशिक गहरे रंग के दिखते है।

कृत्रिम ऊष्मायित्र मे अंडे बैठाने की विधि:

1- सर्वप्रथम मशीन को चालू कर दे (12 से 24 घंटा अंडा बैठाने के पहले)
2- बालू-पानी की ट्रे बनाने के लिये ट्रे में सर्वप्रथम सूती कपड़ा बिछा लें फिर 1 से 1.5 इंच साफ बालू डालकर समतल कर दें। अब इसमे 250 मिलिलीटर पानी सुबह और 250 मिलिलीटर पानी शाम को छिड़कते रहें। इस ट्रे को सबसे नीचे रख दें। बालू नहीं होने से स्पंज का टुकड़ा ट्रे मे रख सकते है।
3- फिर दूसरे ट्रे के आधार मे सूती कपड़ा बिछा दे तथा धान की भूसी (कन्ना) 1 इच बिछा दे फिर चयनित अंडो (चौड़े सिरे ऊपर) को इस ट्रे मे रख लें।
4- फिर मशीन का ढक्कन बन्द कर देते है।
5- मशीन मे केवल पानी छिड़कने और अंडों को घुमाने के लिये खोलें।

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कृत्रिम ऊष्मायित्र की लागत एवं क्षमता:

कृत्रिम ऊष्मायित्र का सफल प्रोटोटाइप कमला नेहरू कृषि विज्ञान केंद्र मे किया गया था जिसमे 90-95 प्रतिशत स्फुटन हुआ और इस मशीन की लागत लगभग 1300 रुपये है। इस मशीन की क्षमता मुर्गी अंडो के लिए 60 से 100 तक है।

ऊष्मायन के लिये सावधानियाँ:

ऊष्मायन के लिये निम्नलिखित सावधानियाँ अपनानी चाहिये।

क- जिस प्रजाति का अंडा है उस हिसाब से थेरमोस्टैट मे परिवर्तन करते है। अंडे रखने के पूर्व मशीन को एक दिन पहले चला दे जिससे अंदर का वातावरण अंडों के लिये उपयुक्त हो जाये। और यदि कोई तकनीकी खराबी हो तो उसे तुरन्त ठीक कर सकें।
ख- मशीन को ऊपर बताये गये तरीके से विसंक्रमित कर दें।
ग- मशीन को किसी एकांत जगह पर स्थापित करें और बिजली की व्यवस्था 24 घंटे होनी चाहिए जिससे अंडे खराब नहीं हों।
घ- मशीन मे लगे पारदर्शी सीसे से रोज अद्रता चेक कर लें।
ङ- मशीन मे काम करने वाले व्यक्ति को रोज नहाना चाहिए और प्रवेश करने से पहले कपड़े और जूते बदलना चाहिए ताकि कोई बीमारी अंडो तक नहीं पहुँचे।

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