कैसे बचाएं अपने पशुओं को लहू मूतना रोग से???
देश-विदेशों में इस रोग को टेक्सास बुखार, लाल पानी बुखार या बोवाइन पराइरोप्लाज्मोसिस के नाम से भी जाना जाता है। वैधानिक भाषा में लहू मूतना रोग को बबेसियोसिस रोग कहा जाता है जो कि सूक्ष्म परजीवी (एक कोशिका वाले) के कारण होने वाली बीमारी है तथा इसका प्रसार किलनियों, चींचड़ों एवं शोरे के द्वारा होता हैं। बबेसिया परजीवी की चार प्रमुख प्रजातियाँ जैसे बबेसियामेजर, बबेसिया बोविस, बबेसिया बाइजेमिना व बबेसिया डाईवरजेन्स है। यह चारों प्रजातियाँ गाय तथा भैंस को प्रभावित करते है। इन सभी में से बबेसिया बाइजेमिना प्रमुख प्रजाति है जो भारतीय उप-महाद्वीप के पशुओं (बोवाइन) में बीमारी का मुख्य कारण है।
पोस्ट पारचुरीन्ट हीमोगलोबिन, यूरिया नामक एक बीमारी है जो कि फास्फोरस की कमी से नई ब्यांता या बयाने के करीब वाले दुधारू पशु में पाए जाती है। इस बीमारी में भी पशु लहू के रंग का मूत्र विसर्जन करता है परन्तु कोई ज्वर नहीं आता। इसके विपरीत बबेसियोसिस नामक व्यधि में पशुओं में तेज बुखार तथा पशु किलनियों से प्रभावित रहता है। यह बबेसिया परजीवी नाशपति के आकार तथा 25-5 माइक्रो मीटर का होता है। यह परजीवी लाल रक्त कणिकाओं में जोडे़ं में पाया जाता है। यह रोग किलनियों की विभिन्न प्रजातियों जैसे रीपीसीफेलस (बुफीलस) माइक्रोप्लस, रीपीसीफेलस एन्युलेटस और हीमाफाइसेलिस आदि के द्वारा फैलता है। इस रोग की अवधि अधिकतर पशुओं में 1-2 सप्ताह होती है। व्यस्क पशु बबेसियोसिस के लिए प्राकृतिक रूप से प्रतिरोधी होते है जबकि व्यस्क पशु अति संवेदनशील होते है। बछड़ों की बबेसियोसिस के लिए प्राकृतिक प्रतिरक्षा आमतौर पर एक साल की उम्र के बाद गायब हो जाती है।
विदेशी और संकर नस्ल के पशु इसके प्रति अति संवेदनशील होते है। यह रोग पशुओं में दूध उत्पादन की कमी, शारीरिक विकास में कमी, बीमार पशुओं के इलाज की लागत, मृत्यु दर तथा काम करने वाले पशुओं की कार्य क्षमता की कमी करके किसानों को भारी आर्थिक नुकसान पहुँचता है।
लक्षण-
बबेसियोसिस के प्रमुख लक्षण इस प्रकार है:-
- तेज बुखार व दुग्ध उत्पादन में गिरावट।
- रक्तालपता (खून की कमी)।
- दुर्बलता तथा भूख की कमी।
- हीमोग्लोबीनुरिया के कारण मूत्र का लाल होना।
- पहले दस्तों का लगना तथा उसके बाद कब्जी का होना
निदान-
लहू मूतना रोग से निदान के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:-
- अस्वस्थ पशुओं के रक्त की समय-समय पर जाँच।
- पशु में रोग के लक्षणों के द्वारा।
- क्षेत्र में किलनियों का प्रसार तथा रोग का इतिहास।
- पोलीमरेज चेन अभिक्रिया (पी.सी.आर.) से।
- इम्युनों डायगनोसिट्क परीक्षणः इंजाइम लिंकड इम्यूनो सोरबेंट एसे (एलिसा), अप्रत्यक्ष फ्लोरोसेंट एंटीबाॅडी परीक्षण, अप्रत्यक्ष हिम एग्लुटीनेसन परीक्षण और पूरक निर्धारण परीक्षण (सी.एफ.टी.)।
रोकथाम तथा नियंत्रण-
लहू मूतना की रोकथाम व नियंत्रण के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिएः-
- प्रारंभिक चरण में पशु के रोग की पहचान व उचित उपचार।
- रोगी पशु का अलगाव।
- किलनियों के नियंत्रण के लिए अकेरिसाइड का छिड़काव।
- व्यस्क बछड़ों को बबेसिया बाइजेमिना के हल्के उपभेदों के साथ इनोकुलेट करना और बाद में संक्रमण को दवाओं के उपचार से नियंत्रित किया जाता है।
- संक्रमित रक्त को इनोकुलेट कर नैदानिक दवाओं से नियंत्रित किया जाता है। हाल ही में माइक्रोएरोफीलिक स्टेशनरी फेज तकनीक द्वारा बबेसिया बाहरी एन्टीजन का टीका विकसित किया गया है जो परजीवी की वजह से नैदानिक रोग को रोकने के लिए प्रभावी है।
उपचार-
निम्नलिखित दवाओं का प्रयोग लहू मूतना के उपचार के लिए की जाती है:-
- डाइमिनेजीन एसीटुरेट (बेरेनिल): 3.5-7 मि.ग्रा. प्रति किलो शारीरिक भार की दर से चमड़ी के नीचे दिया जाता है।
- इमिडोकारब।
- लम्बे समय तक काम करने वाली टेट्रसाइक्लिन एंटिबाॅयोटिक 20 मि.ग्रा. प्रति किलो भार की दर से भी दी जा सकती है।