पशुधन प्रहरी नेटवर्क,
नई दिल्ली, 22 सितंबर 2019,
गाय हमें दूध देती है, लेकिन क्या आपको पता है कि गाय एक ऐसी गैस भी उत्सर्जित करती है, जो ग्लोबल वार्मिंग की बड़ी वजह है। जी हां, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफार्निया के वैज्ञानिकों के एक ताजा शोध में सामने आया है कि गाय और भैंस जैसे मवेशी जब जुगाली करते हैं तो बड़ी मात्रा में मीथेन गैस पैदा होती है। जाहिर है कि एन्वायरमेंट में मीथेन (सीएच-4) की मात्रा का बढ़ना पर्यावरण के लिए कार्बन डाई ऑक्साइड से भी अधिक नुकसानदायक है। वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक पशुओं की जुगाली से जो मीथेन गैस पैदा होती है, उसकी वजह उनका चारा है। यदि पशुओं को चारे में बदलाव किया जाए तो इससे काफी हद तक निजात पायी जा सकती है। यानी दुनिया की सबसे बड़ी समस्या ग्लोबल वार्मिंग को रोकने में गाय को बहुत कारगर साबित हो सकती है।
समुद्री शैवाल खिलाने से कम होगा मीथेन उत्सर्जन
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वैज्ञानिकों ने बताया है कि गाय को चारे में समुद्री शैवाल खिलाया जाए तो उसके द्वारा मीथेन गैस के उत्सर्जन को काफी कम किया जा सकता है। इससे ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावी तौर पर निपटा जा सकता है। आपको बता दें कि एक गाय एक दिन में 300 से लेकर 500 लीटर मीथेन गैस निकालती है जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है।
भारत में पशुओं से मीथेन उत्सर्जन सबसे अधिक
भारत में पशुओं से उत्सर्जन मवेशियों की संख्या के आधार पर भारत दुनिया में शीर्ष पर है। यहां करीब 31 करोड़ मवेशी हैं। 23.3 करोड़ और 9.7 करोड़ मवेशियों के साथ ब्राजील और चीन क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। अगर दुनिया के सभी देश अपने-अपने यहां जानवरों को इस चारे को देना शुरू कर दें तो मीथेन उत्सर्जन काफी कम किया जा सकता है। अकेला भारत साल भर में जितना ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करता है उनमें उसके मवेशियों से होने वाले उत्सर्जन की हिस्सेदारी आठवां हिस्सा है।
समुद्री शैवाल से मीथेन उत्सर्जन 58 प्रतिशत घटा
अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बताया कि गाय के मुख्य आहार में समुद्री शैवाल खिलाने पर मीथेन गैस के उत्सर्जन को 58 फीसद तक कम किया जा सकता है। इस शोध में तीन महीने तक गायों को एसपरागोप्सिस नामक खास समुद्री शैवाल का चारा खिलाया गया। इस आहार को ग्रीन फीड नाम दिया गया है।
कॉर्बन डाई ऑक्साइड से 28 गुना खतरनाक है मीथेन गैस
पर्यावरण के लिए मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड से 28 गुना ज्यादा खतरनाक है। दरअसल जानवरों के पाचनतंत्र में शरीर के अंदर रूमेन (प्रथम अमाशय) होता है। ये फाइबर वाले आहार घास-फूस को छोटे टुकड़ों में बांटकर चारा पचाने में मदद करता है। इस प्रक्रिया में जानवरों के शरीर से डकार में मीथेन के सम्मिश्रण वाली गैस निकलती हैं। भारत में व्यापक स्तर पर समुद्र तट है, जहां इन समुद्री शैवालों को उगाया जा सकता है। इसके लिए अलग से जमीन, ताजे पानी या उर्वरक की आवश्यकता नहीं है।