गाभिन भैंसों में गर्भकाल के अंतिम तीन माह का प्रबन्धन
लाभकारी पशुपालन व्यवसाय हेतु भैंस को हर 12-13 महीनें बाद ब्याना चाहिए तथा लगभग 10 महीने तक दूध देना चाहिए। परन्तु व्यवहारिक रुप में दो ब्यातों के बीच का अन्तर 410-470 दिन तक होता हैंतथा यह आहार आरै रख-रखाव पर भी निर्भर करता हैं भैंस का टलने का समय 60 से 90 दिन तक ही होना चाहिए। इस दौरान पशु दूध उत्पादन के समय ह्रास हुए पोषक तत्वों की भरपाई तथा गर्भ में पलने वाले बच्चे के पोषण की जरुरत पूरी करते हैं। गर्भकाल के अन्तिम तीन मास में अतिरिक्त पोषक तत्वों की आवश्यकता होती हैं इस काल में भैंस का वजन 20 से 30 किलो तक बढ़ जाता हैं इस काल में संचित पोषक तत्वों से ब्याने के बाद के दूध उत्पादन मेंसहायता मिलती हैं गर्भकाल के अन्तिम तीन महीनों में नियमित आहार के अतिरिक्त 2 किलो ऊर्जायुक्त दाना मिश्रण देना चाहिए जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे को उचित पोषण मिल सके। ब्याने से पहले मिले इन अतिरिक्त पोषक तत्वों को पशु अपने शरीर में जमा कर लतेा हैं तथा ब्याने के पशचात दूध उत्पादन में उपयोग करता हैं।
गर्भकाल के अन्तिम तीन माह में देखभाल :
इस अवस्था में भैंस को दाडैऩे या अधिक चलने से बचाइये आरै चरने के लिए दूर भी नहीं भेजना चाहिए।
भैंस कहीं फिसल न जाये अतः उसे फिसलने वाली जगहों पर नहीं जाने दीजिए आरै चिकने फर्श पर घास-फूस आदि बिछाकर रखिये।
गर्भवती भैंस को दूसरे अन्य पशुओं से लड़ने मत दीजिए।
भैंस के आहार में एक किलोग्राम अतिरिक्त दाना देना आवश्यक हैं दाने में एक प्रतिशत नमक व नमक रहित खनिज लवण भी दीजिए। अगर हो सके तो एक प्रतिशत हड्डी का चूरा भी अलग से दें।
पीने के लिए स्वच्छ व ताजा पानी हर समय उपलब्ध करवाएं।
गर्मी के मौसम में भैंस को दिन में 2-3 बार नहलाएं व तेज धूप से बचाएँ। भैंस के बांधने की जगह अगले पैरों के तरफ नीची तथा पिछले परैों की तरफ थोडी़ ऊँची होनी चाहिये। यदि बांधने की जगह इसके उलट हैंतो गाभिन भैंस में शरीर दिखाने की संभावना बढ़ जाती हैं |
गर्भकाल के आखिरी महीनों में भैंस को तालाब में लेटने के लिए भी नहीं ले जाना चाहिए। जल्दी ब्याने वाली भैंस का आवास अलग होना चाहिए तथा इसके लिए उसे 100-120 वर्ग फुट ढका क्षत्रे तथा 180-200 वर्ग फुट खुला क्षेत्र जरुर देना चाहिए।
गर्भकाल के अन्तिम माह में प्रबन्धन :
यदि भैंस दूध में है तो भैंस का दोहन बन्द कीजिए। ब्याने से 2 महीने पहले भैंसों का दूध निकालना बन्द कर देना चाहिए नहीं तो बच्चे कमजोर पदैा होंगें, अगले ब्यांत में पशु कम दूध देगा तथा भैंसों की प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होगी।
भैंस को प्रसव तक 2-3 किलोग्राम दाना प्रतिदिन दीजिए यदि उसे कब्ज रहता हो तो अलसी का तेल पिलाएं ।
ब्याने के 20 से 30 दिन पहले भैंस को दस्तावर आहार जसैे गेहूं का चोकर, अलसी की खल आदि दाने में खिलायें। यदि हरा चारा प्रचूर मात्रा में उपलब्ध हो तो इस मिश्रण की आवश्यकता नहीं पडत़ी।
गाभिन भैंस को यथासम्भव अन्य पशुओं से अलग रखिये ताकि उसकी देखरेख भली-भांति हो सके। गाभिन भैंस को उन पशुओं से दूर रखना उचित होगा, जिनका गर्भ गिर गया हो।
प्रथम बार ब्याने वाली भैंस के शरीर पर हाथ फेरते रहना चाहिए तथा प्यार करना चाहिए।
भैंसों में प्रसव से पूर्व के लक्षण :
प्रसव के 2-3 दिन पूर्व पशु कुछ सुस्त हो जाता है तथा दूसरे पशुओं से अलग रहने लगता हैं ।
पशु आहार लेना कम कर देता हैं ।
प्रसव से पूर्व उसके पेट की मांसपेशियों सिकुड़ने या बढ़ने लगती हैं और पशु को पीड़ा शुरु हो जाती है।
याेिनद्वार मेंसूजन आ जाती हैंतथा याेिन से कुछ लसे दार पदार्थ आने लगता हैं ।
पशु का अयन सख्त हो जाता हैं पशु के कुल्हे की हड्डी वाले हिस्से के पास 2-3 इंच का गड्ढा पड़ जाता हैं ।
पशु बार-बार पेशाब करता हैं ।
पशु अगले पैरों से मिट्टी कुरेदने लगता है।
प्रसव काल में भैंस की देखभाल :
जहाँ तक हो सके प्रसव के समय पशु के आसपास किसी प्रकार का शोर नहीं होने दीजिए आरै न ही पशु के पास अनावश्यक किसी को जाने दीजिए।
जल थैली दिखने के एक घंटे बाद तक यदि बच्चा बाहर न आए तो बच्चो को निकलने में पशु की सहायता हेतु अनुभवी एवं योग्य पशु सहायक की मदद लें।
बच्चे के बाहर आ जाने पर उसे भैंस द्वारा चाटने दीजिए ताकि वह सूख जाये। आवश्यकता हो तो बच्चे को साफ आरै नरम ताैिलये या कपडे़ से रगड़ कर पोंछ दीजिए ताकि उसके शरीर पर लगा सारा श्लेष्मा साफ हो जाये।
प्रसव उपरान्त में जेर गिरने का पूरा ध्यान रखिये आरै जब तक यह गिर न जाये भैंस को खाने को कुछ मत दीजिए। सामान्यतः जेर निष्कासन में 6 से 8 घंटे का समय लगता हैं जेर न गिरने पर पशु चिकित्सक की सहायता लीजिए।
प्रसव के बाद जननांगों के बाहरी भाग, कोख आरै पूछ को गुनगुने साफ पानी से, जिसमें पोटेशियम परमैंगनेट के कुछ दाने पड़े हों या नीम की पत्ती के उबले हुए पानी से धो दीजिए। इसके पश्चात् पशु को गरम पेय जिसमें चोकर (500 ग्राम) या नमक पडा़ हो पीने के लिये दीजिए। यह पेय भैंस को दो दिन तक प्रातः एवं सांय देते रहिए।
भैंस को एक-दो दिन तक गुड़ व जो का दलिया भी खिलाना वांछनीय होगा। दो दिन के बाद धीरे-धीरे चाकेर की मात्रा बढ़ाते हएु चनूी व खली आदि मिलाकर बना हुआ दाना थोडी़-थोडी़ मात्रा में खिलाना प्रारम्भ करें। 15-20 दिन बाद दूध की मात्रा के अनुसार दाना देना प्रारम्भ कर दें।
प्रसव के पश्चात भैंसों की देखभाल :
ब्याने के पश्चात् भैंस ही नहीं बल्कि कटड़ें-कटड़ी की देखरेख भी ठीक प्रकार से करें। थोडी़ सी असावधानी से पशुओं में जनन सम्बंधी रोग उत्पन्न हो सकते हैं। प्रसव पश्चात् भैंस की देखरेख अच्छी तरह से होनी चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार का जनन रोग उत्पन्न न हो, दूध देने की क्षमता बनी रहे तथा पशु समय पर गर्मी में आकर गाभिन हो। आमतारै पर पशु को ब्याने के पश्चात् 2-6 घंटे के अन्दर जेर गिरा देनी चाहिए। किन्तु कमजोर पशुओं में या बच्चेदानी में रोग होने आरै प्रसव के समय अधिक पीडा़ के कारण जेर बच्चेदानी से अलग नहीं हो पाती आरै बच्चेदानी के अन्दर ही रह जाती हैं कभी-कभी जनन अंगों में किसी रुकावट के कारण जेर शरीर से बाहर नहीं गिरती और बच्चेदानी में ही सड़ती रहती हैं यह विकार विटामिन-ए तथा आयोडीन की कमी के कारण भी हो सकता हैं ।
यदि पशु ब्याने के पश्चात् समय से जेर नहीं गिराए तो घबराना नहीं चाहिए आरै न ही किसी अनुभवहीन व्यक्ति से जेर बाहर निकलवानी चाहिए। इससे बच्चेदानी में जेर के टूटने से रक्त भी बह सकता हैं आरै हाथ डालने के कारण विषाणु बाहर से बच्चेदानी में प्रवेश कर सकते हैं जिससे बच्चेदानी में सूजन आरै मवाद पढ़ सकती हैं इस कारण पशुओं का तावचक्र अनियमित होने के साथ-साथ पशु समय पर ताव में भी नहीं आते। ऐसे में पशुओं में गर्भधारण करने में बहुत समय लग जाता हैं आरै पशु बांझ भी हो सकता हैं कुछ पशुओं में जेर बच्चेदानी में ही पडे़ रहकर सडऩे लगती हैंआरै बदबूदार मवाद या गन्दा रक्त योनिद्वार से बाहर आने लगता हैं कुछ समय बाद इसका जहर बच्चेदानी से सारे शरीर में फलै जाता हैं आरै पशु आहार लेना बन्द कर देता हैं पशु सुस्त हो जाता हैंतथा शरीर भार तथा दूध उत्पादन कम होने लगता । हैं इस विकार के कारण 1-2 प्रतिशत पशु मर भी जाते हैं। जेर समय पर बाहर न गिरने तथा टूटने पर मान्यता प्राप्त पशु चिकित्सक द्वारा ही जेर निकलवाएँ।