गाय भैंस में रेबीज – एक घातक रोग

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गाय भैंस में रेबीज – एक घातक रोग

रेबीज एक वायरल रोग है जो स्तनधारियों को प्रभावित करता है। अक्सर यह जंगली जानवरों को प्रभावित करता है परन्तु मनुष्य व घरेलु पशु (पशुधन) भी जोखिम पर हैं। यह एक जूनोटिक रोग है जो पशु से मनुष्य व मनुष्य से पशुओं में फैलता है। इसमें रोगी के व्यवहार में बदलाव अधिक उत्तेजना, पागलपन, पक्षघात व मौत हो जाती है। यह विषाणु मनुष्यों और पशुओं के मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी सहित केन्द्रीय तंत्र को प्रभावित करता है। ऊष्मायन अवधि के दौरान, विषाणु नसों से मस्तिष्क तक पहुँचता है। इस प्रक्रिया में औसतन एक से तीन माह लगते हैं परन्तु कभी-कभी कुछ दिन व कुछ साल भी लग जाते हैं। रेबीज विषाणु दो रूप में प्रभावित करता है। उगर व लकवा ग्रस्त (गूंगा) रूप है।
मनुष्य में इसे हाइड्रोफोबिया या जलटांका कहते हैं क्योंकि इस रोग में गले की मांसपेशियों में ऐठन से रोगी पानी नहीं पी पाता है। रेबीज कुछ देशों को छोड़कर दुनिया के सभी भागों में पाया जाता है। सख्त नियमों तथा रोकथाम के प्रभावशाली उपायों के कारण आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, डेनमार्क, ब्रिटेन जैसे देशों में रेबीज का नामों निशान नहीं है। भारत में रेबीज का एक विकराल रूप है।
रेबीज रोग के मुख्य कारण:
रेबीज लासा विषाणु के द्वारा होता है ये विषाणु मुख्यता रोगी पशु जैसे कुत्ता, बिल्ली, बन्दर इत्यादि की लार में पाया जाता है। प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:-
1. कुत्ते के काटने से।
2. लोमड़ी, भेड़िया, बन्दर इत्यादि के काटने से।
3. चूहा, गिनहरी आदि द्वारा भी यह रागे फलै ता हैं क्योंकि रेबीज का विषाणु प्राकृतिक रूप से इनके शरीर में पाया जाता हैं। यदि जगं ली जानवर इनका शिकार करते हैं और खा जाते हैं तो ये रोग उनमें फैल जाता है।
4. इस रोग से ग्रस्त गाय, भैंस आदि के मुँह में हाथ डालने से यह रोग फैलता है।
कारक:
रेबीज वायरस रेबडो वायरस, जीनस लिस्सा वायरस से संबंधित है। इसका आकार पिस्तौल की गोली की तरह होता है। इसकी लम्बाई लगभग 180 नैनो मीटर ओर व्यास 75 नैनो मीटर होता है। यह विषाणु स्नायुतंत्र की कोशिकाओं में अपनी वृद्धि करते हैं। गर्म खून वाले पशु इस विषाणु के लिए ग्रहणक्षम है। ग्रहणक्षमता सभी जातियों में अलग है। पशु जैसे कुत्ता, लोमड़ी, भेड़िया, सियार, नेवला इस रोग के अत्याधिक ग्रहणक्षम है व विषाणु के वाहक है। घरेलु पशु जैसे गाय, भैंस, भेड़-बकरी, सुअर आदि भी रोग से ग्रसित होते हैं। यह विषाणु नर्वस टिश्यु, सेलिवरी ग्लेंड से लाइवा में पाए जाते हैं। बहुत कम बार यह लिम्फ, दूध व मूत्र में पाया जाता है।
रेबीज का प्रसार:
रेबीज ग्रसित पशु के काटने से अधिकतर यह रोग फैलता है। मुख्यता रेबीज से ग्रसित कुत्ते, बिल्ली तथा जंगली पशुओं जैसे कि लोमड़ी, भेड़िया, गीदड़ आदि द्वारा काटे जाने पर विषाणु का प्रसार होता है। लार विषाणु के संचरण का प्रमुख स्त्रोत है क्योंकि यह विषाणु ग्रसित पशु द्वारा लार के माध्यम से गिरता है, विषाणु का छिद्र ओर त्वचा में खरोंच के माध्यम से शरीर में प्रवेश संभव है यह तथापि असमान्य है। खुले घाव, श्लेष्मा, झिल्ली, आंखें और मुँह विषाणु के लिए संभव प्रवेश द्वार हैं। सामान्य परिस्थितियों के अन्तर्गत विषाणु हवा के माध्यम से नहीं फैलता है।
रोग जनन:
रेबीज विषाणु कटी या छिली हुई त्वचा के द्वारा शरीर में प्रवेश करता है ओर शुरूआत में स्थानीय ऊतक ओर मांसपेशियों में अपनी वृद्धि करता है। इसके पश्चात विषाणु स्नायुतंत्र में प्रवेश कर जाता है जो रोग के बढ़ने में भूमिका निभाता है। यह विषाणु स्पाइनल कोर्ड के जरिये मस्तिष्क में पहुँचता है। विषाणु मस्तिष्क में पहुँचने पर कई भागों को नुकसान पहुँचता है। इससे तंत्रिका कोशिकाएँ उत्तेजित होने से पशु उग्र हो जाता है। तंत्रिका कोशिकाओं के अधःपतन से कई मांसपेशियों का पक्षाघात हो जाता है। इस तरह गले की मांसपेशियों के पक्षाघात से पशु आहार व पानी नहीं निगल पाता। अगर स्वास प्रक्रिया से सम्बन्धित मांसपेशियों का पक्षाघात होता है तो पशु को साँस लेने में तकलीफ होती है व पशु की मौत हो जाती है।
विषाणु के शरीर में प्रवेश करने के बाद लक्षण आरम्भ होने के अंतराल कई बातों पर निर्भर करता है। शरीर पर काटे गए जख्म की मस्तिष्क से दूरी, जख्म का आकार व प्रकार, घाव में प्रवेशित विषाणुओं की संख्या, जख्म में जाने वाली लार की मात्रा आदि के अनुसार बीमारी के लक्षण बहुत जल्दी या देर से आते हैं। इसे ऊष्मान्य अवधि कहते हैं। यदि जख्म मस्तिष्क के पास किसी अंग जैसे चेहरे, गर्दन आदि पर हो या जीन अंगों में स्नायु तंत्रिकाएं अधिक हो तो रोग बहुत शीघ्र हो जाता है। इसके विपरीत यदि कुत्ता टांग आदि पर काटता है तो बीमारी कुछ देरी से होती है। इसी प्रकार यदि घाव गहरा हो या काटने के घाव कई जगह हो तो ऐसी स्थिति में रेबीज रोग अधिक शीघ्र तथा गंभीर रूप में होता है।
लक्षण:
गाय/भैंस में रेबीज के निम्न लक्षण हैं:-
1. पशु अस्थिर अवस्था में लड़खड़ाया नजर आता है, पशु अन्य पशुओं या दीवार से टकरा जाता है।
2. हल्का तापमान, अस्वस्थता, भूख का कम लगना व दूध उत्पादन में कमी।
3. कान का बार-बार कांपना व हिलना।
4. मुख की मांसपेशियों के पक्षाघात के कारण पशु मुंह खुला रखता है मानो कोई चीज फंसी हो तथा अधिक लार गिराता व दांत पीसता है।
5. पशु को कुछ निगलने व पानी पीने में तकलीफ होती है व बिना आवाज रंभाने की कोशिश करता है।
6. स्वर रज्जू में पक्षाघात के कारण मुंह से कर्कश आवाज निकलती है।
7. पशुओं में यौन इच्छा बढ़ जाती है, बार-बार पेशाब करते हैं, गाय व भैंस गर्मी के लक्षण प्रकट करती है जबकि सांड गाय व भैंस पर चढ़ता है।
8. ये लक्षण 1-3 दिन चलते हैं बाद में जल्दी ही तेज पक्षाघात के कारण कुछ ही घंटों में पशु की मौत हो जाती है।
9. पिछले साल 2015-16 में लुवास के क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र उचानी करनाल में 08 भैसों, 12 गायों और दो भेड़ों में रेबीज जैसे लक्षण देखे गये हैं।
आवश्यक जानकारी रखनाः
1. क्या काटने वाला जानवर पालतू था या जंगली था?
2. वह स्वस्थ था या बिमार था?
3. बिमारी के क्या लक्षण थे?
4. काटने वाले जानवर को रेबीज के टीके लगे थे या नहीं? यदि लगे थे तो कब?
5. घाव किस प्रकार का है? एवं शरीर के किस भाग पर घाव है?
6. क्या क्या काटने वाला कुत्ता अथबा जानवर काटने के पहचान अगले 21 दिन तक निगरानी के लिए उपलब्ध है? यदि नहीं तो उसे मान कर बचाव के लिए टीकाकरण आरम्भ कर दें।
निदान:
1. लक्षण के आधार पर।
2. हिस्टोपैथलोजिकल परीक्षण मस्तिष्क में नेगरी बोडी मजबूत होना।
3. फ्लोरी-सेंट ऐटीबोडी मौजूद टैस्ट।
इलाज:
एक बार यदि रेबीज लक्षण आ जाएँ तो इसका उपचार संभव नहीं है, रोग के लक्षण प्रकट हो जाने पर पशु या मनुष्य की मौत निश्चित है। दवाइयों की सहायता से केवल रोगी पशु में उत्तेजना, दौर तथा कष्ट को कम किया जा सकता है इसलिए इसकी रोकथाम ही एकमात्र उपाय है।
रेबीज विषय पर ध्यान देने योग्य मुख्य बातेंः
1. रेबीज एक विषाणु से फैलने वाला रोग है जिसका बचाव टीकाकरण द्वारा ही संभव है।
2. मनुष्य में रेबीज से मृत्यु के कारणों में कुत्ते द्वारा काटे जाने प्रमुख है।
3. मनुष्य में होने वाली 99 प्रतिशत रेबीज, कुत्ते के काटने से फैलती है।
4. रेबीज से निदान संभव है केवल निम्न दो बातों का ध्यान आवश्यक है:
क. कुत्तों में रेबीज के बचाव का टीकाकरण।
ख. कुत्तों द्वारा काटे जाने से बचाव।
5. एशिया और अफ्रीका में हर साल रेबीज से हजारों मौतें होती हैं।
6. रेबीज से मरने वालों में 40 प्रतिशत बच्चे 15 साल से कम उम्र के होते हैं।
7. काटने के तुरन्त पश्चात् यदि घाव को साफ पानी व साबुन से अच्छी तरह धो लिया जाए तो यह 50 प्रतिशत तक बचाव कर सकता है।
8. रेबीज को केवल होने से पहले रोका जा सकता है परन्तु इसका इलाज संभव नहीं है।
9. पालतू कुत्तों से भी रेबीज हो सकता है, यदि उन्हें रेबीज का टीका नहीं लगवाया गया हो।

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