ग्रामीण पशुपालन में पशु सखियों की भूमिका

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PASHU-SAKHI POLICY

ग्रामीण पशुपालन में पशु सखियों की भूमिका

भारत में, विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों में, कई छोटे और सीमांत किसानों के लिए पशुपालन एक महत्वपूर्ण पूरक आय स्रोत के रूप में कार्य करता है। हालाँकि, अपर्याप्त चारा और शेड प्रबंधन, परिवर्तनशील चारे की उपलब्धता और औपचारिक अंतिम-मील पशु चिकित्सा सेवाओं की कमी/ अनुपस्थिति के कारण उच्च मृत्यु दर बनी हुई है। कृषि आय की अप्रत्याशित प्रकृति के विपरीत, पशुपालन तुलनात्मक रूप से स्थिर वित्तीय प्रवाह प्रदान करता है। आय के अलावा, पशुधन दूध के माध्यम से पोषण में महत्वपूर्ण योगदान देता है और एक महत्वपूर्ण बचत माध्यम के रूप में काम करता है। भूमि और पशुधन में अधिशेष धन निवेश करना किसानों के लिए एक आम रणनीति है। इसलिए, पशुधन की मृत्यु न केवल आय कम करती है बल्कि इन परिवारों के पोषण और जोखिम वहन करने की क्षमता से भी समझौता करती है। इस स्थिति को देखते हुए, क्या कोई है जो मदद कर सकता है?

पशु सखी

पशु सखी कौन है?

शाब्दिक अनुवाद  जिसका सीधा सादा मतलब है “जानवरों की मित्र।” है, एक ग्रामीण निवासी जिसे गाय, भैंस, बैल, मुर्गी और बकरियों जैसे विभिन्न जानवरों की नियमित चिकित्सा आवश्यकताओं का प्रबंधन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। सर्जिकल हस्तक्षेप में कुशल न होते हुए भी, पशु सखियाँ बीमारियों की पहचान कर सकती हैं, दवाएँ और टीकाकरण कर सकती हैं, और उपचारात्मक या निवारक उपायों के लिए बहुमूल्य सुझाव दे सकती हैं।

पशु सखियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में अंतिम-मील कवरेज कैसे बदल रही हैं?

पशु सखियाँ ग्रामीण क्षेत्रों, विशेषकर पशु चिकित्सा सेवाओं और पशुपालन में अंतिम मील तक कवरेज बढ़ाने में एक परिवर्तनकारी भूमिका निभा रही हैं। यहां बताया गया है कि वे कैसे बदलाव ला रहे हैं:

बढ़ी हुई पहुंच

पशु सखी जमीनी स्तर पर काम करती हैं, सबसे दूरस्थ और कम सेवा वाले ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचती हैं, जिससे किसानों के लिए पशु चिकित्सा देखभाल की पहुंच बढ़ जाती है, जिन्हें अन्यथा ऐसी सेवाओं तक पहुंचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

सामुदायिक जुड़ाव
ये पशु स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ता सीधे समुदाय से जुड़ते हैं। वे किसानों के बीच विश्वास और समझ पैदा करते हैं और सांस्कृतिक और सामाजिक कारकों को संबोधित करते हैं जो पशु देखभाल प्रथाओं को प्रभावित कर सकते हैं। यह समुदाय-उन्मुख दृष्टिकोण सूचना के प्रभावी प्रसार में मदद करता है।
ज्ञान प्रसार
पशु सखियाँ किसानों के लिए ज्ञान के एक मूल्यवान स्रोत के रूप में काम करती हैं, जो किसानों को पशुपालन, बीमारी की रोकथाम और प्रबंधन में सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में शिक्षित करती हैं। यह ज्ञान किसानों को अपने पशुधन के बारे में सूचित निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाता है, जिससे समग्र पशु स्वास्थ्य में सुधार होता है।
समय पर हस्तक्षेप
जमीनी स्तर पर अपनी उपस्थिति के साथ, पशु सखी पशुधन में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की तुरंत पहचान कर सकती हैं और उनका समाधान कर सकती हैं। समय पर हस्तक्षेप बीमारियों के प्रसार को रोकता है, मृत्यु दर को कम करता है और जानवरों की समग्र उत्पादकता को बढ़ाता है।
प्रौद्योगिकी एकीकरण
पशु सखी अक्सर पशु चिकित्सा विशेषज्ञता और संसाधनों तक पहुंचने के लिए मोबाइल एप्लिकेशन या टेलीमेडिसिन सहित प्रौद्योगिकी का लाभ उठाती हैं। यह प्रौद्योगिकी एकीकरण उनकी क्षमताओं को बढ़ाता है, अधिक सटीक निदान और उपचार सिफारिशें प्रदान करता है।
महिलाओं का सशक्तिकरण
कई मामलों में, पशु सखी स्थानीय समुदाय की महिलाएं हैं, जो उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करती हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में महिला सशक्तिकरण में योगदान देती हैं। पशु सखी जैसी महिलाएं अपने समुदाय के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
आर्थिक प्रभाव
पशुधन के स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करके, पशु सखियाँ ग्रामीण समुदायों की आर्थिक स्थिरता में योगदान करती हैं। स्वस्थ जानवर अधिक उत्पादक होते हैं, जिससे किसानों को डेयरी, मांस और अन्य संबंधित उत्पादों के माध्यम से आय का एक स्थिर स्रोत मिलता है।

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डेटा संग्रह और रिपोर्टिंग
पशु सखी अपने समुदायों में पशुधन स्वास्थ्य पर आवश्यक डेटा एकत्र करती हैं। इस डेटा का उपयोग बीमारी के पैटर्न की निगरानी करने, हस्तक्षेप की योजना बनाने और पशु स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में सुधार करने के लिए किया जा सकता है।

संक्षेप में, पशु सखियाँ पारंपरिक कृषि पद्धतियों और आधुनिक पशु चिकित्सा देखभाल के बीच एक सेतु का काम करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन के लिए एक स्थायी और समावेशी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है, जिससे अंततः किसानों की आजीविका और समग्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।

 पशु-सखियाँ होंगी ए-हेल्प के रूप में प्रशिक्षित

ए-हेल्प-संयोजक कड़ी – ए-हेल्प अपने क्षेत्र की विस्तार कार्यकर्ता होंगी. वह पशुपालकों के सम्पर्क में रहेगी और पशुपालन विभाग एवं पशुपालकों के बीच संयोजक कड़ी होगी, जिन्हें लगातार अपने कार्य के लिये प्रशिक्षण दिया जायेगा. योजना से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के स्व-सहायता समूह की महिला सदस्य को विभिन्न योजनाओं में भारत सरकार द्वारा निर्धारित मानदेय प्राप्त करने का अवसर मिलेगा. वह अपने आस-पास के क्षेत्रों में पशुपालकों को शासन की सभी योजनाओं की जानकारी उपलब्ध करायेगी. सामान्यतः: एक गाँव में एक ए-हेल्प होगी. ए-हेल्प, पशु चिकित्सकों को स्थानीय विभागीय कार्यों में सहयोग करने के साथ अपने क्षेत्र के पशुपालकों के सम्पर्क में रहेगी. वह क्षेत्र के समस्त पशुधन और कुक्कुट संख्या का रिकॉर्ड ब्लॉक स्तर के पशु चिकित्सकों के साथ साझा करेगी. इससे पशुपालन गतिविधियों का क्रियान्वयन आसान हो जायेगा और दुग्ध उत्पादन आदि पर सीधा असर पड़ेगा. ए-हेल्प पशुपालकों को कान की टेगिंग के लिये चिन्हित कर अवगत करायेगी और टेगिंग का डाटा इनाफ पोर्टल पर दर्ज कराना सुनिश्चित करेगी. वे अपने क्षेत्र के पशुपालकों को पशुओं के रख-रखाव, टीकाकरण, विभिन्न विभागीय योजनाओं के लाभ के बारे में बतायेंगी. ए-हेल्प पशुपालकों को पशुधन बीमा करवाने और लाभ दिलाने में भी मदद करेगी. इन्हें संतुलित राशन बनाना भी सिखाया जायेगा. वे चारा उत्पादन के लिये भी प्रोत्साहित करेंगी. सभी ए-हेल्प को फर्स्ट-एड किट भी दी जायेगी.

ए-हेल्प की महत्वपूर्ण भूमिका – ए-हेल्प की भूमिका राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम में एफएमडी एवं ब्रुसेला टीकाकरण, पीपीआर उन्मूलन, क्लॉसिक स्वाइन फीवर नियंत्रण और राष्ट्रीय गोकुल मिशन में कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम में महत्वपूर्ण होगी. इसी प्रकार डेयरी गतिविधियों का प्रसार एवं क्रियान्वयन, गौ-भैंस वंशीय पशुओं को कान में टैग लगाना, किसान उत्पादक संगठनों को पशुपालन में उद्यमिता विकास के लिये प्रोत्साहित करने, विभिन्न विभागीय योजनाओं के क्रियान्वयन में सहयोग और निचले स्तर तक पशुपालकों को जानकारी उपलब्ध कराने में ए-हेल्प की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी.

ग्राम पंचायत और पशु पालन समिति की भूमिका

 ग्राम पंचायत की गतिविधियाँ

वैज्ञानिक पशु पालन को प्रोत्साहित करने के लिए ग्राम पंचायत ग्राम की पशु पालन समिति के सहयोग से निम्नलिखित गतिविधियाँ प्रारंभ कर सकती हैं:

  • आम चरागाह भूमि को फिर से जीवंत करने के लिए विकास, प्रबंधन और विनियामक उपाय।
  • फसल अवशेषों की बिक्री को विनियमित करना, चारा बैंको की शुरुआत, बाहरी एजेंसियों के साथ समझौते से सूखे के दौरान चारे की व्यवस्था ।
  • निजी, राजस्व और वन भूमि में चारा प्रजाति के वृक्षों के रोपण को बढ़ावा देना।
  • चारा फसलों के बारे में जागरूकता फैलाना ।
  • समय पर टीकाकरण और डीवार्मिग करना और पशुओं के स्वास्थ्य की पर्याप्त देखभाल के लिए सभी परिवारों की पहुंच सुनिश्चित करना।
  • राज्य प्रजनन नीति के अनुसार (एक समयबबद्ध ढंग से) नस्ल सुधार को बढ़ावा देना ।
  • पशुजन्य रोगों के बारे में जागरूकता फैलाना ।
  • खाद के उपायों को बढ़ावा देना और सार्वजनिक स्थानों में उचित स्वच्छता और सफाई सुनिश्चित करना।
  • पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल की जरूरत, प्रजनन, और बांझपन के कारणों के बारे में जागरूकता फैलाना ।
  • दुग्ध सहकारी समितियों के सहायता और सुनिश्चित करना कि ग्राम पंचायत से आपूर्ति किया गया दूध मिलावट से मुक्त है ।
  • घरेलू पोषण, चारे की फोर्टीफिकेशन विधि और अन्य उपायों को बढ़ावा देना ।
  • वैज्ञानिक बकरी पालन, मुर्गी पालन, मछली पालन और सुअर पालन को बढ़ावा देना ।
  • पशुधन बीमा शुरू करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना और बढ़ावा देना ।
  • पशुपालन के लिए बैंक संपर्क को बढ़ावा देना ।
  • पशु बाजारों और मेलों की सुविधा ।
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पशु पालन समिति को उपरोक्त गतिविधियों की शुरुआत और एक ग्राम पंचायत पशुधन सुधार योजना (एलआईपी) विकसित करने का कार्य सौंपा जा सकता है । लोगों और पशुपालन विभाग के साथ चर्चो के आधार पर अगले चार साल के लिए पशुधन सुधार योजना में निम्न लक्ष्य सम्मलित किए जा सकते हैं:

  • गायों और भैंसों का नस्ल सुधार ।
  • बकरियों का नस्ल सुधार ।
  • सभी पशुओं को बीमा कवर के अंतर्गत लाना ।
  • सभी पशुओं का 100 प्रतिशत टीकाकरण, डीवर्मिग और पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल।
  • प्रत्येक घर में पर्याप्त कंपोस्टींग सुनिश्चित करना ।
  • सुनिश्चित करना किपोषण और खनिज पदार्थ की कमी के कारण कोई नुकसान न हो ।
  • डेयरी, मुर्गी पालन, बकरी पालन, मछली पालन और सुअर पालन आजीविका गतिविधि प्रारंभ करने में रूचि रखने वाले सभी परिवारों को प्रशिक्षण, वित्तीय सहयोग और विभागीय सहायता प्रदान कराना ।
  • डेयरी सहकारिता का सुदृढ़ीकरण और मिलावट के प्रति शून्य सहनशीलता ।
  • डेयरी सहकारी संघ के माध्यम से (बाड़े की स्वच्छता सहित) स्वच्छ दूध सुनिश्चित करना।
  • विभिन्न विभागों के साथ अभिसरण ।
  • पैरा श्रमिकों के रूप में पशुपालन पर (महिलाओं सहित) मानव संसाधन का क्षमता निर्माण ।

योजना एवं गतिविधियाँ

योजना को लागू करने के लिए निम्नलिखित गतिविधियाँ आरंभ की जा सकती है:

संवेदीकरण और जागरूकता

पशुओं के प्रबंधन में वैज्ञानिक पद्धतियों के बारे में जागरूकता और जानकारी को पैदा करने, विशेष रूप से टीकाकरण और पर्याप्त पशु स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने में ग्राम पंचायत की महत्वपूर्ण भूमिका है ।

इसके लिए मवेशी/भेड़/बकरी/मुर्गी/सूअरों में महामारी, मौसन जिसमें बीमारी होती है, टीका और टीकाकरण कार्यक्रम की उपलब्धता इत्यादि के बारे में बताते हुए पोस्टर/चार्ट तैयार किए जा सकते हैं और उन्हें ग्राम पंचायत परिसर में लगाया जा सकता है ।

इन चार्ट को स्थानीय पशु पालन अधिकारियों की मदद से तैयार किया जा सकता है। पशुधन सुधार/पशु पालन समिति स्वयं सहायता समूहों के साथ, समुदाय आधारित संगठनो (सीबीओ) और गैर-सरकारी संगठनो (एनजीओ) को भी जागरूकता उत्पन्न करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है ।

पशुपालन विभाग के साथ समन्वयन में कार्य करना

किसी भी ग्राम पंचायत में पशु पालन आजीविकाओं पर पहल की सफलता इस पर निर्भर करती है कि ग्राम पंचायत पशु चिकित्सा विभाग के साथ कितनी अच्छी तरह समन्वय करता है। प्रत्येक ग्राम पंचायत पशु पालन विभाग की सेवाओं का उपयोग, योजनाओं तक पहुंच, जागरूकता उत्पन्न करने से लेकर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण इत्यादि तक प्रत्येक परिवार की पहुंच सुनिश्चित कर सकती है ।

विभिन्न विभागों एवं संगठनों के साथ अभिसरण

ऊपर चर्चा की गई गतिविधियों के लिए ग्राम पंचायत को डेयरी सहकारी समितियों, कृषि विभाग और ब्लॉक एवं जिला पंचायतों सहित विभिन्न विभागों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता होगी । ग्राम पंचायत को कृत्रिम गर्भाधान (एआई) की सुविधा के लिए सेवा प्रदाताओं से संपर्क स्थापित करने की भी आवश्यकता होगी। नाड़ेप गड्ढ़े कीड़ा खाद गड्ढ़े और बाड़ों के निर्माण की गतिविधियों को मनरेगा के अंतर्गत किया जा सकता है ।

पशु पालन समिति का गठन और एक वार्षिक कार्य योजना का विकास

ग्राम पंचायत को स्वयं पशुपालन गतिविधियों के दैनिक कार्यान्वयन करने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह ग्राम पंचायत की विभिन्न जिम्मेदारियों में से केवल एक है । इसके लिए ग्राम पंचायत को एक पशु पालन समिति के गठन, समिति द्वारा की गई गतिविधियों की एक कार्य योजना और समीक्षा एवं निगरानी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए । ग्राम पंचायत को यह देखना चाहिए कि समिति यह सुनिश्चित करती है:

  • टीकाकरण और डीवर्मिग कैलेंडर का कार्यान्वयन ।
  • नस्ल सुधार योजना का कार्यान्वयन और पालन ।
  • दुग्ध सहकारी संघ के काम की समीक्षा ।
  • दुग्ध में हो रही मिलावट की जाँच ।
  • आवश्यक परिश्रम उपायों का कार्यान्वयन ।
  • पशु शेड में और आम जगहों पर स्वच्छता और सफाई सुनिश्चित करना ।
  • पशुजन्य रोगों की पहचान और उनके रोकथाम और नियंत्रण के लिए उपाय करना ।
  • आवारा पशुओं की समस्या का समाधान उपलब्ध कराना ।
  • चरागाह भूमि पर चराई और प्रबंधन के नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना।
  • पूरे वर्ष और विशेष रूप से सूखे के दौरान चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • नस्ल सुधार नीति के अनुसार बकरों, बैल और कृत्रिम गर्भाधान की व्यवस्था ।
  • आपदाओं के दौरान शवों को हटाने के लिए स्वयंसेवकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना ।
  • महिलाओं सहित पशु पालकों का प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण ।
  • जानवरों के लिए पीने के पानी के विभिन्न स्रोतों के संदूषण की रोकथाम ।
  • संचारी रोगों की सूचना देना और उपचार ।
  • पशुधन से जुड़े कोई भी अन्य कार्य/गतिविधियाँ ।
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वैज्ञानिक पशुपालन को प्रोत्साहित कर ग्राम पंचायत उनके क्षेत्र में परिवारों की आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव ला सकती है ।

दुधिया में प्रतिवर्तन

सिर्फ चार साल में दुधिया ग्राम पंचायत के परिवारों के भाग्य में एक विशाल प्रतिवर्तन हुआ था। पशुधन की संख्या उतनी ही है, लेकिन नस्ल सुधार की सफल पहल, पर्याप्त पशु स्वास्थ्य देखभाल और टीकाकरण, उचित स्वच्छता और प्रबंधन के साथ उत्पादकता में वृद्धि हुई है और इसने रुग्णता और मृत्यु दर से होने वाले घाटे को कम कर दिया है । ग्राम पंचायत में प्रत्येक घर के पास अपने खाद का उपचार करने के लिए कीड़े खाद गढ़े या नाड़ेप गड्ढे हैं जिसे उपचार के बाद खेतों में प्रयोग किया जाता है । 44 घरों में, बायो-गैस संयंत्र भी स्थापित किया गया है। उसी का घोल उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है ।

यह महसूस किया गया कि इस बदलाव में, महिलाओं, खासकर स्वयं सहायता समूहों के साथ जुड़ी महिलाओं ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके धीमे और सतत प्रयासों ने पशुओं की खरीद और उनके रखरखाव के लिए ऋण उपलब्ध कराया। उन्होंने सुनिश्चित कर दिया कि ग्राम पंचायत में किसी भी संकट की स्थिति में किसी भी घर से एक भी पशु न बेचा जाए । प्रशिक्षण प्रदान किए जाने (सुश्री आशा किरण और श्री किशन द्वारा उठाए गए विभिन्न बैठकों में) के कुछ ही महीनों के भीतर वे आपस में जानकारी साझा करने लगीं थी । हर समूह से एक सदस्य ने पशु चिकित्सा अस्पताल का दौरा किया और यह सुनिश्चित किया कि सीखने की प्रक्रिया को जारी रखा जाए । नतीजतन, रुग्णता और मृत्यु दर से होने वाला घाटा कम हो गया। दूध में मिलावट अतीत की बात है और अब ग्रामीणों को दूध के लिए एक अच्छी कीमत मिलती है । सभी परिवार अपना दूध सहकारी डेयरी को बेचते हैं । ग्राम पंचायत में बिक्री के लिए औसत दैनिक दुग्ध उत्पादन 100 लीटर से 1200 लीटर बढ़ गया है और पशुपालन से उनकी आय चौगुनी हो गई है । कहा जाता है कृषि और पशुपालन के कायाकल्प से आय की वृद्धि अगले चुनाव में सभी सदस्यों के फिर से चुने जाने का मुख्य कारण था । वास्तव में चुनाव निर्विरोध रहा था ।

 Compiled  & Shared by- This paper is a compilation of groupwork provided by the

Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

 Image-Courtesy-Google

 Reference-On Request

RULES AND REGULATIONS OF PASHU-SAKHI

PASHU-SAKHI POLICY

Pashu_sakhi_policy

Policy Note on Pashu Sakhi

Empowering Rural Women Through Pashu-Sakhi (पशु सखी): A friend of small ruminants  & A Model for Doorstep Animal care services 

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