घरेलू नुस्खा द्वारा पशु धन का इलाज

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घरेलू नुस्खा द्वारा पशु धन का इलाज

1 – अजीर्ण – पेटरोग
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कारण व लक्षण – पित्त, जल , या कठोर भोजन करने से यह बिमारी उत्पन्न होती हैं , पेट में भंयकर दर्द भारीपन , गुडगुहाट , साँस लेने में कष्ट का अनुभव करता है तथा जूगाली नहीं कर पाता हैं , दाँत किटकिटाना इसका प्रमुख लक्षण हैं तथा गोबर पशु या तो करता नही हैं और यदि करता भी हैं तो अत्यन्त दुर्गन्धपूर्ण व कच्चापक्का करता हैं ।
इस रोग में पशु का पेट फुलाता नहीं हैं किन्तु बायीं ओर कुछ भारीपन मालूम होता हैं । पेट पर अंगुली मारने से ढब – ढब शब्द की आवाज़ नहीं आती हैं , ब्लकि पेट कठोर मालूम होता हैं । इस बिमारी में पशु गोबर करता ही नहीं हैं । और अगर करता भी हैं तो खायी हूई वस्तु का कच्चा अंश आने लगता हैं । पशु कभी – कभी नथुनों को ऊपर खिंचता हैं तथा ज़मीन पर दाढ़ी रखता हैं और गले से घों – घों शब्द की आवाज़ आती हैं । कभी – कभी पशु दाहिनी करवट से लेटना चाहता हैं ।

पेट फुलने और अजीर्ण में एक विशेष अन्तर हैं कि पेट फुलने पर रोगी पशु बेचैन रहता हैं । अजीर्ण रोग का रोगी पशु बेचैन नहीं रहता ब्लकि चुपचाप लेंटा रहता हैं ।

अजीर्ण में पशु को कुछ दिनों तक खाना नहीं देना चाहिए यदि आवश्यक हो तो हरा मुलायम घास व चावल का माण्ड देना चाहिए । इसके आलावा दलिया चोकर व जल्दी पचने वाला चारा ही देना चाहिए ,
क़ब्ज़ व दर्द व पेट सम्बन्धी दवाएँ देते रहना चाहिए तथा अजीर्ण में जूलाब देकर ही अन्य दवाएँ देना चाहिए व दवायें समयानुसार देना चाहिए ।
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1.औषधि – जूलाब , विरेचन विधी – अलसी का तेल
50 ग्राम , मुसब्बर 100ग्राम , दोनों को पर्याप्त मात्रा में चूल्हे पर पका लें । जब जब वह भलीप्रकार घूल जायें तब उसमें 2-3 जमाल घोटें की गीरी डाल दें और आवश्यकतानुसार गन्ने की शीरा मिला लें इसके बाद रोगी पशु की ताक़त के अनुसार देवें । इस दवा से उनका पर्याप्त मल ( गोबर ) बाहर आ जायेगा लेकिन ध्यान रहें की जमालघोटा की गीरी तीन से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए वरना लेने के देने पड़ जायेंगे ।
उपचार- औषधियाँ :- कालीमिर्च 15 ग्राम , भांग पावडर 15ग्राम , ज़ीरा पावडर 10 ग्राम , पुराना गुड़ 100 ग्राम , देशी शराब 125 मिलीग्राम , गरमपानी 1500 ग्राम , में मिलाकर पशु को दिन में तीन – चार बार पिलायें ।
2.औषधि :- बड़ी बच 10 ग्राम , कालीमिर्च 10 ग्राम , अजमोदा 10ग्राम , हींग 10 ग्राम , सेंधानमक 10 ग्राम , चने का आटा 100ग्राम , सभी को मोटा – मोटा कुटकर चने के आटे में मिलाकर गोलियाँ बनाकर रखँ लेंवे , इन गोलियों को दिनभर में आवश्यकतानुसार देनें से लाभ होता है।

3.औषधि :- सरसों या तिल का तेल 500 ग्राम , तारपीन तेल 25 ग्राम , मिलाकर नाल द्वारा पिलानें से लाभ होता हैं ।

4.औषधि :- सोंठ पावडर 5 ग्राम , अरण्डी का तेल 500 ग्राम , मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से लाभ होता हैं ।
5.औषधि :- अजीर्णहारी चूर्ण 25-30ग्राम , रोगी को देते रहने से वह स्वस्थ हो जाता है तथा अन्य रोगों का शिकार होने से बचा रहता है ।

अजीर्णहारी चूर्ण बनाने की विधी — हल्दी , राईदानें , हींग , सफ़ेद ज़ीरा , काला ज़ीरा , त्रिफला , कालानमक , सेंधानमक , सहजन ( सोहजना ) छाल , त्रिकुटा , अजवायन , सुहागा खील ,फिटकरी खील , चीता , कचरी , बच , बायबिड्ंग , जवाॅखार , सज्जीखार , प्रत्येक वस्तु को समान मात्रा में लेकर कुटपीसकर छानकर रख लें आवश्यकता पड़ने पर पशुओं को देंने से लाभँ होता है

6.औषधि – सेंधानमक , अजवायन , भाँग , नागोरी अश्वगन्धा प्रत्येक को 250-250 ग्राम , सोंचर नमक 500 ग्राम , सांभर नमक सवाकिलो, खुरासानी अजवायन ( अजमेंदा ) ओर सज्जी 250-250 ग्राम , इन सबको कूटछानकर बराबर मात्रा में चने के आँचें में मिलाकर रखँ लें 10 ग्राम की मात्रा में प्रात: काल पशु को दें इससे लाभँ होगा ।

अपचन
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कारण व लक्षण – पशुओ में अपचन की बिमारी के कई कारण होते है -पशु कभी-कभी लालच वंश अधिक खा जाता है, जिससे उसे अपचन या बदहजमी हो जाती है । सडा- गला और गन्दा चारा, दाना खाने से भी अपचन का रोग हो जाता है । पशु कभी-कभी अधिक कमज़ोर हो जाने पर अधिक खा जाता है, परन्तु हज़म न कर पाने के कारण उसे अपचन रोग हो जाता है ।
जब पशु सुस्त एवं चिन्तित मालूम होता है । दिन प्रतिदिन वह अधिकाधिक कमज़ोर होकर सूखता चला जाता है । दूधारू पशु के दूध देने की मात्रा दिनोंदिन घटती जाती है । जूगाली करने में अनियमितता होती है। वह पानी अधिक पीता है । वह मोटा, पर्तदार , सूखापन लिये हुए लेंड़ी की तरह गोबर करता है गोबर करते समय कभी – कभी वह कराहता है। कभी – कभी वह बदबूदार पतला गोबर करता है, उसके मुँह से दुर्गन्ध आती है।

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1.औषधि – मीठा तैल 360 ग्राम , हींग 12 ग्राम , पानी 480 ग्राम , काला नमक 60 ग्राम , सबसे पहले पानी को गरम करें । फिर काला नमक महीन पीसकर खौलते पानी में डाल दें और उसे कुछ देर तक उसी में पड़ा रहने दें । जब पानी लगभग 350ग्राम , रह जायें तो उसे उतार लें । और उसमें तैल डाल दें । फिर इस घोल को दो बर्तनों के द्वारा ख़ूब फेंट लें । इस तरह घोल कुछ गाढ़ा हो जायेगा । गुनगुने होने पर उसे रोगी को सुबह – सायं रोज़ाना ठीक होने तक पिलाते रहें ।

2.औषधि – इन्द्रायण 14ग्राम , गुड़ 240ग्राम , आँबाहल्दी 60 ग्राम , कंटकरंज 30ग्राम , फिटकरी 14 ग्राम , पानी 960ग्राम , सेंधानमक 60ग्राम , सबको महीन पीसकर पानी में उबाल दें , फिर दवा 600 ग्राम , रहने पर रोगी पशु को गुनगुना रहने पर बिना छाने बोतल द्वारा पिला दें । यह दवा रोज़ाना सुबह- सायं ठीक होने तक पिलाते रहें ।

3. औषधि – बत्तीसा चूर्ण 180ग्राम , पानी 720 ग्राम , पानी को नमक डालकर गरम करना चाहिए । फिर नीचे उतारकर घुड़बच को महीन पीसकर उसमें मिला दें । गुनगुना रहने पर रोगी पशु को रोज़ाना सुबह- सायं ठीक होने तक पिलाते रहें ।

4. औषधि – घुड़बच 120. ग्राम , नमक 96ग्राम , पानी 620 ग्राम , पानी को नमक डालकर गरम करना चाहिए, फिर नीचे उतारकर घुड़बच को महीन पीसकर उसमें मिला दें, गुनगुना रहने पर रोगी पशु को पिला दें ।सुबह – सायं रोज़ाना ठीक होने तक पिलाते रहें।

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दस्त लगना
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अजीर्ण एवं अपन के कारण पशु को कभी – कभी दस्त लग जाते हैं । पशु इस रोग में बार- बार पतला गोबर करता है । पशु कमज़ोर हो जाता है । वह बार- बार थोड़ा – थोड़ा पानी पीता हैं।

1.औषधि – रोगी पशु को हल्का जूलाब देकर उसका पेट साफ़ करना चाहिए ।रेण्डी का तैल 180 ग्राम , पीसा सेन्धा नमक 60ग्राम , दोनों को मिलाकर गुनगुना करके रोगी पशु को पिलाया जाय ।

2.औषधि – गाय के दूध की दही 1920ग्राम , भंग ( भांग विजया ) 12ग्राम , पानी 460 ग्राम , भंग को महीन पीसकर सबको मथें और रोगी पशु को दोनों समय आराम होने तक पिलाया जाय ।
3. औषधि – विधारा 60 ग्राम , जली ज्वार 60 ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ1440 ग्राम , ज्वार को जलाकर और पीसकर छाछ में मिलाकर , रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक , पिलाया जाय ।

4.औषधि – शीशम की हरी पत्ति 140 ग्राम , पानी 960 ग्राम , पत्तियों को महीन पीसकर , पानी में घोलकर , रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक , पिलायें ।

5.औषधि – विधारा का पेड़ 60ग्राम , गाय की छाछ 960 ग्राम , विधारा को महीन कूटपीसकर ,छाछ में मिलाकर , बिना छाने , रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक , पिलाया जाय ।

6.औषधि – मेहंदी 12 ग्राम , धनिया 240ग्राम , पानी 480ग्राम , दोनों को बारीक पीसकर , पानी में मिलाकर , एक नयी मटकी में भरकर रख दिया जाय । दूसरे दिन सुबह उसे हिलाकर 960ग्राम दवा दोनों समय दें । तीसरे दिन 480ग्राम , के हिसाब से ,दोनों समय आराम आने तक यह दवा पिलाते रहे ।

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पटामी रोग ( दस्त रोग )
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गर्मी के दिनों में यह रोग अक्सर होता है । सूर्य की तेज़ गर्मी के कारण यह रोग उत्पन्न होता है । रोगी को पतले दस्त लगते हैं । उसका गोबर बहुत ही दुर्गन्धपूर्ण और चिकना होता है । गोबर के साथ ख़ून और आँते गिरती हैं । रोगी पशु सुस्त और बहुत कमज़ोर हो जाता है । वह खाना – पीना , जूगाली करना बन्द कर देता है । उसके ओढ़ सूख जाते हैं ।

1.औषंधि – नीम की हरी पत्ती 240ग्राम , गाय का घी 360ग्राम , पत्तियों को पीसकर उनका गोला बना लें और रोगी पशु को हाथ से खिलाना चाहिए । उसके बाद घी को गुनगुना गरम करके पिलाया जाय । अगर पत्तियों को हाथ से न खाये तो उसको पानी में घोलकर बोतल द्वारा पिला देना चाहिए ।दवा दोनो समय ठीक होने तक पिलाना चाहिए ।

2.औषधि – अरणी की पत्ती 180ग्राम , ठन्डा पानी 960 ग्राम , पत्तियों को महीन पीसकर , पानी में मिलाकर , बिना छाने , रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक , पिलाया जाय ।

3.औषधि – विधारा के पेड़ 120ग्राम , गाय के दूध से बनी दही 1440ग्राम , पानी 960 ग्राम , बेल को महीन पीसकर , छलनी द्वारा छानकर , दही और पानी में मथकर रोगी पशु को दोनों समय ,आराम होने तक पिलाना चाहिए ।
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पेचिश
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कारण व लक्षण – बदहजमी के कारण अक्सर यह रोग हो जाता है । पशु को ज़्यादा दौड़ाने से भी यह रोग हो जाता है । रोगी पशु बार- बार गोबर करने की इच्छा करता है और वह थोड़ा – थोड़ा रक्तमिश्रित पतला गोबर करता है। और गोबर के साथ उसकी आँते भी कट-कटकर गिरती है ।

1.औषधि – मरोडफली 120 ग्राम , सफ़ेद ज़ीरा 120 ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ 960 ग्राम , उपर्युक्त दोनों चीज़ों को बारीक पीसकर ,छाछ में मिलाकर ,दोनों समय आराम होने तक ,पिलाया जाय ।

2.औषधि – कत्था 12ग्राम , भांग,विजया 12 ग्राम , बिल्वफल , बेल के फल का गूद्दा 120 ग्राम , गाय के दूध से बनी दही 960 ग्राम , पानी 480 ग्राम , कत्था और भांग को बारीक पीसकर , बेल का गूद्दे को पानी में आधे घन्टे पहले गलाकर , उसे मथकर , छान लिया जाय , फिर दही और सबको मिलाकर मथ लिया जाय। रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक पिलाया जाय ।

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पेट का फूलना
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कारण व लक्षण – सडागला चारा – दाना खा लेने से अक्सर पशु का पेट फूल जाता है । वर्षा – ऋतु के शुरू में लालचवश हरा चारा खा लेने से भी पेट फूल जाता है । समय- समय पर पानी न मिलने पर या खाने के बाद एकदम अधिक श्रम करने पर भी पशु का पेट फूल जाता है । कभी- कभी दाने में चूहे की लेंडी ( चूहे की मिगंन ) खा लेने से भी पेट फूल जाता है ।
पशु बेचैन रहता है । वह अपनी बायीं कोख की ओर देखता रहता है । उसका पेट फूल जाता है । फूली हुई कोख को दबाने से पीली – पीली ढोल की भाँति आवाज़ आती है । पेट में गैस भर जाती है । पशु बार- बार उठता – बैठता है ।

1.औषधि – अम्बर बेल ( विटीश करनोसा ) 60 ग्राम , नमक 60 ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ 1440 ग्राम , बेल को महीन कुटकर , छाछ में नमक मिलाकर , गला देना चाहिए । 25 मिनट बाद उसे छानकर , रोगी पशु को सायं – सुबह , पिलाते रहना चाहिए ।

2. औषधि – इन्द्रायण , कडवी कचरी 1नग ,काला नमक 60 ग्राम , अलसी का तैल 480 ग्राम , हींग 6ग्राम , सबको बारीक कूटकर , तैल में मिलाकर , गरम करके , गुनगुना रहने पर , बिना छाने ही दें । एक बार में आराम न हो तो दूसरी बार इसी मात्रा में पिलाया जाय । आराम अवश्य होगा ।

3. औषधि – अरण्डी का तैल 240ग्राम , काला नमक पीसकर 60ग्राम , दोनों को मिलाकर गरम करके , गुनगुना होने पर , रोगी पशु को , बोतल द्वारा , पिलाया जाय ।

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4.औषधि – इन्द्रायण, कडवी कचरी १ नग , कालानमक 30ग्राम , बकरी का पेशाब 960 ग्राम , कडवी कचरी को महीन कूटकर , नमक और तैल मिलाकर , उसे गरम करना चाहिए । फिर गुनगुना होने पर रोगी पशु को सुबह – सायं िपलाना चाहिए ।

5.औषधि – मेंढासिगीं 60 ग्राम , सेंधानमक 60ग्राम , अजवायन 30ग्राम , पानी 720 ग्राम , सबको महीन पीसकर , पानी में मिलाकर , गरम करके गुनगुना ही रोगी पशु को बिना छाने , पिलाना चाहिए । पुराना रोग होने पर यही दवा एक बार अच्छे होने तक रोज़ पिलायी जाय ।

6.औषधि – नमक 60 ग्राम , गोमूत्र 1440ग्राम , दोनों को मिलाकर , गुनगुना करके , पशु को सुबह – सायं , आराम होने तक , पिलाया जाय ।

7. औषधि – नमक 180 ग्राम , पानी 1440 ग्राम , दोनों को मिलाकर , गुनगुना करके , रोगी पशु को सुबह – सायं आराम होने तक , पिलाया जाय ।

जिस पशु को यह बिमारी हो उसे 24 घन्टे तक चारा नहीं देना चाहिए । उसे केवल पानी पिलाना चाहिए । बाद में हल्की पतली खुराक देनी चाहिए । और अधिक पेट फूलने पर कभी – कभी पशु की बायीं कोख में बड़े इन्जैकशन की सुई लगाने से पेट की गैस निकलेगी ।

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बछड़ों को दूध के दस्त होना
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कारण व लक्षण – अपचन और अधिक दूध पीने से , अचानक चोट लगने से ,यह बिमारी हो जाती है । छोटे बछड़ों को जब तक वे घास न खायें , तब तक उन्हें पानी नही ं पिलाना चाहिए । नहीं तो उन्हें दस्त लग जाते है । रोगी बछड़े बार – बार सफ़ेद रंग के पतले दस्त करते रहते हैं । दस्त से दुर्गन्ध आती है । बछड़े सुस्त रहते हैं । उन्हें बुखार भी रहता हैं ।

1. औषधि – हटानी लोध्र ( महारूख , महावृक्ष की अन्तरछाल 60 ग्राम , गाय का दूध 240ग्राम , छाल को बारीक कूटकर , दूध में मिलाकर , आधा घन्टे तक पड़ी रहने दें । फिर उसे निचोड़कर , छानकर ,रोगी बच्चे को दोनों समय ,आराम होने तक पिलायें ।

2. औषधि – कालीमिर्च 12 ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ 120 ग्राम , कालीमिर्च को बारीक पीसकर , छाछ में मिलाकर , बिना छाने , दोनों समय रोगी को अच्छा होने तक पिलाया जाय।

3.औषधि – मुद्रपर्णी ( खाखर बेली ) का पुरा पौधा ३६ ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ 120 ग्राम ,बेली को बारीक पीसकर , छाछ में मिलाकर , रोगी पशु बच्चे को , दोनों समय , बिना छाने आराम होने तक , पिलायें ।

4.विधारा के पेड़ 36 ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ 120 ग्राम , विधारा को पीसकर , छाछ में मिलाकर , रोगी बच्चे को , दोनों समय बिना छाने दें ,आराम आने तक देवें ।

5.औषधि – ज्वार का आटा 120 ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ 360ग्राम , ज्वार के आटे का छाछ में मिलाकर , दोनों समय , ऊपर लिखी मात्रा में रोगी बच्चों को , आराम आने तक पिलायें ।

6.औषधि – रोगी बच्चा जब माता का दूध पीता हो तभी पीछे से उसकी पूँछ खींचकर मूँह से थन छुड़ा देना चाहिए । ऐसा 4-5बार लगातार , दोनों समय , आराम होने तक , करना चाहिए ।

रोगी पशु की पूँछ में झटका न मारें और नहीं खींचें वर्ना उखड़ जाने का भय रहता है जिससे रोगी बच्चे को और अधिक पीड़ा होगी ।

7.औषधि – रोगी बच्चे की पूँछ की जड़ पर चार तहवाला कपड़ा लपेटकर , ऊपर से सुती से या पतली डोरी से कसकर बाँध देना चाहिए ,जिससे उससे दस्त बन्द हो जायँ । दस्त बन्द होने के बाद उस डोरी को खोल देना चाहिए ।

8. औषधि – यदि रोगी मादा बच्चा हो उसके मूत्राशय के नीचे और रोगी नर बच्चा हो तो उसके मलद्वार के नीचे एक पतला 3 इंच लम्बा आड़ा दाग दागनी द्वारा लगाना चाहिए ।

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