जैविक दूध उत्पादन

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जैविक दूध उत्पादन

रासायनिक उवर्र क, कृषि रसायन, बहे तर फीड, एंटीबायोटिक्स एवं दवाओं के उपयोग से कृषि खाद्यायान्न उत्पादन और पशुओं से प्राप्त होने वाले खाद्य उत्पादों में अभूतपूर्व वृृद्धि हुई है। लेकिन आजकल उपभोक्ता जागरूक बन गये है। और उत्पाद की गुणवत्ता के साथ-साथ पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित, रासायनिक अवशेष मुक्त स्वस्थ खाद्य पदार्थों की मांग करना और पशु कल्याण का एक उच्च मानक, जो कि जैविक विधियों से ही सुनिश्चित हो सकता है। वैज्ञानिक भाषा में जैविक उत्पाद ऐसे उत्पादों के लिए प्रयोग में लाया जाता है जो कि धरती पर प्राकृतिक रूप से पैदा होते है तथा जिनके उत्पादन के दौरान किसी भी प्रकार के मनुष्य जनित रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक एवं अन्य किसी भी प्रकार के हानिकारक पदार्थो का प्रयोग नहीं किया जाता है। जिन उत्पादों में विकरण एवं अनुवांशिक रूप से रूपान्तरित जीवों का प्रयोग किया जाता है, वो भी जैविक उत्पाद की श्रेणी में नहीं आते हैं। इसी तरह जैविक दूध उत्पादन ऐसे दूध एवं दूध से बने हुए पदार्थों को कहा जाता है जो कि प्राकृतिक रूप से जैविक डेयरी पद्धति से पाले हुए दुधारू पशुओं से प्राप्त होता है। जैविक कृषि आन्दोलन सर्वप्रथम 1940 के दशक में इंग्लैंड में सर अल्बर्ट हाॅवर्ड के लेखन से शुरू हुआ था, जिन्होनें 1920 के दशक के दौरान भारत में जैविक प्रथाओं के बारे में सीखा था। जैविक दूध उत्पादन भारत जैसे विकासशील देशों में उत्पादकों के लिए न केवल एक चुनौती है बल्कि यह निर्यात एवं आमदनी का नया अवसर भी प्रदान करता है। जैविक दूध उत्पादन ज्ञान और प्रबन्धन केन्द्रित है तथा इसके लिए पशुपालकों को जैविक उत्पादन से अच्छी तरह से अवगत के साथ-साथ उत्पादन मानकों, सिद्धान्तों, प्रथाओं एवं उच्च स्तर के ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है जैविक पशुपालन में दूध केवल अन्तिम उत्पाद नहीं है, बल्कि पूरी उत्पादन प्रकिया का निरीक्षण किया जाना चाहिए और मान्यता प्राप्त प्रमाणीकरण निकायों द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है। जैविक पशुधन खेती अभी भी विकसित हो रही है और इसे टिकाऊ बनानें के लिए सतत् चलने वाले अनुसंधान आवश्यक है।
भारत में जैविक प्रमाणीकरण तंत्र:
भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अन्तर्गत “राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम“ के अधीन जैविक प्रमाणीकरण तंत्र कार्य कर रहा है। यह जैविक प्रमाणीकरण तंत्र, कृषि प्रसंस्करण उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के द्वारा संचालित होता है। इस प्राधिकरण के द्वारा राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम के अन्तर्गत, कई प्रमाणीकरण संस्थाओं को अधिकृत किया जा चुका है, जो कि पूरे देश में जैविक खेती तथा पशुपालन का प्रमाणीकरण करती है।
जैविक दुग्ध उत्पादन के लिए जैविक उत्पादन के राष्ट्रीय मानकों को पूरा करना आवश्यक है तथा राष्ट्रीय जैविक उत्पादन निकाय के द्वारा पंजीकृत होना जरूरी है। जैविक प्रमाणीकरण दूध उत्पादन के लिए निम्नलिखित राष्ट्रीय मानकों को पूरा करना आवश्यक है।
1. डेयरी फार्म रूपान्तरण अवधिः-
जैविक पशु पालन व जैविक कृषि प्रबन्धन प्रारम्भ करने के समय से लेकर वास्तविक जैविक उत्पादन प्रारम्भ करने के बीच की अवधि को रूपान्तरण अथवा बदलाव अवधि कहते है।

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रूपान्तरण अवधि में पूरे फार्म को उसके पशुधन सहित राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम के मानकों के अनुरूप ढाल देना चाहिए। यदि रूपान्तरण अवधि में पूरे फार्म का बदलाव सम्भव न हो तो दोनों भागों को अलग अलग रखना चाहिए तथा चरणबद्ध तरीके से पूरे फार्म को जैविक फार्म के रूप में विकसित करना चाहिए।

जैविक खेती के लिए कम से कम दो साल की रूपान्तरण अवधि की आवश्यकता होती है।

परम्परागत खेती का पूर्णतया जैविक खेती में रूपान्तरण के पशचात ही जैविक दूध उत्पादन किया जा सकता है।

जैविक दूध उत्पादन के लिए पशु का पालन पोषण और प्रबन्धन जैविक खेती पर दूध उत्पादन की विधि से कम से कम एक साल पहले से शुरू किया जाना चाहिए।

2. पशुओं में खाद्य पदार्थ प्रबन्धनः-
पशुओं के लिए उपयोग में लाये जाने वाले खाद्य पदार्थ जैविक कृषि से उत्पादित अथवा जैविक खेती के राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने वाले होने चाहिए तथा इनका प्रयोग रूपान्तरण अवधि के प्रारम्भ से ही करना चाहिए।

70 प्रतिशत खाद्य पदार्थ जैविक कृषि से उत्पादित तथा 30 प्रतिशत खाद्य पदार्थ रूपान्तरण अवधि के जैविक खेती से प्राप्त किया जा सकता है। सूक्ष्म खनिज लवणों की कमी की पूर्ति के लिए खनिज लवणों अथवा संश्लेषित विटामिन को मिलाने की अनुमति राष्ट्रीय मानक संस्थान से ली जा सकती है। खाद्य पदार्थ के रूप में यदि गुड़ का उपयोग करना है तो यह भी जैविक उत्पादित होना चाहिए।

3. मृृदा प्रजननः-
मृृदा उर्वरकता बनाये रखने अथवा बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं करना चाहिए तथा इसके फसलों को फसल चक्र के रूप में उगाना चाहिए और जैविक पशुओं से प्राप्त गोबर की खाद का ही उपयोग करना चाहिए।
4. पशुओं के लिए आवास प्रबन्धनः-
पशुओं को प्राकृतिक अवस्था में रखना चाहिए। पशुओं के मुक्त विचरण व सामान्य व्यवहार को प्रकट करने के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए।

पशुओं को विशेष परिस्थितियों जैसे दूध निकालते समय या दवाई देते समय ही बांधना चाहिए।

पशुओं को उनके सामान्य व्यवहार के आधार पर ही रखना चाहिए एवं समूह व्यवहार वाले पशुओं को समूह में ही रखना चाहिए।

पशुशाला में वायुसंचार, तापमान बनाये रखने की पद्धति तथा प्रकाश व्यवस्था इस प्रकार से हो जिससे पशुशाला में हवा का संचारण, तापमान, सापेक्षित आद्रता तय सीमा में रहें।

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पशुशाला में पर्याप्त प्राकृतिक हवा व रोशनी के प्रवेश की व्यवस्था होनी चाहिए।

5. पशु नस्ल एवं प्रजननः-
पशु नस्ल के चयन में यह सावधानी रखनी चाहिए कि पशु नस्ल उस क्षेत्र के वातावरण के अनुकूलित हो ताकि पशु कम से बीमार पड़े आरै उनका पब्र न्धन भी आसानी से किया जा सके। जैविक डेयरी फार्म में प्रजनन के लिए प्राकृतिक प्रजनन की विधियों को ही अपनाना चाहिए। जैविक डेयरी फार्म पर कृत्रिम गर्भाधान करवाने की अनुमति होती है परन्तु भ्रूण प्रत्यारोपण की अनुमति नहीं होती है।
6. पशु स्वास्थ्य:-
जैविक पशुपालन में पशुकल्याण ही सर्वोपरि है अतः जैविक जैविक डेयरी फार्म पर पशु की बीमारी, दर्द तथा पीड़ा का इलाज तुरन्त करवाना चाहिए। उत्पादक को पशु का इलाज इस वजह से नहीं रोकना चाहिए कि इलाज से पशु की जैविक उत्पादकता समाप्त हो जायेगी।

जैविक पशु फार्म पर रोगी, चोटिल तथा उपनैदानिक रोगों की जाँच का तंत्र स्थापित करना चाहिए, ताकि रोग का पता लगने पर तुरन्त इलाज प्रारम्भ किया जा सके। यदि रोग का उपचार वैकल्पिक स्वीकार्य उपचार या प्रबंधन विधि से किया जा सके तो एैलोपेथी औषधियाँ अथवा प्रतिजैविक औषधियों का उपयोग नहीं करना चाहिए। वैकल्पिक स्वीकार्य उपचार हर्बल, होम्योपैथिक अथवा आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा संभव नहीं हो तो ही एैलोपैथिक औषधियां तथा प्रतिजैविक औषधियां का उपयोग जैविक पशुपालन के राष्ट्रीय मानकों के आधार कर ही करवाना चाहिए।

जैविक पशुपालन में आवश्यक टीकारण, कुछ पशु परजीवी नाशक ओषधियों के उपयोग की अनुमति हैं।

यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि यदि कोई जैविक पशु का एक साल में तीन या उससे अधिक बार उपचार किया गया हो तो पशु अपनी जैविक अवस्था को खो देता है।

जैविक डेयरी फार्म पर बछड़ो को जैविक दूध ही पिलाना चाहिए, संश्लेषित दूध पिलाने की अनुमति नहीं है।

पशु की जैविक उत्पादकता को बढ़ाने के लिए और पशु की प्रजनन अवस्था को बढ़ाने के लिए एलोपैथिक पशु औषधियों तथा हार्मोनों का उपयोग नहीं करना चाहिए।

7. जैविक पशुओं की उपलब्धता:-
जैविक पशु किसी भी प्रमाणित जैविक फार्म से प्राप्त कर सकते है परन्तु जैविक फार्म से खरीदने से पहले यह पता करना आवश्यक है कि पिछले छः सालों में कोई भी पशु स्पोनजीफार्म एनसीफलाईटिस नामक बीमारी से पीड़ित नहीं हुआ हो। यदि फार्म अभी रूपान्तरण अवधि में हो तो पहले से ही फार्म पर उपस्थित पशुओं को रखा जा सकता है और उनका दूध जैविक दूध के रूप में रूपान्तरण अवधि के बाद बेचा जा सकता है।
जैविक दूध की उपयोगिता:
कार्बनिक दूध में आवश्यक ओमेगा-3 वसीय अम्ल की मात्रा कम उपयोगी ओमेगा-6 वसीय अम्ल की तुलना में अधिक होती है। ओमेगा-3 वसीय अम्ल स्वस्थ वृृद्धि के लिए आवश्यक होती है तथा हाल ही के वर्षो में इसकी कमी से होने वाले दुष्प्रभावों का अध्ययन वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।

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ओमेगा-3 वसीय अम्ल के लगातार उपयोग से मानव अपने आप को तथा अपने परिवार को बहुत से रोगों से बचा सकता है। इसके लगातार उपयोग से हृदय रोगों, लकवा की बीमारियों, कैंसर तथा जोड़ों के दर्द आदि रोगों से भी बचा जा सकता है।

जैविक दूध में संयुक्त लिनोलिनिक अम्ल की मात्रा सामान्य परम्परागत दूध से अधिक होती है। यह संयुक्त लिनोमिनिक अम्ल शरीर की उपापच्य दर को बढ़ा कर शरीर से वसा एवं कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम करता है तथा माँसपेंशियों में वृद्धि करता है। इसके साथ-साथ यह अम्ल शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।

जैविक दूध उत्पादन के लिए पशु की चराई ऐसी चारागाह में कराई जाती हैं जहाँ पर किसी फ़र्टिलाइज़र का उपयोग नहीं किया गया हो। ऐसे पशु में दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए भी किसी प्रकार के प्रतिजैविक औषधियां और हार्मोन का उपयोग नहीं किया जाता है ऐसे पशु से प्राप्त दूध में किसी भी प्रकार के हानिकारक रसायनिक पदार्थों (कीटनाशक, उर्वरक, हार्मोन तथा प्रतिजैविक औषधियों) के अवशेष भी नहीं होते है। इसलिए इनके अवशेषों (कीटनाशक, उवर्र क, हामार्ने तथा प्रतिजैविक) का शरीर पर कुप्रभाव नहीं पड़ता है।

जैविक दूध में ल्युटिन तथा जैन्थीन नामक एन्टी- ऑक्सीडेंट पदार्थ पाये जाते है। जैविक दूध में एन्टीऑक्सीडेंट पदार्थ, सामान्य दूध से 2 से 3 गुणा अधिक पाये जाते है। स ल्युटिन तथा जैन्थीन दोनो एन्टीऑक्सीडेंट आंखों को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक होते हैं तथा आंखों को पराबैंगनी किरणों से बचाते है तथा आंखों की बीमारियां जैसे मोतियाबिन्द, कालापानी, डाएविटिज रेटिनोपेथी से भी बचाता है।

जैविक दूध में विटामिन-ए (कैरोटीनाॅइड) तथा विटामिन-ई की मात्रा सामान्य दूध से अधिक होती है और कैरोटीनाइड तथा विटामिन-ई शरीर में एन्टी ऑक्सीडेंट की तरह काम कर शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता बढाते हैं।

जैविक डेयरी के विकास में बाधाएंः
जैविक पशु पालन की कुछ महत्वपूर्ण बाधाएं निम्न प्रकार हैंः-
1. ज्ञान और जागरूकता की कमी।
2. जैविक उत्पदन के लिए काम में आने वाले जैविक पशु आहार की सीमित उपलब्धता।
3. उचित रिकार्ड संधारण की समस्या।
4. उचित खरीद, प्रसंस्करण, विपणन तथा बुनियादी ढांचे की कमी।
5. प्रमाणीकरण तंत्र की जटिल प्रक्रिया तथा सीमित पहुँच।

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