झारखंड में राजपत्रित पशु चिकित्सा अधिकारी के जगह पर अराजपत्रित कृषि अधिकारी की नियुक्ति –
जब प्रादेशिक पशु चिकित्सा संघ ने शासन को विरोध की चेतावनी दी तो डी.सी. ने आदेश वापस ले लिया
रिपोर्ट: डॉ. आर.बी. चौधरी
(लेखक एवं पत्रकार, पूर्व प्रधान संपादक- एनिमल सिटिज़न , एडब्ल्यूबीआई, भारत सरकार)
1 जुलाई 2019; रांची (झारखंड)
चिकित्सा एक ऐसा विषय है जिस के पढ़ाई के बाद प्रैक्टिस करने के लिए पंजीकरण की आवश्यकता होती है. चिकित्सा चाहे इंसान की हो या पशुओं की यह विषय पूर्णतया तकनीकी है और एक प्रोफेशनल एजुकेशन के साथ साथ स्किल की जरूरत होती है. शुरू में अधिकारी पशु चिकित्सा का कार्य निचले स्तर पर करते हैं किंतु आगे चलकर वरिष्ठता और अनुभव के अनुसार उन्हें यह कार्य अपने जूनियर अधिकारियों से कराना पड़ता है अर्थात उन्हें जिला या राज्य की प्रशासनिक जिम्मेदारी दी जाती है. यह एक सिस्टम है और यह सिस्टम समूचे देश के सभी राज्यों के तकनीकी विभागों में लागू है क्योंकि अधिकारी बड़े पदों पर रहकर कार्य के बेहतरी के लिए योजनाएं बनाते हैं और संचालन करते हैं.यहां तक कि चिकित्सा कौशल की दक्षता बढ़ाने के लिए “स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स” और एडवांसमेंट के साथ-साथ “ट्रीटमेंट एथिक्स” कभी ध्यान रखना पड़ता है फिर भी कई बार मेडिकल एथिक्स के उल्लंघन की घटनाएं जाने -अनजाने में होती रहित है. झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ के अध्यक्ष डॉ. विमल हेंब्रम ने न्याय के लिए गुहार लगाने के लिए जब राज्य सरकार को संघर्ष करने की चेतावनी दी तो डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर( डीसी) ने आनन-फानन में अपने आदेश को वापस ले लिया.
झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ के अध्यक्ष डॉक्टर विमल हेंब्रम ने बताया कि उपायुक्त, राँची ने पशुपालन विभाग अंतर्गत जिला पशुपालन पदाधिकारी रांची के पद पर मनमाने तरीके से नियमों का घोर उल्लंघन करते हुए गैर पशु चिकित्सक एवं राजपत्रित अधिकारी को पदग्रहण करने का आदेश ज्ञापांक 129, दि 27/06/19 निर्गत किया था जो इस विभाग के तकनीकी प्रकृति के विरुद्ध एवं गैर कानूनी है। उन्होंने यह भी बताया कि इस आदेश से झारखंड प्रदेश के सभी पशु चिकित्सकों में बड़े तेजी से रोष फैल रहा था और धीरे-धीरे पूरे देश में पसरता जा रहा था. साथ ही साथ गैर- कानूनी था जिसमें वेटरिनरी काउंसिल एक्ट 1984 मैं दर्शित प्रावधानों का घोर सरेआम उल्लंघन था. यदि राज्य सरकार तत्काल इस निर्णय को वापस नहीं लेती है तो झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ इसके लिए संघर्ष पर हरहालत में उतर पड़ता और तब देश भर के पशु चिकित्सक इसमें शामिल हो जाते. उन्होंने रांची के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर के आज के इस निर्णय का स्वागत किया है और प्रशंसनीय कदम बताया है.
इस प्रकरण पैट डॉ. हेंब्रम पशु चिकित्सा अधिकारी पद की गरिमा का महत्व बताते हुए कहा कि झारखंड में पशुपालन विभाग पशुओं की चिकित्सा एवं कल्याण से संबंधित विभाग है जिसमें पशु चिकित्सक 5 वर्ष की अनिवार्य पशु चिकित्सा विज्ञान की स्नातक डिग्री हासिल करते हैं तब जाकर कहीं उन्हें ही सरकार पदस्थापित करती है.चूँकि, यह एक तकनीकी विषय है एवं पशु औषधियों के साथ ही साथ पशुओं से संबंधित कई प्रकार की वैधानिक शक्तियों का उपयोग पशु चिकित्सा परिषद (वेटरनरी काउंसिल ऑफ इंडिया अथवा वेटरनरी काउंसिल ऑफ स्टेट) से रजिस्टर्ड पशु चिकित्सक ही कर सकते हैं.इसलिए , पशु चिकित्सा से संबंधित कई महत्वपूर्ण नीतियों योजनाओं कार्यक्रमों का निर्माण एवं संचालन रोजमर्रा की दिनचर्या में शामिल रहता है. यह सारे निर्णय गैर-पशु चिकित्सक कैसे ले सकता है.जनपद शासन के इस आदेश से भारतीय पशु चिकित्सा परिषद सहित राज्य स्तरीय पशु चिकित्सा परिषद द्वारा निर्धारित पशु चिकित्सा नियमावली एवं शर्तों का सिर्फ उल्लंघन ही नहीं होता बल्कि इस तरह की नियुक्ति से विभाग की क्षति के साथ साथ पशुचिकित्सकों के मनोबल गिरता और देश में एक नकारात्मक संदेश जाता.
झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ के महासचिव डॉ. डी. आर. विद्यार्थी ने बताया कि इंडियन वेटरनरी काउंसिल एक्ट 1984 के अध्याय 4 धारा 30 के तहत् पशु चिकित्सक को विशेष अधिकार महत्व बताते हुए कहा कि उपायुक्त रांची ने इस नियम का उल्लंघन को इंगित करते हुए करते हुए कहा कि आज जिला कृषि पदाधिकारी को जिला पशुपालन पदाधिकारी का प्रभार दिया गया और कल कुछ भी हो सकता है. उन्होंने बताया कि प्रदेश में पशु चिकित्सकों का कोई सम्मान नहीं है क्योंकि झारखंड सरकार पशु चिकित्सकों को न तो समय पर प्रमोशन दे रही है नहीं एमएसीपी का लाभ.इतने ही नहीं रिक्त पड़े पदों पर पोस्टिंग की दिशा और दशा अत्यंत चिंतनीय है.डॉक्टर विद्यार्थी का मानना है कि आदरणीय प्रधानमंत्री जी के 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने की बात करते हैं और पशुपालन के केंद्रीय मंत्रालय को एडवांस बनाने में लगे हैं . दूसरी ओर झारखंड में निराशाजनक स्थिति चल रही है .दिशा में प्रशासन की ओर से घोर उदासीनता एक दुखद वातावरण बना हुआ है.
संघ की ओर से यह बताया गया है कि उनके समर्थन में देश भर के वरिष्ठ पशु चिकित्सक, वैज्ञानिक,प्रशासक और शिक्षाविद इस नियुक्ति पर आश्चर्य व्यक्त व्यक्त करते हुए झारखंड प्रशासन की निंदा कर रहे थे. यह भी कहा गया कि भारतीय चिकित्सा परिषद के पूर्व सेक्रेटरी प्रोफेसर (डॉ.) वी. राम कुमार काफी दुखी थे और उन्होंने शासन को पुनर्विचार करने का परामर्श दिया था. इस क्रम में यू.पी. काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के पूर्व वैज्ञानिक एवं वेटरनरी कॉलेज पंतनगर के प्रोफेसर (डॉ.) एससी त्रिपाठी ; उत्तर प्रदेश पशु चिकित्सा संघ के पूर्व सेक्रेटरी डॉ पी.के. त्रिपाठी ; महाराष्ट्र पशुचिकत्सा संघ के सदस्य डॉ. यशवंत बाघमारे एवं केरल राज्य के पूर्व पशु चिकित्सा अधिकारी एवं चर्चित पशु विज्ञान -पशुचिकत्सा एडवाइजर , डॉ. मोहनन पिलान्कू ने इसे दुखद घटना का नाम दिया था. इस संबंध में भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के पूर्वचेयरमैन एवं भारतीय सेना के रीमाउंट एंड वेटरनरी कॉर्प्स (आर.वी.सी.) पूर्व डायरेक्टर जनरल, मेजर जनरल( अवकाश प्राप्त) डॉक्टर आर एम खर्ब ने इस मामले को भारतीय पशु चिकित्सा परिषद के सामने रखे जाने का सलाह दिया और भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सचिव डॉ. नीलम बाला भी इस पर पुनर्विचार करने की राय दी .
राज्य जीव जंतु कल्याण बोर्ड के प्रभारी अधिकारी डॉ. शिवानंद काशी ने बताया कि इस संबंध में कल झारखंड पशु चिकित्सा संघ की बैठक में प्रशासन को ज्ञापन देने का निर्णय लिया गया था और यह भी निर्णय लिया गया कि यदि इस पर सुनवाई नहीं हुई तो संघ रांची जिला इकाई का तीन दिवसीय काला बिल्ला लगाकर विरोध दर्ज कराने और उसके तुरंत बाद दो-दिकी सहमति बना ली गयी थी . डॉ.काशी ने कहा कि डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ने इस मामले को वापस ले लिया है और आनन-फानन में पहले के आदेश को तुरंत निरस्त भी कर दिया गया . जिससे झारखंड पशु चिकित्सा संघ में खुशहाली का लहर दौड़ गई. डॉ. कशी ने झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ की ओर से डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर को आभार प्रकट करते हुए जाने-अनजाने में हुई गलती को सुधरने के लिए सही समय पर सही निर्णय बताया.
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