ठंड में मछलियों को बीमारियों से कैसे बचाएँ

0
635

ठंड में मछलियों को बीमारियों से कैसे बचाएँ

परिचय

बीमारी का इतिहास और
मछलियों को बीमारी से बचाने के उपाय I

परिचय

चूँकि मछली एक जलीय जीव है, अतएव उसके जीवन पर आस-पास के वातावरण की बदलती परिस्थतियां बहुत असरदायक हो सकती हैं। मछली के आस-पास का पर्यावरण उसके अनुकूल रहना अत्यंत आवशयक है। जाड़े के दिनों में तालाब की परिस्थति भिन्न हो जाती है तथा तापमान कम होने के कारण मछलियाँ तालाब की तली में ज्यादा समय व्यतीत करती हैं । अत: ऐसी स्थिति में ‘ऐपिजुएटिक अल्सरेटिव सिन्ड्रोम’ (EUS) नामक बीमारी होने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ जाती है । इसे लाल चक्ते वाली बीमारी के नाम से भी जाना जाता है । यह भारतीय मेजर कॉर्प के साथ-साथ जंगली अपतृण मछलियों की भी व्यापक रूप से प्रभावित करती है। समय पर उपचार नहीं करने पर कुछ ही दिनों में पूरे पोखर की मछलियाँ संक्रमित हो जाती हैं और बड़े पैमाने पर मछलियाँ तुरंत मरने लगती हैं ।

बीमारी का इतिहास

इस रोग का विश्लेषण करने पर यह पाया गया कि प्रारंभिक अवस्था में यह रोग फफूंदी तथा बाद में जीवाणु द्वारा फैलता है ।विश्व में सर्वप्रथम यह बीमारी 1988 में बांग्लादेश में पायी गयी थी, वहाँ से भारतवर्ष में आयी ।

इस बीमारी का प्रकोप 15 दिसम्बर से जनवरी के मध्य तक ज्यादा देखा जाता है जब तापमान काफी कम हो जाता है । सबसे पहले तालाब में रहने वाली जंगली मछलियों यथा पोठिया, गरई, मांगुर, गईची आदि में यह बीमारी प्रकट होती है । अतएव जैसे ही इन मछलियों में यह बीमारी नजर आने लगे तो मत्स्यपालकों को सावधान हो जाना चाहिए । उसी समय इसकी रोकथाम कर देने से तालाब की अन्य योग्य मछलियों में इस बीमारी का फैलाव नहीं होता है ।

READ MORE :  POLYCULTURE  FARMING BASED ON FISH

मछलियों को बीमारी से बचाने के उपाय

बिहार राज्य में सामान्य रूप से इस बीमारी के नहीं दिखने के बावजूद 15 दिसम्बर तक तालाब में 400ml Germidin-20/ एकड़ का प्रयोग कर देने से मछलियों में यह बीमारी नहीं होती है और यदि होती भी है तो इसका प्रभाव कम होता है । जनवरी के बाद वातावरण का तापमान बढ़ने पर यह स्वत: ठीक हो जाती है ।

केन्द्रीय मीठाजल जीवपालन संस्था (सिफा), भुवनेश्वर द्वारा इस रोग के उपचार हेतु एक औषधि तैयार की है जिसका व्यापारिक नाम सीफैक्स (Cifax) है । एक लीटर सीफैक्स एक हेक्टेयर जलक्षेत्र के लिए पर्याप्त होता है । इसे पानी में घोल कर तालाब में छिड़काव किया जाता है या फिर इसके जगह किसान भाई Germidin-20 / Disinfect का भी प्रयोग कर इस स्थिति में कर काफी हद तक इस बीमारी पर काबू पा सकते है ।

घरेलू उपचार में चूना के साथ हल्दी मिलाने पर अल्सर घाव ठीक हो जाने का संभावना होता है । इसके लिए 40 कि० ग्रा० चूना तथा 4 कि०ग्रा० हल्दी प्रति एकड़ की दर से मिश्रण का प्रयोग किया जा सकता है ।

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON