थनैला रोग का घरेलु उपचार

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गायो में श्वेत क्रांति का सबसे बड़ा बाधक थनैला रोग से बचाओ:

थनैला रोग का घरेलु उपचार

नीचे बताये गए घरेलू उपचारों की कोई वैज्ञानिक पुष्टि तो नहीं है लेकिन गावों में काफी प्रचलित है और किसान और पशु पालको के द्वारा प्रोयोग किये जाते है तथा उनके अनुसार ये काफी लाभप्रद नुस्खे है
>> अरण्डी का तैल चार बार कपड़े मे छानकर गरम करके पशु के थन मे धीरे- धीरे मालिश करने से थनैला रोग में आराम मिलता है।
>> दही आधा किलो और गुड एक पाव सुबह- सायं खिलाना भी लाभकारी हैं ।
>> गाय का घी एक पाव , कालीमिर्च आधा छटाक और नींबू का रस एक छटाक लें । इन तीनों को एक ही साथ मिलाकर पिलायें , लाभप्रद हैं।
>> पोस्ता का फल तथा नीम की पत्ती की भाप देना भी लाभप्रद हैं।
>> गन्धक की धूनी देने से भी लाभ होता हैं।
>> नीम के उबले हुऐ गुनगुने पानी से रोगी पशु के दूग्धकोष को दोनों समय , आराम होने तक, सेंका जाय और फिर नीचे लिखें लेप किये जायें । आँबाहल्दी २४ ग्राम , फिटकरी १२ ग्राम , गाय का घी ४८ ग्राम , दोनों को महीन पीसकर , छानकर , घी में मिलाकर , रोगी पशु के थन मे , दोनों समय आराम होने तक लेप करें
थन की सूजन की अवस्था में
>> हल्दी १२ ग्राम , सेंधानमक ९ ग्राम को महीन पीसकर ३६ ग्राम गाय के घी में मिलाकर, रोगी पशु को दोनों समय, दूध निकालने के पहले और दूध निकालने के बाद , अच्छा होने तक ,लगायें।
>> रोगी मादा पशु के थनो में नीम के उबले हुए गुनगुने पानी सें सेंकना चाहिए । सेंककर दवा लगा दी जाय।
>> तिनच ( काला ढाक ) की अन्तरछाल को छाँव में सुखाकर, बारीक कूटकर, पीसकर तथा कपडें में छानकर १ ० ग्राम पाउडर को १२ ग्राम गाय के घी में मरहम बनाकर रोगी पशु को दोनों समय अच्छा होने तक लगाना चाहिए।

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बिना सूजन के दूध में ख़ून आने की दशा में
>> सफ़ेद फिटकरी फूला २५० ग्राम , अनारदाना १०० ग्राम , पपड़ियाँ कत्था ५० ग्राम , कद्दू मगज़ (कद्दूके छीलेबीज) ५० ग्राम, फैड्डल ५० ग्राम , सभी को कूट-पीस कर कपडे से छान लें ।५०-५० ग्राम की खुराक बनाकर सुबह-सायं देने से ख़ून आना बंद हो जाता है ।
>> थन को रोज़ाना दोनों समय पत्थरचटा की धूनी देनी चाहिए।
>>पके केले में कर्पुर १ गोली रोज़ देने से भी खून आना रुक जाता है।

दूग्ध दोहन क्रिया और थनैला रोग से सम्बन्ध
दूग्ध दोहन में कई महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है। जिनका मुख्य उद्देश्य दूध का पसाव, दूध निकालने के दौरान रोग जनकों का दूधारू पशु के सम्पर्क में आने की सम्भावना को कम करना व दूध को कुशलता से निकालना होता है। दूग्ध दोहन में निम्नलिखित प्रक्रियाएं होती हैं।
>> दूग्ध दोहन के लिए ग्वाला: गन्दे उपकरणों या रोग ग्रसित पशुओं से दूध दोहन करने वाले व्यक्ति के हाथ रोगजनकों के सम्पर्क से दूषित हो सकते हैं, अतः ढूध दुहने से पहले अच्छी तरह हाथो के सफाई जरुरी है।
>> थनों को साफ करना: सभी पशुओ में थनों की चमड़ी पर रोगाणु रहते हैं जो थनैला रोग उत्पन्न कर सकते हैं। इसलिए दुहने से पहले थन व लेवटी को रोगाणुनाशक घोल से धोना चाहिए।
>> थनों को सूखाना: रोगाणु नाशक घोल से धोने के बाद थनों को साफ कपड़े के साथ पोंछकर सुखाना चाहिए। ऐसा करने से दूध के दूषित होने की सम्भावना कम रहेगी। दूध को रोगाणु नाशक दवा से दूषित होने से बचाने के लिए कई पशुओं को रोगाणु नाशक दवाई लगानी चाहिए फिर जिस पहली गाय को रोगाणु नाशक दवाई दवाई लगाई हो तो उसकी लेवटी व थनों को पोंछकर सुखाना चाहिए जो कि आसानी से सुखाई जा सकती है। इस प्रक्रिया में ध्यान रहे कि एक तौलिया केवल एक ही पशु में इस्तेमाल किया जाना चाहिए ताकि संक्रमण एक पशु से दूसरे में न जा सके।
>> दूध की पहली धार को निकालना: दूध की पहली धार किसी छोटे व चौड़े मुँह वाले बर्तन में लेकर उसमें जमें हुए दूध के धब्बे चैक करने चाहिए। काले रंग की तली वाले बर्तन इसके लिए ज्यादा ठीक रहते हैं जिसमें दूध के सफेद रंग के धब्बे आसनी से चैक किये जा सकते हैं। यदि दूध में धब्बे दिखायी दे तो पशु चिकित्सक को सुचना देनी चाहिए एवं उसका उपचार करवाना चाहिए।
>> दूध की मशीन का उपयोग: पूरा दूध निकालने के लिए दूध निकालने की मशीन को साफ करने के एक मिनट अन्दर ही सही तरीके से लगा देनी चाहिए।
>> दूध निकालते समय मशीन का समय: ज्यादातर गायों का दूध 5 से 7 मिनट में निकल जाता है। दूध निकालने में ज्यादा समय लगने से थनैला रोग बढ़ने की सम्भावना ज्यादा रहती है।
>> दूध निकालने के बाद मशीन को हटाना: दूध निकालने की मशीन को हटाने से पहले उसको बन्द जरूर कर देना चाहिए। ऐसा न करने से थन के सुराख क्षतिग्रस्त हो जाएंगें जिससे दूग्ध वाहिनी बन्द होने का समय भी बढ़ जाएगा व थनैला रोग के बढ़ने की सम्भावना भी बढ़ जाएगी। आमतौर पर थन के सुराख को बन्द होने में एक घण्टे का समय लग जाता है। कई बार दूध निकालते समय दूध निकालने की मशीन को जोर से नीचे खींचा जाता है या मशीन को ज्यादा देर तक दूधारू पशु से चिपकाए रहते हैं ताकि ज्यादा दूध निकाला जा सके। या हाथ से भी दूध निकालते समय दूध की एक-एक धार निकालने की कोशिश की जाती है, जिस से थनैला रोग की सम्भवना भी बढ़ जाती है।
>> दूध निकालने के बाद थनों पर रोग नाशक दवाई का लगाना: जैसा कि विधित है कि दूध निकालने के एक घण्टा बाद तक दूग्ध वाहिनी खुली रहती है जिससे यह रोग उत्पन्न करने वाले रोगाणुओं के उसमे घुसने की सम्भावना बहुत ज्यादा रहती है व रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिए दूध निकालने के बाद रोगाणु नाशक दवाई के घोल के साथ थनों को धोना चाहिए।
>> दूध निकालने के बाद दूधारू पशु का प्रबन्धन: दूध निकालने तुरन्त बाद पशु न बैठे। इसलिए दूध निकालने के बाद पशु को चारा खिलाना चाहिए ताकि वह खड़ा रहे। इस प्रक्रिया में लगभग एक घण्टा लग जाता है व दूग्ध वाहिनी भी बन्द हो जाती है। इससे थनैला रोग की सम्भावना भी कम रहे हैं।

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