दुग्ध ज्वर (milk fever)

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दुग्ध ज्वर (milk fever)

यह रोग गौवंश , भैस , भेड़ व बकरी मे होता है ! यह इन प्राणियो मे ब्याने/प्रसव के तुरन्त बाद होता है व इसमे प्राणी कमजोर (weak) ,लेटना (recumbency) , आघात (shock) व मृत्यु (death) जैसे महत्वपूर्ण लक्षण प्रदर्शित करता है ! हालांकि इस रोग मे पशु के शरीर का तापमान नही बढ़ता परन्तु फिर भी इसे milk fever कहते है जो इसका पुराना नाम है
इसे अन्य नामो से भी जाना जाता है ,जैसे – hypocalcemia , parturient paresis , calving paralysis , parturient apoplexy आदि भी कहते है !

रोगकारक (etiology):
गौवंश के रक्त मे कैल्शियम (calcium) की मात्रा सामान्यतः 9 -11 mg% होती है ! इस रोग का कारण प्राणी शरीर मे आयनित कैल्शियम की कमी होना है जो प्रसव (parturition) के बाद खींस/दुग्ध उत्पादन मे कैल्शियम के अधिक निष्कासन के कारण होती है ! इस hypocalcemia की स्थिती के कारण शरीर को कैल्शियम की और जरुरत पड़ती है जो पाचन तंत्र मे अवशोषण व अस्थियो के द्वारा पूरी करने की कोशिश की जाती है तथा इनके द्वारा असफल होने अर्थात अधिक कमी की अवस्था मे रोग की स्थिती पैदा हो जाती है !

Epidemiology:
यह रोग अधिक दुग्ध उत्पादन वाले गौवंश मे अधिक होता है तथा 3 से 7वें प्रसव मे इसके होने की सम्भावना अधिक होती है ! खींस (colostrum) मे कैल्शियम की मात्रा सामान्य दुग्ध की तुलना मे लगभग 12 गुना अधिक होती है !
बकरीयो (goats) मे यह रोग 4 से 6 वर्ष की उम्र पर अधिक होता है और प्रसव के पहले व बाद मे हो सकता है !
भेड़ों मे यह रोग अधिकांशतः समूह मे होता है और प्रसव के 6 सप्ताहपूर्व से लेकर 10 सप्ताह बाद तक यह रोग हो सकता है !

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लक्षण (symptoms):
1. मुख्य रुप से यह बीमारी पशु के ब्याने के 12 – 72 घन्टे के भीतर होती है !
2. पशु सुस्त हो जाता है ,गोबर बंद हो जाता है !
3. वह अपनी गर्दन को पेट की तरफ घुमाकर बैठ जाता है !
4. रोगी पशु के आफरा आ जाता है !
5. मांसपेशियां ढीली पड़ जाती है तथा पशु खड़ा होने मे असमर्थ हो जाता है !
6. नथुना सूख जाता है एवं गुदा का तापमान घटकर 97° से 100°F तक रह जाता है !
7. अंतिम अवस्था मे पशु लगभग बेहोश हो जाता है तथा एक तरफ लेटकर चारों टांगे शरीर से दूर कर लेता है !
8. यदि समय पर इलाज नही मिलता है तो पशु मर भी सकता है !

निदान (diagnosis):
इस रोग की पहचान प्राणी के प्रसव के आस-पास होने तथा यह रोग होने की स्थिती व उसके द्वारा प्रदर्शित लक्षणों के आधार पर की जाती है !

उपचार (treatment):
* रोग ग्रस्त पशु यदि लेटी अलस्था मे हो तो उसे बैठाना चाहिए , रोगी पशु को कुछ नही पिलाएं !
* कैल्शियम की बोतल को नाडी मे लगाने से पहले उसे हल्का गर्म कर ले तथा धीमी गति से चढाये !
* जहाँ तक हो पशु को केवल calcium के बजाय ऐसा द्रव्य I/V दे , जिसमे कैल्शियम (Ca) , मैग्नीशियम(Mg) तथा फॉस्फोरस(p) तीनो हो , जैसे — Mifex , Cimex आदि !
* Inj – Calcium borogluconate
slow I/v ,400-800 ml .of 25% of CBG.
half dose I/v & half dose S/c
* आवश्यकता होने पर udder inflation भी किया जा सकता है !
* Antihistamine , anti-bloat drugs भी देनी चाहिए !
* मिनरल मिक्चर पाउडर भी खिलावें – खुराक 30 -50gm.रोज मुँह से !
* इसके अलावा आवश्यकतानुसार लक्षणात्मक व सहारात्मक उपचार भी किया जाना चाहिए !

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बचाव (control):
1. दुधारु पशुओ को कैल्शियम व फास्फोरस युक्त आहार खिलावें !
2. ब्याने के 10 -15 दिन तक पशु का सम्पूर्ण दूध नही दुहना चाहिए ! दूध की कुछ मात्रा गादी मे बनी रहनी चाहिए !
3. ब्याने से पहले vitamin-AD3 एक सप्ताह ब्याने से पहले लगवा लें , जैसे – Vetade , Abcelin !

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