दुग्ध व्यवसाय में हिसाब-किताब रखें-ज्यादा मुनाफा कमाएं

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दुग्ध व्यवसाय में

हिसाब-किताब रखें-ज्यादा मुनाफा कमाएं

यह जरूरी नहीं है किताबी ज्ञान किसान भाई और दुग्ध व्यवसायिक बंधुओं के क्षेत्र में उनके डेयरी फार्म पर उनके विशिष्ट जलवायु में पलते पशुओं पर लागू हो, अत: अब समय आ गया है कि किसान भाई, दुग्ध व्यवसायिक बंधु जाग्रत होकर अपने पशुओं का अध्ययन करें और देखें कि उनका दुधारू पशु किस दहलीज पर सबसे ज्यादा दूध देता है और किस देहलीज पर पोषण ज्यादा देने के बाद भी दूध उत्पादन में और बढ़ोतरी नहीं होती है।
दुग्ध व्यवसाय का विस्तार करने हेतु आधार:- लेखा-जोखा रखने से ज्ञात हुआ कि उसे किसी वर्ष अच्छा लाभ हुआ है तो वह उस राशि से अतिरिक्त संख्या में अच्छी, दुग्ध उत्पादक मादाएं खरीदकर दुग्ध व्यवसाय का विस्तार कर सकता है, सारांश, आय-व्यय का लेखा-जोखा दुग्ध व्यवसाय में बढ़ोतरी करने का आधार है।
आर्थिक क्षमता का सही आंकलन:- दुग्ध व्यावसायिक बंधु को कभी धंधे में आवश्यक ऋण/कर्ज लेेने की जरूरत पड़े तो वह उसके पास मौजूद दस्तावेजों के आधार पर स्वयं तय कर पाएगा कि सह किसान ऋण लेकर सहज उसे लौटा सकता है। इसके अलावा संबंधित बैंक या वित्तीय संस्था के अधिकारी को वह उसकी आर्थिक क्षमता का ठोस प्रमाण पेश कर पाएगा। अत: आॢथक क्षमता का सही आकलन करने हेतु हिसाब-किताब निहायत जरूरी है।
दुग्ध-व्यवसाय में लागत का सही मूल्यांकन :- भारत में ज्यादातर किसान/दुग्ध व्यावसायिक भाईयों के परिवार के सदस्य दुग्ध व्यवसाय से जुड़े सभी कार्य यानि दुधारू पशु का रखरखाव, खिलाई, दूध निकालना, साफ-सफाई दूध का विक्रय आदि संपन्न करते हैं, अर्थात् उन्हें कोई प्रत्यक्ष रूप से वेतन नहीं दिया जाता है और वह राशि जो बाहरी/अन्य मजदूरों से कार्य करवाने की स्थिति में व्यय होती उत्पादन खर्च में जोड़ी नहीं जाती। लेकिन वास्तव में दुग्ध उत्पादन में लागत का सही मूल्यांकन करने हेतु बाजार में उपलब्ध मजदूरी की दर विशिष्ट राशि उत्पादन खर्च से उत्पन्न चारा कृषि पदार्थों का मूल्य भी बाजार भाव से लागत खर्च में जोड़ देना चाहिए। इन मदों का भी लेखा-जोखा रखना चाहिए।
सुयोग्य पशु का चयन:- वैज्ञानिक ढंग से पशुपालन में सुयोग्य यानि उच्च उत्पादक पशु का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु हैं। यह तभी संभव हो सकता है जब प्रत्येक पशु की सम्पूर्ण वंशावली, उसका उत्पादन तथा संतति के बारे में विस्तृत ब्यौरा लिखा हुआ हो। इस बिंदु को अपनाना सफल दुग्ध व्यवसाय की दिशा में पहला सही कदम होता है।
पशुओं के प्रजनन संबंधी जानकारी:- वैज्ञानिक ढंग से पशुपालन का पहला महत्वपूर्ण स्तंभ है। वैज्ञानिक ढंग से प्रजनन करवाना। यह तभी मुमकिन होगा जब पशु के प्रजनन संबंधी विस्तृत ब्यौरा लिखा हो जैसे मादा पशु की गर्मी में आने की तारीख, उसे दिए गए कृत्रिम गर्भाधानों की तारीखें और संख्या, गाभिन होने की तारीख, ब्याने की तारीख, ब्याने के बाद फिर गर्मी में आने की तारीख, कृत्रिम गर्भाधान हेतु इस्तेमाल किए गए संाड का विवरण इत्यादि।
पशुओं के पोषण संबंधी जानकारी:- वैज्ञानिक ढंग से पशुपालन में दूसरा महत्वपूर्ण स्तंभ है वैज्ञानिक ढंग से पोषण प्रबंधन करना। चूंकि पोषण पर कुल पशुपालन की लागत का 60 प्रतिशत खर्च होता है अत: सोच-समझकर, न्याययुक्त और विवेकी ढंग से आहार व्यवस्था करनी चाहिए। पशुओं को उनके शरीर भार दुग्ध उत्पादन तथा कार्य के स्वरूप (यानि भारी, मध्यम या हल्का/कम कार्य) पर आधारित संतुलित, पौष्टिक आहार देना चाहिए। जहां ज्यादा आहार देने से आॢथक हानि होगी वहीं कम आहार देने से उत्पादन में कमी होगी। अत: सुवर्णमध्य खोजना चाहिए अर्थात् सुयोग्य आहार दीजिए।
पशुओं के प्रबंधन संबंधी जानकारी:- डेयरी फार्म पर सभी क्रियाकलाप चक्रीय होते हैं यानि समयबद्ध तरीके से एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। उदा. गर्मी में आए मादा पशु को समय से यानि 12 घंटे के अंदर गर्भित करवाना पड़ता है। इसके अलावा एक विशिष्ट कालवधि में ज्यादा से ज्यादा मादाओं को गर्मी में लावें, गर्भित करवाने के प्रयास किए जाते हैं ताकि विशिष्ट कालवधि में ज्यादा बछड़े व बछियों की फसल पैदा हो ताकि उनका लालन पोषण सुव्यवस्थित ढंग से करवा सकें। अगर ऐसा नहीं हुआ तो दुग्ध उत्पादन प्रभावित होकर डेयरी फार्म की आॢथक स्थिति कमजोर होगी। यह सब तभी मुमकिन होगा जब सभी क्रियाकलापों का विस्तृत लिखा जाये।
पशु-क्रय/विक्रय का लेखा-जोखा :- अनुत्पादक/अवांछित पशुओं की झंड से छंटाई अर्थात् उन्हें बेचना लेकिन कौन सा पशु अनुत्पादक या अवांछित है यह तभी पता चलेगा जब उनके शुरूआत से उत्पादन संबंधी विस्तृत ब्यौरा उपलब्ध हो। अत: निम्रलिखित मदों पर पशुओं के बारे में जानकारी लिखी जानी चाहिए।

  • ऐेसे पशु जिनकी बढ़वार/शरीर भार, वृद्धि कम है। – अंधे,लूले-लंगड़े अपाहिज पशु।
  • ऐसे मादा पशु जो समय से गर्मी में नहीं आते हैं।
  • जिन मादाओं को बार-बार कृत्रिम गर्भाधान करवाना पड़ता है। अर्थात् जिनमें गर्भ नही ठहरता (बांझ मादाएं)।
  • जिन मादाओं के प्रजनन अंगों में कोई स्थायी नुस्खा है। उदा. गर्भाशय का मुख खराब है या अंडाणु वाहक नली खराब है या अंडकोष दोषपूर्ण हैं।
  • जिन मादाओं के थन थनैला जैसे रोग के कारण अकार्यक्षमता हो चुके  हैं। वह नर पशु जिनमें प्रजनन अंगों की कोई बीमारी जैसे- ट्राइाकोमोनियासिस/ब्रुसेल्लेसिस इत्यादि हैं।
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