दुधारू पशुओं के लिए जहरीला बनता जा रहा प्लास्टिक प्रदुषण – यहाँ जानें पशुओं को इससे बचाने का समाधान:
आज के बदलते व भाग – दौड़ वाली जिंदगी में प्लास्टिक उपयोग का उपयोग हर समय हो रहा है। इसलिए अगर इस युग को प्लास्टिक का युग कहा जाए तो इसमें कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। विज्ञान द्वारा नए आविष्कारों में प्लास्टिक वो आविष्कार है जिसने न केवल मानव जीवन में अपनी महत्वपूर्ण जगह बना ली है। आज हर जगह घर हो या ऑफिस, दुकान हो या अस्पताल हर जगह प्लास्टिक अहम रोल अदा कर रहा है। इसके बढ़ते उपयोग के कारण आज का युग बिना प्लास्टिक के सोच पाना असंभव है।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि जिस तरह हर सिक्के के दो पहलु होते हैं ठीक उसी तरह प्लास्टिक के भी दो पहलु है। प्लास्टिक मानव जीवन का अभिन्न अंग बन गया है लेकिन यह प्रदुषण बढ़ाने का भी प्रमुख कारण है। जिसका असर पर्यावरण के साथ – साथ दुधारू पशुओं पर भी पड़ रहा है।
प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग आज के दुधारू पशुओं के स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या बनता जा रहा है। इन प्लास्टिकों का सेवन पशुओं द्वारा किया जाता है। जिससे यह उनके पेट में जमा होते जाते हैं व एक गेंद या रस्से का रूप ले लेते हैं। जिससे पशुओं के पाचन क्रिया पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है। जिससे धीरे – धीरे पशुओं के स्वास्थय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है व कमजोर हो जाते हैं। पशुओं के कमजोर होने पर दुग्ध उत्पादन पर नकारात्मक असर देखने मिलता है।
पशुओं के पेट में जमा हुए प्लास्टिक में पशुओं द्वारा सेवन किया गया भोजन फसने लगता है। बितते समय के साथ यह पशुओं के पेट में भर जाते हैं औऱ अंदर की जगह कम कर देते हैं। जिससे पशुओं की पाचन क्रिया पर गहरा असर पड़ने लगता है। जिससे उन्हें भूख कम लगने लगती है, दस्त व पाचन संबंधी समस्याएं होने लगती है और पशुओं का शरीर कमजोर हो जाता है।
इतना ही नहीं कई बार पशुओं की स्वास्थ्य जांच के लिए बुलाए गए पशुचिकित्सकों को भी इस बात की जानकारी प्राथमिक जांच में प्राप्त नहीं हो पाती है कि पीड़ित पशु के पेट में प्लास्टिक मौजुद है। जिससे उनके द्वारा किए गए उपचार से पशुओं को कोई विशेष आराम नहीं मिल पाता बल्कि समय के साथ उनके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट देखने को मिलती है। जिससे उनके गिरते स्वास्थ्य से दुग्ध उत्पादन में भी लगातार कमी दर्ज की जा सकती है।
प्लास्टिक की गुणवत्ता का भी पशुओं के स्वास्थ्य पर असर देखऩे को मिलता है। अक्सर प्लास्टिक की गुणवत्ता निम्न स्तर की होती है। इसलिए ज्ञात हो कि निम्न स्तर वाले प्लास्टिक विषैले रसायन छोड़ते है। ऐसे विषैले रसायन छोड़ने वाले प्लास्टिक का सेवन करने के बाद यह रसायन पशुओं के शरीर व रक्त में समाहित हो जाते हैं। जिससे पशुओं में विषाक्तता बढ़ने की संभावना के साथ – साथ मृत्यु होने का भी खतरा रहता है।
इसलिए प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग से पशुओं में एक ज्वलंत व गंभीर बिमारियों को जन्म दे रही है। ये प्लास्टिक हमारे पशुओं के पेट में फंसकर उनके लिए जानलेवा साबित हो रही है। इसलिए प्लास्टिक के अति उपयोग के बारे में हमे आत्ममंथन करने की जरूरत है।
ज्ञात हो कि ये पशु अखाद्य पदार्थ को खाद्य से छांटकर अलग करने में असमर्थ होते हैं। जिससे वे प्लास्टिक का सेवन भी कर लेते है। स्वाद रहित, चिकना होने के कारण प्लास्टिक का सेवन पशुओं को अजीब नहीं लगता और वे आसानी से अन्य सामाग्री के साथ इसका सेवन कर जाते हैं। जैसा कि हमने आपको बताया कि लगातार सेवन करने से ये पेट में गेंद व रस्सा बन जाते हैं इसलिए ऑपरेशन करने पर ही इसका निदान प्राप्त किया जाता है। कई बार पशुचिकित्सकों द्वारा ऑपरेशन करने पर पशुओं के पेट से पाँच किलोग्रमा तक प्लास्टिक पायी गयी है।
इसलिए प्लास्टिक प्रदुषण से अपने पशुओं को बचाने के लिए हम आपको कुछ समाधान बता रहे हैं जिसकी सहयता से पशुओं को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
1) सरकार हमेशा प्लास्टिक प्रदुषण को रोकने के लिए विभिन्न तरह के नियम लाती है। लेकिन आम जन अपनी स्वेच्छा से पॉलिथिन, कैरी बैग, लिफाफे जैसे रोजमर्रा में उपयोग में लायी जाने वाली प्लास्टिक के वस्तुओं का उपयोग कम करने से किसी कानून की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
2) घर की महिलाओं को बचा हुआ भोजन, कुड़े, सब्जी व फलों के छिलके व अन्य पदार्थों को प्लास्टिक की थैली में फेंकने से पहरेज करना जरूरी है।
3) प्लास्टिक के कचरों को कूड़े दान में न डालना सबसे सही उपाय है।
4) प्लास्टिक व अन्य ऐसे कुड़ें जो जल्दी नहीं गलते हैं वैसे कचरों के निष्पादन के लिए स्थानीय नगरपालिका की सहायता से एक ऐसे स्थान का चयन करें जो पशुओं की जाने की संभावना नहीं है और वहीं इस तरह के कुड़ों को जमा किया जाए। ये पर्यटन क्षेत्र के लिए बेहद ही लाभकारी समाधान है।
5) पर्यटन क्षेत्र पर जाने पर जितना हो सके उतना प्लास्टिक के समानों का उपयोग न करें और नहीं प्लास्टिक के पैकेट्स यहाँ – वहाँ फेंके। जिससे पशुओं को प्लास्टिक के सेवन से बचाने में हम महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
6) जिस तरह से यह हम सब की जिम्मेदारी है ठीक उसी तरह सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी पशुपालक की है कि वे अपने पशुओं को उस स्थान पर जाने से रोकें जहाँ प्लास्टिक के कुड़े अधिक पाएं जाते हैं। जिससे चरने जाते समय वे प्लास्टिक के संपर्क में ना आए।
7) आम जनता के साथ – साथ यह सरकार की भी जिम्मेदारी है कि पशुधन के स्वास्थय की रक्षा करें। इसलिए प्लास्टिक के कुड़े के निष्पादन के लिए सही तकनीकी का उपयोग किया जाए। निम्न स्तर व बेवजह उपयोग में लायी जाने वाले प्लास्टिक के उत्पादों पर बैन लगाया जाए। इससे प्लास्टिक के उत्पादन में कमी आएगी और आम जन के द्वारा उपयोग में भी। जिससे हमारे पशुओं के भी प्लास्टिक के संपर्क में आने की उम्मीद कम रहेगी और हमारे पशु सुरक्षित रह पाएंगे।
इसके साथ ही हम आपको घरेलु उपाय भी बता रहें हैं, जिससे पशुपालक अपने पशुओं की उचित देखभाल कर सकते हैं–
गाय के पेट से प्लास्टिक पौलिथिन को समाप्त करने का सफल उपचार
सामग्री :
100 ग्राम सरसों का तेल,
100 ग्राम तिल का तेल,
100 ग्राम नीम का तेल
और
100 ग्राम अरण्डी का तेल
विधिः
इन सबको खूब मिलाकर 500 ग्राम गाय के दूध की बनी छांछ में डालें तथा 50 ग्राम फिटकरी, 50 ग्राम सौंधा नमक पीस कर डालें। ऊपर से 25 ग्राम साबुत राई डाले। यह घोल तीन दिन तक पिलायें और साथ में हरा चारा भी दें। ऐसा करने से गाय जुगाली करते समय मुहं से पौलिथिन निकालती है। कुछ ही दिनों में सारी पौलिथिन बाहर होगा।
अत: पशुओं को प्लास्टिक के प्रकोप से बचाने के लिए यह जरूरी है हम स्वेच्छा से इसके उपयोग में कमी लाएं। इस प्रकार हम अपने पशुधन के स्वास्थ्य की रक्षा कर पाएंगे और उससे अधिक दुग्ध उत्पादन प्राप्त कर राष्ट्र निर्माण में भी महत्वपूर्ण सहयोग दें पाएंगे।