दुधारू पशुओं में पाचन संबंधी बीमारियाँ एवं उपचार
पशुओं को स्वस्थ रखने में इनके पाचन तंत्र की अहम भूमिका है। यदि पशुओं के पाचन तंत्र में थोड़ा सा भी गड़बड़ी हो जाता है तो पशु अपना आहार कम कर देता है या छोड़ देता है ,फल स्वरुप उसका प्रभाव दूध उत्पादन के साथ-साथ पशु के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।
पशुओं द्वारा अधिकतम उत्पादन और शारीरिक वृद्धि के लिए उनके पाचन तंत्र का स्वस्थ रहना अति आवष्यक है। पाचन तंत्र द्वारा पशु का शरीर चारे मेें से आवष्यक पोषक तत्व जैसे वसा, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, खनिज लवण एवं विटामिन इत्यादि अवषोषित करता है। ये पोषक तत्व पशुओं के सामान्य स्वास्थ्य, दूध उत्पादन, मांसपेषी की वृद्धि एवं प्रजनन के लिए अति आवष्यक हैं। यदि पशु का पाचन तंत्र स्वस्थ है तो उसकी उत्पादन क्षमता भी अधिकतम रहती है।
स्वस्थ पशु खाने के प्रति बहुत लगाव रखते हैं और चारा डालते ही खोर की तरफ तेजी से आते हैं। सामान्यतः किसी भी बीमारी में सबसे पहला लक्षण पशु का चारा छोड़ देना होता है। बड़े फार्म पर, जहाँ सैकड़ों की संख्या में पशु रखे जाते हैं, उनमें से बीमार पशुओं को ढूंढ़ने का यह सबसे आसान तरीका है। गाय-भैंसों में आमतौर पर पाई जाने वाली पाचन संबंधी मुख्य बीमारियाँ, उनके लक्षण एवं उपचार इस प्रकार से हैं-
1. चारा न खाना/कम खाना:
कारण:
1.पशु के पेट में कीड़े होना।
2.शरीर के किसी अन्य भाग में बीमारी होना, जैसे- निमोनिया, बच्चेदानी का संक्रमण आदि।
3.पशु की जाड़ बढ़ना।
4.पशु के खून में संक्रमण होना, जैसे- सर्रा आदि।
उपचार:
1.पशु चिकित्सक द्वारा पशु की जाँच करवाना एवं कारण का पता लगा कर उचित इलाज करवाना चाहिए।
2.पशु को साल में दो बार पेट के कीड़ों की दवाई अवष्य देनी चाहिएं।
3.पशुओं को गलघोंटू व मुॅंह-खुर के टीके समय पर लगवाना चाहिए।
4.अगर पशु के मुँह में खाना इकट्ठा होता हो तो उसमें जाड़ों की समस्या हो सकती है। पशु को अस्पताल में ले जाकर माऊथ-गैग लगवाकर उसके दाँतों व जाड़ों की अच्छी तरह जाँच करनी चाहिए व बढ़ी हुई जाड़ों को घिसवा कर ठीक करवाना चाहिए।
2. पशु के मुँह से चारा गिरना:
कारण:
1.पशु की भोजन नली का किसी कपड़े पालीथीन, गाजर, सबे आदि से अवरूद्ध होना।
2.पशु में लकवा नामक बीमारी होना।
3.पशु का अत्याधिक अनाज खाना और lactic acidaris हो जाना।
4.पशु में जाड़ व दाँतों का बढ़ना।
5.पशु के मुँह में शालू बढ़ना।
6.मुह-खुर बीमारी से ग्रसित होना।
7.पशु के पेट में फोड़ा होना
उपचार:
1.पशु चिकित्सक द्वारा बीमारी का उचित कारण पता लगाया जाना चाहिए। इसके लिए पशु के मुँह व गर्दन का एक्स-रे करवाया जाना चाहिए।
2.कई बीमारियों में आपरेषन ही एकमात्र इलाज होता है। आपरेषन के बाद सर्जन की सलाह अनुसार ही पशु का खानपान व देखभाल करनी चाहिए।
3. पाईका / Pica:
इस बीमारी में पशु कपड़े, बाल, पालीथीन, गोबर, मिट्टी आदि खाने लग जाते हैं।
कारण-
पशु के शरीर में phosphorus नामक लवण की कमी हो जाना।
उपचार-
1.Sodaphas 20g प्रतिदिन पशु को खिलाना।
2.फास्फोरस के इंजैक्षन ; (Tonophasphone, Novizac) भी लगवाए जा सकते हैं।
4. दस्त लगना-
अधिक मात्रा में बार-बार पतला गोबर करना।
प्रमुख लक्षण:
1.गोबर के साथ खून व आँतों के अंदर की परत ; (Mucus membrane) का आना।
2.पशु का कमजोर होना, आंखे अंदर धंसना, त्वचा का रूखापन व शरीर में पानी की कमी होना।
3.कई बार पशु ज्यादा कमजोरी के कारण उठ भी नहीं पाते और उचित इलाज के अभाव में मर जाते हैं।
कारण:
1.पशु के पेट व आंतों में कीड़े होना।
2.आंतों में कीटाणु या विषाणुओं का संक्रमण होना जैसे आंतों की टी.बी.।
3.अत्याधिक अनाज खा जाना।
4.पशु के चारे या बाखर में अचानक बदलाव करना।
उपचार:
1.आंतों में कीटाणुओं के संक्रमण को कम करने के लिए Vetflox-TZ, Norflox-TZ, Pabadene, Esulin-MFL आदि के बोलस पशु को देने चाहिए।
2.पशु को नस में गलूकोज लगवाना चाहिए एवं छमइसवद पाऊडर 50 ग्रा. प्रतिदिन खिलाना चाहिए।
3.यदि पशु अचानक अत्याधिक दलिया या अनाज खा जाए, तो तुरंत पशु चिकित्सक को बलुाना चाहिए। कई बार पशु की जान बचाने के लिए आपातकालीन – पेट का आपरष्ेान ;त्नउमदवजवउलद्ध ही अंतिम उपाय होता है।
4.पशु के चारे में बदलाव धीरे-धीरे एवं कम से कम 20 दिन में करना चाहिए।
5. पशुओं में गोबर का बंधा पड़ना
लक्षण:
1.पशु का कम मात्रा में या बिल्कुल भी गोबर न करना।
2.पशु के पेट का फूलना।
3.काले रंग का गोबर आना तथा उसमें अत्याधिक मात्रा में जाले से दिखाई देना।
4.पशु द्वारा चरना कम कर देना व धीरे-धीरे छोड़ देना।
कारण:
1.पशु के पाचन तंत्र का कपड़े, बाल, पालीथीन आदि से अवरूद्ध हो जाना।
2.पशु के पेट व आंतों की कीटाणुओं के संक्रमण के कारण जुड़ जाना।
3.पशु की आंतड़ियों का एक दूसरे में घुस जाना।
4.पशु द्वारा अधिक मात्रा में नया तूड़ा खा जाना।
5.पशु के पेट में कीड़े होना।
6.छोटे कटड़ों में पेषाब रूकना।
उपचार:
1.कीटाणुओं के संक्रमण को खत्म करने के लिए एंटीबायोटिक के इंजैक्षन लगवाने चाहिए।
2.नया तूड़ा छान कर व कम मात्रा में पशु को खिलाना चाहिए।
3.बंधा खोलने के लिए MgSO4, 400-1000g व Liquid Paraffin 5.10 lt पशु को मुँह द्वारा दिए जाने चाहिए।
4.दवाईयों द्वारा ठीक ना होने पर पशु को आपरेषन द्वारा इलाज करवाया जाना चाहिए एवं सर्जन की सलाह अनुसार ही पशु का रखरखाव करना चाहिए।
5.छोटे कटड़ों में जब पेषाब रूक जाता है, तब गोबर भी रूक जाता है। पेषाब का आपरेषन करवाने के बाद, गोबर की समस्या अपने आप ठीक हो जाती है।
6. अफारा आना:
लक्षण:
1.पशु के पेट का बांई तरफ से असामान्य रूप से फूल जाना।
2.पशु का मुँह खोल कर सांस लेना।
कारण:
1.पशु के पेट में कील, सूंई आदि चुभी होना।
2.पशु के शरीर में कीटाणुओं का संक्रमण होना।
3 भोजन नली का अवरूद्ध होना।
4.छाती का पर्दा फटा होना।
5.पशु द्वारा अत्याधिक अनाज, आटा आदि खाना।
उपचार:
1.अस्थाई उपचार – Blitinox / Bloatasil- 50 मि.ली. तारपीन का तेल 100 मि.ली. सरसों का तेल) में से कोई एक दवाई पशु को बिना जीभ पकड़े पिलानी चाहिए।
2.स्थाई उपचार – यदि कई दिनों से लगातार अफारा चल रहा है, तो पशु का एक्स-रे करवाना चाहिए। इसके बाद आपरेषन द्वारा पेट में चुभे कील सूंई, तार, एवं अन्य वस्तुएँ जैसे पालीथीन, कपड़े आदि निकाल दिए जाते हैं और पशु धीरे-धीरे स्वस्थ हो जाता है।
पशु अल्पभूमि एवं भूमिहीन किसानों की आजीविका और खानपान में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। इनके स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाना चाहिए। स्वस्थ पशु ही किसान को लाभान्वित कर सकते हैं और उनके जीवन स्तर में सुधार कर सकते हैं।