दूध की संरचना

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दूध की संरचना

आमतौर पर दूघ में,
83 से 87 प्रतिशत तक पानी
3.5 से 6 प्रतिशत तक वसा (फैट)
4.8 से 5.2 प्रतिशत तक कार्बोहाइड्रेड
3.1 से 3.9 प्रतिशत तक प्रोटीन होती है। इस प्रकार कुल ठोस पदार्थ 12 से 15 प्रतिशत तक होता है। लैक्टोज़ 4.7 से 5.1 प्रतिशत तक है। शेष तत्व अम्ल, एन्जाईम विटामिन आदि 0.6 से 0.7 प्रतिशत तक होते है।
गाय के दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन 2 प्रकार के हैं। एक ‘केसीन’ और दूसरा है ‘व्हे’ प्रोटीन। दूध में केसीन प्रोटीन 4 प्रकार का मिला हैः
अल्फा एस1 (39 से 46 प्रतिशत)
एल्फा एस2 (8 से 11 प्रतिशत)
बीटा कैसीन (25 से 35 प्रतिशत)
कापा केसीन (8 से 15 प्रतिशत)
गाय के दूध में पाए गए प्रोटीन में लगभग एक तिहाई ‘बीटा कैसीन’ नामक प्रोटीन है। अलग-अलग प्रकार की गऊओं में अनुवांशिकता (जैनेटिक कोड) के आधार पर ‘केसीन प्रोटीन’ अलग-अलग प्रकार का होता है जो दूध की संरचना को प्रभावित करता है, या यूं कहे कि उसमें गुणात्मक परिवर्तन करता है। उपभोक्ता पर उसके अलग-अलग प्रभाव हो सकते हैं।
बीटा कैसीन ए1, ए2 में अन्तर क्या है?

बीटा कैसीन के 12 प्रकार ज्ञात हैं जिनमें ए1 और ए2 प्रमुख हैं। ए2 की एमिनो एसिड़ श्रृंखला (कड़ी) में 67 वें स्थान पर ‘प्रोलीन’ होता है। जबकि ए1 प्रकार में यह ‘प्रोलीन’ के स्थान पर विषाक्त ‘हिस्टिडीन’ है। ए1 में यह कड़ी कमजोर होती है तथा पाचन के समय टूट जाती है और विषाक्त प्रोटीन ‘बीटा कैसोमार्फीन 7’ बनाती है।

विदेशी गोवंस विषाक्त क्यों है?

जैसा कि शुरू में बतलाया गया है कि विदेशी गोवंश में अधिकांश गऊओं के दूध में ‘बीटा कैसीन ए1’ नामक प्रोटीन पाया गया है। हम जब इस दूध को पीते हैं और इसमें शरीर के पाचक रस मिलते हैं व इसका पाचन शुरू होता है, तब इस दूध के ए1 नामक प्रोटीन की 67वीं कमजोर कड़ी टूटकर अलग हो जाती है और इसके ‘हिस्टिाडीन’ से ‘बी.सी.एम. 7’ (बीटा कैसो माफिन 7) का निर्माण होता है। सात सड़ियों वाला यह विषाक्त प्रोटीन ‘बी.सी.एम 7’ पूर्वोक्त सारे रोगों को पैदा करता है। शरीर के सुरक्षा तंत्र को नष्ट करके अनेक असाध्य रोगों का कारण बनता है।

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भारतीय गोवंस विशेष क्यों

करनाल स्थित भारत सरकार के करनाल स्थित ब्यूरो के द्वारा किए गए शोध के अनुसार भारत की 98 प्रतिशत नस्लें ए2 प्रकार के प्रोटीन वाली अर्थात् विष रहित हैं। इसके दूध की प्रोटीन की एमीनो एसिड़ चेन (बीटा कैसीन ए2) में 67वें स्थान पर ‘प्रोलीन’ है और यह अपने साथ की 66वीं कड़ी के साथ मजबूती के साथ जुड़ी रहती है तथा पाचन के समय टूटती नहीं। 66वीं कड़ी में ऐमीनो ऐसिड ‘आइसोल्यूसीन’ होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भारत की 2 प्रतिशत नस्लों में ए1 नामक एलिल (विषैला प्रोटीन) विदेशी गोवंश के साथ हुए ‘म्यूटेशन के कारण’ आया हो सकता है।
एन.बी.ए.जी.आर. – करनाल द्वारा भारत की 25 नस्लों की गऊओं के 900 सैंम्पल लिए गए थे। उनमें से 97-98 प्रतिशत ए2ए2 पाए गए गथा एक भी ए1ए1 नहीं निकला। कुछ सैंम्पल ए1ए2 थे जिसका कारण विदेशी गोवंस का सम्पर्क होने की सम्भावना प्रकट की जा रही है।

गुण सूत्र

गुण सूत्र जोड़ों में होते हैं, अतः स्वदेशी-विदेशी गोवंश की डी.एन.ए. जांच करने पर
‘ए1, ए2’
‘ए1, ए2’
‘ए2, ए2’
के रूप में गुण सूत्रों की पहचान होती है। स्पष्ट है कि विदेशी गोवंश ‘ए1ए1’ गुणसूत्र वाला तथा भारतीय ‘ए2, ए2’ है।
केवल दूध के प्रोटीन के आधार पर ही भारतीय गोवंश की श्रेष्ठता बतलाना अपर्याप्त होगा। क्योंकि बकरी, भैंस, ऊँटनी आदि सभी प्राणियों का दूध विष रहित ए2 प्रकार का है। भारतीय गोवंश में इसके अतिरिक्त भी अनेक गुण पाए गए हैं। भैंस के दूध के ग्लोब्यूल अपेक्षाकृत अधिक बड़े होते हैं तथा मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव करने वाले हैं। आयुर्वेद के ग्रन्थों के अनुसार भी भैंस का दूध मस्तिष्क के लिए अच्छा नहीं, वातकारक (गठिाया जैसे रोग पैदा करने वाला), गरिष्ठ व कब्जकारक है। जबकि गो दूग्ध बुद्धि, आयु व स्वास्थ्य, सौंदर्य वर्धक बतलाया गया है।

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