शहरों में दूध के अच्छे रेट (मूल्य) तथा बढ़ती मांग के कारण दूध में पानी मिलाना आम बात है। पानी के अलावा दूध में अन्य कई प्रकार के अपमिश्रको की मिलावट हो रही है। जिससे की पानी मिलाने के बावजूद सामान्य जांच करने पर यह पता न लग पाए की दूध अपमिश्रक युक्त है। दूध में पानी, चीनी, ग्लूकोज, सप्रेटा दूध, दुग्ध चूर्ण, टोड दूध, तथा अभिरंजक पदार्थ अपमिश्रक के रूप में सामान्यतया मिलाए जाते है। इनके ज्ञात करने की सामान्य व प्रयोगशाला विधियां इस इकाई में वर्णित है। कुछ वर्षो पूर्व बाजार में यूरिया आधारित संश्लेषित दूध बाजार में आया है। इसकी जांच हेतु इकाई में यूरिया का परीक्षण भी वर्णित है।
उद्देश्य:
दूध में अपमिश्रण की मुख्य प्रेरणा अधिक लाभ कमाने की नियत से मिलती है दूसरी तरफ दूध की भौतिक प्रकृति भी मिलावट को अधिक प्रभावित करती है। अपारदर्शक होने के कारण इसमें बाहर से मिलाए गए पदार्थो को आसानी से नही पहचाना जा सकता है। दूध में पानी तथा घुलनशील पदार्थ एक निश्चित अनुपात में मिलाने से दूध का आपेक्षिक घनत्व अपरिवर्तनशील रहता है भैस के दूध में जहां अधिक वसा तथा वसा रहित ठोस रहते है में पानी मिलाकर गाय के दूध के रूप में बेचा जा सकता है। इस दूध से थोड़ा क्रीम निकालकर फिर उसमें थोड़ा पानी मिलाकर भी अपमिश्रित किया जाता है।
अपमिश्रण के प्रकार:
बाजार के दूध में मुख्यत: निम्नलिखित प्रकार से अपमिश्रण किया जाता है।
दूध में पानी एवं सप्रेटा मिलाना
दूध में चीनी मिलाना
दूध में स्टार्च एवं अन्य प्रकार के आटे मिलाना
दूध से क्रीम निकाल कर उसमें पानी मिलाना
भैस के दूध में गाय का दूध मिलाना
परिरक्षि तथा निष्पभावक पदार्थ मिलाना
सप्रेटा दूध चूर्ण मिलाकर पानी मिलाना
गोद तथा जिलेटिन मिलाना
दूध में रंजक मिलाना
दूध में यूरिया मिलाना
दूध के कुछ असाधारण अपमिश्रण एवं उनकी समस्याएं
उपरोक्त दिए गए प्रचलित अपमिश्रणों के अलावा दूध व्यवसाय के विस्तार के साथ-साथ कुछ ऐसी बाते भी आ गई है जिनका सामना दूध व्यवसाय में लगे लोगों और उपभोक्ताओं दोनों को करना पड़ रहा है। जबकि ये किसी को धोखा देने के लिए नही की जाती है। उदाहरण के तौर पर जब दूध से घी या अन्य पदार्थ बनाए जाते है या खुद ही दूध को संयत्र में रखकर पास्तुरीकृत या निजीवीकृत किया जाता है तब उनमें बाहरी पदार्थ जैसे एन्टीआक्सीडेंट रंगीन पदार्थ महकने वाले पदार्थ, मशीनों में लगे तेल या इमल्सीफायर इत्यादि का दूध में मिल जाना स्वाभाविक सी बात है। जब तक सरकार द्वारा इनकी मिलावट को उचित नही ठहराया जाय तब तक इन सभी को अपमिश्रण की श्रेणी में माना जाना चाहिए। इनके अलावा नए सफाई करने वाले पदार्थ सेनीटाइजर तथा चिकनाहटवाले पदार्थ (लुब्रीकेन्ट) जब भी दूध वाले बर्तनों एवं मशीन में उपयोग में आते है उनका कुछ हिस्सा दूध में मिलकर दूध को अपमिश्रित कर देते है। प्लास्टिक में बंद दूध में प्लास्टिक अंश, इनेमिल एवं कोटिंग भी अपमिश्रण के साधन है और ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी है। डेरी व्यवसाय में लगे लोगो को इसका विशेष ध्यान देना चाहिए और जहां तक हो सके इनसे बचने का प्रयास करना चाहिए।
जानवरों की अन्य बीमारियों के साथ-साथ थनैला रोग के उपचार के ली बहुदा तरह-तरह की दवाईयां थनों में डाली जाती है। इन परिस्थितियों में इन दवाओं का दूध में आना स्वाभाविक है इसलिए किसानों को चाहिए की दवा ध्यानपूर्वक देखे और समझे यदि स्वयं की समझ में न आए तो डाक्टर की सलाह ले। विशेषरूप से ध्यान देने की बात यह है की दवा देने के कितने घंटे बाद इसका असर दूध में नही आता है। इसी हिसाब से दूध को काम में लेना चाहिए दवा देने के लगभग 3-5 दिनों तक के दूध का इस्तेमाल पीने के लिए नही करना चाहिए। आजकल दूध निकालने में भैसों एवं गायों को ज्यादातर किसान आक्सीटोसीन नामक हार्मोन्स का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे है। साधारण परिस्थितयों में इससे प्राप्त दूध स्वास्थ्य के लिए अच्छा नही है सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।
जब तक सरकार उपरोक्त सभी किस्म के असाधारण अपमिश्रणों का दूध में कोई मानक तैयार नही करती है और उस पर शक्ति से अमल नही करवा पाती ये सभी अपमिश्रण दूध में चलते रहेगे और उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालते रहेगे।
दूध के वैधानिक मानक:
दूध में अपमिश्रण ज्ञात करने से पहले यह आवश्यक है की हम यह जान लेवे कि शुद्ध दूध के लिए भारत सरकार ने कौन-कौन से मानक तैयार किए है उन्ही मानको के आधार पर हम यह पता लगा सकेगे कि दिया हुआ दूध का नमूना इस मानक के अनुरूप है अथवा नही।
दूध में अपमिश्रण ज्ञात करने की विधियां:
दूध में विभिन्न अपमिश्रणों की उपस्थित्ति तथा मात्रा का पता लगाने के लिए निम्नलिखित विधियां अपनाई जाती है।
दूध में पानी की मिलावट का पता करना:
दूध के लिए पानी एक सामान्य अपमिश्रण है मिलाए गए पानी की उपस्थिति कई परीक्षणों द्वारा पता की जाती है। दूध में पानी मिलाने से दूध की वसा, आपेक्षिक घनत्व अपवर्तनांक तथा वसा रहित ठोस की प्रतिशत मात्रा में कमी आ जाती है।
वसा परीक्षण:
वसा परीक्षण द्वारा दूध में वसा निकालने की विधि पहले ही बताई जा चुकी है। सामान्य एवं बिना अपमिश्रित गाय के दूध में यदि पानी नही मिलाया गया है तब उसकी वसा प्रतिशत 4 या 5 प्रतिशत के बीच में होनी चाहिए और यदि भैस का दूध है तब वसा 6-7 प्रतिशत तक होनी चाहिए इससे कम वसा होने पर दूध में पानी मिले होने का संदेह करना चाहिए।
आपेक्षिक घनत्व परीक्षण:
दूध का आपेक्षिक घनत्व लैक्टोमीटर द्वारा ज्ञात किया जाता है। एक अच्छे किस्म के गाय के दूध का आपेक्षिक घनत्व 1.030 होना चाहिए। यानी इसका लैक्टोमीटर का नम्बर 30 होना चाहिए। लैक्टोमीटर द्वारा आपेक्षिक घनत्व निकाले जाने का वर्णन इससे पहले वाले खंड में कर दिया गया है। गाय के दूध का लैक्टोमीटर मान 28-30 एवं भैस के दूध का 30-32 होता है। साधारणतया दूध की शुद्धता जांचने के लिए गाय एवं भैस के दूध के लिए औसत मान क्रमश: 28 व 30 प्रयुक्त किया गया है।
दूध में पानी के अपमिश्रण की मात्रा:
आपेक्षिक घनत्व विधि द्वारा निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात करते है:-
दूध में अपमिश्रित पानी का प्रतिशत =
शुद्ध दूध का लैक्टोमीटर मान-मिलावटी दूध का लैक्टोमीटर मान x 100
शुद्ध दूध का लैक्टोमीटर मान
वसा रहित ठोस पदार्थ प्रतिशत निर्धारण
जल के मिलाने से दूध में वसा रहित ठोस पदार्थो की प्रतिशत मात्रा में कमी आ जाती है। यह कमी प्रोटीन लैक्टोज एवं खनिज लवणों की मात्रा में कमी से होती है। गाय के शुद्ध दूध का वसा रहित ठोस 8.5 से 9.2% तथा भैस के दूध का 9.3 -10.1 के बीच होता है। वसा रहित ठोस पदार्थो की मात्रा का निर्धारण दूध में मिलाए गए पानी की मात्रा ज्ञात करने के लिए बहुत अच्छा परीक्षण है। निम्न सूत्रों की सहायता से दूध में मिलाए गए पानी की प्रतिशत मात्रा निकालते है।
शुद्ध दूध का लैक्टोमीटर + वसा % मान 36.11 से 36.35 के बीच विचलित करता है। बहुत कम परिस्थितियों में यह 34.5 से नीचे जाता है। चाहे वसा प्रतिशत बढ़े या घटे। यदि यह मात्रा 36 से कम हो तो दूध में पानी की मिलावट समझी जाती है।
वसा रहित ठोस का निर्धारण भारात्मक विधि द्वारा भी किया जा सकता है। जो कि इस परीक्षण के लिए काफी अच्छी है। परन्तु इस विधि में समय अधिक लगता है। इस विधि में कुल ठोस % की मात्रा ज्ञात करके उसमें से वसा % की मात्रा घटा दी जाती है।
दूध का हिमांक परीक्षण:
दूध का हिमांक सबसे स्थिर रहने वाला गुण है दूध में पानी के अपमिश्रण को ज्ञात करने के ली यह सबसे विश्वसनीय विधि है शुद्ध दूध का हिमांक-0.544 सें. होता है गाय एवं भैस के दूध के हिमांक में बहुत अंतर नही होता है। भैस के दूध का हिमांक -0.530 डिग्री सें. से – 0.56 डिग्री सें. के मध्य में रहता है जब कि गाय के दूध का हिमांक -0.54 से 0.55 डिग्री सें. के मध्य होता है। दूध का यह गुण दूध में विलेय पदार्थो की साद्र्ता पर निर्भर करता है। इन विलेय पदार्थो में लैक्टोज एवं खनिज लवणों का विशेष प्रभाव पड़ता है दूध में विलेय पदार्थो की साद्र्ता में कमी होने पर हिमांक बढ़ जाता है अथवा हिमांक अवनयन कम हो जाता है। इस परीक्षण से दूध में कम से कम 2% तक मिलाए गए पानी का पता लगा लिया जाता है। परन्तु यदि सप्रेटा दूध की मिलावट कर पता इस विधि द्वारा नही लगाया जा सकता है। ऐसा इस लिए होता है कि शुद्ध दूध एवं सप्रेटा का हिमांक समान होता है। इसी कारण से यदि दूध से आंशिक वसा निकाल ली जाए तब भी इस विधि द्वारा पता नही लगाया जा सकता है। इन सबका एक ही कारण है कि वसा एवं प्रोटीन दूध में हिमांक को प्रभावित नही करते है।
गाय एवं भैस के दूध के हिमांक में कोई विशेष भिन्नता न होने के कारण भैस के दूध में पानी मिलाकर गाय के दूध की तरह बेचने पर इस परीक्षण द्वारा आसानी से पता लग जाता है। पानी मिले हुए दूध का हिमांक अवनयन पानी के हिमांक की तरफ अग्रसर होता है। ताजे दूध का हिमांक अवनयन 0.53 डिग्री सें. से कम होने पर उस दूध में पानी की मिलावट निश्चित ही होती है।
अपवर्तनांक परीक्षण:
दूध का अपवर्तनांक परीक्षण जो की रिफैक्टोमीटर द्वारा निकाला जाता है भी दूध में अपमिश्रण ज्ञात करने में सहायक हो सकता है। दूध का अपवर्तनांक भी उसमें घुलनशील पदार्थो की सांद्रता पर निर्भर करता है। पानी मिलाने से दूध में घुलनशील पदार्थो की साद्र्ता कम हो जाती है जिससे अपवर्तनांक कम हो जाता है साधारण पानी का अपवर्तनांक 1.33 होता है जब की शुद्ध दूध में यह मान 1.44 होता है। रिफैक्टोमीटर से दूध के सिरम से जब इसकामान ज्ञात किया जाता है तब इसका मान पूर्ण होता है और उसे ऊपर दी गई दशमलव के अंक में बदलते है। शुद्ध दूध का पूर्ण मान 38.5 और 40.5 के मध्य होता है। जब यह मात्रा 38.5 से कम होती है तब दूध में पानी मिले होने की सम्भावना जताई जाती है।
नाइट्रेट परीक्षण:
प्राकृतिक पानी में साधारणतया नाइट्रेट आयनन विद्यमान रहते है जब कि शुद्ध दूध में नाइट्रेट आयन्स बिलकुल नही होते है पोखर, नदी, एवं नाले के पानी में इन नाइट्रेट्स की अधिकता होती है और जब ये पानी दूध में मिला दिया जाता है तब उसमें नाइट्रेट की उपस्थिति दर्ज कर ली जाती है और अपरोक्ष रूप से दूध में पानी मिले होने की संम्भावना जता दी जाती है। एक तरह से यह परीक्षण एक सूचक का कार्य करता है। आगे की जानकारी के लिए अन्य परीक्षण किए जाने जरूरी है।
नाइट्रेट परीक्षण करने का सिद्धांत:
नाइट्रेट की उपस्थिति में डाई फिनाइल अमीन अभिकारक आक्सीकृत हो जाता है और वह डाइफिनाइल वेन्जीडीज में बदल जाता है दूसरे नाइट्रेट अणु की उपस्थिति में यह क्युनोन इमानियम लवण में बदल जाता है और नीला रंग उत्पन्न कर देता है नाइट्रेट की अनुपस्थिति में यह रंग नही बन पाता है।
विधि:
सबसे पहले डाइफिनाइल अमीन (0.085 ग्राम) को 50 मिली. पानी में घोलकर धीरे-धीरे 450 मिली. सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल मिलाकर अभिकारक बनाते है।
फिर एक परखनली में 5 मिली. दूध लेते है।
उसमें 6-7 बूंद अम्लीय मरक्यूरिक अमोनियम क्लोराइड डालते है।
फिर मिश्रण को छान लेते है।
एक मिली. फिल्ट्रेट में 2 मिली. डाइफिनाइल अमीन अभिकारक मिलाते है।
नाइट्रेट की उपस्थिति में सतह पर नीला रंग दिखने लगता है।
नील रंग की सांद्रता नाइट्रेट की उपस्थिति एवं मात्रा दर्शाती है।
वीथ अनुपात निर्धारण:
वीथ वैज्ञानिक ने दूध के बहुत से नमूने लेकर उनका विश्लेष्ण किया और लैक्टोज प्रोटीन तथा भस्म में एक निश्चित अनुपात 13:9.2 का पाया। उनके द्वारा यह सुझाव गया कि यह अनुपात बहुत कम सीमा में विचलित होता है। भैस के दूध में यह अनुपात 6.5.1 पाया गया है दूध में सामान्य से कम वसा रहित ठोस होने पर यदि वीथ अनुपात सामान्य रहे तो दूध में पानी का अपमिश्रण समझना चाहिए।
दूध में सप्रेटा की मिलावट का पता करना:
दूध में सप्रेटा मिलाने पर दूध की वसा के अनुपात में वसारहित ठोस की मात्रा बढ़ जाती है। साथ-साथ दूध का लैक्टोमीटर मान भी बढ़ जाता है। इसलिए सप्रेटा मिले दूध की जांच के लिए उस दूध की वसा एवं वसा रहित ठोस दोनों की जांच करनी चाहिए।
इसके परीक्षण में वसा एवं प्रोटीन के अनुपात का भी सहारा लिया जा सकता है। साधारण दशा में प्रोटीन की मात्रा दूध में उपस्थित वसा की मात्रा से कम होती है। इस तरह वसा प्रोटीन का अनुपात सदैव शुद्ध दूध में एक से कम होगा। साधारण परिस्थितियों में यह अनुपात 0.9 से कम ही होता है और जब यह अनुपात 1 या 1 से ज्यादा होने लगे तो यह समझ लेना चाहिए की इसमें सप्रेटा मिला हुआ है या उसमें से आंशिक रूप में वसा निकाल ली गई है। किन्ही भी परिस्थिति में यदि यह अनुपात 0.9 से ज्यादा पाया जाता है तब यह दूध अपमिश्रित माना जाता है।
दूध में अपमिश्रित स्टार्च का पता करना:
दूध में पानी का अपमिश्रण छिपाने के लिए दूध में स्टार्च मिला कर उसका आपेक्षिक घनत्व समान कर देते है। दूध में इसकी जांच निम्नलिखित विधि द्वारा की जाती है।
(1) एक परखनली में 5 मिली. दूध लेकर उसे गर्म करते है फिर ठंडा।
(2) उसमें एक प्रतिशत आयोडीन का घोल 2 से 3 बूंद डालते है (एक ग्राम आयोडीन को 2% पोटैसियम आयोडाइड में घोल कर बनाते है) ।
(3) आयोडीन डालते ही यदि रंग नीला हो जाय और फिर गर्म करने पर यदि उड़ जाए तब ही समझना चाहिए की दूध में स्टार्च का अपमिश्रण किया गया है।
दूध में चीनी के अपमिश्रण का पता करना:
दूध में शक्कर की मिलावट भी उसके आपेक्षिक घनत्व को बढ़ाने के लिए की जाती है इसका परीक्षण निम्नवत करते है।
(1) एक परखनली में 10 मिली. दूध लेवे।
(2) उसमें 0.5 ग्राम अमोनियम मालिवडेट तथा 10 मिली हल्का गाढ़ा (1:10) हाइड्रोक्लारिक अम्ल मिलावे।
(3) फिर परखनली को जल उष्मक पर धीरे-धीरे गर्म करे।
(4) जब तापमान 80 डिग्री सें. पर पहुंच जाए तब उसमें उपस्थित नील रंग का अवलोकन करे।
(5) गाढे नील रंग की उपस्थिति चीनी का अपमिश्रण बताती है।
दूध में ग्लूकोज की जांच:
इसका अपमिश्रण दूध में ठोस पदार्थो की मात्रा बढ़ाने के लिए किया जाता है ग्लूकोज सफेद रंग गंध रहित तथा चीनी से कम मीठा होता है इसकी जांच निम्नवत तरीके से करते है-
(1) एक परखनली में 5 मिली. दूध लेते है।
(2) उतनी ही मात्रा में पानी 5 मिली. बेयरफार्ड रिएजेंट मिलाते है।
(3) मिश्रण को 2-4 मिनट तक गर्म करते है।
(4) फिर इसे साधारण तापमान तक ठंडा करते है।
(5) फिर उसमें 1 मिली. फास्फोमालिविडेट अम्ल मिलाते है।
(6) गहरा नीला रंग ग्लूकोज की उपस्थिति को दर्शाता है।
दूध में दुग्ध चूर्ण अथवा टोंड मिल्क का पता करना:
सामान्य दूध में आयतन का सप्रेटा दुग्ध चूर्ण व पानी मिलाकर उसकी मात्रा बढ़ाकर एक निश्चित वसा रंग बनाते समय प्रोटीन विकृति होकर कम घुलनशील हो जाती है इसलिए इस कम घुलनशील प्रोटीन के आधार पर यह पता लगाया जा सकता है कि दिए गए दूध में दुग्ध चूर्ण मिला हुआ है या नही। इसकी जांच हेतु एक परखनली में दूध लेकर उसमे 1-2 बूंद नाइ ट्रिक अम्ल डालकर गर्म करते है। पीला रंग सामान्य दूध को दर्शाता है जब कि बैगनी रंग अपमिश्रित दूध को दर्शाता है।
गाय एवं भैस के दूध का अपमिश्रण ज्ञात करना:
भैस के दूध में पानी मिला कर गाय के रूप में बेचना एक आम बात हो गई है। इसलिए इस अपमिश्रण का पता लगाना बहुत ही आवश्यक हो गया है। राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान के बाद एक परीक्षण निकाला गया है जिसे हंसा परीक्षण का नाम दिया गया है। इससे गाय के दूध में यदि थोड़ा बहुत भैस का दूध मिला हुआ हो तो इस हंसा परीक्षण द्वारा आसानी से और कम समय में ज्ञात किया जा सकता है।
सिद्धांत:
यदि किसी जाति विशेष के दूध की प्रोटीन द्वारा प्रतिसिरम तैयार किया जाता है और फिर उसी के दूध में वापस मिलाया जाए तब उसके दूध की प्रोटीन अवक्षेपीय हो जाती है जब की अन्य जाति से प्राप्त दूध पर इसका कोई असर नही पड़ता है।
यदि भैस के दूध से प्राप्त सप्रेटा को 1:9 के अनुपात में मिला कर खरगोस के कान की नश में डाल दिया जाए तब दूध में उपस्थित प्रोटीन की प्रतिक्रिया से खरगोश के रक्त में भैस के दूध की प्रोटीन का प्रतिसिरम तैयार हो जाता है इस तरह से तैयार प्रतिसिरम हंसा परीक्षण के लिए उपयुक्त होगी या प्रतिसिरम उसकी प्रोटीन को अवक्षेपित कर देगा। यानी साधारण भाषा में दूध में थक्के बन जाएगे।
परीक्षण विधि:
इस परीक्षण की उपयोगिता को देखते हुए इसके लिए एक किट भी तैयार कर ली गई है जिसका प्रयोग आसानी से बिना किसी बाहरी संयत्र के कर सकते है इस किट में दो चार कांच की स्लाइड एक सीसे का छड तथा एक छोटी सीसी में तैयार किया हुआ प्रतिसिरम रखा रहता है।
परीक्षण करने के लिए कांच की एक प्लेट पर एक बूंद प्रतिसिरम एवं एक बूंद दूध कांच छड़ी की सहायता से मिलाते है एक मिनट तक प्रतीक्षा कर मिश्रण में अवक्षेपी प्रतिक्रिया देखते है। मामूली सा अवक्षेपण होने पर भैस के दूध की उपस्थिति का पता लगाया जा सकता है। यदि अवक्षेपण नही होते तो समझना चाहिए कि उसमें भैस का दूध नही है यदि नमूने वाले दूध में एक प्रतिशत तक भी भैस का दूध है तब प्रोटीन का अवक्षेपण अवश्य हो जाएगा। यदि दूध से वसा निकाल ली जाए और दूध को थोड़ा पानी मिलाकर पतला करले तब हंसा परीक्षण आसानी से अपना नतीजा अवक्षेपण के रूप में दे सकेगा।
अभिरंजक पदार्थो का अपमिश्रण ज्ञात करना:
भैस के दूध में पानी मिलाकर तथा कुछ पीले अभीरंजक मिलाकर गाय के दूध की तरह बेचना एक सामान्य अपमिश्रण है साधारणतया दूध में निम्नलिखित अभीरंजक मिलाए जाते है।
(क) कृत्रिम रंग
(ख) कोलतार रंग (एजोडाई) तथा
(ग) हल्दी
परीक्षण -1
10 मिली. दूध में 10 मिली. ईथर मिलाकर खूब अच्छी तरह हिलाते है। तत्पश्चात कुछ मिनटों के लिए मिश्रण को रखकर ईथर के कालम में रंग की उपस्थिति देखते है इस कालम में रंग की साद्र्ता मिलाए गए रंग के अनुपात में होती है।
परीक्षण -2
अपमिश्रित दूध में सोडियम कार्बोनेट डालकर क्षारीय बना देते है। फिर फिल्टर पेपर की एक पट्टी 12 घंटे के लिए उसमें डुबो देते है। फिल्टर पेपर पर लाल पीले रंग उभरने पर एनैटो कलर की उपस्थिति संभावित होती है। इस पट्टी को स्टेनस क्लोराइड के घोल में डालने पर यदि रंग गुलाबी हो जाय तब एनैटो रंजक की उपस्थिति निश्चित मानी जाती है।
परीक्षण -3
अपमिश्रित दूध के नमूने में सान्द्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की कुछ बुँदे मिलाकर हिलाने से यदि गुलाबी रंग विकसित हो तो पीले रंग की एजोडाई की उपस्थिति समझी जाती है।
दूध में यूरिया एवं अन्य नाइट्रोजन उर्वरक की उपस्थिति ज्ञात करना:
कभी-कभी दूध में वसा रहित ठोस की मात्रा बढ़ाने के लिए यूरिया या अमोनियम सल्फेट मिलाएं जाते है। इन सबसे बड़ी समस्या आज सिंथैटिक दूध (बनावटी दूध) की है जो कि प्रांत एवं देश एवं देश के कई शहरों में आज धडल्ले से बनाया एवं बेचा जा रहा है इसके सेवन से उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। आजकल कई तरह के बनावटी दूध बाजार में आने लगे है लेकिन जांच से ज्यादातर नमूनों में यूरिया की उपस्थिति पाई गई है। किन्ही-किन्ही नमूनों में अमोनियम सल्फेट की भी उपस्थिति दर्ज की गई है आजकल यह एक समस्या बनी हुई है। यदि किन्ही नमूनों में इनकी उपस्थिति पाई जाती है तो यह मान लेना चाहिए कि उनमें बनावटी दूध का अपमिश्रण है। इसी बात को ध्यान में रखकर यूरिया एवं अमोनियम सल्फेट की उपस्थिति के लिए परीक्षणों का वर्णन निम्नवत किया गया है।
यूरिया:
(1) लगभग 100 मिली. दूध लेकर उसमें 2-5 मिली. ट्राइक्लोरोएसिटिक अम्ल डालते है।
(2) गर्म पानी में इसको रखते है जो आगे रखने पर फट जाता है।
(3) फटे दूध में फिल्टर पेपर से छानकर फिल्ट्रेट अलग कर लेते है।
(4) फिल्ट्रेट को अलग परख नली में लेकर थोड़ा-थोड़ा सोडियम हाइड्राक्साइड एवं बाद में फिनाल डालते है।
(5) हिलाकर कुछ देर रखने पर नीला या हरा रंग की उपस्थिति यह बतलाती है कि दूध में यूरिया मौजूद है।
(6) रंगहीन परिस्थितियों में शुद्ध दूध का अनुमान होता है।
नोट: आज कल पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा विकसित यूरिया स्ट्रिप भी इसकी जांच के लिए उपयुक्त हो रही है यह एक आसान एवं विश्वसनीय तकनीक है।
अमोनियम सल्फेट:
इसकी जांच हेतु दूध में सोडियम हाइड्राक्साइड, सोडियम हाइपोक्लोराइड एवं फिनायल डालकर उबलते पानी में दूध को गर्म करते है। नीलापन जो जल्द ही गहरे नीले रंग में परिवर्तित हो जाता है, अमोनियम सल्फेट की उपस्थिति को दर्शाता है। जबकि शुद्ध दूध में यह रंग पहले गुलाबी होता है जो कि 2 घंटे में जाकर नीले रंग में परिवर्तित होता है।
इसके अलावा एक अन्य विधि से दूध को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल या एसिटिक अम्ल द्वारा विघटित किया जाता है इसे छान कर व्हे अलग कर लिया जाता है। इस व्हे में बेरियम क्लोराइड का घोल डाल कर हिलाते है। अमोनियम सल्फेट के दूध में होने की स्थिति में सफेद रंग का अवक्षेप देखने को मिलता है।
दूध में विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मिलाए गए परिपक्षक तथा निष्प्रभावको के लिए विभिन्न परीक्षण अलगी इकाई में वर्णित किए जायेगे।