देशी पशुओं का पंजीकरण और नस्ल विकास पर संगोष्ठी का आयोजन
पटना: बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय पटना और भाकृअनुप- राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो,करनाल संयुक्त तत्वावधान में देशी पशुधन आबादी की बढ़ोतरी, उनके पंजीकरण और नस्ल के विकास पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय द्वारा राज्य के सभी जिलों के पशुचिकित्सकों को इस संगोष्ठी में आमंत्रित किया गया, साथ ही कृषि विज्ञान केंद्र, स्वयं सहायता समहू, एन.जी.ओ, जीविका और कम्फेड से भी प्रतिभागियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो,करनाल के निदेशक डॉ आर.के. विझ, प्रधान वैज्ञानिक डॉ एम.एस टांटिया विशेषज्ञ के तौर पर मौजूद थे। अपने अभिभाषण में श्री विझ ने कहा की पशुधन जनसँख्या और संसाधन में बिहार पुरे देश में अव्वल है, बिहार में देशी पशुओं की जनसँख्या में वृद्धि करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरुरत है क्योंकि पशुधन में विविधता थोड़ी संकीर्ण है। उन नस्लों को चिन्हित करने की जरुरत है जिनकी प्रजाति अब समाप्त होने की कगार पर है। उन्होंने पशुओं के पंजीकरण पर भी अपनी बाते रखी. बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल, के लिए नोडल सेण्टर के रूप में कार्य करेगा और बिहार राज्य को मदद करेगा, ताकि आने वाले दिनों में देशी पशुओं की जनसँख्या में वृद्धि हो।
राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एम.एस टांटिया ने कहा की पूर्वी भारत में खासकर बिहार में पशुओं की जनसँख्या के सबसे अच्छे आकड़े सामने आये है, इसे और आगे ले जाने की जरुरत है, साथ ही विलुप्त होती प्रजातियों को बचते हुए उनका पंजीकरण और मान्यता दिलाने हेतु काम करने की जरुरत है, ताकि बिहार के पशुधन संसाधन और कार्य को पुरे देश में जाना जा सके।
बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रामेश्वर सिंह ने कहा की राज्य के आर्थिक विकास में पशुधन की बहुत बड़ी महत्ता है, जिस प्रकार पुरे विश्व की जैव-विविधता खतरे में है, यह जरुरी हो गया है की हम विलुप्त होते प्रजातियों को बचाने के लिए काम करे। औद्योगिकीकरण और मानव जनसँख्या में वृद्धि से पशुधन को काफी नुकसान हुआ है, और निरंतर चौकाने वाले आकड़े सामने आ रहे है, जो विचारणीय है। पशुओं को अलग-अलग वर्णित और वर्गीकृत तो कर दिया गया है पर ऐसी कोई तंत्र और पद्धत्ति नहीं थी जिनसे पशुओं का पंजीकरण और मान्यताएं दी जा सके। और जबकि यह अब संभव हो पाया है हमें इस और कार्य करने से पीछे नहीं हटना चाहिए, इसके लिए फील्ड पर जाकर कार्य करने की आदत को खुद पर लागु करना पड़ेगा जिसके परिणाम स्वरुप बदलते हुए मौसम में भी हम भविष्य में बिहार के पशुधन विविधता में राज्य को प्रथम पायदान पर रख सके।
कार्यक्रम में दो तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया था, प्रथम तकनीकी सत्र में डॉ एम.एस टांटिया ने भारत के पशु आनुवंशिक संसाधन- वर्णन और पंजीकरण की आवश्यकता, डॉ पि.सी चंद्रन और डॉ. आर.के.सिंह ने भारत के पूर्वी क्षेत्र की पशु आनुवंशिक संसाधन- स्थिति और कार्यक्षेत्र, और डॉ. आर. के. विझ ने पशु आनुवांशिक संसाधन का आनुवंशिक लक्षण वर्णन पर व्याख्यान दिया, वहीं दूसरी ओर दूसरे तकनीकी सत्र में डॉ. एस.के. निरंजन ने नस्ल के पंजीकरण के लिए आवेदन की विधि पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर निदेशक अनुसन्धान डॉ. रविन्द्र कुमार, कुलसचिव डॉ पी.के कपूर, निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ ए.के ठाकुर, डीन बिहार पशुचिकित्सा महाविद्यालय डॉ.जे.के.प्रसाद, डॉ रमेश कुमार सिंह आदि मौजूद थे.
Satya Kumar
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