नवजात पशुओं में दस्तों की समस्या-निदान एवं बचाव

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नवजात पशुओं में दस्तों की समस्या-निदान एवं बचाव**
बछड़ों में 3 माह की आयु तक दस्त होने की समस्या सबसे आम रोगों में से एक है, जिसके कारण बछड़ों की मृत्यु दर में वृद्धि हो जाती है, जिसके फलस्वरुप पशुपालकों को गंभीर वित्तीय नुकसान उठाना पड़ता है। बछड़ों में दस्त के कारण आंतों द्वारा तरल पदार्थों का अवशोषण असंतुलित होने से इलेक्ट्रोलाइट्स की मात्रा घट जाती है तथा बछड़ा डिहाइड्रेशन/निर्जलीकरण (पानी की कमी) एवं एसिडोसिस से ग्रस्त हो जाता है जो कि उनकी मृत्यु के मुख्य कारण होते हैं।
बछड़ों में दस्त के कारण:
बछड़ों में दस्त के कारणों को दो श्रेणियों में बाँटा गया है:-
(a) असंक्रामक कारण
(b) संक्रामक कारण
(a) असंक्रामक कारण:
1. गर्भवती मादा पशु को अपर्याप्त पोषण –
गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों में गर्भवती मादा पशु के आहार में ऊर्जा, प्रोटीन, विटामिन-ए, विटामिन-ई एवं खनिज़ तत्तों की कमी से कोलोस्टन्न्म की गुणवत्ता एवं मात्रा पर प्रतिकूल प्रभाव के कारण बछडा़ें में दस्त की समस्या हो सकती हैं।
2. नवजात बछड़ों के लिए प्रतिकूल वातावरण –
नवजात बछड़ों को भीड़-भाड़ वाले दूषित वातावरण में तथा बड़े पशुओं के साथ रखने से दस्त की समस्या हो सकती हैं। इसके अलावा अत्यधिक हिमपात, वर्षा एवं कम तापमान भी नवजात बछड़ों के लिए प्रतिकूल वातावरण स्थापित करते हैं। जिससे बछड़ों में संक्रामक रोगों एवं दस्त के होने की आशंका बढ़ जाती है।
3. नवजात बछड़ों की अनुचित देखभाल –
प्रतिकूल वातावरण में जन्म लेने वाले बछड़ों की उचित देखभाल अत्यन्त आवश्यक है। बछड़ों को जन्म के 12 घण्टों के भीतर कम से कम शारीरिक वजन का 10 प्रतिशत कोलेस्टन्न्म अवश्य पिलाना चाहिए, क्योंकि नवजात बछड़ों को दस्त करने वाले संक्रामक कारकों से बचाने के लिए एन्टीबाॅडी कोलोस्टन्न्म द्वारा ही प्राप्त हो पाते हैं तथा जन्म के 24 घंटे बाद कोलोस्टन्न्म पिलाना लाभकारी नहीं होता, क्योंकि बछड़ों की आंतों द्वारा एन्टीबाॅडी का अवशोषण बहुत ही कम हो जाता है। बछड़ों को यदि अधिक समय तक भूखा रखा जाए अथवा नियमित समय पर दूध न पिलाया जाए, तो बछड़े दूध मिलने पर आवश्यकता से अधिक दूध पी लेते हैं, जो ठीक से पच न पाने के कारण बछड़ों में दस्त का कारण बन जाता हैं इसके अलावा मिल्क रिप्लेसर (दूध के बदले पदार्थ) को बदलने से या अच्छी गुणवत्ता वाले मिल्क रिप्लेसर की जगह खराब गुणवत्ता वाला मिल्क रिप्लेसर देना भी बछडा़ें में दस्त का कारण बन सकता हैं
(b) संक्रामक कारण :
जीवाणु
1. ईस्चििरिशिया कोलाई (ई. कोलाई) –
यह मुख्यतः दूषित वातावरण द्वारा फैलता है। स्वस्थ पशुओं तथा दस्त से पीड़ित बछड़ों का गोबर ई. कोलाई का मुख्य स्रोत है। इससे होने वाले दस्त में डिहाइडन्न्ेशन एवं मृत्यु बहुत तीव्रता से 24 घण्टों के भीतर हो जाती है।
2. साल्मोनेला –
साल्मोनेला का पशुगृह में संÿमण दूसरी गाय, चिड़िया, बिल्ली, चूहे, जल-आपूर्ति या मानव वाहकों द्वारा हो सकता है। बछड़ों में दस्त के साथ खून एवं फाइब्रिन की मल में उपस्थिति, तनाव तथा बुखार इसके मुख्य लक्षण है।
3. क्लॉस्ट्रीडियम परफ्रीजेन्स –
इससे होने वाले संक्रमण को एन्टरोटाक्सिमिया भी कहते हैं। इन जीवाणुओं द्वारा दस्त, मौसम में बदलाव, आहार में बदलाव तथा बछड़ों को अधिक समय तक भूखा रखने से होता है। इससे बछड़ों में कमजोरी एवं मृत्यु बहुत तीव्रता से होती है तथा मृत्यु से पूर्व पेट में दर्द तथा तंत्रिका तंत्र से संबंधित लक्षण देखे जा सकते हैं।
विषाणु
1. रोटा वाॅयरस –
यह आँत की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचता है। इससे होने वाले दस्त मेें मृत्यु मुख्यतः पानी की कमी से होती है।
2. कोरोना वाॅयरस –
यह भी आँत की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचता है तथा इस विषाणु के सहयोग से अन्य जीवाणु रोग कारक भी दस्त कर सकते हैं।
3. बोवाइन वाॅयरल डायरिया वाॅयरस –
इस विषाणु से पीड़ित बछड़ों की जीभ-होंठ एवं मुँह में अल्सर एवं इरोजनस जैसे घाव पाये जाते हैं।
प्रोटोजोआ
1. क्रिप्टोस्पोरिडियम –
यह प्रोटोजोआ स्वयं या अन्य कारकों जैसे कोरोना वायरस, रोटा वायरस तथा ई. कोलाई के साथ दस्त की समस्या का कारण बनता हैं इससे पीडित़ बछडा़ें की आयु 1-3 हप्तों के मध्य ही होती हैं
2. काॅक्सिडिया –
एक हप्ते से 4-6 माह तक की आयु के बछडा़ें में काॅक्सिडिया की समस्या अधिक होती हैं यह रोग दूषित एवं भीड़-भाड़ वाले वातावरण में अधिक होता है। बछड़ों में काले रंग का गोबर, खूनी दस्त तथा कभी-कभी तंत्रिका तंत्र से संबंधित लक्षण देखे जा सकते हैं।
3. कवक एवं खमीर –
कवक एवं खमीर भी कभी-कभी बछड़ों के आमाश्य एवं आंतों में घाव उत्पन्न करते हैं, परन्तु यह दस्त के मुख्य कारक नहीं होते हैं। यदि दस्त से पीड़ित बछड़ों को आवश्यकता से अधिक ऐन्टीबाॅयोटिक दिया जाये तथा पानी की कमी दूर करने के लिए तरल पदार्थ एवं इलेक्ट्रोलाइट ना दिये जाये तो कवक एवं खमीर के दस्त उत्पन्न करने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं ।
निदान :
1. बाड़ें में पूर्व समय में हुए दस्त के कारणों की जानकारी द्वारा हम दस्त के कारणों का अनुमान लगा सकते हैं।
2. लक्षणों की जानकारी द्वारा –
(क) सामान्य लक्षण –
बछड़ों का सुस्त होना, भूख न लगना एवं खाना-पीना कम कर देना, दस्त होना, त्वचा के लचीलेपन का कम होना तथा सामान्य से कम या अधिक तापमान होना सामान्य लक्षण होते हैं।
(ख) विशिष्ट लक्षण –
ई. कोलाई के संक्रमण से सफेद दस्त होते हैं एवं कभी-कभी खून के थक्के भी आते हैं। साल्मोनेला के संक्रमण से गहरे भूरे रंग के पानी जैसे बदबूदार दस्त होते हैं। क्लाॅस्टिन्न्डियम के संÿमण से तंत्रिका तंत्र से संबंधित लक्षण दिखाई दे सकते हैं तथा बछड़ा अपने पेट पर लातें मारता है, परन्तु सामान्यतः बिना लक्षणों की उपस्थिति के ही बछड़ों की मृत्यु हो जाती है। रोटा वाॅयरस के संक्रमण में पीले से हरे रंग के पानी के दस्त होते हैं एवं मुँह से थूक निकलता है। कोरोना वाॅयरस के संक्रमण से भी दस्त रोटा वाॅयरस जैसे ही होते हैं, लेकिन गोबर में अण्डें के सफेद भाग की तरह का म्यूक्स पदार्थ आता है। प्रोटोजोआ से होने वाले दस्त में खून की उपस्थिति सामान्य होती है।
3. प्रयोगशाला जांच द्वारा –
जीवित पशु के मल, खून एवं सीरम तथा मृत पशु के यकृत, स्पलीन, मस्तिष्क, गुर्दे एवं आँत की लसिका ग्रन्थि की जांच द्वारा रोग कारक का पता लगाया जा सकता है, मल पदार्थ के कल्चर द्वारा जीवाणु को अलग किया जा सकता है तथा इसके लिए विशेष मीडिया प्रयोग किये जाते हैं, कोशिकाओं में कल्चर से विषाणु को भी पहचाना जा सकता है, इसके अलावा एलीसा, आई.एच.टी., सी.एफ.टी. एवं फैट तकनीक द्वारा भी दस्त के कारक की जांच की जा सकती है।
उपचार:
दस्त के उपचार के लिए लूड थेरेपी प्रयोग करनी चाहिए एवं निर्जलीकरण को दूर करने के लिए मुँह द्वारा तथा नसों द्वारा तरल पदार्थ देना चाहिए, ऐन्टीबाॅयोटिक का प्रयोग भी आवश्यक है, विस्मिथ लवण जैसे पदार्थ भी देने चाहिए। एस्टिन्न्नजेन्ट का प्रयोग भी दस्त रोकने में बहुत प्रभावकारी होता है। प्रोबाॅयोटिक देने से भी दस्त से पीड़ित बछड़े की स्थिति में सुधार होता है। दस्त से पीड़ित बछड़ों में शरीर का तापमान कम हो जाता है, अतः तापमान को संतुलित रखने के लिए इलैक्टिन्न्क हीटर का प्रयोग किया जा सकता हैं
रोकथाम एवं बचाव:
बछड़ों में दस्त के रोकथाम एवं बचाव के लिए पूरे साल प्रयास करना अत्यधिक महŸवपूर्ण है, निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर हम बछड़ों का दस्त से बचाव कर सकते है-
गर्भवती पशु को ऊर्जा, प्रोटीन, खनिज एवं विटामिन से भरपूर संतुलित आहार देना चाहिए। बछड़े के जन्म के समय बाड़ा सूखा एवं साफ होना चाहिए। बाड़ों में गोबर इकट्ठा नहीं रहना चाहिए। पशुओं के खाने-पीने के बर्तन साफ होने चाहिए। बाड़ों में हवा के आने-जाने का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। बछड़ों में दस्त होने की स्थिति में उनके बाड़ों को रोगाणुनाशक पदार्थों से साफ करना चाहिए एवं बछड़ों को नये साफ बाडे़ं में रखना चाहिए। बाडे़ं में बछडा़ें की संख्या सीमित रखनी चाहिए। बछड़ों के बेडिंग को भी बदल देना चाहिए या धूप में अच्छे से सुखाना चाहिए। बाड़ें में पक्षियों, चूहों तथा पालतू पशुओं की आवाजाही को नियंत्रित रखना चाहिए। बछड़ों की देख-रेख करने वाले कर्मचारियों को भी अपनी स्वच्छता का भी ध्यान रखना चाहिए तथा हाथों को साबुन से धोकर ही बछड़ों को पानी व भोजन देना चाहिए। बाड़ें में प्रवेश द्वार पर चूना डाल देना चाहिए। बाड़ें का फर्श ढ़लान वाला होना चाहिए ताकि पानी इकट्ठा न हो सकें।
बीमार बछड़ों को अलग बाड़ें में रखकर उनका उपचार करना चाहिए। बाड़ें में नए बछडा़ें को लाने से पहले उन्हें कुछ समय अलग रखना चाहिए। बछड़ों को जन्म के 12 घण्टें के भीतर कोलोस्टन्न्म/खींस अवश्य पिलाना चाहिए। यदि बछड़े की मा° थनलैा या किसी अन्य रोग से पीड़ित हो, तो बछड़ों को बाजार में उपलब्ध ›ोजन कोलोस्टन्न्म भी दिया जा सकता है। नवजात बछड़ों को 50,000 आई.यू. विटामिन-ए का इन्जेक्शन लगाना चाहिए, जिससे विटामिन-ए की कमी से होने वाले दस्त से बचा जा सके। ई. कोलाई से बचाव के लिए के. 99 ई. कोलस्टन्न्म एन्टीजन वाला टीका भी प्रयोग किया जा सकता है। उपर्युक्त वर्णित लक्षणों की सही समय पर पहचान द्वारा एवं बताई गयी सावधानियों को अपनाकर, नवजात पशुओं का दस्तों से बचाव किया जा सकता है।

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