नवजात पशुओं में संक्रामक रोग का नियंत्रण और रोकथाम कैसे करे ?

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नवजात पशुओं में संक्रामक रोग का नियंत्रण और रोकथाम कैसे करे ?
नवजात पशुओं में संक्रामक रोगों के नियंत्रण और रोकथाम के मुख्य रूप से 4 सिद्धांत हैं। इन चारों सिद्धांतों का उपयोग उसकी जातिए रोग की विविधताएँ प्रबंधन प्रणाली और पहले प्रयोग किये हुए उस विशेष प्रबंधन तरीके की सफलता पर निर्भर करता है।
1. वातावरण से संक्रमण के जोखिम को कम करना:
a. पशु का जन्म साफ, सूखे, आश्रित एवं अनुकूल वातवरण में होना चाहिए।
b. पशु के प्रसव क्षेत्र को पहले से तैयार कर लेना चाहिए।
c. कोई भी पारंपरिक पशु क्षेत्र निष्फल तो नहीं हो सकता लेकिन जीवन के पहले कुछ सप्ताह के दौरान और कोलोस्ट्रम (पहला दूध-खीस) देने से पहले, संक्रमण दर को कम करने के लिए इसे साफ रखा जा सकता है।
d. थोड़ी जगह में ज्यादा पशुओं को नहीं रखना चाहिए।
e. डेयरी झुण्ड में मातृत्व कक्ष को घरेलू कार्यों से अलग रखने के अलावा साफ और नया बिस्तर भी देना चाहिए।
f. अत्यधिक दूषित वातावरण में संक्रमण को रोकने के लिए नाभि पर आयोडीन से मिली पट्टी करनी चाहिए या नालपोत को पेट के नजदीक से प्लास्टिक क्लैंप से भी बाँधकर संक्रमण को प्रभावी ढंग से कम किया जा सकता है।
g. नवजात पर कठिन और धीमे प्रसव के कारण होने वाले दुष्प्रभाव को कम करना मुख्य लक्ष्य होना चाहिए। स जहाँ तक सम्भव हो सके, नवजात को गर्मी, सर्दी व बर्फ के चरम अनावरण को कम करने के प्रयास करने चाहिए।
h. अगर जरूरत हो तो, आश्रय शेड बनाने चाहिए।
I. शाम के 4 बजे से 6 बजे के बीच में प्रतिबंधित खाना देने से रात में बछड़ों का जन्म कम हो सकता है।
2. नवजात को संक्रमित वातावरण से निष्काषित करना:
a. व्यस्क गायों द्वारा उत्पन्न आँतों के रोगजनक, बछड़ों में संक्रमण का एक जोखिम हैं। इसलिए डेयरी बछड़ों को जन्म के बाद/समय उनकी माँ से अलग कर दिया जाता है और व्यक्तिगत बाड़ों (घर के अन्दर या बाहर) में रखकर, मुख्य झुण्ड से अलग पाला जाना चाहिए।
b. इससे नवजातों में दस्त और निमोनिया की तीव्रता कम होगी और उन बछड़ों के मुकाबले जो माँ के साथ रहते हैं, मृत्यु-दर का जोखिम भी कम होगा।
c. व्यक्तिगत आवास की ज्यादा प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि इससे नाभिका चूसना और बीमारी के साथ सीधे सम्पर्क वाले दूसरे तरीकों का संचरण रुक जाता है।
3. नवजात के बढ़ते हुए अविशिष्ट प्रतिरोध को बनाये रखना:
a. सफल जन्म के बाद, जितनी जल्दी हो सके नवजात को कोलोस्ट्रम (खीस) दे देना चाहिए।
b. बछड़ा कितनी मात्रा में कोलोस्ट्रम लेगा यह उपलब्ध मात्रा, बछड़े की ताकत/चुस्ती, गाय द्वारा बछड़ें को स्वीकार करना और प्रबंधन प्रणाली पर निर्भर करता है।
c. बछड़ा/पालन इकाईओं को सीधे उस फार्म से बछड़ें खरीदने चाहिए जहाँ खीस पिलाने की एक स्थापित नीति हो और परिवहन तनाव को कम करने के हर प्रयास करने चाहिए जैसे उचित बिस्तर देकर, बिना आराम के लगातार लम्बी यात्रा से बचाकर और केवल स्वस्थ बछड़ों को लेकर।
d. सफलतापूर्वक कोलोस्ट्रम लेने और नवजात के साथ बन्धन बनने के बाद विशेष खान-पान और रहन-सहन की जरूरतों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
e. नवजात के लिए दूध रीप्लेसर में उच्च गुणवत्ता की सामग्री होनी चाहिए।
f. दूध रीप्लेसर जिनमें केवल दूध वाले प्रोटीन है उनमें 22 प्रतिशत और जिनमें बिना दूध वाले प्रोटीन हंै, उनमें 2426 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन होना चाहिए।
g. वसा का स्तर कम से कम 15 प्रतिशत होना चाहिए, ज्यादा वसा की मात्रा अतिरिक्त उर्जा देगी जिसकी जरुरत ठंडी जलवायु के दौरान हो सकती है।
h.प्रत्येक खाने के बाद बर्तनों को साफ और कीटाणु-रहित करना चाहिए।
4. टीकाकरण द्वारा नवजात के विशिष्ट प्रतिरोध को बढ़ाना:
a. संक्रमण रोगों के खिलाफ विशिष्ट प्रतिरोध को बढ़ने के लिए गर्भावस्था में टीकाकरण किया जा सकता है जिससे खीस में केन्द्रित विशिष्ट रोग प्रतिरोधक क्षमता (एंटीबाॅडी) का उत्पादन होता है और जन्म के बाद नवजात में स्थानांतरित हो जाती है।
b. माँ का टीकाकरण नवजात को आँतों और सांस की बीमारियों से बचाता है।

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