अजोला
अजोला तेजी से बडऩे वाली एक प्रकार की जलीय फर्न है, जो पानी की सतह पर तैरती रहती है। धान की फसल में नील हरित काई की तरह अजोला को भी हरी खाद के रूप में उगाया जाता है और कई बार यह खेत में प्राकृतिक रूप से भी उग जाता है। अजोला की सतह पर नील हरित शैवाल सहजैविक के रूप में विध्यमान होता है। इस नील हरित शैवाल को एनाबिना एजोली के नाम से जाना जाता है जो कि वातावरण से नत्रजन के स्थायी करण के लिए उत्तरदायी रहता है। देखने में यह शैवाल से मिलती-जुलती है और आमतौर पर उथले पानी में अथवा धान के खेत में पाई जाती है।
पशुओं को अजोला चारा खिलाने के फायदे
अजोला से पशुओं में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहे की आवश्यकता की पूर्ति होती है जिससे पशुओं का शारिरिक विकास अच्छा है। अत: इसकी संरचना इसे अत्यंत पौष्टिक एवं असरकारक आदर्श पशु आहार बनाती है। यह गाय, भैंस, भेड़, बकरियों, मुर्गियों आदि के लिए एक आदर्श चारा सिद्ध हो रहा है।
दुधारू पशुओं पर किए गए प्रयोगों से साबित होता है कि जब पशुओं को उनके दैनिक आहार के साथ 1.5 से 2 किग्रा. अजोला प्रतिदिन दिया जाता है तो दुग्ध उत्पादन में 15-20 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गयी है। इसके साथ इसे खाने वाली गाय-भैसों की दूध की गुणवत्ता भी पहले से बेहतर हो जाती है। प्रदेश में मुर्गी पालन व्यवसाय भी बहुतायत में प्रचलित है। यह बेहद सुपाच्य होता है और यह मुर्गियों का भी पसंदीदा आहार है। कुक्कुट आहार के रूप में अजोला का प्रयोग करने पर ब्रायलर पक्षियों के भार में वृद्धि तथा अण्डा उत्पादन में भी वृद्धि पाई जाती है। यह मुर्गी पालन करने वाले व्यवसाइयों के लिए बेहद लाभकारी चारा सिद्ध हो रहा है। यही नहीं अजोला को भेड़-बकरियों, सूकरों एवं खरगोश, बतखों के आहार के रूप में भी बखूबी इस्तेमाल किया जा सकता है।
भारत में पशु धन को साल में 8-9 महीने अपौष्टिक सूखा चारा ही नसीब होता है। दरअसल वर्ष के कम से कम दो तिहाई समय देश के सभी क्षेत्रों में हरे चारे की किल्लत रहती है। किसान अपने पशुओं को सुबह-शाम धान का पुआल या अन्य अपौष्टिक सूखा चारा ही दे पाते है और फिर चरने के लिए खुला छोड़ देते है। दुधारू पशुओं को प्रतिदिन कम से कम दो किलो दाने की आवश्यकता होती है। चारा दाना महंगा होने के कारण पशुओं को पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है। इसके चलते पशुओं में तेजी से बढ़ती कुपोषण की समस्या के कारण आज हमारे यहां प्रति पशु प्रतिदिन का दूध उत्पादन एक लीटर या इससे भी कम है। इसी वजह से दुग्ध उत्पादन घाटे का व्यवसाय होता जा रहा है जिससे किसानों का पशुधन के प्रति मोह भंग होता जा रहा है। पशु आहार के विकल्प की खोज में एक विस्मयकारी फर्न-अजोला चारे के रूप में उपयोगी हो सकता है। दूध की बढ़ती मांग के लिए आवश्यक है कि पशु पालन व्यवसाय को अधिक लाभकारी बनाया जाए।
अजोला का उत्पादन
अजोला का उत्पादन बहुत ही आसान है। सबसे पहले किसी भी छायादार स्थान पर 2 मीटर लंबा, 2 मीटर चौड़ा तथा 30 सेमी. गहरा गड्ढा खोदा जाता है। पानी के रिसाव को रोकने के लिए इस गड्ढे को प्लास्टिक शीट से ढंक देते है। जहां तक संभव हो पराबैंगनी किरणरोधी प्लास्टिक सीट का प्रयोग करें। प्लास्टिक सीट सिलपोलीन एक पॉलीथिन तारपोलीन है जो कि प्रकाश की पराबंैगनी किरणों के लिए प्रतिरोधी क्षमता रखती है। सीमेंट की टंकी में भी एजोला उगाया जा सकता है। सीमेंट की टंकी में प्लास्टिक सीट बिछाने की आवश्यकता नहीं हैं। अब गड्ढे में 10-15 किग्रा. मिट्टी फैलाना है। इसके अलावा 2 किग्रा. गोबर एवं 30 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट 10 लीटर पानी में मिलाकर गड्ढे में डाल देना है। पानी का स्तर 10-12 सेमी. तक हो। अब 500-1000 ग्राम अजोला कल्चर गड्ढे के पानी में डाल देते हैं। पहली बार एजोला का कल्चर किसी प्रतिष्ठित संस्थान मसलन प्रदेश में स्थित कृषि विश्वविद्यालयों के मृदा सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग से क्रय करें। अजोला बहुत तेजी से बड़ता है और 10-15 दिन के अंदर पूरे गड्ढे को ढंक लेता है। इसके बाद से 1000-1500 ग्राम अजोला प्रतिदिन छलनी या बांस की टोकरी से पानी के ऊपर से बाहर निकाला जा सकता है। प्रत्येक सप्ताह एक बार 20 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 1 किलो गोबर गड्ढे में डालने से अजोला तेजी से विकसित होता है। साफ पानी से धो लेने के बाद 1.5 से 2 किग्रा. अजोला नियमित आहार के साथ पशुओं को खिलाया जा सकता है।
अजोला उत्पादन में सावधानियां
• अजोला की तेज बढ़वार और उत्पादन के लिए इसे प्रतिदिन उपयोग हेतु (लगभग 200 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से) बाहर निकाला जाना आवश्यक हैं।
• समय-समय पर गड्ढे में गोबर एवं सिंगल सुपर फॉस्फेट डालते रहें जिससे अजोला फर्न तीव्र गति से विकसित होता रहे।
• प्रति माह एक बार अजोला तैयार करने वाले गड्ढे या टंकी की लगभग 5 किलो मिट्टी को ताजा मिट्टी से बदलेें जिससे नत्रजन की अधिकता या अन्य खनिजों की कमी होने से बचाया जा सके।
• अजोला तैयार करने की टंकी के पानी के पीएच मान का समय-समय पर परीक्षण करते रहें। इसका पीएच मान 5.5-7.0 के मध्य होना उत्तम रहता है।
• प्रति 10 दिनों के अंतराल में, एक बार अजोला तैयार करने की टंकी या गड्ढे से 25-30 प्रतिशत पानी ताजे पानी से बदल दें जिससे नाइट्रोजन की अधिकता से बचायें।
• प्रति 6 माह के अंतराल में, एक बार अजोला तैयार करने की टंकी या गड्ढे को पूरी तरह खाली कर साफ कर नये सिरे से मिट्टी, गोबर, पानी एवं अजोला कल्चर डालें।
• कु. गणेश्वरी बंजारे, कृषि महाविद्यालय,
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छग)