पशुओं में अक्सर होने वाले “अपच” (Indigestion) की समस्या एवं उसका निदान

0
683

By-. डॉ जितेंद्र सिंह, पशु चिकित्सा अधिकारी, पशुपालन विभाग, कानपुर देहात ,उत्तर प्रदेश.

भारत एक कृषि प्रधान देश होने के साथ ही पशुधन में भी प्रथम स्थान रखता है। पशुओं की देखभाल में पशुपालकों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पशुपालकों को पशु स्वास्थ्य का प्रारंभिक ज्ञान होना अति आवश्यक है। जिससे उनमें होने वाले साधारण रोगों को पशुपालक समझ सके और उनका उचित उपचार किया जा सके। डेयरी गाय पौष्टिक दुग्ध का उत्पादन कर मानव के भोजन में महत्वपूर्ण योगदान देती है। पशुओं को होेने वाले सभी रोगों में पाचन संबंधी रोग प्रायः होते है। अपच दुधारू गायों में होने वाली एक ऐसी समस्या है, जो कि ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों में दुग्ध उत्पादन को कम कर भारत को आर्थिक नुकसान की ओर अग्रसर कर रही है। गायों का प्रमुख पाचन अंग रूमेन है, जहाँ पौधों से उत्पन्न सामग्रियों का माइक्रोबियल गतिविधि के कारण संशोधन होता है। अधिक दुग्ध उत्पादन वाले पशुओं में अपच एक प्रमुख समस्या है। अपच की स्थिति में अधिक मात्रा में अपचित भोजन रूमेन में एकत्रित हो जाता है, जिसके कारण रूमेन की कार्य करने की क्षमता एवं वहाँ उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु भी प्रभावित होते है। जब रूमेन सही तरीके से काम नहीं कर पाता तो जानवरों में इसके कारण अनेकों तरीेके की समस्याएँ जैसे हाजमा खराब होना अफरा आदि उत्पन्न करती है। फलतः उत्पादन क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। अपच की समस्या सीधे डेयरी फार्म की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है। अतः दुधारू गायों की सामान्य शारीरिक क्रिया एवं उत्पादन क्षमता में तालमेल बनाये रखने के लिए उनके भोजन एवं प्रबंधन में पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

READ MORE :  Lumpy Skin Disease (LSD): an Emerging Disease in India

अपच के लिए मुख्यतः 3 कारक-

1. प्रबंधन कारक-

खाने का प्रकार-अधिक मात्रा में दाना देने से पशुओं में अपच की समस्या आती है
कम गुणवत्ता वाला चारा खिलाना/या अधिक मात्रा में दलहनी हरा चारा एवं नयी पत्ती वाला हरा चारा खिलाना।
खाद्यान्न के प्रकार में अचानक परिवर्तन।

2. वातावरणीय कारक-

गरम तापमान-वातावरण का अधिक तापमान भी अपच का कारण होता है।
नम हरा चारा-इस तरह का चारा मुख्यतः मानसून के समय मिलता है जो कि पशुओं को खिलाने से उनमें अपच की समस्या उत्पन्न करता है।

3. पशुकारक-

ट्रांजिशन पीरियड (प्रसव अवस्था के पहले एवं बाद)
अधिक उम्र
जरका खाना
एक ही करवट लेटे रहने से, आँतों में रूकावट होने के कारण होता है।
दुधारू गायों में मुख्यतः तीन प्रकार का अपच होता हैः-

1. अम्लीय अपचः-

रूमेन एसिडोसिस एक महत्वपूर्ण पोषण संबंधी विकार है। यह मुख्यतः उत्पादकता बढ़ाने के लिये अत्याधिक किण्वन योग्य भोजन खिलाने के कारण होता है। स्टार्च खिलाने से अत्याधिक किण्वन होने के कारण रूमेन में बेक्टीरिया की संख्या बढ़ जताी है। ये बेक्टीरिया रूमेन में अधिक मात्रा में वोलेटाइल फेटी एसिड एवं लेक्टिक एसिड का उत्पादन करने लगते है, जिसके फलस्वरूप रूमेन एसिडोसिस एवं अपच की समस्या उत्पन्न होती है।

2. क्षारीय अपचः-

अत्याधिक मात्रा में प्रोटीन युक्त भोजन अथवा गैर प्रोटीन नाइट्रोजन युक्त पदार्थ खाने से रूमेन एल्कालोसिस अथवा क्षारीय अपच की समस्या दुधारू पशुओं में देखी जाती है। रोग की विशेषता यह है कि इसमें रूमेन में अमोनिया का अत्याधिक उत्पादन होने लगता है, जिसके कारण आहारनाल संबंधी जैसे अपच, लिवर, किडनी, परिसंचरण तंत्र एवं तंत्रिका तंत्र में गड़बड़ी आने लगती है।

READ MORE :  Management of Obstructive Urolithiasis in a Male Bovine Calf

3. वेगस अपचः-

मूल रूप से यह विकार वेट्रल वेगस तंत्रिका को प्रभावित करने वाले घावों/चोट/सूजन अथवा दबाव के परिणाम स्वरूप होता है। यह समस्या मुख्य रूप से मवेशियों में देखी जाती है, परंतु कभी-कभी भेड़ों में भी यह विकार देखा गया है।

अपच से जुड़ी समस्याएँ –

रूमिनल एसिडोसिस- रूमेन के पी.एच. का कम होजाना।
रूमिनल एल्कलोसिस- रूमेन के पी.एच. का बढ़ जाना।
अफरा-गैस का पेट में रूक जाना।

अपच के लक्षण-

1. पशुओं का जुगाली कम करना।
2. पशुओं में भूख की कमी।
3. दूध का कम देना।
4. डिहाइड्रेशन
5. पशु सुस्त हो जाता है एवं सूखा तथा सख्त गोबर करता है।

उपचार-

1. पहचान होने पर सर्वप्रथम इसके कारण का निवारण करना चाहिये जैसे यदि खराब चारा हो तो तुरंत बदल देना चाहिये या पेट में कृमि हो तो उपयुक्त कृमिनाशक दवा देनी चाहिए।
2. पेट की मालिश आगे से पीछे की ओर एवं खूँटे पर बंधे पशु को नियमित व्यायाम कराना चाहिए।
3. देशी उपचार-हल्दी, कुचला, अजवाइन, गोलमिर्च, कालीमिर्च, अदरक, मेथी, चिरायता, लोंग पीपर इत्यादि का उपयोग पशु के वजन के हिसाब से किया जा सकता हैं
4. एलोपेथिक-
1. फ्लूड उपचार-अपच प्रभावित पशु को शरीर अनुसार पर्याप्त मात्रा में डी.एन.एस., आर.एल., एन.एस. देना चाहिए।
2. मैग्नीशियम हाइड्रोक्साइड- 100-300 ग्राम 10 लीटर पानी के साथ देना चाहिए।
3. मैग्नीशियम कार्बोनेट- 10-80 ग्राम
4. सोडियम बाई कार्बोनेट- 1ग्रा./कि. भार के अनुसार
5. विनेगार (शिरका) 5 प्रतिशत- 1 मि.ग्रा./कि. भार के अनुसार देना चाहिए।
6. एंटीबायोटिक जैसे पेनिसिलीन, टायलोसीन, सल्फोनामाइड, टेट्रासाइकिलिन का उपयोग किया जा सकता है।
इसके साथ ही-
एंटीहिस्टामिनिक (एविल, सिट्रीजिन) एवं बी.काम्पलेक्स इंजेक्शन दिया जा सकता हैं।
इन सभी एलोपेथिक दवाइयों का उपयोग पशुचिकित्सक की सलाह अनुसार ही किया जाना चाहिये।

READ MORE :  GASTROESOPHAGEAL REFLUX DISEASE IN DOGS

अपच के रोकथाम-

1. पशुओं को संपूर्ण मिश्रित भोजन खिलाना चाहिये। दाने एवं चारे (हे) को अलग-अलग नहीं खिलाना चाहिये।
2. पशुओं को रोज निर्धारित समय पर ही भोजन कराना चाहिये।
3. स्वच्छ पानी ही पशुओं को देना चाहिये।
4. चारे में परिवर्तन धीरे-धीरे लगभग 21 दिनों में करना चाहिये।
5. भोजन के साथ कैल्शियम प्रोपिओनेट, सोडियम प्रोपिओनेट, प्रोपायलीनग्लायकोल आदि को ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में दिया जा सकता है।
6. गर्मी के मौसम में छायादार, हवादार एवं ठंडे स्थान में पशुओं को रखना चाहिए ताकि उनमें कम से कम गर्मी का दुष्प्रभाव पड़े।
7. दुधारू पशु को प्रतिदिन लगभग 50 ग्राम ,खाने वाला सोडा जिसको मीठा सोडा कहते हैं , खिलाएं।

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON